स्थानीय अन्वेषण के लिये कमीशन के बारे में
(आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.)
प्रायः व्यवहार वादों में पक्षकार द्वारा स्थानीय अन्वेषणप के लिये कमीशन जारी करने का आवेदनपत्र आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.के तहत प्रस्तुत किया जाता है। आवेदनपत्र प्रस्तुत करने वाला पक्षकार कमीशन जारी करना आवश्यक बतलाता है जबकि विरोधी पक्षकार की आपत्ति यह रहती है कि साक्ष्य संग्रहित करने के लिये कमीशन जारी नहीं किया जाना चाहिये तब न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न उपस्थित होते हैं कि कब कमीशन जारी करें व कब नहीं। साक्ष्य संग्रहण कब माने कब नहीं किसे कमिश्नर नियुक्त करें। क्या न्यायालय स्वप्रेरणा से भी कमीशन जारी कर सकता है या नहीं । ऐसे कमीशन के खर्चे कौन देगा ऐसा आवेदन प्रकरण के किस प्रक्रम पर आना चाहिये आदि। यहाॅ हम ऐसे ही प्रश्नों और उन पर नवीनतम वैधानिक स्थिति पर विचार करेंगे ताकि ऐसे आवेदनों का त्वरित निराकरण हो सके।
आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.के अनुसार किसी भी वाद में जिसमें न्यायालय विवाद में के किसी विषय के विशदीकरण के या किसी संपत्ति के बाजार मूल्य के या किन्हीं अंतकालीन लाभों या नुकसानी या वार्षिक शुद्ध लाभों की रकम के अभिनिश्चय के प्रयोजन के लिये स्थानीय अन्वेषण करना उचित समझता है न्यायालय ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे, ऐसा अन्वेषण करने के लिये और उस पर न्यायालय को रिपोर्ट देने के लिये उसे निर्देश देते हुये कमीशन निकाल सकेगा।
परन्तु जहाॅ राज्य सरकार ने उन व्यक्तियों के बारे में नियम बना दिये हैं जिनके नाम ऐसा कमीशन निकाला जा सकेगा वहाॅ न्यायालय ऐसे नियमों से आबद्ध होगा।
धारा 75 (बी) सी.पी.सी. में भी स्थानीय अन्वेषण करने के लिये कमीशन निकालने के बारे में प्रावधान हैं।
आदेश 39 नियम 7 (1) (ए) सी.पी.सी.के अनुसार न्यायालय पक्षकार के आवेदनपत्र पर वादग्रस्त संपत्ति के परीक्षण या निरीक्षण का आदेश कर सकता है।
नियम 264 (1) म0प्र0सिविल न्यायालय नियम 1961 के अनुसार जहाॅ विवादग्रस्त विषय सामान्य रूप से साक्ष्य लेने से निश्चित नहीं हो सकता हो वहाॅ न्यायालय स्थानीय अन्वेषण जारी कर सकता है।
1. प्रावधान की प्रकृति
कमीशन जारी करना या न करना न्यायालय के विवेकाधिकार का विषय है। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत लक्ष्मण वि. रामसिंह 1992 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 255 अवलोकनीय है।
2. कब कमीशन जारी करना उचित है
1. जब पक्षकारों के मध्य वादग्रस्त सम्पत्ति की पहचान का विवाद हो और अतिक्रमण का भी मामला हो तब यह अपरिवर्तनीय नियम है कि कमिश्नर नियुक्त करके वादग्रस्त सम्पत्ति का माप करवाना चाहिये । इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत कपूरीदेवी वि0 भागरी 1999(2) एम.पी.एल.जे. एस0एन0 27 अवलोकनीय है।
2. जहाॅं दोनों पक्ष अपने पंजीकृत विक्रयपत्रों के आधार पर स्वयं को किसी भूमि का स्वामी बतला रहें हो सम्पत्ति की पहचान और उसके सीमांकन का एक स्पष्ट प्रश्न हो वहाॅ यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह कमीशन नियुक्त करें और ऐसे मामले में कमीशन नियुक्त करने के लिये किसी आवेदन की आवश्यकता नहीं होती है इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत जसवंत वि0 दीनदयाल 2011(2) एम.पी.एल.जे. 576 अवलोकनीय है जिसमें न्याय दृष्टांत श्रीपत वि. राजेन्द्र प्रसाद (2000)6 सुप्रीम 389, हरियाणा वक्फ बोर्ड वि0 शांति स्वरूप (2008)8 एस.सी.सी. 671 व दुर्गाप्रसाद वि0 प्रवीण फौजदार 1975 एम.पी.एल.जे. 801(डी.बी.) पर विश्वास किया गया।
3. न्याय दृष्टांत हरियाणा वक्फ बोर्ड विरूद्ध शांति स्वरूप (2008)8 एस.सी.सी. 671 के मामले में दोनों पक्षों कीभूमि लगी हुई थी पक्षों के मध्य सीमांकन का विवाद था वादी ने उसकी भूमि पर अतिक्रमण का भी अभिवचन किया था प्रतिवादी ने जबाव में इसका खण्डन नहीं किया था अपीलार्थी ने विचारण न्यायालय और अपील न्यायालय में स्थानीय अन्वेषण के लिये आवेदन भी दिये थे जो निरस्त किये गये थे मान्नीय सर्वोच्च न्यायालय ने कमीशन नियुक्ति की आवश्यकता बतालते हुये आवेदन स्वीकार किया गया।
4. न्याय दृष्टांत निमाबाई वि0 सरस्वतीबाई 2002 राजस्व निर्णय 416(एच.सी.) केअनुसार जहाॅ संपत्ति की पहचान का विवाद हो और केवल मौखिक साक्ष्य के आधार पर डिक्री पारित नहीं की जा सकती हो वहाॅ न्यायालय को सम्पत्ति की पहान सुनिश्यित करने के लिये कमीशन जारी करना चाहिये।
5. जहाॅं दोनों पक्षों द्वारा स्वीकृत मानचित्र अभिलेख पर न हो वहाॅभी कमीशन नियुक्त किया जाना चाहिये इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत उक्त दुर्गाप्रसाद वि. प्रवीण फौजदार 1975 एम.पी.एल.जे. 801 डी.बी. अवलोकनीय है।
पक्षकारों द्वारा भिन्न-भिन्न मानचित्र पेश किये गये वहाॅं भी कमिश्नर नियुक्ति उचित होती है।
6. न्याय दृष्टांत राजाराम वि. नूर मोह. 2001 (2) एम.पी.एल.जे. एस.एन. 12 के मामले में भी यह कहा गया कि अतिक्रमण बतलाते हुये जहाॅ निषेधाज्ञा का वाद लाया गया वहाॅ कमिश्नर द्वारा मौके पर माप लिया जाना आवश्यक होता है।
7. न्याय दृष्टांत प्रेमबाई वि0 घनश्याम 2010(3) एम.पी.एल.जे. 345 के मामले में वादी ने प्रतिवादी के विरूद्ध स्थायी निषेधाज्ञा का वाद पेश किया था कि प्रतिवादी वादी के प्लाट की तरफ उसके दरवाजे, खिड़कियाॅ और नाली न खाले। पक्षों के मध्य वादग्रस्त संपत्ति की सीमाओं सम्बन्धी विवाद था मामले में सक्षम कमिश्नर विवाद के निराकरण के पूर्व नियुक्त करना उपयुक्त बतलाया गया।
8. न्याय दृष्टांत केशवसिंह विय0 धन्तोबाई 2009(1) एम.पी.जे.आर. 162 डी0बी0 के मामले में वादी ने प्रतिवादी के विरूद्ध वाद प्रस्तुत किया कि वह वादग्रस्त सम्पत्ति का स्वामी है और प्रतिवादी ने इस पर निर्माण किया। प्रतिवादी के अनुसार निर्माण वादग्रस्त सम्पत्ति पर नहीं है। वादी ने साक्ष्य प्रारंभ होने के पहले आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.का आवेदन प्रस्तुत किया, न्यायालय ने आवेदन निरस्त किया।
अपील में मान्नीय उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया कि जहाॅ कोई पक्षकार न्यायालय की सहायता के लिये विवाद के विशदीकरण हेतु कमीशन नियुक्ति का आवेदन देता है तो उसे साक्ष्य संग्रहित करने के लिये आवेदन दिया जाना नहीं कहा जा सकता । वादी वाद प्रस्तुत करने से पहले राजस्व अधिकारियों से स्वयं र्को प्रतिवेदन बनवाता है और उसे पेश करता हे तो उसे वादी के पक्ष में साक्ष्य माना जाता है।
9. जहाॅ यह प्रश्न हो कि कुआं वादी की भूमि में स्थित है या प्रतिवादीगण की भूमि में इस प्रश्न का निराकरण कमिश्नर नियुक्त करके करना चाहिये । इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत बालू सिंह वि0 रंजीत 1996(1) डब्ल्यू.एन. 78 अवलोकनीय है।
इस प्रकार विधिक स्थिति यह स्पष्ट होती है कि जहाॅ वादग्रस्त सम्पत्ति की पहचान का विवाद हो या पक्षों के मध्य सम्पत्ति के सीमांकन का विवाद हो या अतिक्रमण का मामला हो या दोनों पक्षों द्वारा स्वीकृत मानचित्र अभिलेख पर न हो या मौखिक साक्ष्य के आधार पर विवाद तय किया जाना सम्भव न होया वादग्रस्त सम्पत्ति इस प्रकृति की हो कि उसके बारे में मौखिक साक्ष्य से न्यायालय के समक्ष उसकी स्थिति स्पष्ट न की जा सकती हो वहाॅ स्थानीय अन्वेषण हेतु कमीशन जारी करने का आवेदन स्वीकार किया जाना चाहिये।
3. कब कमीशन जारी करना उचित नहीं है
1. जहाॅं न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न हो कि कौन पक्षकार अचल सम्पत्ति के आधिपत्य में है वहाॅ उसका निराकरण अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर किया जाना चाहिये कमिश्नर नियुक्त नहीं करना चाहिये। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत बाबू खान वि0 कप्तानसिंह 1980(2) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 261 अवलोकनीय है जिसमें यह भी कहा गया है कि न्यायालय किसी विवादित विषय का विचारण कमिश्नर को नहीं सौंप सकते जिसका विचारण करने के लिये वे बाध्य हैं।
न्याय दृष्टांत उक्त लक्ष्मण वि.रामसिंह 1992 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 255 कन्हैयालाल वि0 पार्वतीबाई 1993 (2) डब्ल्यू.एन. 184 में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि कौन पक्षकार सम्पत्ति के आधिपत्य में है इसके निरीक्षण के लिये कमिश्नर जारी नहीं करना चाहिये।
2. न्याय दृष्टांत आशुतोष दुबे वि0 तिलक गृह निर्माण सहकारी समिति मर्यादित भोपाल 2004 (2) एम.पी.एच.टी. 14 के अनुसार साक्ष्य संग्रहित करने के लिये कमीशन जारी नहीं किया जाना चाहिये।
न्याय दृष्टांत सूर्यभान सिंह वि0 स्टेट आॅफ एम.पी. 2006(3)एम.पी.डब्ल्यू.एन.42 के अनुसार भी कमिश्नर साक्ष्य एकत्रित करने के लिये नहीं बल्कि विवाद के विशदीकरण के लिये नियुक्त किया जा सकता है।
3. जहाॅ वादग्रस्त सम्पत्ति की पहचान सीमाएं अतिक्रमण की स्थिति मौखिक साक्ष्य से स्पष्ट रूप से स्थापित की जा सकती हो वहाॅ भी कमिश्नर नियुक्त नहीं करना चाहिये।
न्याय दृष्टांत हरीशंकर वि0 श्रीलाल 1993 (2) एम.पी.डब्ल्यू.एन.144 के अनुसार जहाॅ विवादित बिन्दु साक्ष्य द्वारा तय किया जाना अपेक्षित हो वहाॅ कमीशन नियुक्त नहीं किया जा सकता।
4. किसी पक्षकार के मामले की कमी की पूर्ति के लिये भी कमीशन जारी नहीं किया जा सकता। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत गीता मंदिर ट्रस्ट वि0 रामचन्द्र 1988 (2) एम.पी.डब्ल्यू.एन.203 अवलोकनीय है।
5. विद्यालय के संचालन की देखरेख के लिये कमिश्नर नियुक्त करना उचित नहीं माना गया। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत जे.के.बोर्ड आॅफ स्कूल ऐजुकेशन वि. दीवान बद्रीनाथ विद्या मंदिर ए.आई.आर. 1994 (2) जे.के. 16 डी.बी. अवलोकनीय है।
6. जहाॅ मौके की स्थिति स्पष्ट हो वहाॅ कमीशन का जारी न किया जाना उचित माना गया। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत महेन्द्र कुमार वि0 मूलचंद्र 1994(2) डब्ल्यू. एन. अवलोकनीय है।
इस प्रकार विधिक स्थिति यहस्पष्ट होती है कि साक्ष्य संग्रहित करने के लिये या कौन पक्ष अचल संपत्ति के आधिपत्य में है यह पता लगाने के लिये या किसी पक्षकार के मामले की कमी को पूरा करने के लिये या जहाॅ मौके की स्थिति स्पष्ट हो या जहाॅ तथ्य ऐसे हो जो मौखिक साक्ष्य से प्रमाणित किये जा सकते हो वहाॅ कमीशन जारी नहीं करना चाहिये।
4. स्वप्रेरणा से कमिश्नर की नियुक्ति
न्यायालय उचित मामलों में किसी पक्षकार के आवेदन के बिना भी स्वप्रेरणा से कमिश्नर नियुक्त कर सकते हैं इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत हरीचरण वि. घनश्यामदास 1988 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 23, चुन्नीलाल वि.सुन्दरलाल 1983 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 278, जसवंत वि0 दीनदयाल 2011(2) एम.पी.एल.जे. 576 अवलोकनीय है।
5. किसे कमिश्नर नियुक्त किया जाये
न्यायालय को स्वयं स्थानीय अन्वेषण करने से विरत रहना चाहिये। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार भी न्यायाधीश को स्वयं कमिश्नर नहीं बनना चाहिये। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत मनिन्द्र कुमार राय वि. परेश चंद्र डे ए.आई.आर. 1971 असम 127 डी0बी0 अवलोकनीय है।
आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी. में ही यह स्पष्ट कर दिया गया है कि न्यायालय जिस व्यक्ति को उचित समझे उसे कमीशन जारी कर सकते हैं परन्तु राज्य सरकार ने यदि इस बारे में नियम बना रखे हैं तब न्यायालय ऐसे नियमों से आबद्ध होते हैं।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में नियम बनाये गये हैं जो नियम अधिसूचना क्रमांक 29566-4315/21-ख/मध्यप्रदेश राजपत्र भाग 4 (ग) दिनांक 14.0.9.1992 पृष्ठ क्रमांक 611 पर प्रकाशित हुये हैं चूंकि ये नियम आसानी से पुस्तकों में नहीं मिलते हैं इसलिये इसका उल्लेख यहाॅं किया जा रहा है।
1. (1) ये नियम मध्यप्रदेश स्थानीय अन्वेषण हेतु कमीशन नियम कहे जाएंगे
(2) इनका विस्तार समस्त मध्यप्रदेश में होगा,
2. इन नियमों में जब तक सन्दर्भ से अन्यथा नहीं हो:-
(क) ‘‘ संहिता ‘‘ का अर्थ सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 से होगा।
(ख) ‘‘ कमीशन‘‘ का अर्थ सिविल प्रकिया संहिता की प्रथम अनुसूची के आदेश 26 नियम 9 के अधीन निकाले जाने वाले कमीशन से होगा।
(ग) ‘‘ राजस्व अधिकारी‘‘ का अर्थ तहसीलदार व नायब तहसीलदार से होगा और उसमें राजस्व लिपिक, मापक एवं पटवारी सम्मिलित होंगे।
राजस्व अधिकारी जिनकेनाम कमीशन निकाला जा सकेगा
3. संहिता की प्रथम अनुसूची के आदेश 26 नियम 9 में उल्लेखित किसी कार्य हेतु जब न्यायालय किसी वाद या कार्यवाही में स्थानीय अन्वेषण किया जाना अपेक्षित एवं उचित समझे तो वे अपनी स्थानीय अधिकारिता में ऐसा अन्वेषण करने के लिये किसी राजस्व अधिकारी के नाम कमीशन निकाल सकेंगे।
परन्तु यह कि किसी विशेष कारण से जो विलिखित किये गये हों ऐसा कमीशन अपनी स्थानीय अधिकारिता के बाहर, स्थानीय अन्वेषण के लिये किसी राजस्व अधिकारी के नाम निकाल सकंेगे।
4. ऐसा कमीशन उस जिले के कलेक्टर के मार्फत निकाला जावेगा जिसके अधीनस्थ वह राजस्व अधिकारी हो और कलेक्टर को उसे राजस्व अधिकारी के नाम आवश्यक स्थानीय अन्वेषण करने हेतु पृष्ठांकित करेगा।
5. अगर कलेक्टर का यह मत हो कि वह राजस्व अधिकारी सरकार के हित को ध्यान में रखते हुये ऐसा स्थानीय अन्वेषण नहंीं कर सकेगा तब वेअपना मत कमीशन पर पृष्ठांकित कर प्रेषित करने वाले न्यायालय को वापिस कर देंगे। उनका मत निश्चायक रूप से स्वीकार किया जावेगा कि उस राजस्व अधिकारी की सेवा उपलब्ध नहीं है।
6. 1. इन नियमों के अधीन जिस राजस्व अधिकारी के नाम कमीशन निकाला गया है, वह मध्यप्रदेश यात्रा भत्ता नियमों के अधीन यात्रा एवं दैनिक भत्ता प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
2. न्यायालय द्वारा स्थानीय अन्वेषण के कार्य के लिये नियत की गई फीस में भी आधी फीस सरकार को जमा की जावेगी ।
3. कार्य की प्रकृति, स्थानीय अन्वेषण में लगने वाले अनुमानित दिन एवं दैनिक भत्ते के अतिरिक्त जब खर्च राजस्व अधिकारी का उस समय होगा, जबकि वह स्थानीय अन्वेषण करेगा, जो ध्यान में रखकर फीस नियत की जावेगी।
4. कमीशन निकालने के पूर्व न्यायालय ऐसे पक्षकार या पक्षकारों से और ऐसे अनुपात में जैसा वे उचित समझे, यात्रा भत्ता एवं फीस न्यायालय में जमा करवाएंगे।
5. कमीशन का निष्पादन पूर्ण होने पर राजस्व अधिकारी अपनी लिखित रिपोर्ट एवं जितनी दूरी उसने यात्रा कीथी का विवरण वापिस करेगा तब न्यायालय उसकी जैसी उचित समझे जांच करने पश्चात् उस नियम के अनुसार गणित कर निश्चित किया गया यात्रा भत्ता एवं उसके हिस्से की फीस का भुगतान उसे कर देंगे।
6. राजस्व अधिकारी इसके अतिरिक्त अन्य कोई यात्रा भत्ता या दैनिक भत्ता सरकार से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होगा।
राजस्व अधिकारी से भिन्न अन्य अधिकारी
जिनके नाम कमीशन निकाला जा सकता है
7. संहिता की प्रथम अनुसूची के आदेश 26 नियम 9 में उल्लेखित किसी कार्य हेतु न्यायालय किसी वाद में स्थानीय अन्वेषण किया जाना अपेक्षित व उचित समझे और न्यायालय से कार्य हेतु राजस्व अधिकारी से भिन्न किसी उच्च अधिकारी के नाम कमीशन निकालना आवश्यक समझे, तब उस कार्यालय के प्रधान से जिसमें वह अधिकारी कार्यरत् हो, अगर उस कार्यालय में वह अधिकारी ही प्रधान हो, तो उस अधिकारी से जिनके अधीनस्थ वह अधिकारी हो, विचार करेगा कि क्या उसकी सेवायें, उस कार्य हेतु उपलब्ध हैं।
8. 1. अगर यह निश्चित हो कि उस अधिकारी की सेवायें उपलब्ध होगी तब कार्यालय के प्रधान या जिस अधिकारी से विचार किया गया था स्थानीय अन्वेषण के ऐसे खर्च का आकार विनिश्चित करेंगे, जो कमीशन निकाले जाने से पूर्व में न्यायालय में जमा कराया जावे।
2. कार्यालय के प्रधान या ऐसे अधिकारी जिनसे विचार किया था, ऐसे खर्चे में निम्नलिखित खर्चे का समावेश करेंगे -
(एक)- उस अधिकारी के पद को ध्यान में रखते हुये यात्रा भत्ते का अनुमानित आकार, और
(दो)- स्थानीय अन्वेषण के काम की फीस,
3. कार्य की प्रकृति स्थानीय अन्वेषण में लगने वाले अनुमानित दिन के अतिरिक्त जेब खर्च जो अधिकारी का उस समय होगा, जबकि वह स्थानीय अन्वेषण करेगा, को ध्यान में रखकर फीस नियत की जावेगी।
4. वह अधिकारी जो कमीशन का निष्पादन करेगा सम्पूर्ण यात्रा भत्ता एवं आधी फीस प्राप्त करने का हकदार होगा और आधी फीस सरकार में जमा होगी। वह अधिकारी इससे भिन्न और यात्रा भत्ता या दैनिक भत्ता सरकार से प्राप्त करने का हकदार नहीं होगा।
5. कमीशन निकालने के पूर्व न्यायालय ऐसे पक्षकार या पक्षकारों से और ऐसे अनुपात में जैसा उचित समझे यात्रा भत्ता एवं फीस न्यायालय में जमा करवाएंगे।
9. जिस आफीसर के नाम कमीशन निकाला जावेगा वह उस कार्यालय के प्रधान के मार्फत निकाला जायेगा, जिसके अधीनस्थ अधिकारी कार्यरत् हो, अगर वह अधिकारी स्वयं कार्यालय का प्रधान हो, तो ऐसे अधिकारी के मार्फत निकाला जावेगा, जिसके अधीन वह कार्यरत् हो।
उक्त नियमों को कमीशन जारी करते समय ध्यान में रखना चाहिये और किसी कमिश्नर नियुक्त करें इसका निर्धारण उक्त नियमों के प्रकाश में करना चाहिये।
नियम 266 म.प्र.सिविल न्यायालय नियम, 1961 के अनुसार न्यायालय किसी अधिवक्ता या शासकीय अधिकारी या अशासकीय व्यक्ति को कमीशन जारी कर सकती है। शासकीय अधिकारी को कमीशन जारी करते समय उक्त म.प्र.स्थानीय अन्वेषण हेतु कमीशन नियम ध्यान में रखना चाहिये।
यदि कृषि भूमि हो या ग्रामीण क्षेत्र. की ऐसी भूमि हो जिसका अभिलेख राजस्व विभाग के पास हो, या नजूल भूमि हो उस अनुसार राजस्व अधिकारी को कमीशन जारी किया जाना चाहिये।
यदि भूमि नगर पालिका क्षेत्र की हो या नगर निगम क्षेत्र की हो तब यथास्थिति नगरपालिका या नगरनिगम के अधिकारी के नाम कमीशन जारी किया जाना उचित हो सकता है।
कमीशन कार्य की प्रकृति को देखते हुये और उस कार्य के विशेषज्ञ को जारी करना चाहिये।
6. कमीशन जारी करनेका प्रक्रम
इन मामलों में एक प्रश्न यह भी रहता है कि ऐसा आवेदन किस प्रक्रम पर आना चाहिये। आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी. में ऐसे आवेदन के लिये या कमीशन जारी करने के लिये कोई प्रक्रम नहीं बतलाया है लेकिन आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.के शब्द ‘‘ किसी भी वाद में जिसमें न्यायालय विवाद में के किसी विषय के विशदीकरण‘‘ से स्पष्ट होता है कि विवाद के विषय का विशदीकरण सामान्यतः विचारण के प्रारंभ होने के पूर्व होना चाहिये।
सामान्यतः ऐसे आवेदन अनुचित विलंब के बिना प्रथम उपलब्ध अवसर पर दिया जाना चाहिये। नियम 264 (2) म0प्र0सिविल न्यायालय नियम 1961 में आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.के आवेदनपत्र पर विचार करते समय न्यायालय को जिन चीजों कासमाधान करना चाहिये वे बतलाई हैं जो इस प्रकार हैं -
ए. आवेदन सद्भावनापूर्वक दिया गया है अर्थात् आवेदक का यह आशय नहीं है कि विवाद को लम्बा किया जाये या विपक्षी को अनावश्यक व्यय में डालकर उसे परेशान किया जाये।
बी. आवेदनपत्र प्रथम उपलब्ध अवसर पर दिया गया है।
सी. प्रकरण के स्वरूप को देखते हुये स्थानीय अन्वेषण आवश्यक है।
डी. प्रकरण के महत्व के कारण यह उचित है कि पक्षकारों को इस व्यय में डाला जाये।
ई. स्थानीय अन्वेषण से ऐसे विलंब की संभावना नही है कि प्राप्त होने वाला लाभ प्रतिसंतुलित हो जाये।
नियम 243 (3) म.प्र.सिविल न्यायालय नियम, 1961 में भी कमीशन जारी करने के लिये आवेदन अनुचित व अनावश्यक विलंब के बिना दिया जाना आवश्यक बतलाया गया है और विलंब का पर्याप्त स्पष्टीकरण न होने पर आवेदन निरस्त किया जा सकता है ऐसा भी बतलाया गया है।
यदि न्यायालय साक्ष्य अभिलिखित करने के पश्चात् कमीशन नियुक्त करते हैं तो न्यायालय को ऐसी कमीशन रिपोर्ट पर भी विचार करना होगा इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत नागाराम वि0 प्रभु 1999 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 171 अवलोकनीय है।
अपील न्यायालय को भी कमीशन जारी करने की शक्तियाॅ होती हैं अतः अपील के प्रक्रम पर भी कमीशन जारी किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत टी.एन.राजशेखर वि. काशीविश्वनाथन ए.आइ.आर. 2005 एस.सी. 3794 अवलोकनीय है।
7. कमिश्नर के खर्च
आदेश 26 नियम 15 सी.पी.सी.के अनुसार न्यायालय कमीशन निकालने से पूर्व कमीशन के व्ययों के लिये युक्तियुक्त राशि नियत समय में जमा करवाने के लिये उस पक्षकार निर्देश दे सकता है जिसकी प्रेेरणा पर या जिसके फायदे के लिये कमीशन जारी किया गया है।
कमीशन के खर्च नियत करते समय न्यायालय उक्त नियम 6 और नियम 8 म.प्र.स्थानीय अन्वेषण नियम को भी ध्यान में रखना चाहिये।
नियम 244 म.प्र.सिविल न्यायालय नियम, 1961 को भी कमीशन के खर्च नियत करते समय ध्यान मे ंरखना चाहिये।
सामान्यतः कमिश्नर को खर्च कार्यवाही पूर्ण हो जाने के पश्चात् ही देना चाहिये और इस सम्बन्ध में नियम 249 म.प्र.सिविल न्यायालय नियम 1961 को ध्यान मे ं रखना चाहिये।
8. कमीशन की वापसी
आदेश 26 नियम 18 बी सी.पी.सी.के अनुसार न्यायालय वहतारीख नियत करेगाजिसको या जिसके पूर्व कमीशन निष्पादन के पश्चात् उसको लौटाया जायेगा और इस प्रकार नियत की गई तारीख नहीं बढाई जायेगी। जब तक कि न्यायालय का यह समाधान नहीं हो जाता कि तारीख बढ़ाने के लिये पर्याप्त हेतुक है।
नियम 246 म0प्र0सिविल न्यायालय नियम 1961 मे ंभी कमीशन जारी करते समय न्यायालय को उसके लौटाने की एक तिथि नियत करने और आवश्यक होने पर कारण लिखते हुये समय बढ़ाने का प्रावधान है।
9. कमीशन के साथ भेजे जाने वाले दस्तावेज
नियम 245 म0प्र0सिविल न्यायालय नियम 1961 के अनुसार न्यायालय ने जिस पक्षकार के आवेदन पर कमीशन जारी किया है उसे निर्देश देना चाहिये कि वादपत्र, लिखित कथन, वादविषय या अन्य सुसंगत दस्तावेज की प्रतिलिपियाॅ प्रस्तुत करें ताकि उन्हें कमीशन के पत्र के साथ भेजा जा सके।
यदि न्यायालय ने स्वप्रेरणा से कमीशन जारी किया है तब किसी भी पक्ष को ऐसे दस्तावेज पेश करने के लिये निर्देश दे सकता है।
उक्त दस्तावेजों से कमिश्नर को विवाद को समझने में सुविधा होती है।
10. पक्षकारों को निर्देश
आदेश 26 नियम 18 सी.पी.सी.के अनुसार न्यायालय कमीशन निकालते समय पक्षकारों को निर्देश देंगे कि वे कमिश्नर के समक्ष स्वयं या अपने अभिकर्ताओं या प्लीडर के माध्यम से उपस्थित रहें।
यदि पक्षकार या उनमें से कोई उपस्थित नहीं होते हैं तो कमिश्नर उनकी अनुपस्थिति में कार्यवाही कर सकते हैं।
यदि ऐसा किया जाना सुविधाजनक हो तो, न्यायालय को कमिश्नर के सामने पक्षकारों की उपस्थिति की तिथि कमिश्नर की सुविधा और पक्षकारों की सुविधा से न्यायालय से ही नियत कर देना चाहिये।
11. कमिश्नर को निर्देश
न्यायालय को कमीशन जारी करते समय आदेश में वे बिन्दु स्पष्ट रूप से उल्लेखित करना चाहिये जिन पर कमिश्नर से प्रतिवेदन चाहा है।
नियम 265 (2) म0प्र0सिविल न्यायालय नियम 1961 के अनुसार कमिश्नर को उसका प्रतिवेदन उक्त बिन्दुओं तक ही सीमित रखना चाहिये । पक्षकारों के कहने पर भी अन्य बिन्दुओं की जांच नहीं करना चाहिये।
12. अनुपूरक कार्यवाहियों के समय कमीशन
कभी कभी न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न होता है कि क्या अनुपूरक कार्यवाहियों के दौरान या अन्तरवर्ती आवेदनपत्रों के प्रक्रम पर कमीशन जारी किया जा सकता है।
विधि में ऐसी कोई रोक नहीं है कि अन्तरवर्ती प्रक्रम पर कमीशन जारी नहीं किया जा सकता। अस्थाई निषेधाज्ञा आवेदन के निराकरण के पूर्व भी न्यायालय उचित मामलों में कमीशन जारी कर सकती है।
13. कमीशन प्राप्त होने पर प्रक्रिया
जब स्थानीय निरीक्षण के बाद कमिश्नर का प्रतिवेदन प्राप्त होता है तब न्यायालय को उस पर उभयपक्षों की यदि कोई आपत्ति हो तो पेश करने का एक अवसर देना चाहिये। और यदि कोई आपत्ति पेश होती है तो उन आपत्तियों का निराकरण करके फिर कमिश्नर रिपोर्ट को साक्ष्य में विचार में लेना चाहिये।
यदि कमिश्नर की रिपोर्ट पर पक्षकार आपत्ति नहीं करते हैं या उसके परीक्षण की प्रार्थना नहीं करते हैं तो उसकी रिपोर्ट साक्ष्य में पढ़ी जायेगी , इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत मांगीलाल वि0 गौरीशंकर ए.आई.आर. 1992 एम.पी. 309 अवलोकनीय है।
जहाॅं कमिश्नर के प्रतिवेदन पर आपत्ति पेश करने का अवसर देने पर भी आपत्ति पेश नहीं की गई । कमिश्नर रिपोर्ट स्पष्ट थी बाद में आपत्ति नहीं उठाई जा सकती इस सम्बन्ध में न्याय दृष्टांत नेमीचंद्र वि.विष्णु 1995 (1) डब्ल्यू.एन. 196 अवलोकनीय है।
आदेश 26 नियम 10 (3) सी.पी.सी.के अनुसार जहाॅं न्यायालय किसी कारण से कमिश्नर की कार्यवाही से असंतुष्ट है वहाॅ वह ऐसी अतिरिक्त जांच का निर्देश भी दे सकते हैं जो वे उचित समझे।
न्यायालय उचित मामलों में नये कमिश्नर भी नियुक्त कर सकती है। लेकिन उसे पूर्व के कमिश्नर प्रतिवेदन को अमान्य करने का कारण देना चाहिये।
इस तरह जब कभी स्थानीय अन्वेषण के लिये आदेश 26 नियम 9 सी.पी.सी.के तहत आवेदन प्रस्तुत होता है तो उसे उक्त वैधानिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुये निराकृत करना चाहिये।
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