प्रापक या रिसीवर के बारे में
प्रायः विचारण न्यायालय में आदेश 40 नियम 1 सीपीसी के तहत वादग्रस्त सम्पत्ति के संबध में रिसिवर नियुक्त करने का आवेदन प्रस्तुत होता है इस संबंध में आवश्यक प्रावधान और वैधानिक स्थिति को समझ लेना आवश्यक है ताकि ऐसे आवेदन पत्रों के निराकरण के समय असुविधा न हो।
1. आदेश 40 नियम 1 सीपीसी के अनुसार जहा न्यायालय को यह न्यायसंगत और सुविधा पूर्ण प्रतीत हो वहा न्यायालय आदेश द्वारा:-
ए- किसी सम्पत्ति का रिसीवर चाहे डिक्री के पहले या पश्चात् नियुक्त कर
ए- किसी सम्पत्ति का रिसीवर चाहे डिक्री के पहले या पश्चात् नियुक्त कर
सकेगा।
बी- किसी सम्पत्ति पर से किसी व्यक्ति का आधिपत्य या अभिरक्षा हटा
बी- किसी सम्पत्ति पर से किसी व्यक्ति का आधिपत्य या अभिरक्षा हटा
सकेगा।
सी- उसे रिसिवर के आधिपत्य या अभिरक्षा या प्रबंध हेतु सुपुर्द कर सकेगा।
डी- वाद को लाना और वाद में प्रतिरक्षा करने के बारे में और सम्पत्ति के प्रबंध, संरक्षण, परिरक्षण, सुधार और उसके किराये और लाभों को संग्रह करना उनका व्ययन करना दस्तावेजो का निष्पादन करना और ऐसी सब शक्तिया जो उस सम्पत्ति के मालिक को हैं या ऐसी शक्ति को जो न्यायालय उचित समझे रिसिवर को प्रदान कर सकता है।
न्यायालय को यह अधिकार नहीं हे कि किसी ऐसे व्यक्ति का सम्पत्ति पर से आधिपत्य या अभिरक्षा हटा दे जिसको हटाने का अधिकार किसी भी पक्षकार को नहीं है।
2. कब रिसीवर नियुक्त किया जा सकता है और कब नही ?
प्रायः उक्त आवेदन आने पर न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि किन मामलों में रिसिवर नियुक्त किया जावे औरकिन मामलो में नहीं इसे कुछ उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है।
1. जहा सम्पत्ति वाद के किसी भी पक्षकार के आधिपत्य में न हो वहा सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए रिसिवर नियुक्त किया जाना उचित होता है।
2. जहा प्रतिवादी लेखो में हेरफेर का दोषी प्रतीत हो वहा उसे मृतक क सम्पत्ति के आगे प्रबंध में रखना उचित नहीं होता है ऐसे मामलों में रिसिवर की नियुक्त उचित होती है इस संबंध में न्याय दृष्टांत विक्टर जान गोम्स विरूद्ध थामस जान गोम्स ए आई आर 2006 बाम्बे 92 अवलोकनीय है।
3. वादी का प्रथम दृष्टया स्थापित मामला या उसका सम्पत्ति पर अच्छा स्वत्व होना चाहिए साथ ही प्रतिवादी के आधिपत्य में सम्पत्ति रखने से संपत्ति खतरे में हो ऐसा प्रथम दृष्टया स्थापित होना चाहिए। आवेदन अनुचित बिलंब के बिना दिया गया हो वादी का आचरण साम्यपूर्ण हो।
4. जहा सम्पत्ति वाद के किसी पक्षकार के आधिपत्य में हो सम्पत्ति पर कोई खतरा न हो वहा ऐसे आधिपत्य को हटाकर रिसिवर के आधित्य में देना उचित नहीं होता है।
5. संपत्ति के विभाजन और आधिपत्य के बाद में जहा संपत्ति किरायेदार के उपभोग में है वादी वृद्ध महिला और प्रतिवादीगण वादी के भतीजे है जो किराया लेकर उपभोग करते हैं ऐसे मामले में तृतीय पक्ष को रिसिवर नियुक्त किया गया और उसे किराया संग्र्रह करने और उसका लेखा रखने के निर्देश दिये गये। इस संबंध में न्याय दृष्टांत कस्तूरीबाई विरूद्ध अंगूरी चैधरी ए आई आर 2001 एस.सी.1361 अवलोकनीय है।
6. फर्म व उसके लेखों के विघटन का वाद आज्ञप्त हुआ वादी ने दुकान के अंतरिम आधिपत्य का आवेदन दिया न्यायालय ने आधिपत्य लेने हेतु रिसिवर नियुक्त किया। किरायेदार ने आपत्ति की आपत्ति अस्वीकार की गई क्योंकि किरायेदार के अधिकार वादी के अधिकारों से कम थे रिसिवर नियुक्त उचित मानी गयी। इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुभाषचंद्र जैन विरूद्ध हरिसिंह ए आई आर 1997 एस सी 1148 अवलोकनीय है।
7. न्याय दृष्टांत टी कृष्णास्वामी चेटटी विरूद्ध सी थान गवेलू चेटटी ए आई आर 1955 मद्रास 430 में माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने रिसिवर नियुक्ति के समय ध्यान में रखने वाले 5सिंद्धांत बतलाये है जारे निम्नानुसार हैं:-
1. रिसिवर नियुक्त करना न्यायालय के विवेकाधिकार का विषय है
2. न्यायालय को रिसिवर नियुक्त नहीं करना चाहिए जब तक वादी यह स्थापित नहीं कर देता कि उसके प्रथम दृष्टया वाद मे विजयी होने की प्रबल संभावना है।
3. वादी को यह स्थापित करना होता है कि संपत्ति को खतरा है या कुछ अत्यावश्यकता है किजस कारण रिसिवर नियुक्त करना आवश्यक है अन्यथा उसके आधिकार प्रभावित होगें।
4. यदि प्रतिवादी वादग्रस्त सम्पत्ति के आधिपत्य में हो तब रिसीवर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वादी यह न दर्शावे कि प्रतिवादी के आधिपत्य में सम्पत्ति रहने से अपूरणीय क्षति होगी।
5. न्यायालय पक्षकारों के आचरण को ध्यान मे रखेगी और वादी का आचरण दोषरहित होना चाहिए।
इन सिद्धांतो को न्याय दृष्टांत अभय कुमार विरूद्ध नंदकिशोर एआईआर 1991 राजस्थान 160 के पैरा 8 में यह उल्लेखित किया गया है।
8. किसी पक्ष ने रिसीवर नियुक्ति की प्रार्थना नहीं की प्रथम दृष्टया ऐसा निष्कर्ष भी नहीं दिया गया कि रिसिवर नियुक्त आवश्यक है, रिसिवर नियुक्ति के कोई कारण नहीं लिखे गये पक्षकार को सूचना पत्र भी जारी नहीं किया गया ऐसे आदेश अनुचित माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत थ्री चियर्स इंटरटेनमेट प्रा0लि0 विरूद्ध सी0ई. एस.सी.लिमि. ए.आई.आर 2009 एस.सी.735 अवलोकनीय है।
9. न्याय दृष्टांत सुभद्रा रानी पाल चैधरी विरूद्ध शैरली विगल नन, एआईआर 2005 एस.सी.3011 में मामले में बहनो के पक्ष में प्रोबेट दिया गया। भाईयों ने आदेश के विरूद्ध अपील की प्रशासक सह संयुक्त रिसिवर कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान नियुक्त किये गये अपील निरस्त की गयी संयुक्त रिसिवर उन्मोचित हो चुके थे सम्पत्ति बहनो मे बेष्ठित हो गई थी ऐसे में पक्षकारों द्वारा वाद में प्रस्तुत आवेदन पर रिसिवर नियुक्ति का क्षेत्राधिकार समाप्त हो जाता है और रिसिवर नियुक्ति उचित नहीं है यह प्रतिपादित किया गया।
10. फर्म के विघटन और लेखों के वाद में रिसिवर नियुक्ति का आवेदन दिया गया। फर्म अर्पाटमेंट का निर्माण करके उन्हें विक्रय करने के लिए गठित की गई थी वादी/पति ने केवल जमीन का अंशदान दिया था निर्माा का धन अन्य भागीदारों और बिल्डर्स ने लगाया था। रिसिवर नियुक्त कर के विक्रय को पूरी तरह रोक दिया गया। आदेश इन तथ्यों पर विचार किये बिना दिया गया कि ऐसे आदेश से फर्म का व्यवसाय बंद हो जायेगा फर्म की साख और विश्वसनीयता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी ऐसे आदेश को उचित नही माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत कल्पना कोठारी विरू;द्ध सुधा यादव एआईआर 2002 एस.सी.404 अवलोकनीय है।
11. राष्टीय राजमार्ग के उपयोग के टोल टैक्स के संग्रह के कार्य का सुपरविजन करने के लिए एक एडवोकेट को रिसिर नियुक्त किया गया इसे उचित नही माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेट आफ बेस्ट बंगाल विरूद्ध एम.आर. मोदल एआईआर 2001 एस.सी.3471अवलोकनीय है।
12. विभाजन के बाद में जहा प्रतिवादी वादग्रस्त सम्पत्ति के भौतिक आधिपत्य में था वहा रिसिवर नियुक्ति का आदेश किया गया और इन बिंदुओ पर निष्कर्ष नहीं दिया गया कि रिसिवर की नियुक्ति उचित और सुविधा जनक है, वादी का प्रथम दृष्टया मामला है या संपत्ति के आवश्यक उपाय करना जरूरी है ऐसे आदेश को उचित नहीं माना गया।
13. व्यक्ति जो वादग्रस्त सम्पत्ति के आधिपत्य के एक अनुबंध के अधीन है उसने आधिपत्य मे हस्तक्षेप रोकने की स्थायी निषेधाज्ञा का वाद पेश किया प्रतिवादी ने रिसीवर नियुक्ति का आदेश दिया न्यायालय ने यह निष्कर्ष दिया कि वादी जो व्यक्ति अनुबंध के अधीन आधिपत्य में है यह माना जायेगा कि वह न्यायालय की ओर से रिसिवर के समान आधिपत्य रखे हुए है पृथक से रिसीवर नियुक्ति अनावश्यक है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत बिग्रेडियर सावनी भवानी सिंह वि0 मेसर्स इंडियन होटल कार्पोरेशन एआईआर 1997 एससी 2183 अवलोकनीय है।
14. मिल स्वामी ने वित्तीय निगम को किश्ते अदा करने में चूक की दी इस आधार पर रिसिवर नियुक्त किया गया मिल स्वामी ने किश्ते जमा करवा दी और आगे के भुगतान का वचन भी दिया ऐसे में मिल रिसिवर को सौपने का आदेश अपास्त किया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत छानू मोलू निर्माला वि0 सी.एच.इंदिरादेवी एआईआर 1994 एससी 662 अवलोकनीय है।
15. सयुक्त परिवार की समत्ति में कर्ता द्वारा संपत्ति का आंशिक डिस्पोजल किया गया । यह अभिकथित किया गया कि ऐसा न्यायालय के आदेश के विपरीत किया गया इस मामले में न्यायालय ने प्रशासन नियुक्त किया जो संपत्ति के आगे के अंतरण को रोकने के लिए था उसे रिसिवर के समान शक्त्या रहेगी और ऐसे ही उसके कर्तव्य रहे यह आदेश भी दिया इस संबंध में न्याय दृष्टांत महाराज जगत सिंह वि0 लेफटीनेंट कर्नल स्वानी भावनी सिंह एआईआर 1993 एस.सी. 1721 अवलोकनीय है।
16. संपत्ति पर रिसिवर नियुक्त करने में तृतीय पक्ष के अधिकार प्रभावित नहीं होते। तृतीय पक्ष को न्यायालय में आकर आवेदन करना चाहिए और अपने अधिकार स्थापित करने चाहिए। किरायेदार अवैध निर्माण कर रहा हो या किरायेदारी की शर्तो के विपरीत कार्य कर रहा हो ऐसे में रिसिवर के प्रतिवेदन के आधार पर मामले का संक्षिप्त निराकरण उचित नहीं माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत एंथोनी सी लियो वि0 नंदलाल बालकृष्ण एआईआर 1997 173 अवलोकनीय है।
17. रिसिवर की सोमोटो नियुक्ति विशेष रूप से जब किसी पक्षकार ने रिसिवर नियुक्ति की प्रार्थना नहीं की हो उचित नहीं मानी गयी इस संबंध में न्याय दृष्टांत महेन्द्र एच पटेल वि0 रामनारायण सिंह एआईआर 2002 एस सी 3569 अवलोकनीय है।
18. जहा वादी ने ही प्रतिवादीगण के आधिपत्य में सम्पत्ति सौंपी हो वहा पर रिसिवर नियुक्ति आवश्यक नहीं मानी गयी इस संबंध में न्याय दृष्टांत रघुनाथ राव वि0 मेसर्स मीनेरिया नेशनल लिमिटेड एआईआर 1974 गोवा 41 अवलोकनीय है।
19. वाहन बैंक द्वारा विक्रय किया गया। विक्रय की राशि प्रत्यर्थी के खाते मे जमा की गयी। ऐसे में क्रेता से वाहन वापस लेकर वाद लंबन के दौरान रिसीवर को देना उचित नहीं माना गया इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेण्डर्ड चार्टर्ड बैंक वि0 शिवशंकर गुप्ता एआई आर 2005 देहली 75 अवलोकनीय है।
20. जहा प्रतिवादी वादग्रस्त सम्पत्ति पर खडे वृक्षों को बेच रहा हो वहा रिसीवर नियुक्ति उचित होती है।
3. रिसीवर का पारिश्रमिक:- न्यायालय द्वारा तय किया जाता है और न्यायालय कार्य की प्रकृति को देखते हुए आदेश कर सकती है रिसीवर का पारिश्रमिक कितना होगा और कौन पक्ष अदा करेगा।
4. रिसिवर के कर्तव्य के बारे में आदेश 40 नियम 3 सीपीसी में यह प्रावधान है रिसिवरः-
ए- संपत्ति के बाबत् वह जो कुछ प्राप्त करेगा उसका उचित रूप से लेखा देने के लिए ऐसे प्रतिभूति देगा जो न्यायालय आदेश करे।
बी- अपने लेखाओं को ऐसी अवधियों पर और ऐसे प्रारूप में देगा जो न्यायालय विर्निष्ट करे।
सी- अपने पर बकाया रकम ऐसे दा करेगा जैसा न्यायालय आदेश करे।
डी- स्वयं के द्वारा जानबूझकर की गयी किसी चूक या घोर उपेक्षा से संपत्ति को हुई हानि को उत्तरदायी होगा।
5. आदेश 40 नियम 4 सीपीसी के अनुसार न्यायालय जहा रिसिवर:-
ए- अपने लेखा को ऐसी अवधि में और ऐसे प्रारूप में देने में असफल रहता है जैसा न्यायालय ने आदेश दिया था।
बी- अपने पर बकाया रकम ऐसे अदा करने में असफल रहता है जैसा न्यायालय ने आदेश दिया था।
सी- स्वयं के द्वारा जानबूझकर की गई किसी चूक या घोर उपेक्षा से संपत्ति को हानि होने देता है
वहा न्यायालय रिसिवर की संपत्ति को कुर्क करने का निर्देश दे सकता है और संपत्ति को विक्रय करके बकाया रकम की प्रतिपूर्ति कर सके।
रिसिवरशिप न्यायालय द्वारा अधिरोपित नहीं की जा सकती है। निगम के रिसिवर ने रिसिवर के पद से रिलीव होने की प्रार्थना की गई जो स्वीकार की गयी। इस संबंध में न्याय दृष्टांत हिन्दुस्तान पेटोलियम कापो्ररेशन वि0 मेसर्स रामचंद, एआईआर 1994 एस सी 478 अवलोकनीय है।
रिसिवर द्वारा किया गया कृत्य जिस न्यायालय ने उसे नियुक्त किया है उसके निर्देशो और आदेशों के अधीन रहेगा। इस संबंध में न्याय दृष्टांत कृष्णकुमार खेमा वि0 जी बैंक, एआईआर 1991 एस.सी.899 अवलोकनीय है अर्थात् रिसिवर न्यायालय के आदेशों और निर्देशो के अनुरूप ही कार्य कर सकता है, उसके बाहर जाकर किया गया कार्य मान्य नहीं किया जाता है।
वादग्रस्त सम्पत्ति के विक्रय करने का रिसिवर को निर्देश दिया गया और रिसिवर ने वाद के पक्षकारो की सहमति से एक पार्टी का विक्रय प्रस्ताव स्वीकार किया सम्पत्ति पर 38 परिवार हट बनाकर रहते थे। उन्होने अधिक मूल्य पर उस सम्पत्ति को क्रय करने का प्रस्ताव किया। सामाजिक न्याय के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने हट डीलर का विक्रय प्रस्ताव स्वीकार करने के आदेश दिये। इस संबंध में न्याय दृष्टांत साधूराम बंसल वि0 पुलीन बिहारी सरकार एआईआर 1984 एस.सी.1471 अवलोकनीय है।
रिसिवर नियुक्ति को निरस्त करने की प्रार्थना इस आधार पर की गई कि जब रिसिवर संपत्ति का आधिपत्य लेने पहुंचे थे तब अपीलार्थी अनुपस्थित था इसे रिसिवर नियुक्ति को निरस्त करने का उचित आधार नहीं माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत बलवीर सिंह वि0 संजय देव, एआईआर 2000 एस.सी. 3563 अवलोकनीय है।
6. किसे रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है:-
न्यायालय के समक्ष आवेदन स्वीकार करने के बाद यह प्रश्न उपस्थित होता है कि रिसिवर किसे नियुक्त किया जाये इस संबंध में निम्न तथ्य ध्यान में रखना चाहिए।
1. सामान्य नियम यह है कि जिस व्यक्ति का वादग्रस्त सम्पत्ति में कोई हित न हो या रूचि न हो उसे रिसिवर नियुक्त किया जाना चाहिए।
2. ऐसे व्यक्ति को रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है जो वादग्रस्त संपत्ति से जुडा हुआ है यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसे व्यक्ति की नियुक्ति से वादग्रस्त सम्पत्ति को लाभ होगा।
3. रिसिवर किसी स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को नियुक्ति किया जाना चाहिए सेवानिवृत्त शासकीय सेवक को भी रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
4. दोनो पक्षों से रिसिवरों के नाम की सहमति भी ली जा सकती है और जिस व्यक्ति के नाम से दोनो पक्ष सहमत है उसे ही रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
5. सेवारत न्यायाधीश या सेवारत शासकीय सेवक को रिसिवर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वह संपत्ति की उचित देखभाल का समय अपने पदीय कर्तव्यों के कारण नहीं दे पाते हें।
रिसीवर के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं है, लेकिन वादग्रस्त संपत्ति की प्रकृति और उससे जुडे कर्तव्यों को देखते हुए एक स्वतंत्र व्यक्ति रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
आदेश 40 नियम 5 सीपीसी के तहत जहा संपत्ति सरकार को राजस्व देने वाली भूमि है या ऐसी भूमि है जहा जिसका राजस्व निर्धारित है और न्यायालय के राय में कलेक्टर के प्रबंध में संपत्ति देने से पक्षकारों के हितों की वृद्धि होगी तब कलेक्टर को रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
7. सहमति:-
जिस व्यक्ति को रिसीवर नियुक्त किया जाना हो उसकी लिखित सहमति लेना चाहिए कि वह रिसीवर नियुक्त होने से सहमत है और जैसा ही उक्त न्याय दृष्टांत हिन्दुस्तान पेटोलियम वाले मामले में प्रतिपादित किया है रिसीवरशिप न्यायालय द्वारा अधिरोपित नहीं की जाना चाहिए। यदि व्यक्ति रिसीवर नियुक्त होने में सहमत न हो तो उसे रिसिवर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
8. रिसिवर द्वारा या रिसीवर के विरूद्ध वाद:-
रिसिवर द्वारा या रिसीवर के विरूद्ध कोई वाद संबंधित न्यायालय के पूर्व अनुमति के बिना चलने योग्य नहीं होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत शिवकुमार द्विवेदी वि0 भोगीलाल साह, 2011 (1)एम.पी.एच.टी. 356 अवलोकनीय है।
9. रिसिवर नियुक्ति का एकपक्षीय आदेश:-
अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में जहा आपात परिस्थिति हो रिसिवर नियुक्ति का एकपक्षीय आदेश भी दिया जा सकता है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत मोहम्मद अली हिदायत अली वि0 अलोपी शंकर, एआईआर 1971 ए.पी.376 अवलोकनीय है।
10. विपक्षी को सूचना:-
यद्यपि विधि में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि रिसीवर नियुक्ति के पूर्व विपक्षी को सूचना दी जाये किन्तु सामान्यतः विपक्षी को सूचना देकर और उसका सुनकर ही रिसिवर नियुक्त किया जाता है।
11. प्रतिभूति:-
सामान्यतः रिसिवर से मामले की प्रकृति को देखते हुए उचित प्रतिभूति बांड के रूप में ली जाना चाहिए।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि जैसे ही रिसिवर नियुक्ति का प्रार्थना पत्र पेश हो सामान्यतः विपक्षी को सुनकर न्यायालय को इस संबंध में निष्कर्ष देना चाहिए कि वादी का प्रथम दृष्टया स्थापित मामला है। सम्पत्ति खतरे में है या उसके नष्ट होने की संभावना है और वाद के निराकरण तक उसे सुरक्षित रखने के लिए यह न्यायसंगत और सुविधा पूर्ण है कि रिसिवर नियुक्त किया जाये ऐसा सकारण आदेश देना चाहिए। रिसिवर ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसका वादग्रस्त सम्पत्ति में कोई हित व रूचि न हो और वह वादग्रस्त सम्पत्ति की स्थिति को देखते हुए रिसिवर के कर्तव्य निर्वाह करने के योग्य व्यक्ति हो। संबंधित व्यक्ति की लिखित सहमति भी ले लेना चाहिए और उससे मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक प्रतिभूति भी लेना चाहिए रिसिवर नियुक्ति कब से कब तक के लिए की गयी है यह भी आदेश में स्पष्ट करना चाहिए अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में रिसीवर नियुक्ति एकपक्षीय आदेश भी किया जा सकता है कार्य की प्रकृति को देखते हुए रिसिवर का उचित पारिश्रमिक और वह किस पक्ष द्वारा दिया जावेगा यह भी आदेश में बतलाना चाहिए।
सी- उसे रिसिवर के आधिपत्य या अभिरक्षा या प्रबंध हेतु सुपुर्द कर सकेगा।
डी- वाद को लाना और वाद में प्रतिरक्षा करने के बारे में और सम्पत्ति के प्रबंध, संरक्षण, परिरक्षण, सुधार और उसके किराये और लाभों को संग्रह करना उनका व्ययन करना दस्तावेजो का निष्पादन करना और ऐसी सब शक्तिया जो उस सम्पत्ति के मालिक को हैं या ऐसी शक्ति को जो न्यायालय उचित समझे रिसिवर को प्रदान कर सकता है।
न्यायालय को यह अधिकार नहीं हे कि किसी ऐसे व्यक्ति का सम्पत्ति पर से आधिपत्य या अभिरक्षा हटा दे जिसको हटाने का अधिकार किसी भी पक्षकार को नहीं है।
2. कब रिसीवर नियुक्त किया जा सकता है और कब नही ?
प्रायः उक्त आवेदन आने पर न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि किन मामलों में रिसिवर नियुक्त किया जावे औरकिन मामलो में नहीं इसे कुछ उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है।
1. जहा सम्पत्ति वाद के किसी भी पक्षकार के आधिपत्य में न हो वहा सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए रिसिवर नियुक्त किया जाना उचित होता है।
2. जहा प्रतिवादी लेखो में हेरफेर का दोषी प्रतीत हो वहा उसे मृतक क सम्पत्ति के आगे प्रबंध में रखना उचित नहीं होता है ऐसे मामलों में रिसिवर की नियुक्त उचित होती है इस संबंध में न्याय दृष्टांत विक्टर जान गोम्स विरूद्ध थामस जान गोम्स ए आई आर 2006 बाम्बे 92 अवलोकनीय है।
3. वादी का प्रथम दृष्टया स्थापित मामला या उसका सम्पत्ति पर अच्छा स्वत्व होना चाहिए साथ ही प्रतिवादी के आधिपत्य में सम्पत्ति रखने से संपत्ति खतरे में हो ऐसा प्रथम दृष्टया स्थापित होना चाहिए। आवेदन अनुचित बिलंब के बिना दिया गया हो वादी का आचरण साम्यपूर्ण हो।
4. जहा सम्पत्ति वाद के किसी पक्षकार के आधिपत्य में हो सम्पत्ति पर कोई खतरा न हो वहा ऐसे आधिपत्य को हटाकर रिसिवर के आधित्य में देना उचित नहीं होता है।
5. संपत्ति के विभाजन और आधिपत्य के बाद में जहा संपत्ति किरायेदार के उपभोग में है वादी वृद्ध महिला और प्रतिवादीगण वादी के भतीजे है जो किराया लेकर उपभोग करते हैं ऐसे मामले में तृतीय पक्ष को रिसिवर नियुक्त किया गया और उसे किराया संग्र्रह करने और उसका लेखा रखने के निर्देश दिये गये। इस संबंध में न्याय दृष्टांत कस्तूरीबाई विरूद्ध अंगूरी चैधरी ए आई आर 2001 एस.सी.1361 अवलोकनीय है।
6. फर्म व उसके लेखों के विघटन का वाद आज्ञप्त हुआ वादी ने दुकान के अंतरिम आधिपत्य का आवेदन दिया न्यायालय ने आधिपत्य लेने हेतु रिसिवर नियुक्त किया। किरायेदार ने आपत्ति की आपत्ति अस्वीकार की गई क्योंकि किरायेदार के अधिकार वादी के अधिकारों से कम थे रिसिवर नियुक्त उचित मानी गयी। इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुभाषचंद्र जैन विरूद्ध हरिसिंह ए आई आर 1997 एस सी 1148 अवलोकनीय है।
7. न्याय दृष्टांत टी कृष्णास्वामी चेटटी विरूद्ध सी थान गवेलू चेटटी ए आई आर 1955 मद्रास 430 में माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने रिसिवर नियुक्ति के समय ध्यान में रखने वाले 5सिंद्धांत बतलाये है जारे निम्नानुसार हैं:-
1. रिसिवर नियुक्त करना न्यायालय के विवेकाधिकार का विषय है
2. न्यायालय को रिसिवर नियुक्त नहीं करना चाहिए जब तक वादी यह स्थापित नहीं कर देता कि उसके प्रथम दृष्टया वाद मे विजयी होने की प्रबल संभावना है।
3. वादी को यह स्थापित करना होता है कि संपत्ति को खतरा है या कुछ अत्यावश्यकता है किजस कारण रिसिवर नियुक्त करना आवश्यक है अन्यथा उसके आधिकार प्रभावित होगें।
4. यदि प्रतिवादी वादग्रस्त सम्पत्ति के आधिपत्य में हो तब रिसीवर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वादी यह न दर्शावे कि प्रतिवादी के आधिपत्य में सम्पत्ति रहने से अपूरणीय क्षति होगी।
5. न्यायालय पक्षकारों के आचरण को ध्यान मे रखेगी और वादी का आचरण दोषरहित होना चाहिए।
इन सिद्धांतो को न्याय दृष्टांत अभय कुमार विरूद्ध नंदकिशोर एआईआर 1991 राजस्थान 160 के पैरा 8 में यह उल्लेखित किया गया है।
8. किसी पक्ष ने रिसीवर नियुक्ति की प्रार्थना नहीं की प्रथम दृष्टया ऐसा निष्कर्ष भी नहीं दिया गया कि रिसिवर नियुक्त आवश्यक है, रिसिवर नियुक्ति के कोई कारण नहीं लिखे गये पक्षकार को सूचना पत्र भी जारी नहीं किया गया ऐसे आदेश अनुचित माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत थ्री चियर्स इंटरटेनमेट प्रा0लि0 विरूद्ध सी0ई. एस.सी.लिमि. ए.आई.आर 2009 एस.सी.735 अवलोकनीय है।
9. न्याय दृष्टांत सुभद्रा रानी पाल चैधरी विरूद्ध शैरली विगल नन, एआईआर 2005 एस.सी.3011 में मामले में बहनो के पक्ष में प्रोबेट दिया गया। भाईयों ने आदेश के विरूद्ध अपील की प्रशासक सह संयुक्त रिसिवर कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान नियुक्त किये गये अपील निरस्त की गयी संयुक्त रिसिवर उन्मोचित हो चुके थे सम्पत्ति बहनो मे बेष्ठित हो गई थी ऐसे में पक्षकारों द्वारा वाद में प्रस्तुत आवेदन पर रिसिवर नियुक्ति का क्षेत्राधिकार समाप्त हो जाता है और रिसिवर नियुक्ति उचित नहीं है यह प्रतिपादित किया गया।
10. फर्म के विघटन और लेखों के वाद में रिसिवर नियुक्ति का आवेदन दिया गया। फर्म अर्पाटमेंट का निर्माण करके उन्हें विक्रय करने के लिए गठित की गई थी वादी/पति ने केवल जमीन का अंशदान दिया था निर्माा का धन अन्य भागीदारों और बिल्डर्स ने लगाया था। रिसिवर नियुक्त कर के विक्रय को पूरी तरह रोक दिया गया। आदेश इन तथ्यों पर विचार किये बिना दिया गया कि ऐसे आदेश से फर्म का व्यवसाय बंद हो जायेगा फर्म की साख और विश्वसनीयता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी ऐसे आदेश को उचित नही माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत कल्पना कोठारी विरू;द्ध सुधा यादव एआईआर 2002 एस.सी.404 अवलोकनीय है।
11. राष्टीय राजमार्ग के उपयोग के टोल टैक्स के संग्रह के कार्य का सुपरविजन करने के लिए एक एडवोकेट को रिसिर नियुक्त किया गया इसे उचित नही माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेट आफ बेस्ट बंगाल विरूद्ध एम.आर. मोदल एआईआर 2001 एस.सी.3471अवलोकनीय है।
12. विभाजन के बाद में जहा प्रतिवादी वादग्रस्त सम्पत्ति के भौतिक आधिपत्य में था वहा रिसिवर नियुक्ति का आदेश किया गया और इन बिंदुओ पर निष्कर्ष नहीं दिया गया कि रिसिवर की नियुक्ति उचित और सुविधा जनक है, वादी का प्रथम दृष्टया मामला है या संपत्ति के आवश्यक उपाय करना जरूरी है ऐसे आदेश को उचित नहीं माना गया।
13. व्यक्ति जो वादग्रस्त सम्पत्ति के आधिपत्य के एक अनुबंध के अधीन है उसने आधिपत्य मे हस्तक्षेप रोकने की स्थायी निषेधाज्ञा का वाद पेश किया प्रतिवादी ने रिसीवर नियुक्ति का आदेश दिया न्यायालय ने यह निष्कर्ष दिया कि वादी जो व्यक्ति अनुबंध के अधीन आधिपत्य में है यह माना जायेगा कि वह न्यायालय की ओर से रिसिवर के समान आधिपत्य रखे हुए है पृथक से रिसीवर नियुक्ति अनावश्यक है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत बिग्रेडियर सावनी भवानी सिंह वि0 मेसर्स इंडियन होटल कार्पोरेशन एआईआर 1997 एससी 2183 अवलोकनीय है।
14. मिल स्वामी ने वित्तीय निगम को किश्ते अदा करने में चूक की दी इस आधार पर रिसिवर नियुक्त किया गया मिल स्वामी ने किश्ते जमा करवा दी और आगे के भुगतान का वचन भी दिया ऐसे में मिल रिसिवर को सौपने का आदेश अपास्त किया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत छानू मोलू निर्माला वि0 सी.एच.इंदिरादेवी एआईआर 1994 एससी 662 अवलोकनीय है।
15. सयुक्त परिवार की समत्ति में कर्ता द्वारा संपत्ति का आंशिक डिस्पोजल किया गया । यह अभिकथित किया गया कि ऐसा न्यायालय के आदेश के विपरीत किया गया इस मामले में न्यायालय ने प्रशासन नियुक्त किया जो संपत्ति के आगे के अंतरण को रोकने के लिए था उसे रिसिवर के समान शक्त्या रहेगी और ऐसे ही उसके कर्तव्य रहे यह आदेश भी दिया इस संबंध में न्याय दृष्टांत महाराज जगत सिंह वि0 लेफटीनेंट कर्नल स्वानी भावनी सिंह एआईआर 1993 एस.सी. 1721 अवलोकनीय है।
16. संपत्ति पर रिसिवर नियुक्त करने में तृतीय पक्ष के अधिकार प्रभावित नहीं होते। तृतीय पक्ष को न्यायालय में आकर आवेदन करना चाहिए और अपने अधिकार स्थापित करने चाहिए। किरायेदार अवैध निर्माण कर रहा हो या किरायेदारी की शर्तो के विपरीत कार्य कर रहा हो ऐसे में रिसिवर के प्रतिवेदन के आधार पर मामले का संक्षिप्त निराकरण उचित नहीं माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत एंथोनी सी लियो वि0 नंदलाल बालकृष्ण एआईआर 1997 173 अवलोकनीय है।
17. रिसिवर की सोमोटो नियुक्ति विशेष रूप से जब किसी पक्षकार ने रिसिवर नियुक्ति की प्रार्थना नहीं की हो उचित नहीं मानी गयी इस संबंध में न्याय दृष्टांत महेन्द्र एच पटेल वि0 रामनारायण सिंह एआईआर 2002 एस सी 3569 अवलोकनीय है।
18. जहा वादी ने ही प्रतिवादीगण के आधिपत्य में सम्पत्ति सौंपी हो वहा पर रिसिवर नियुक्ति आवश्यक नहीं मानी गयी इस संबंध में न्याय दृष्टांत रघुनाथ राव वि0 मेसर्स मीनेरिया नेशनल लिमिटेड एआईआर 1974 गोवा 41 अवलोकनीय है।
19. वाहन बैंक द्वारा विक्रय किया गया। विक्रय की राशि प्रत्यर्थी के खाते मे जमा की गयी। ऐसे में क्रेता से वाहन वापस लेकर वाद लंबन के दौरान रिसीवर को देना उचित नहीं माना गया इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेण्डर्ड चार्टर्ड बैंक वि0 शिवशंकर गुप्ता एआई आर 2005 देहली 75 अवलोकनीय है।
20. जहा प्रतिवादी वादग्रस्त सम्पत्ति पर खडे वृक्षों को बेच रहा हो वहा रिसीवर नियुक्ति उचित होती है।
3. रिसीवर का पारिश्रमिक:- न्यायालय द्वारा तय किया जाता है और न्यायालय कार्य की प्रकृति को देखते हुए आदेश कर सकती है रिसीवर का पारिश्रमिक कितना होगा और कौन पक्ष अदा करेगा।
4. रिसिवर के कर्तव्य के बारे में आदेश 40 नियम 3 सीपीसी में यह प्रावधान है रिसिवरः-
ए- संपत्ति के बाबत् वह जो कुछ प्राप्त करेगा उसका उचित रूप से लेखा देने के लिए ऐसे प्रतिभूति देगा जो न्यायालय आदेश करे।
बी- अपने लेखाओं को ऐसी अवधियों पर और ऐसे प्रारूप में देगा जो न्यायालय विर्निष्ट करे।
सी- अपने पर बकाया रकम ऐसे दा करेगा जैसा न्यायालय आदेश करे।
डी- स्वयं के द्वारा जानबूझकर की गयी किसी चूक या घोर उपेक्षा से संपत्ति को हुई हानि को उत्तरदायी होगा।
5. आदेश 40 नियम 4 सीपीसी के अनुसार न्यायालय जहा रिसिवर:-
ए- अपने लेखा को ऐसी अवधि में और ऐसे प्रारूप में देने में असफल रहता है जैसा न्यायालय ने आदेश दिया था।
बी- अपने पर बकाया रकम ऐसे अदा करने में असफल रहता है जैसा न्यायालय ने आदेश दिया था।
सी- स्वयं के द्वारा जानबूझकर की गई किसी चूक या घोर उपेक्षा से संपत्ति को हानि होने देता है
वहा न्यायालय रिसिवर की संपत्ति को कुर्क करने का निर्देश दे सकता है और संपत्ति को विक्रय करके बकाया रकम की प्रतिपूर्ति कर सके।
रिसिवरशिप न्यायालय द्वारा अधिरोपित नहीं की जा सकती है। निगम के रिसिवर ने रिसिवर के पद से रिलीव होने की प्रार्थना की गई जो स्वीकार की गयी। इस संबंध में न्याय दृष्टांत हिन्दुस्तान पेटोलियम कापो्ररेशन वि0 मेसर्स रामचंद, एआईआर 1994 एस सी 478 अवलोकनीय है।
रिसिवर द्वारा किया गया कृत्य जिस न्यायालय ने उसे नियुक्त किया है उसके निर्देशो और आदेशों के अधीन रहेगा। इस संबंध में न्याय दृष्टांत कृष्णकुमार खेमा वि0 जी बैंक, एआईआर 1991 एस.सी.899 अवलोकनीय है अर्थात् रिसिवर न्यायालय के आदेशों और निर्देशो के अनुरूप ही कार्य कर सकता है, उसके बाहर जाकर किया गया कार्य मान्य नहीं किया जाता है।
वादग्रस्त सम्पत्ति के विक्रय करने का रिसिवर को निर्देश दिया गया और रिसिवर ने वाद के पक्षकारो की सहमति से एक पार्टी का विक्रय प्रस्ताव स्वीकार किया सम्पत्ति पर 38 परिवार हट बनाकर रहते थे। उन्होने अधिक मूल्य पर उस सम्पत्ति को क्रय करने का प्रस्ताव किया। सामाजिक न्याय के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने हट डीलर का विक्रय प्रस्ताव स्वीकार करने के आदेश दिये। इस संबंध में न्याय दृष्टांत साधूराम बंसल वि0 पुलीन बिहारी सरकार एआईआर 1984 एस.सी.1471 अवलोकनीय है।
रिसिवर नियुक्ति को निरस्त करने की प्रार्थना इस आधार पर की गई कि जब रिसिवर संपत्ति का आधिपत्य लेने पहुंचे थे तब अपीलार्थी अनुपस्थित था इसे रिसिवर नियुक्ति को निरस्त करने का उचित आधार नहीं माना गया। इस संबंध में न्याय दृष्टांत बलवीर सिंह वि0 संजय देव, एआईआर 2000 एस.सी. 3563 अवलोकनीय है।
6. किसे रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है:-
न्यायालय के समक्ष आवेदन स्वीकार करने के बाद यह प्रश्न उपस्थित होता है कि रिसिवर किसे नियुक्त किया जाये इस संबंध में निम्न तथ्य ध्यान में रखना चाहिए।
1. सामान्य नियम यह है कि जिस व्यक्ति का वादग्रस्त सम्पत्ति में कोई हित न हो या रूचि न हो उसे रिसिवर नियुक्त किया जाना चाहिए।
2. ऐसे व्यक्ति को रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है जो वादग्रस्त संपत्ति से जुडा हुआ है यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसे व्यक्ति की नियुक्ति से वादग्रस्त सम्पत्ति को लाभ होगा।
3. रिसिवर किसी स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को नियुक्ति किया जाना चाहिए सेवानिवृत्त शासकीय सेवक को भी रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
4. दोनो पक्षों से रिसिवरों के नाम की सहमति भी ली जा सकती है और जिस व्यक्ति के नाम से दोनो पक्ष सहमत है उसे ही रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
5. सेवारत न्यायाधीश या सेवारत शासकीय सेवक को रिसिवर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वह संपत्ति की उचित देखभाल का समय अपने पदीय कर्तव्यों के कारण नहीं दे पाते हें।
रिसीवर के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं है, लेकिन वादग्रस्त संपत्ति की प्रकृति और उससे जुडे कर्तव्यों को देखते हुए एक स्वतंत्र व्यक्ति रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
आदेश 40 नियम 5 सीपीसी के तहत जहा संपत्ति सरकार को राजस्व देने वाली भूमि है या ऐसी भूमि है जहा जिसका राजस्व निर्धारित है और न्यायालय के राय में कलेक्टर के प्रबंध में संपत्ति देने से पक्षकारों के हितों की वृद्धि होगी तब कलेक्टर को रिसिवर नियुक्त किया जा सकता है।
7. सहमति:-
जिस व्यक्ति को रिसीवर नियुक्त किया जाना हो उसकी लिखित सहमति लेना चाहिए कि वह रिसीवर नियुक्त होने से सहमत है और जैसा ही उक्त न्याय दृष्टांत हिन्दुस्तान पेटोलियम वाले मामले में प्रतिपादित किया है रिसीवरशिप न्यायालय द्वारा अधिरोपित नहीं की जाना चाहिए। यदि व्यक्ति रिसीवर नियुक्त होने में सहमत न हो तो उसे रिसिवर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
8. रिसिवर द्वारा या रिसीवर के विरूद्ध वाद:-
रिसिवर द्वारा या रिसीवर के विरूद्ध कोई वाद संबंधित न्यायालय के पूर्व अनुमति के बिना चलने योग्य नहीं होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत शिवकुमार द्विवेदी वि0 भोगीलाल साह, 2011 (1)एम.पी.एच.टी. 356 अवलोकनीय है।
9. रिसिवर नियुक्ति का एकपक्षीय आदेश:-
अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में जहा आपात परिस्थिति हो रिसिवर नियुक्ति का एकपक्षीय आदेश भी दिया जा सकता है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत मोहम्मद अली हिदायत अली वि0 अलोपी शंकर, एआईआर 1971 ए.पी.376 अवलोकनीय है।
10. विपक्षी को सूचना:-
यद्यपि विधि में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि रिसीवर नियुक्ति के पूर्व विपक्षी को सूचना दी जाये किन्तु सामान्यतः विपक्षी को सूचना देकर और उसका सुनकर ही रिसिवर नियुक्त किया जाता है।
11. प्रतिभूति:-
सामान्यतः रिसिवर से मामले की प्रकृति को देखते हुए उचित प्रतिभूति बांड के रूप में ली जाना चाहिए।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि जैसे ही रिसिवर नियुक्ति का प्रार्थना पत्र पेश हो सामान्यतः विपक्षी को सुनकर न्यायालय को इस संबंध में निष्कर्ष देना चाहिए कि वादी का प्रथम दृष्टया स्थापित मामला है। सम्पत्ति खतरे में है या उसके नष्ट होने की संभावना है और वाद के निराकरण तक उसे सुरक्षित रखने के लिए यह न्यायसंगत और सुविधा पूर्ण है कि रिसिवर नियुक्त किया जाये ऐसा सकारण आदेश देना चाहिए। रिसिवर ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसका वादग्रस्त सम्पत्ति में कोई हित व रूचि न हो और वह वादग्रस्त सम्पत्ति की स्थिति को देखते हुए रिसिवर के कर्तव्य निर्वाह करने के योग्य व्यक्ति हो। संबंधित व्यक्ति की लिखित सहमति भी ले लेना चाहिए और उससे मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक प्रतिभूति भी लेना चाहिए रिसिवर नियुक्ति कब से कब तक के लिए की गयी है यह भी आदेश में स्पष्ट करना चाहिए अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में रिसीवर नियुक्ति एकपक्षीय आदेश भी किया जा सकता है कार्य की प्रकृति को देखते हुए रिसिवर का उचित पारिश्रमिक और वह किस पक्ष द्वारा दिया जावेगा यह भी आदेश में बतलाना चाहिए।
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