वाद
पद निर्धारण
के सिद्धांत
किसी
भी व्यवहार
या सिविल
मामले में
वाद पद
निर्धारण
एक महत्वपूर्ण
प्रक्रम होता
हैं प्रत्येक
न्यायाधीश
को इस
प्रक्रम पर
अत्यंत सावधान
रहना चाहिए
और ऐसे
समस्त वाद
पद विरचित
करना चाहिए
जो पक्षकारों
में उत्पन्न
वास्तविक
विवाद के
न्यायपूर्ण
निराकरण के
लिए आवश्यक
हो। कई
बार महत्वपूर्ण
बिन्दुओं
पर वाद
प्रश्न विरचित
न होने
से उन
पर साक्ष्य
लेखबद्ध नहीं
हो पाता
है और
फिर प्रकरण
के निराकरण
के समय
या कई
बार अपील
के निराकरण
के समय
कठिनाई होती
हैं और
कुछ मामले
तो इसी
कारण प्रतिप्रेषित
या रिमांड
भी करना
पड़ते हैं।
वाद
पदो का
महत्व
न्याय
दृष्टांत
माखन लाल
बंगल विरूद्ध
मानस भूनिया,
ए.आई.आर.
2001 एस.सी.
490 तीन
न्यायमूर्तिगण
की पीठ
ने निर्णय
के चरण
19 में
वाद पद
के महत्व
पर प्रकाश
डाला है
और यह
प्रतिपादित
किया गया
है कि
वाद पद
निर्धारण
का प्रक्रम
किसी भी
मामले में
एक महत्वपूर्ण
अवस्था होती
हैं इस
दिन विचारण
का विस्तार
तय होता
है और
वह मार्ग
निर्धारित
होता है
जिस पर
विचारण सारे
मार्ग परिवर्तन
और विचलन
या डायवर्जन
और डिपाचर
के बिना
चलेगा वाद
पद निर्धारण
के लिए
नियत तारीख
एक सुनवाई
की तारीख
होती हैं।
इस दिन
पक्षकारों
के मध्य
वास्तविक
विवाद क्या
है यह
तय होता
है विवाद
का क्षेत्र
सीमित किया
जाता है
और न्यायालय
एक अवतल
दर्पण निर्धारित
करती है
जिसमें
पक्षकारों
के अभिवचनों
और उनके
बीच वे
मुख्य बिन्दु
जिन पर
दोनों पक्षकरों
में विवाद
है वे
वाद प्रश्न
के रूप
में तय
होते हैं,
देख
सकते हैं।
किसी व्यवहार
विवाद का
सही निर्णय
सहीं वाद
प्रश्नों
के निराकरण
पर निर्भर
करता हैं।
उक्त
न्याय दृष्टांत
वाले मामले
में 11
विभिन्न
दूषित आचरण
के बिन्दु
एक चुनाव
याचिका में
उठाये गये
थे और
केवल एक
अस्पष्ट वाद
प्रश्न दूषित
आचरण के
बारे में
बनाया गया
था जिसे
उचित नहीं
माना गया।
इस संबंध
में न्याय
दृष्टांत
अमीन उद्दीन
विरूद्ध रफीक
उद्दीन, 2005 (2) एम.पी.जे.आर.
480 भी
अवलोकनीय
हैं।
वाद
पदों की
रचना के
पूर्व न्यायालय
को अभिलेख
से यह
संतुष्टि
कर लेना
चाहिए कि
धारा 89
सी.पी.सी.
की
कार्यवाही
हो चुकी
है तथा
मामले को
वैकल्पिक
रूप से
निराकरण की
संभावना देखी
जा चुकी
हैं और
मामला वैकल्पिक
रूप से
धारा 89
सी.पी.सी.
के
तहत निराकरण
योग्य नहीं
हैं।
वाद
पदों की
रचना व
प्रकार
आदेश
14 नियम
1 सी.पी.सी.
के
अनुसार तथ्य
या विधि
की कोई
तात्विक
प्रस्थापना
जो एक
पक्षकार
द्वारा
प्रतिज्ञात
और दूसरे
पक्षकार
द्वारा
प्रत्याख्यात
की जाती
है तब
एक वाद
पद उत्पन्न
होता है।
आदेश
14 नियम
1 (2) के
तहत तात्विक
प्रस्थापना
विधि या
तथ्य की
वे प्रस्थापनाए
है जिन्हें
वाद लाने
का अपना
अधिकार दर्शित
करने के
लिए वादी
को अभिकथन
करना होता
है या
अपनी प्रतिरक्षा
गठित करने
के लिए
प्रतिवादी
को अभिकथन
करना होता
है।
आदेश
14 नियम
1 (3) के
अनुसार एक
पक्षकार
द्वारा
प्रतिज्ञात
और दूसरे
पक्षकार
द्वारा
प्रत्याख्यात
हरएक प्रस्थापना
एक अलग
वाद पद
का विषय
होती हैं।
आदेश
14 नियम
1 (4) के
अनुसार वाद
पद दो
प्रकार के
होते है:-
ए.
तथ्य
के वाद
पद।
बी.
विधि
के वाद
पद।
आदेश
14 नियम
1 (5) के
अनुसार
न्यायालय
वाद की
प्रथम सुनवाई
में वाद
पत्र और
लिखित कथन
यदि कोई
हो तो
उसे पढ़ने
के पश्चात
और आदेश
10 नियम
2 के
अधीन परीक्षा
करने के
पश्चात तथा
पक्षकारों
या उनके
अभिभाषक को
सुनने के
पश्चात यह
निश्चित
करेगा की
तथ्य या
विधि की
किन तात्विक
प्रस्थापनाओं
के बारे
में पक्षकारों
में मदभेद
है और
तब वह
उन वाद
पदों की
रचना और
उन्हें
अभिलिखित
करने के
लिए अग्रसर
होगा जिसके
बारे में
यह प्रतीत
होता है
कि मामले
का ठीक
निर्णय उन
वाद पदों
पर निर्भर
करता हैं।
आदेश
14 नियम
1 (6) के
तहत जहां
प्रतिवादी
वाद की
प्रथम सुनवाई
पर कोई
प्रतिरक्षा
नहीं करता
वहां न्यायालय
से यह
अपेक्षा नहीं
होती है
की वह
वाद पद
विरचित करे।
इस
तरह आदेश
14 नियम
1 सी.पी.सी.
में
वाद पदों
के रचना
के बारे
में उक्त
व्यवस्था
है जिसे
ध्यान में
रखते हुये
प्रत्येक
मामले में
वाद पद
विरचित करना
चाहिए।
आदेश
14 नियम
2 (1) सी.पी.सी.
के
तहत न्यायालय
उप नियम
2 के
अधीन रहते
हुये इस
बात के
होते हुये
भी की
वाद का
निपटारा
प्रारंभिक
वाद पद
पर किया
जा सकता
हैं, सभी
वाद पदों
पर निर्णय
सुनायेगा।
आदेश
14 नियम
2 (2) के
तहत जहां
एक ही
वाद में
विधि के
वाद पद
और तथ्य
के वाद
पद उत्पन्न
होते है
और न्यायालय
की राय
है की
मामला या
उसके किसी
भाग का
निपटारा केवल
विधि के
वाद पद
पर किया
जा सकता
है वहां
यदि वह
वाद पद:-
ए.
न्यायालय
की अधिकारिता।
बी.
तत्समय
प्रवर्त किसी
विधि द्वारा
वाद के
वर्जन।
से
संबंधित है
तो वह
पहले उस
वाद पद
का विचारण
करेगा और
इस उद्देश्य
के लिए
यदि वह
ठीक समझे
तो अन्य
वाद पदों
का निराकरण
स्थगित कर
सकेगा और
वाद की
कार्यवाही
उस वाद
पद के
विनिश्चय
के अनुसार
कर सकेगा।
प्रारंभिक
वाद पद
के बारे
में
प्रारंभिक
वाद प्रश्न
के बारे
में वैधानिक
स्थिति यह
है कि
वे वाद
पद जो
विधि और
तथ्य के
मिश्रित वाद
पद हो,
जिनमें
साक्ष्य ली
जाना जरूरी
हो उन्हें
प्रारंभिक
वाद पद
के रूप
में नहीं
सुने जाना
चाहिए केवल
उन्हीं वाद
पदों को
प्रारंभिक
वाद पदों
के रूप
में सुने
जाना चाहिए
जिनमें साक्ष्य
लेना जरूरी
न हो
और जो
केवल मौखिक
तर्क से
तय हो
सकते हो
तथा वे
न्यायालय
की अधिकारिता
या वाद
के किसी
विधि द्वारा
वर्जन से
संबंधित हो।
आदेश
14 नियम
2 सी.पी.सी.
मुख्य
रूप से
प्रारंभिक
वाद पद
से संबंधित
हैं। जहां
कोई प्रश्न
विधि और
तथ्य का
मिश्रित
प्रश्न हो
उसे प्रारंभिक
वाद पद
के रूप
में तय
नहीं किया
जा सकता
सामान्यतः
सभी वाद
पदों का
विचारण एक
साथ किया
जाना चाहिए
और विशेष
रूप से
जहां विधि
के वाद
पद का
निर्णय तथ्य
के वाद
पद पर
आधारित हो
वहां ऐसे
विधि के
वाद पद
का निराकरण
भी प्रारंभिक
वाद पद
के रूप
में भी
नहीं किया
जाना चाहिए
इस संबंध
में न्याय
दृष्टांत
मेजर एस.एस.
खन्ना
विरूद्ध
ब्रिगेडियर
एफ.जे.
डिल्लन,
ए.आई.आर.
1964 एस.सी.
497 तीन
न्यायमूर्तिगण
की पीठ
अवलोकनीय
हैं साथ
ही न्याय
दृष्टांत
रमेश बी.
देसाई
विरूद्ध
विपिन वाडी
लाल मेहता,
ए.आई.आर.
2006 एस.सी.
3672 भी
इस बारे
में अवलोकनीय
हैं।
न्याय
दृष्टांत
शांति शुक्ला
विरूद्ध
शांति बाई,
2005 (2) एम.पी.एल.जे.
114 में
यह प्रतिपादित
किया गया
है कि
जहां परिसीमा
का प्रश्न
तथ्यों के
प्रमाण पर
निर्भर हो
उसे प्रारंभिक
वाद प्रश्न
के रूप
में निराकृत
नहीं किया
जा सकता
हैं।
न्याय
दृष्टांत
शदाब गृह
निर्माण
सहकारी संस्था
मर्यादित
भोपाल विरूद्ध
परिता गृह
निर्माण
सहकारी संस्था
मर्यादित
भोपाल, 2007 (2) एम.पी.एल.जे.
524 में
यह प्रतिपादित
किया गया
है कि
मूल्यांकन
और परिसीमा
का प्रश्न
लिखित कथन
में उठाया
गया जो
विधि और
तथ्य का
मिश्रित
प्रश्न है
इसे प्रारंभिक
वाद प्रश्न
के रूप
में तय
नहीं किया
जा सकता।
इस मामले
में न्याय
दृष्टांत
बलसारीया
कंस्टेक्शन
पी. लिमिटेड
विरूद्ध
हनुमान सेवा
ट्रस्ट, 2006 (5) एस.सी.सी.
658 पर
विचार किया
गया है
जिसमें यह
प्रतिपादित
किया गया
है कि
परिसीमा का
प्रश्न यदि
विधि और
तथ्य का
मिश्रित
प्रश्न हो
तो उसे
केवल वाद
के तथ्यों
के आधार
पर वाद
अवधि बाधित
है ऐसा
निर्धारित
नहीं किया
जा सकता
।
न्याय
दृष्टांत
नरेन्द्र
कुमार विरूद्ध
फर्म रामनारायण,
1977 (2) एम.पी.डब्ल्यू.एन.
113 में
माननीय म0प्र0
उच्च
न्यायालय
की खण्ड
पीठ ने
भी यह
निर्धारित
किया है
कि परिसीमा
का प्रश्न
जो प्रमाण
पर निर्भर
हो प्रारंभिक
वाद प्रश्न
के रूप
में तय
नहीं किया
जा सकता
इस मामले
में न्याय
दृष्टांत
लुफ्त हंसा
जर्मन एयर
लाइंस विरूद्ध
विज सैल्स
कार्पोरेशन
(1998) 8 एस.सी.सी.
623 पर
भरोसा किया
गया हैं।
न्याय
दृष्टांत
अब्दुल रहमान
विरूद्ध
प्रसूनी बाई,
ए.आई.आर.
2003 एस.सी.
718 में
यह प्रतिपादित
किया गया
है कि
रेस ज्यूडिकेटा/
कंस्ट्रक्टिव
रेस ज्यूडिकेटा
या वाद
की प्रचलशीलता
का प्रश्न,
जहां
तथ्य स्वीकृत
हो, प्रारंभिक
वाद प्रश्न
के रूप
में तय
किये जा
सकते हैं।
वाद
पद निर्धारण
की सामग्री
आदेश
14 नियम
3 सी.पी.सी.
के
अनुसार
न्यायालय
निम्न लिखित
सभी सामग्री
से या
इनमें से
किसी से
वाद पदों
की रचना
कर सकेगा:-
ए.
पक्षकारों
द्वारा या
उनकी ओर
से उपस्थित
किन्हीं
व्यक्तियों
द्वारा या
ऐसे पक्षकारों
के प्लीडरों
द्वारा शपथ
पर किये
गये अभिकथन।
बी.
अभिवचनों
या वाद
में दिये
गये परिप्रश्नों
के उत्तर
में किये
गये अभिकथन।
सी.
पक्षकारों
द्वारा पेश
दस्तावेजों
की अंतर
वस्तु।
इस
तरह आदेश
14 नियम
3 सी.पी.सी.
में
वे सामग्रीया
बतलाई गई
है जिनके
आधार पर
न्यायालय
को वाद
प्रश्न विरचित
करना होते
है।
वाद
पद निर्धारण
के पूर्व
साक्षियों
या दस्तावेजों
की परीक्षा
आदेश
14 नियम
4 सी.पी.सी.
के
तहत न्यायालय
वाद पदों
की रचना
से पहले
किसी व्यक्ति
की परीक्षा
कर सकेगा
या कोई
दस्तावेज
बुलवा सकेगा
जो न्यायालय
की राय
में वाद
प्रश्न की
रचना के
लिए आवश्यक
हैं।
न्याय
दृष्टांत
हीरा लाल
विरूद्ध
बालकृष्ण, ए.आई.आर.
1953 एस.सी.
225 में
यह न्यायालय
का कर्तव्य
बतलाया गया
है कि
वह वाद
पद की
रचना के
पूर्व उचित
मामलों में
पक्षकारों
की परीक्षा
करे।
वाद
पदों में
संशोधन
आदेश
14 नियम
5 (1) सी.पी.सी.
के
अनुसार
न्यायालय
डिक्री पारित
करने के
पूर्व किसी
भी समय
ऐसी शर्तो
पर जो
वह उचित
समझे, वाद
पदों में
संशोधन कर
सकेगा या
अतिरिक्त
वाद पद
की रचना
कर सकेगा
और ऐसे
सभी संशोधन
या अतिरिक्त
वाद प्रश्न
जो पक्षकारों
के बीच
विवादग्रस्त
बातों के
निर्धारण
के लिए
आवश्यक हो
किये जायेंगे।
आदेश
14 नियम
5 (2) के
अनुसार
न्यायालय
डिक्री पारित
करने के
पूर्व किसी
भी समय
किन्हीं वाद
पदों को
काट सकेगा
जिसके बारे
में उसे
ऐसा प्रतीत
होता की
वे गलत
तौर पर
विरचित किये
गये है
या पुनःस्थापित
किये गये
है।
इस
तरह आदेश
14 नियम
5 सी.पी.सी.
में
न्यायालय
को वाद
पदों में
संशोधन या
अतिरिक्त
वाद पद
के रचना
की शक्ति
दी गई
हैं।
वाद
पद न
बनाने का
प्रभाव
वैधानिक
स्थिति यह
है कि
जहां पक्षकार
एक दूसरे
के मामले
से अच्छे
तरह परिचित
हो वे
विवादित
बिन्दु पर
साक्ष्य भी
प्रस्तुत
करे तब
केवल वाद
प्रश्न का
न बनाया
जाना महत्वपूर्ण
नहीं होता
हैं इस
संबंध में
कुछ महत्वपूर्ण
न्याय दृष्टांत
इस प्रकार
हैं:-
जहां
पक्षकारों
ने पर्याप्त
अभिवचन किये
हो उन
पर साक्ष्य
भी दी
हो पक्षकार
एक दूसरे
के मामले
को जानते
भी हो
वहां केवल
वाद प्रश्न
न बनाना
विचारण को
दूषित नहीं
करता है
इस संबंध
में न्याय
दृष्टांत
नेदू नूरी
कामेश्वरम्म
विरूद्ध एस.
सुब्बाराव,
ए.आई.आर.
1963 एस.सी.
884 तीन
न्यायमूर्तिगण
की पीठ
तथा न्याय
दृष्टांत
शेख मोहम्मद
उमर साहब
विरूद्ध कादल
शेखर एच.
करीम
साहब, ए.आई.आर.
1970 एस.सी.
61 भी
अवलोकनीय
हैं।
न्याय
दृष्टांत
सैयद अख्तर
विरूद्ध
अब्दुल आहद,
ए.आई.आर.
2003 एस.सी.
2985 में
म0प्र0
स्थान
नियंत्रण
अधिनियम, 1961 के
एक मामले
में यह
प्रतिपादित
किया गया
कि न्यूसेंस
पर वाद
प्रश्न नहीं
बनाया गया
था पक्षकारों
को विवाद
का ज्ञान
था उन्होंने
साक्ष्य भी
दी न्यायालय
ने उन
प्रश्नों
को विचार
में लेकर
निष्कर्ष
भी दिया
विनिर्दिष्ट
वाद प्रश्न
न होने
के आधार
पर उच्च
न्यायालय
के हस्तक्षेप
को उचित
नहीं माना
गया।
न्याय
दृष्टांत
हरियाणा
स्टेट
इलेक्ट्रोनिक
डवलपमेंट
कार्पोरेशन
विरूद्ध सीमा
शर्मा, ए.आई.आर.
2009 एस.सी.
2592 में
वादी ने
उसके प्रतिवादीगण
से वरिष्ठ
होने और
प्रतिवादीगण
की पदोन्नाति
अवैध होने
की घोषणा
का वाद
पेश किया
था प्रतिवादी
का अभिवाक
था की
पदोन्नाति
मेरिट कम
सीनियोरिटी
के आधार
पर की
गई हैं।
पदोन्नाति
की रीति
या मोड
पर कोई
वाद प्रश्न
विरचित नहीं
किया गया
था मामले
में यह
प्रश्न अत्यंत
महत्व का
था की
पदोन्नाति
क्या मेरिट
कम सीनियोरिटी
पर की
गई है
इस प्रश्न
के निराकरण
के लिए
सर्वोच्च
न्यायालय
से इस
मामले को
प्रतिप्रेषित
या रिमांड
करना पड़ा।
म0प्र0
सिविल
न्यायालय
नियम, 1961
इस
संबंध में
नियम 144
एवं
145 ध्यान
रखे जाने
योग्य है।
नियम
144 में
पीठासीन
न्यायाधीश
को वाद
पत्र, प्रतिवाद
पत्र, पक्षकारों
एवं उनके
अधिवक्ताओं
की परीक्षा
आदेश 10
नियम
1 के
पश्चात और
उनके आधारों
पर वाद
पद की
रचना करने
के निर्देश
दिये गये
है न्यायाधीश
उभय पक्ष
के दस्तावेजों
परिप्रश्नों
के उत्तर
को भी
देख सकते
हैं।
नियम
145 (1) के
अनुसार वाद
पदों की
रचना हेतु
ध्यान रखे
जाने योग्य
बाते बतलाई
गई हैं
जो इस
प्रकार हैं:-
ए.
विधि
और तथ्य
की प्रत्येक
तात्विक
प्रस्थापना
जो एक
पक्ष द्वारा
पुष्ट की
जाये और
दूसरे पक्ष
द्वारा इंकार
किया जाये
पृथक वाद
पद का
विषय होगी।
बी.
तथ्य
के वाद
पद की
रचना इस
प्रकार की
जायेगी की
यह स्पष्ट
हो सके
की उसका
प्रमाण भार
किस पर
है।
सी.
विधि
के प्रत्येक
वाद पद
की रचना
इस प्रकार
की जायेगी
ताकि विधि
का निराकरण
योग्य प्रश्न
स्पष्ट रूप
से दर्शित
हो।
टीप्पणी
- जब
कोई वाद
या उसका
कोई भाग
विधि द्वारा
वर्जित हो
तब उस
विधि का
नाम, धारा
या नियम
जिसके तहत
वाद बाधित
है उसका
उल्लेख होना
चाहिए।
डी.
जहां
यह प्रश्न
हो की
क्या किसी
विधि की
कोई धारा
लागू होती
है तब
वाद प्रश्न
उस धारा
के शब्दों
के अनुसार
विरचित किया
जाना चाहिए।
ई.
वाद
पद स्वयं
में पूर्ण
होना चाहिए।
ऐसा वाद
पद नहीं
बनाना चाहिए
की क्या
प्रतिवादी
द्वारा लिखित
कथन दिनांक
में वर्णित
कारण से
विक्रय निरस्त
किये जाने
योग्य हैं।
एफ.
प्रत्येक
वाद पद
में केवल
एक ही
प्रश्न होना
चाहिए और
जहां तक
संभव हो
वैकल्पिक
वाद पद
नहीं बनाना
चाहिए।
जी.
कोई
भी तथ्य
की प्रस्थापना
जो स्वयं
में महत्वपूर्ण
न हो
परंतु किसी
महत्वपूर्ण
प्रस्थापना
को सिद्ध
करने के
लिए आवश्यक
हो उसे
वाद पद
का विषय
नहीं बनाना
चाहिए।
एच.
साक्ष्य
की ग्राह्यता
के संबंध
में कोई
वाद पद
नहीं बनाना
चाहिए।
उक्त
तथ्यों को
वाद प्रश्न
के निर्धारण
के समय
ध्यान रखना
चाहिए।
साथ
ही किसी
भी वाद
पत्र में
चाहे गये
अनुतोष को
ध्यान पूर्वक
पढ़ लेना
चाहिए और
यह विचार
कर लेना
चाहिए की
क्या जो
वाद प्रश्न
विरचित किये
गये है
उनमें उक्त
अनुतोष देने
या न
देने के
प्रश्न के
निराकरण के
लिए सभी
बिन्दु आ
चुके हैं।
विभिन्न
मामलों के
वाद प्रश्न
स्थायी
निषेधाज्ञा
स्थायी
निषेधाज्ञा
के मामलों
में आधिपत्य
महत्वपूर्ण
होता है
अतः इन
मामलों में
निम्नलिखित
वाद प्रश्न
बनाये जा
सकते हैं:-
1. क्या
वादी /वादीगण
का वादग्रस्त
संपत्ति पर
आधिपत्य है
?
2. क्या
प्रतिवादी/ प्रतिवादीगण
वादी के
उक्त आधिपत्य
में अवैध
रूप से
हस्तक्षेप
करने के
लिए प्रयासरत्
है या
हस्तक्षेप
करने की
धमकी देते
है ?
घोषणा
घोषणा
के मामलों
में वाद
प्रश्न इस
प्रकार बनाना
चाहिए की
घोषणा का
आधार स्पष्ट
हो सके
इन मामलों
में निम्न
वाद प्रश्न
बनाये जा
सकते हैं:-
1. क्या
वादी /वादीगण
विक्रय पत्र
दिनांक
01.01.2012 के
आधार पर
/दान
पत्र दिनांक
01.01.2012 के
आधार पर
/विल
दिनांक
01.01.2012 के
आधार पर
वादग्रस्त
संपत्ति के
स्वामी है
?
2. क्या
वादी की
सही जन्म
तिथि 01.01.2012
है
?
3. क्या
एक्स के
बारे में
पिछले 7
वर्षो
से वादी
/वादीगण
ने या
एक्स के
रिश्तेदारों
ने उसके
जीवित रहने
के बारे
में कुछ
नहीं सुना
है ?
4. क्या
विक्रय पत्र
दिनांक
01.01.2012 वादी
के स्वत्वों
के मुकाबले
शून्य है
/वादी
पर बंधनकारी
नहीं है।
विरोधी
आधिपत्य
1. क्या
वादी /वादीगण
का वादग्रस्त
संपत्ति पर
खुले रूप
से, लगातार
12 वर्ष
/30 वर्ष
से अधिक
समय से,
अबाध,
शांतिपूर्ण,
प्रतिवादी/
प्रतिवादीगण
की जानकारी
में, उनके
स्वत्वों
को नकारते
हुये आधिपत्य
चला आ
रहा है
?
अनुबंध
पालन
1. क्या
प्रतिवादी
/प्रतिवादीगण
ने दिनांक
01.01.2012 को
वादी/ वादीगण
से वादग्रस्त
संपत्ति
रूपये 1
लाख
में विक्रय
करने का
अनुबंध किया
और अनुबंध
पत्र भी
निष्पादित
किया ?
2. क्या
प्रतिवादी
/प्रतिवादीगण
ने उक्त
अनुबंध अनुसार
वादी के
पक्ष में
विक्रय पत्र
निष्पादित
करने से
अवैधानिक
रूप से
इंकार किया
?
3. क्या
वादी अनुबंध
पालन के
लिए सदैव
तत्पर और
तैयार रहा
है ?
वचन
पत्र
1. क्या
प्रतिवादी
ने वादी
से 1
लाख
रूपया उधार
लेकर वादी
के पक्ष
में वादाधार
वचन पत्र
निष्पादित
किया ?
2. क्या
प्रतिवादी
ने उक्त
राशि पर
एक प्रतिशत
प्रतिमाह
की दर
से ब्याज
देने का
करार किया
?
क्लेम
प्रकरण
1. क्या
प्रतिप्रार्थी
चालक एक्स
ने वाहन
क्रमांक
.................................... को
दिनांक
01.01.2012 को
दोपहर 3
बजे
मार्ग
.......................... पर
तेजी एवं
लापरवाही
पूर्वक चला
कर एक
वाहन दुर्घटना
कारित की
?
2. क्या
उक्त दुर्घटना
में एक्स
की मृत्यु
हुई या
प्रार्थी
को स्थायी
अयोग्यता
कारित हुई
?
3. क्या
प्रार्थी
/प्रार्थीगण
प्रतिकर राशि
पाने के
पात्र है
यदि हा
तो किससे
व कितनी
?
4. क्या
प्रतिप्रार्थी
एक्स के
पास कथित
दुर्घटना
दिनांक
01.01.2012 को
वेध एवं
प्रभावी चालक
अनुज्ञप्ति
नहीं थी
? यदि
हा तो
प्रभाव।
5. क्या
वाहन क्रमांक
............................ दिनांक
01.01.2012 को
बीमा पालिसी
की शर्तो
के विपरीत
चलाया जा
रहा था
यदि हा
तो प्रभाव
?
6. सहायता
एवं खर्च
।
म0प्र0
स्थान
नियंत्रण
अधिनियम, 1961
इन
मामलों में
मुख्य रूप
से वाद
की प्रकृति
को देखते
हुये निम्न
लिखित वाद
प्रश्न विरचित
किये जाते
है जो
एक आदर्श
वाद प्रश्न
के रूप
में प्रत्येक
मामले में
बनाये जा
सकते है
संबंधित
निष्कासन
के आधारों
को ध्यान
में रखते
हुये वाद
प्रश्न बनाना
चाहिये कुछ
आदर्श वाद
प्रश्न निम्न
प्रकार से
हैः-
धारा
12 (1) (ए)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
1. क्या
प्रतिवादी
वादी का
वाद ग्रस्त
परिसर में
................ रूपये
प्रतिमाह
की दर
से मासिक
किरायेदार
है ?
2. क्या
प्रतिवादी
ने मांग
सूचना पत्र
की तामील
के दो
माह के
भीतर वैध
रूप से
वसूली योग्य
अवशेष किराया
वादी को
अदा या
निविदा नहीं
किया है
?
3. क्या
प्रतिवादी
ने वाद
पत्र के
सूचना पत्र
की तामील
के एक
माह के
भीतर वैध
रूप से
वसूली योग्य
अवशेष किराया
वादी को
अदा या
न्यायालय
में जमा
नहीं किया
है ?
या
क्या
प्रतिवादी
ने धारा
13 (1) म.प्र.
स्थान
नियंत्रण
अधिनियम, 1961 के
प्रावधानों
का पालन
नहीं किया
हैं ?
धारा
12 (1) (बी)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
4. क्या
प्रतिवादी
ने वाद
ग्रस्त परिसर
या उसके
एक भाग
को उप
किराये पर
दे दिया
है या
अन्यथा उसका
आधिपत्य छोड़
दिया है
?
धारा
12 (1) (सी)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
5. क्या
प्रतिवादी
ने या
उसके साथ
निवास करने
वाले किसी
व्यक्ति ने
न्यूसेन्स
पैदा की
है ?
6. क्या
प्रतिवादी
ने वादी
के वाद
ग्रस्त परिसर
के स्वत्वों
से इंकार
किया है
?
धारा
12 (1) (डी)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
7. क्या
प्रतिवादी
ने युक्तियुक्त
कारण के
बिना वाद
ग्रस्त परिसर
का लगातार
6 माह
से किरायेदारी
के प्रयोजन
से उपयोग
नहीं किया
है ?
धारा
12 (1) (इ)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
8. क्या
वादी को
वाद ग्रस्त
परिसर की
अपने स्वयं
के या
अपने कुटुम्ब
के सदस्य
एक्स के
निवास के
लिए सद्भावना
पूर्वक
आवश्यकता
है ?
9. क्या
कथित शहर
या कस्बे
में वादी
के पास
उक्त प्रयोजन
के लिए
युक्तियुक्त
रूप से
उपयुक्त अन्य
रिक्त स्थल
नहीं है
?
धारा
12 (1) (एफ)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
10. क्या
वादी को
वाद ग्रस्त
परिसर की
अपने स्वयं
के या
अपने वयस्क
पुत्र एक्स
के या
अविवाहित
पुत्री वाय
के कारोबार
को चालू
रखने या
प्रारंभ करने
के लिए
सद्भावना
पूर्वक
आवश्यकता
है ?
11. क्या
कथित शहर
या कस्बे
में वादी
के पास
उक्त प्रयोजन
के लिए
युक्तियुक्त
रूप से
उपयुक्त अन्य
रिक्त स्थल
नहीं है
?
धारा
12 (1) (जी)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
12. क्या
वाद ग्रस्त
परिसर मानव
निवास के
लिए असुरक्षित
या अनुपयुक्त
हो गया
है और
उसे रिक्त
कराये बिना
उसकी मरम्मत
नहीं हो
सकती है
?
13. क्या
वादी को
वाद ग्रस्त
परिसर की
उक्त मरम्मत
के लिए
सद्भावना
पूर्वक
आवश्यकता
है ?
धारा
12 (1) (एच)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
14. क्या
वादी को
वाद ग्रस्त
परिसर की
उसके निर्माण
या पुर्ननिर्माण
के लिए
सद्भावना
पूर्वक
आवश्यकता
है ?
15. क्या
उक्त निर्माण
या पुर्ननिर्माण
वाद ग्रस्त
परिसर के
रिक्त करवाये
बिना नहीं
हो सकता
है ?
16. क्या
वादी के
पास ऐसी
मरम्मत और
पुर्ननिर्माण
के प्लान
और स्टीमेट
तैयार है
और उसके
पास मरम्मत
या निर्माण
के लिए
निधि भी
है ?
17. क्या
उक्त मरम्मत
या निर्माण
से वाद
ग्रस्त परिसर
में आमूल
परिवर्तन
नहीं होगा
या आमून
परिवर्तन
लोक हित
में है
?
धारा
12 (1) (आई)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
18. क्या
प्रतिवादी
ने उसके
निवास के
लिए उपयुक्त
आवास बना
लिया है
और उसका
कब्जा प्राप्त
कर लिया
है ?
19. क्या
प्रतिवादी
को उसके
निवास के
लिए उपयुक्त
आवास आबंटित
कर दिया
गया है
?
धारा
12 (1) (जे)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
20. क्या
प्रतिवादी
को वाद
ग्रस्त परिसर
वादी के
सेवा या
नियोजन में
रहने के
कारण निवास
स्थान के
रूप में
उपयोग के
लिए किराये
पर दिया
था ?
21. क्या
प्रतिवादी
वादी के
सेवा या
नियोजन में
अब नहीं
रहा है
?
धारा
12 (1) (के)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
22. क्या
प्रतिवादी
ने वाद
ग्रस्त परिसर
में सारवान
नुकसान किया
है या
सारवान नुकसान
होने दिया
है ?
धारा
12 (1) (एल)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
23. क्या
प्रतिवादी
ने वादी
को वाद
ग्रस्त परिसर
छोड़ने की
लिखित सूचना
दी थी
?
24. क्या
वादी ने
उक्त सूचना
प्राप्त होने
के बाद
वाद ग्रस्त
परिसर को
विक्रय करने
की संविदा
या वाद
ग्रस्त संविदा
कर ली
है ?
25. क्या
वादी को
वाद ग्रस्त
परिसर का
आधिपत्य नहीं
दिया गया
तो उसके
हितों को
गंभीर हानि
पहुंचेगी ?
धारा
12 (1) (एम)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
26. क्या
प्रतिवादी
ने वादी
की लिखित
अनुमति के
बिना वाद
ग्रस्त परिसर
में निर्माण
किया है
या किया
जाने दिया
है जिसके
कारण वाद
ग्रस्त परिसर
में तात्विक
परिवर्तन
हो गया
है जो
वादी के
हितों के
प्रतिकूल
है या
जिसके कारण
वाद ग्रस्त
परिसर के
मूल्य में
तात्विक कमी
होना संभव
है ?
धारा
12 (1) (एन)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
27. क्या
वाद ग्रस्त
खुली भूमि
की वादी
को मकान
बनाने के
लिए आवश्यकता
है ?
धारा
12 (1) (ओ)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
28. क्या
वादी की
लिखित अनुमति
के बिना
प्रतिवादी
ने किराये
पर दिये
गये वाद
ग्रस्त परिसर
के अतिरिक्त
अन्य भागों
पर आधिपत्य
कर लिया
है ?
29. क्या
प्रतिवादी
ने वादी
के लिखित
सूचना के
बाद भी
उक्त अन्य
भागों को
रिक्त नहीं
किया है
?
धारा
12 (1) (पी)
अधिनियम
के वाद
प्रश्न
30. क्या
प्रतिवादी
ने वाद
ग्रस्त परिसर
का अनैतिक
या अवैध
उद्देश्य
के लिए
उपयोग किया
है या
उपयोग करने
की अनुमति
दी है
और इसके
लिए उसे
दोषसिद्ध
ठहराया जा
चुका है
?
अन्य
मामलों में
भी पक्षकारों
के अभिवचनों
प्रस्तुत
दस्तावेजों
के आधार
पर मामले
के तथ्यों
और परिस्थितियों
के अनुसार
वाद प्रश्न
विरचित किये
जा सकते
हैं इसका
कोई स्थायी
माप दण्ड
नहीं है
उक्त मामलों
के वाद
प्रश्न उदाहरण
स्वरूप बताये
गये है।
आदेश
14 नियम
6 और
7 तथ्य
के या
विधि के
प्रश्न करार
के रूप
में कथन
करने और
उनके आधार
पर निर्णय
सुनाने संबंधी
प्रावधान
हैं जो
ध्यान में
रखना चाहिए।
इस
तरह उभय
पक्ष के
अभिवचनों, उनके
द्वारा
प्रस्तुत
दस्तावेजों, आदेश
10 नियम
2 सी.पी.सी.
के
अधीन परीक्षण
यदि किया
गया हो,
परिप्रश्नों
के उत्तर,
के
आधार पर
न्यायालय
को ऐसे
सभी वाद
प्रश्न विरचित
करना चाहिए
जो पक्षकारों
में उत्पन्न
वास्तविक
विवाद के
न्यायपूर्ण
निराकरण के
लिए आवश्यक
हो तथा
चाहे गये
अनुतोष को
दिलवाने के
लिए सभी
बिन्दु उनमें
कवर होते
हो। न्यायालय
को वाद
प्रश्न का
प्रमाण भार
संबंधित पक्ष
पर रहे
इसका भी
वाद पद
की रचना
में ध्यान
में रखना
चाहिए। ऐसे
वाद पद
जो विधि
और तथ्य
के मिश्रित
वाद पद
हो और
जो साक्ष्य
बिना तय
न हो
सकते हो
उन्हें
प्रारंभिक
वाद पद
के रूप
में तय
नहीं करना
चाहिए।
(पी.के.
व्यास)
विशेष
कर्तव्यस्थ
अधिकारी
न्यायिक
अधि. प्रशिक्षण
एवं अनुसंधान
संस्थान
उच्च
न्यायालय
जबलपुर म.प्र.
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