Thursday, 29 May 2014

गिरफ्तारी की विधि और प्रक्रिया एवं उसके अधिकार


एक वयस्क व्यक्ति (पुरूष या स्त्री) और ‘विधि सम्बन्धित निरोध में किशोर की गिरफ्तारी की विधि और प्रक्रिया एवं उसके अधिकार, यदि कोई हो, समझाइयें ?
    
     भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह मौलिक अधिकार है कि उसे उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता सें विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा अन्यथा नहीं। लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध को करने का अभियोग लगाया जाता है तब विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुये उसकी गिरफ्तारी आवश्यक होती है ऐसी गिरफ्तारी में उस व्यक्ति के अधिकार, गिरफ्तारी की विधि व प्रक्रिया के बारे में आवश्यक प्रावधानों व वैधानिक स्थिति को समझ लेना आवश्यक होता है तभी भारतीय नागरिकों के उक्त मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सकती है।
     न्यायदृष्टांत डी0 के0 बसु विरूद्ध स्टेट आफ वेस्ट बंगाल, ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 610 व जोगिन्दर कुमार विरूद्ध स्टेट आफ यू0पी0, ए.आई.आर. 1994 एस.सी. 1349 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति की  गिरफतारी व निरोध के बारे में कई दिशा निर्दैश दिये है जिन्हें अब दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में संशोधन कर के समावष्टि कर लिये गये है जिन पर हम विचार करेगे।
     धारा 41 बी द0 प्र0 सं0 गिरफ्तारी की प्रक्रिया तथा गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के कत्र्तव्य-
     प्रत्येक पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी करते समय -
    (ए)     अपने नाम का सही, दृश्य मान तथा स्पष्ट पहचान धारण करेगा जो कि पहचान को सहज कर सकेगा,
    (बी)     गिरफ्तारी का ज्ञापन तैयार करेगा जो कि -
(1)     कम से कम एक साक्षी द्वारा जो गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के परिवार का सदस्य है, या जहा गिरफ्तारी की गई है, उस मोहल्ले का किसी सम्मानीय सदस्य द्वारा अनुप्रमाणित किया जायेगा
(2)     गिरफ्तारी किये गये व्यक्ति द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किया जायेगा,  तथा
   (सी)     जब तक ज्ञापन उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा अनुप्रमाणित नहीं किया जाता, गिरफ्तारी किये गये व्यक्ति को सूचित करेगा की उसे उसके द्वारा नामित नातेदार या मित्र को उसकी सूचना दिये जाने का अधिकार है।
     धारा 41 सी द0प्र0सं0 जिलों में नियंत्रण कक्ष -
 (1) राज्य सरकार -
    (ए)    प्रत्येक जिले में, तथा 
    (बी)     राज्य स्तर पर, (एक पुलिस नियंत्रण कक्ष स्थापित करेगी।
  (2)     राज्य सरकार प्रत्येक जिले में नियंत्रण कक्ष के बाहर रखे गये नोटिस बोर्ड पर गिरफ्तार किये गये व्यक्तियो के नाम, पते तथा गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारियों के नाम तथा पदनाम प्रदर्शित करवायेगी।
  (3)     राज्य स्तर पर पुलिस मुख्यालय पर नियंत्रण कक्ष समय-समय पर गिरफ्तार किये गये व्यक्ति, अपराध की प्रकृति जिनके लिए उन्हें आरोपित किया गया है, के विवरण एकत्रित करेगा तथा जनसाधारण की सूचना के लिए आकडे रखेगा।
     धारा 46 द0प्र0सं0 गिरफ्तारी कैसे की जायेगी - 
(1) गिरफ्तारी करने में पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति जो गिरफ्तारी कर रहा है, गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुतः छूऐगा या परिरूद्ध करेगा, जब तक उसके वचन या कर्म  द्वारा उसने अपने आप को अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो।
(2)     यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किये जाने का प्रयास का बलात् प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति  आवश्यक सब साधनों को उपयोग में ला सकता है।
(3)     इस धारा की कोई बात ऐसी व्यक्ति की जिस पर मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का अभियोग नहीं है, मृत्यु कारित करने का अधिकार नहीं देती है।
     न्याय दृष्टांत स्टेट आफ उत्तर प्रदेश विरूद्ध देमन उपाध्याय, ए.आई.आर. 1960 एस.सी. 1125 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय के चरण 12 में धारा 46 के बारे में यह प्रतिपादित किया है कि धारा 46 दं.प्र.सं. एक व्यक्ति को अभिरक्षा में लेने के पूर्व किसी औपचारिकता के बारे में प्रावधान नहीं करती है मुंह से कहे गये शब्द या व्यक्ति की क्रिया पर्याप्त होती है।
     धारा 51 द0प्र0सं0 गिरफ्तार व्यक्ति की तलाशी गिरफ्तार किये गये व्यक्तियों चाहे वे पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किये गये हो या प्राईवेट व्यक्ति द्वारा धारा 43 द0प्र0सं0 के तहत  गिरफ्तार करके पुलिस को सौपे गये हो, संबंधित पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति की तलाशी ले सकते है और पहनने के आवश्यक वस्त्रो को छोड़कर यदि उनके पास कोई वस्तु पाई जाती है तो उसे सुरक्षित अभिरक्षा में रख सकता है और गिरफ्तार व्यक्ति से अभिग्रहित वस्तु की रसीद देने के प्रावधान है ।
     धारा  52 द्र0प्र0.स्र0 आक्रामक आयधु को अभिग्रहणं गिरफ्तार व्यक्ति के पास यदि कोई आक्रामक आयुध पाये जाते है तो उन्हें अभिग्रहित करने के प्रावधान है।
     धारा 55 ए द0प्र0सं0 के अनुसार अभियुकत की अभिरक्षा रखने वाले व्यक्ति का यह कत्र्तव्य होगा कि वह अभियुक्त के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की युक्तियुक्त देख-रेख करे ।
     धारा 58 दं0प्र0सं0 के अनुसार पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी जिला मजिस्टेट को या उसके ऐसे निर्देश देने पर उपखण्ड मजिस्टेट को, अपने अपने थाने की सीमाओं के भीतर वारण्ट के बिना गिरफ्तार किये अये सब व्यक्तियों कें मामले के रिपोर्ट करेंगे चाहे उन व्यक्तियों की जमानत ले ली गई हो या नहीं।
                    महिलाओं के बारे में विशेष प्रावधान
     उक्त प्रावधानों के साथ-साथ जहां किसी महिला को गिरफ्तार किया जाना हो वहां निम्न प्रावधान भी ध्यान में रखना होते हैः-
     धारा 46 (1) द0प्र0सं0 के परंतुक के अनुसार -
     परंतु यह की जहां किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाता है, जब तक परिस्थितियां विपरित संकेत न दे गिरफ्तारी की मौखिक सूचना पर, अभिरक्षा में उसकी समर्पण की उपधारणा की जायेगी तथा जब तक परिस्थितियां अन्यथा अपेक्षा न करे या जब तक पुलिस अधिकरी महिला न हो तब तक उसको गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारी स्त्री के शरीर का स्पर्श नहीं करेगा।
     धारा 46 (4) द.प्र0सं0 के अनुसार असधारण परिस्थितियों के सिवाय, कोई स्त्री सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं की जायेगी और जहां ऐसी असाधारण परिस्थितियां विद्यमान है वहां स्त्री पुलिस अधिकारी, लिखित में रिपोर्ट करके, उस प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुज्ञा प्राप्त करेगी, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर अपराध किया गया है या गिरफ्तारी की जानी है।
     न्यायदृष्टांत शीला बारसे वि0 स्टेट आफ महाराष्ट्र, ए.आई.आर. 1983 एस.सी. 378 में यह प्रतिपादित किया गया है कि महिला अभियुक्त को पुलिस थाने में पृथक लाकप में रखा जाना चाहिए उन्हें  पुरूष अभियुक्त के साथ निरूध नहीं करना चाहिए यदि ऐसा लाकप उपलब्ध न हो तो उन्हें पृथक कमरे में रखना चाहिए।
     न्यायदृष्टांत स्टेट आफ महाराष्ट्र वि0 क्रिश्चियन कम्यूनिटि वेलफेयर काउंसिल आफ इंडिया, ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 7 में ये प्रतिपादित किया गया है कि जहां महिला को गिरफ्तार किया जाना हो वहां गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी ऐसे सभी प्रयास करेंगे कि महिला सिपाही उपस्थित रहे लेकिन परिस्थितियों ऐसी हो कि महिला सिपाही उपस्थित न हो या गिरफ्तारी में विलम्ब अनुसंधान को प्रभावित करे तब गिरफ्तार करने वाला अधिकारी कारण अभिलिखित करेगा उसके बाद ही महिला को विधि पूर्ण कारणों से गिरफ्तार कर सकेगा।
     धारा 53  (2) दं.प्र.सं. के अनुसार किसी स्त्री की शारीरिक परीक्षा केवल रजिस्ट्रीकृत महिला चिकित्सा व्यवसायी या उसके पर्यवेक्षण में कराना होती है।
             विधि संबंधित निरोध में किशोर के बारे में
     धारा 10 किशोर न्याय  (बालकों की देख रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के अनुसार जैसे ही विधि संबंधित निरोध में कोई किशोर पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है, उसे विशेष किशोर पुलिस इकाई या पदाभिहित  (क्मेपहदंजमक) पुलिस अधिकारी के प्रभार के अधीन रखा जायेगा जो उस किशोर को बिना कोई समय गवाये और पकड़े गये स्थान से बोर्ड तक लाने में यात्रा में लगे समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर बोर्ड के समक्ष पेश करेंगा,
     परंतु किसी भी दशा में, विधि संबंधित विरोध में कोई किशोर पुलिस लोकअप में नहीं रखा जायेगा या जेल नहीं भेजा जायेगा।
     धारा 10 (2) के तहत राज्य सरकार को इस अधिनियम के संबंध में और किशोर बोर्ड के समक्ष ऐसे व्यक्तियों को पेश करने के संबंध में नियम बनाने की शक्तियाँ दी गई हैं।
     जिसके प्रयोग में राज्य सरकार ने नियम 11 किशोर न्याय  (बालकों की देख रेख और संरक्षण) नियम 2007 बनाया है जिसमें इस संबंध में आवश्यक प्रावधान किये गये हैं। जो निम्नानुसार है:-
                  न्यायिक अधिकारी के बारे में
     न्याय दृष्टांत देल्ही ज्यूडिसियल सर्विस ऐशोसियेशन तीस हजारी कोर्ट देल्ही विरूद्ध स्टेट आफ गुजरात, ए.आई.आर. 1991 सुप्रीम कोर्ट 2176 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने न्यायिक अधिकारी की गिरफ्तारी और निरोध के संबंध में कुछ दिशा निर्देश जारी किये है जो निम्नानुसार हैः-
ए.     यदि किसी न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध में गिरफ्तार किया जाना हो तब उसे जिला जज या उच्च न्यायालय को सूचित करते हुये ही गिरफ्तार किया जाये।
बी.     यदि तथ्य और परिस्थितियाँ ऐसी हो की अधिनस्थ न्यायालय के न्यायिक अधिकारी को तत्काल गिरफ्तार किया जाना आवश्यक हो तब एक तकनीकी या औपचारिक गिरफ्तारी प्रभाव में लाई जा सकती हैं।
सी.     गिरफ्तारी की तथ्य की सूचना तत्काल संबंधित जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को भेजी जावे।
डी.     ऐसे गिरफ्तार किये गये न्यायिक अधिकारी को पुलिस थाना नहीं ले जाया जायेगा जब तक की संबंधित जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश इस बावत् पूर्व आदेश व निर्देश न दे दे।
ई.     संबंधित न्यायिक अधिकारी को उसके परिवार के सदस्यों, विधिक सलाहकारों और  जिला एवं सत्र न्यायाधीश सहित अन्य न्यायिक अधिकारीगण से संपर्क करने की तत्काल सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी।
एफ.     संबंधित न्यायिक अधिकारी के विधि सलाहकार की उपस्थिति में ही या समान या उच्च रेंक के न्यायिक अधिकारी की उपस्थिति में ही संबंधित न्यायिक अधिकारी का बयान अभिलिखित किया जायेगा या कोई पंचनामा बनाया जायेगा या कोई चिकित्सा परीक्षण कराया जायेगा अन्यथा नहीं।
जी.     संबंधित न्यायिक अधिकारी को हथकड़ी नहीं लगाई जायेगी और यदि परिस्थितिया ऐसी हो तब तत्काल संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश को प्रतिवेदन दिया जायेगा और मुख्य न्यायाधीश को भी प्रतिवेदन दिया जायेगा लेकिन पुलिस पर यह प्रमाण भार रहेगा की वह भौतिक गिरफ्तारी और हथकड़ी लगाना आवश्यक हो गया था यह प्रमाणित करे यदि भौतिक गिरफ्तारी और हथकड़ी लगाना न्याय संगत नहीं पाया जाता है तब संबंधित पुलिस अधिकारी दुराचार का दोषी हो सकेगा और प्रतिकर के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी रहेगा।
              गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार
     गिरफ्तार व्यक्ति के निम्न अधिकार होते है
 पूछताछ के दौरान अपने पसंद के अधिवकता सें मिलने का अधिकार
     धारा 41 डी दं0 प्र0 सं0 के अनुसार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है तथा पुलिस द्वारा उससे परिप्रश्न किये जाते है, तो परिप्रशनों के दौरान उसे अपने पंसद के अधिवक्ता से मिलने का हक होगा, पूरे परिप्रश्नों के दौरान नहीं।
     संविधान के अनुच्छेद 22 (1) में भी गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के विधि व्यवसायी से परामर्श करने का मौलिक अधिकार दिया  गया है।
गिरफ्तारी के आधार व जमानत के अधिकार के बार में जानने का अधिकार
     धारा 50(1) दं0प्र0सं0 के अनुसार किसी व्यक्ति को वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकरी या अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति को उस अपराध की, जिसके लिए वह गिरफ्तार किया गया है पूर्ण विशिष्टियाँ या ऐसी गिरफ्तारी के अन्य आधार तुरंत सूचित करेगा।
     धारा 50(2) दं0प्र0सं0 के अनुसार जहां कोई पुलिस अधिकरी अजमानती अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, वहां वह गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को सूचना देगा कि वह जमानत पर छोडे जाने का अधिकार है और वह प्रतिभू का इंतजाम करे।
गिरफ्तारी आदि के बारे में मित्रो और रिशेतेदारों को सूचना का अधिकार
     धारा 50 ए (1) दं0प्र0सं0 के अनुसार इस संहिता के अधीन कोई गिरफ्तारी करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकरी या अन्य व्यक्ति ऐसी गिरफ्तार या उस स्थान के बारे में जहां गिरफ्तार किया गया व्यक्ति रखा जा रहा है, जानकारी उसके मित्रों, नातेदारों या ऐसे अन्य व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किये गये व्यक्ति द्वारा ऐसी जानकारी देने के प्रयोजन के लिए प्रकट या नामर्निदिष्ट किया जाये, उसको तुरंत देगा ।
     धारा 50 ए (2) के  अनुसार पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को, जैसे ही वह पुलिस थाने में लाया जाता है उपधारा 1 के अ धीन उसके अधिकारों के बारे में सूचित करेगा ।
     धारा 50 ए (3) के अनुसार इस तथ्य की प्रविष्टि की ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी की सूचना किसे दी गई है, राज्य सरकार द्वारा विहित प्रारूप में रखी जाने वाली पुस्तक में की जायेगी।
     धारा 50 ए(4) के अनुसार उस मजिस्टेट का जिसके समक्ष ऐसे गिरफ्तार किया गया व्यक्ति, पेश किया जाता है, यह कत्र्तव्य होगा कि वह अपना समाधान करे कि उपधारा (2), (3) की अपेक्षाओं का पालन किया गया है ।
गिरफ्तारी से 24 घंटे से अधिक निरूध न करने संबंधी अधिकार
     धारा 56 दं0प्र0सं0 के अनुसार वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने वाल पुलिस अधिकारी अनावश्यक विलंब के बिना और जमानत के संबंध में आवश्यक प्रावधानों के अधीन रहते हुये जो गिरफ्तार किया गया है उस मामले में अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष या किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जायेगा या भेजेगा।
     धारा 57 दं0प्र0सं0 1973 के अनुसार कोई पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उससे अधिक अवधि के अभिरक्षा में निरूध नहीं रखेगा जो उसक मामले की सब परिस्थितियों में उचित है तथा ऐसी अवधि, मजिस्टेट के धारा 167 के अधीन विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्टेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोडकर 24 घंटे से अधिक की नहीं होगी।
     संविधान के अनुच्छेद 22 (2) में भी इस संबंध में प्रावधान है की गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोडकर ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्टेट के समक्ष पेश किया जायेगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरूध नहीं रखा जायेगा।
                            हथकड़ी के बारे में
     न्यायदृष्टांत प्रेम चंद शुक्ला वि0 दिल्ली एडमिनिस्टेशन ए.आइ.आर. 1980 एस.सी.1535 में यह प्रतिपादित किया गया है कि विचाराधीन बंदियों को जेल से न्यायालय तक लाने या न्यायालय से जेल तक ले जाने तक हथकडी नहीं लगाई जाना चाहिए। बंदी की अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी अधिकारी को प्रत्येक बंदी के मामले पर विचार करके यह निश्चय करना चाहिए कि कया बंदी ऐसा व्यक्ति है जिसकी परिस्थितियां या जिसका आचरण व्यवहार और चरित्र को ध्यान में रखते हुये यह माना जा सकता हे कि वह भागने का प्रयत्न करेगा या शंति भंग करेगा इसी सिद्धांत को ध्यान में रख कर बंदी को हथकडी लगाने या न लगाने का के बारे में विनिश्चय करना चाहिए।
                                 मेडिकल परीक्षण का अधिकार
     धारा 54 (1) दं0प्र0सं0 के अनुसार जब किसी व्यक्ति को  गिरफ्तार किया जाता है, तब गिरफ्तार किये जाने के तुरंत बाद उसका केन्द्रीय या राज्य सरकार की सेवा में चिकित्सा अधिकारी द्वारा या उसके उपलब्ध न होने पर पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण किया जायेगा,
     परंतु जहां गिरफ्तार व्यक्ति महिला है तो उसके शरीर का परीक्षण महिला चिकित्सा अधिकारी या उसके पर्यवेक्षण में या उसके उपलब्ध न होने पर महिला पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा किया जायेगा ।
     धारा 54 (2) के अनुसार परीक्षण करने वाला अधिकारी गिरफ्तार किये गये व्यक्ति पर किसी क्षति या हिंसा के चिन्ह और उनके कारित होने का लगभग समय उल्लेख करते हुये अभिलेख तैयार करेगा ।
     धारा 54 (3) के अनुसार परीक्षण प्रतिवेदन के एक परत गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के या उसके द्वारा नामित व्यक्ति को दी जायेगी।
पोलीग्राफ टेस्ट, नारको टेस्ट या ब्रेन फिंगर प्रिंटिंग टेस्ट के बारे में अधिकार
     न्याय दष्टांत श्रीमति सैलवी विरूद्ध स्टेट आफ कर्नाटक, ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 1974 में तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि स्वयं को अपराध में फसाने के विरूद्ध संरक्षण अभियुक्त को अनुसंधान के अवस्था में भी प्राप्त होता है बल्कि संदिग्ध और अपराध के गवाह को भी यह संरक्षण प्राप्त होता है अतः किसी व्यक्ति को पोलीग्राफ टेस्ट या नारको टेस्ट या ब्रेन फिंगर प्रिंट टेस्ट के लिए कहना संविधान के अनुच्छेद 20 (3) एवं 21 के तहत् निजता के अधिकार का उलंघन है ये जांचे धारा 53 ए एवं 54 दं.प्र.सं. के क्षेत्र में नहीं आती हैं परंतु न्यायिक मजिस्टेट के सामने संबंधित व्यक्ति की सहमति अभिलिखित करने के पश्चात ऐसे टेस्ट करवाये जा सकते है और वह धारा 27 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार किये जा सकते हैं।
आवश्यक मामलों में ही गिरफ्तारी का अधिकार
     किसी भी व्यक्ति को पुलिस धारा 41 एवं धारा 42 दं.प्र.सं. में वर्णित परिस्थितियाँ होने पर ही गिरफ्तार कर सकती हैं।
     धारा 41 ए दं.प्र.सं. के अनुसार यदि मामला धारा 41 दं.प्र.सं. में नहीं आता है तब पुलिस अधिकारी का यह कत्र्तव्य है कि अभियुक्त को सूचना पत्र देगा और सूचना पत्र में उपस्थिति का स्थान और समय स्पष्ट किया जायेगा और यदि अभियुक्त सूचना पत्र की पालना में उपस्थित नहीं होता है केवल तभी उसे गिरफ्तार किया जा सकेगा अन्यथा नहीं। 
                                          विविध तथ्य 
     धारा 53 दं.प्र.सं. में गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर अभियुक्त के चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण करने के प्रावधान है जिसके अनुसार यदि पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के उचित आधार होते है कि गिरफ्तार व्यक्ति की शारीरिक परीक्षा से अपराध किये जाने के बारे में साक्ष्य मिल सकती है तब उप निरीक्षण या उससे उपर की पंक्ति का पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति का शारीरिक परीक्षण करवा सकता है।
     न्याय दृष्टांत संजीव नंदा विरूद्ध स्टेट आफ एन.सी.टी. देल्ही, 2007 सी.आर.एल.जे. 3786 में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि धारा 53 दं.प्र.सं. पुलिस अधिकारी के निवेदन पर अभियुक्त के चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण का प्रावधान करती है न्यायालय भी ऐसी शक्तियों का प्रयोग उचित मामले में कर सकते है और अभियुक्त को उसके रक्त का नमूना देने के लिए निर्देश कर सकते है चाहे अभियुक्त जमानत पर हो।
     धारा 53ए दं.प्र.सं. में बलात्संग के अपराधी व्यक्ति की चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षा करवाने के प्रावधान है।
     न्याय दृष्टांत कृष्ण कुमार मलिक विरूद्ध स्टेट आफ हरियाणा, (2011) 7 एस.सी.सी. 130 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि धारा 53 ए दं.प्र.सं. के प्रावधानों के प्रकाश में अभियोजन के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह अभियोक्त्री के वस्त्रों पर पाये गये शिमन और अभियुक्त के शिमन के मिलान या डी.एन.ए. टेस्ट उचित मामले में करवावे।
     जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके किसी मजिस्टेट या न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाता है तो उसे इस बात का समाधान करना चाहिये कि गिरफ्तारी उक्त प्रावधानों के अनुसार की गई है साथ ही अभियुक्त के संविधान द्वारा एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 द्वारा दिये गये उक्त अधिकारों का हनन तो नहीं हुआ है और यदि ऐसा पाया जाता है तब उचित वैधानिक कार्यवाही भी की जाना चाहिए।

(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.



2 comments:

  1. Main ek student hun. door door tk kisi party ya neta s merea koi sarokar nhi hai aur n hi kabhi mera kisi s jhagra hua hai ....Mere kilaf
    police m koi complain nhi hai
    Mere pr dhara 107/116 lga di gayi hain jo bikul niradhar hain ....
    Ab mujhe kya krna chahiye jisse mere pr lgi niradhin dharaon kharij kiya ja ske ....nirast ...samapt ho
    PLEASE SUGGEST ME

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  2. Main ek student hun. door door tk kisi party ya neta s merea koi sarokar nhi hai aur n hi kabhi mera kisi s jhagra hua hai ....Mere kilaf
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