क्लेम
प्रकरणों
में
विधिक
प्रक्रिया
का
दुरूपयोग
नहीं
होने
देना
-
न्याय दृष्टांत वीरप्पा व अन्य विरूद्ध सिद्दप्पा व अन्य प्(2010) एक्सीडेंट एण्ड कम्पंसेषन केसेस-644 (डी.बी.) के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के द्वारा यह व्यक्त किया गया है कि अनुभव दर्षाता है कि मोटर दुर्घटना मुआवजे से संबंधित विधि की शाखा धीरे-धीरे ऐसे व्यक्तियों के हाथों में आ रही है, जो न्यायिक प्रक्रिया का माखौल बना रहे हैं। पुलिस, चिकित्सकों, अधिवक्ताओं और यहा तक कि बीमा कंपनियों के माध्यम से एक नापाक गठजोड़ उस दुखद चलन की ओर इषारा करता है, जो लोकधन को वैधानिक तरीके से प्राप्त करने के लिये तेजी से उभर रहा है तथा इस प्रक्रिया में संलग्न लोग अपने व्यवसाय में सफलता के कारण सम्मान भी प्राप्त कर रहे हैं। यह एक खतरनाक रूझान है तथा यदि इसे रोका नहीं गया तो इससे न्यायिक प्रक्रिया को नुकसान पहुचेगा। उक्त मामले में यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि न्यायालयों को ऐसे मामलों के निराकरण के समय न केवल सावधान रहना चाहिये, बल्कि ऐसे तरीके भी ढूढना चाहिये, जिससे कि कानून के दुरूपयोग की प्रक्रिया को रोका जा सके। दुर्घटना से पीडित पक्ष या उसके उत्तराधिकारियों को उचित प्रतिकर अवष्य मिलना चाहिये, लेकिन यह सुनिष्चित किया जाना आवष्यक है कि विधिक प्रक्रिया का दुरूपयोग न किया जाये तथा उसे ऐसे लोगों के हाथ का खिलौना न बनने दिया जाये, जिन्होंने दुरूपयोग करने में विषेषज्ञता हासिल कर ली हो। निष्चय ही न्यायालयों के कंधों पर इस बारे में एक महत्वपूर्ण दायित्व है तथा कठोर रूप से यह संदेष दिया जाना आवष्यक है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग नहीं होने दिया जायेगा।
न्याय दृष्टांत वीरप्पा व अन्य विरूद्ध सिद्दप्पा व अन्य प्(2010) एक्सीडेंट एण्ड कम्पंसेषन केसेस-644 (डी.बी.) के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के द्वारा यह व्यक्त किया गया है कि अनुभव दर्षाता है कि मोटर दुर्घटना मुआवजे से संबंधित विधि की शाखा धीरे-धीरे ऐसे व्यक्तियों के हाथों में आ रही है, जो न्यायिक प्रक्रिया का माखौल बना रहे हैं। पुलिस, चिकित्सकों, अधिवक्ताओं और यहा तक कि बीमा कंपनियों के माध्यम से एक नापाक गठजोड़ उस दुखद चलन की ओर इषारा करता है, जो लोकधन को वैधानिक तरीके से प्राप्त करने के लिये तेजी से उभर रहा है तथा इस प्रक्रिया में संलग्न लोग अपने व्यवसाय में सफलता के कारण सम्मान भी प्राप्त कर रहे हैं। यह एक खतरनाक रूझान है तथा यदि इसे रोका नहीं गया तो इससे न्यायिक प्रक्रिया को नुकसान पहुचेगा। उक्त मामले में यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि न्यायालयों को ऐसे मामलों के निराकरण के समय न केवल सावधान रहना चाहिये, बल्कि ऐसे तरीके भी ढूढना चाहिये, जिससे कि कानून के दुरूपयोग की प्रक्रिया को रोका जा सके। दुर्घटना से पीडित पक्ष या उसके उत्तराधिकारियों को उचित प्रतिकर अवष्य मिलना चाहिये, लेकिन यह सुनिष्चित किया जाना आवष्यक है कि विधिक प्रक्रिया का दुरूपयोग न किया जाये तथा उसे ऐसे लोगों के हाथ का खिलौना न बनने दिया जाये, जिन्होंने दुरूपयोग करने में विषेषज्ञता हासिल कर ली हो। निष्चय ही न्यायालयों के कंधों पर इस बारे में एक महत्वपूर्ण दायित्व है तथा कठोर रूप से यह संदेष दिया जाना आवष्यक है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग नहीं होने दिया जायेगा।
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