न्यायिक अधिकारी के बारे में
न्याय दृष्टांत देल्ही ज्यूडिसियल सर्विस ऐशोसियेशन तीस हजारी कोर्ट देल्ही विरूद्ध स्टेट आफ गुजरात, ए.आई.आर. 1991 सुप्रीम कोर्ट 2176
में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने न्यायिक
अधिकारी की गिरफ्तारी और निरोध के संबंध में कुछ दिशा निर्देश जारी किये है
जो निम्नानुसार हैः-
ए. यदि किसी
न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध में गिरफ्तार किया जाना हो तब उसे जिला जज
या उच्च न्यायालय को सूचित करते हुये ही गिरफ्तार किया जाये।
बी.
यदि तथ्य और परिस्थितियाँ ऐसी हो की अधिनस्थ न्यायालय के न्यायिक
अधिकारी को तत्काल गिरफ्तार किया जाना आवश्यक हो तब एक तकनीकी या औपचारिक
गिरफ्तारी प्रभाव में लाई जा सकती हैं।
सी.
गिरफ्तारी की तथ्य की सूचना तत्काल संबंधित जिले के जिला एवं सत्र
न्यायाधीश और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को भेजी जावे।
डी.
ऐसे गिरफ्तार किये गये न्यायिक अधिकारी को पुलिस थाना नहीं ले जाया
जायेगा जब तक की संबंधित जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश इस बावत् पूर्व
आदेश व निर्देश न दे दे।
ई. संबंधित न्यायिक अधिकारी
को उसके परिवार के सदस्यों, विधिक सलाहकारों और जिला एवं सत्र न्यायाधीश
सहित अन्य न्यायिक अधिकारीगण से संपर्क करने की तत्काल सुविधा उपलब्ध कराई
जायेगी।
एफ. संबंधित न्यायिक अधिकारी के
विधि सलाहकार की उपस्थिति में ही या समान या उच्च रेंक के न्यायिक अधिकारी
की उपस्थिति में ही संबंधित न्यायिक अधिकारी का बयान अभिलिखित किया जायेगा
या कोई पंचनामा बनाया जायेगा या कोई चिकित्सा परीक्षण कराया जायेगा अन्यथा
नहीं।
जी. संबंधित न्यायिक अधिकारी को
हथकड़ी नहीं लगाई जायेगी और यदि परिस्थितिया ऐसी हो तब तत्काल संबंधित जिला
एवं सत्र न्यायाधीश को प्रतिवेदन दिया जायेगा और मुख्य न्यायाधीश को भी
प्रतिवेदन दिया जायेगा लेकिन पुलिस पर यह प्रमाण भार रहेगा की वह भौतिक
गिरफ्तारी और हथकड़ी लगाना आवश्यक हो गया था यह प्रमाणित करे यदि भौतिक
गिरफ्तारी और हथकड़ी लगाना न्याय संगत नहीं पाया जाता है तब संबंधित पुलिस
अधिकारी दुराचार का दोषी हो सकेगा और प्रतिकर के लिए व्यक्तिगत रूप से
उत्तरदायी रहेगा।
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