आहत गवाह या इंजर्ड विटनेस
वह व्यक्ति जिसको उसी घटना में चोटे कारित होती है उसे आहत गवाह कहते हैं और ऐसे गवाह की साक्ष्य को अधिक महत्व दिये जाने पर बल दिया है क्योंकि उसी घटना में चोटे आने के कारण उसकी घटना स्थल पर उपस्थिति पर संदेह नहीं रहता हैं साथ ही जिस व्यक्ति को घटना में चोटे लगती है वह सामान्य मानवीय स्वभाव के कारण असली अपराधी को नहीं बचायेगा इसकी भी संभावना रहती हैं।
न्याय दृष्टांत भजन सिंह उर्फ हरभजन सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाणा, ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 2552 में यह प्रतिपादित किया गया है कि एक आहत साक्षी की साक्ष्य पर विश्वास किया जाना चाहिए जब तक की उसकी गवाह को निरस्त करने के आधार अभिलेख पर न हो जो कि उसकी साक्ष्य में बड़े विरोधाभाष या कमी के रूप में हो सकते है।
अब्दुल सैयद विरूद्ध स्टेट आॅफ म.प्र., (2010) 10 एस.सी.सी. 259 में यह प्रतिपादित किया गया है कि आहत गवाह की साक्ष्य का विधि में एक विशेष स्तर होता है क्योंकि उस गवाह कि घटना स्थल पर उपस्थिति की इनबिल्ट गारंटी रहती है और वह गवाह असली अपराधी को बच निकलने देगा और किसी तृतीय पक्ष को असत्य रूप से फसायेगा इसकी संभावना भी कम रहती है इस कारण आहत गवाह के कथनों पर विश्वास किया जाना चाहिए जब तक की अच्छे आधार उसकी साक्ष्य निरस्त करने के अभिलेख पर न हो।
न्याय दृष्टांत अन्ना रेड्डी एस. रेड्डी विरूद्ध स्टेट आॅफ आंध्रप्रदेश, ए.आई.आर. 2009 एस.सी. 2661 में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहां घटना में कई संख्या में व्यक्ति मृतक और आहत साक्षीगण पर हमला करते है वहां गवाह प्रत्येक अभियुक्त का विशिष्ट कृत नहीं बतला पाते है उनके कथनों को अविश्वसनीय मानने का यह आधार नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे मामलों में गवाहों के लिए यह संभव नहीं है की वह प्रत्येक अभियुक्त का विशिष्ट कृत्य ध्यान रख सके और बतला सके।
इस संबंध में न्याय दृष्टांत कैलाश विरूद्ध स्टेट आॅफ महाराष्ट्र, ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 598, दुर्बल विरूद्ध स्टेट आॅफ उ.प्र. ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 795, स्टेट आॅफ यू.पी. विरूद्ध नरेश, (2011) 4 एस.सी.सी. 324, जनरेल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ पंजाब, (2009) 9 एस.सी.सी. 719, चंदू उर्फ चन्द्रशेखर विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2003 (5) एम.पी.एल.जे. 91, रमेश लोधी विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2003 (1) एम.पी.एल.जे. 71 अवलोकनीय हैं।
वह व्यक्ति जिसको उसी घटना में चोटे कारित होती है उसे आहत गवाह कहते हैं और ऐसे गवाह की साक्ष्य को अधिक महत्व दिये जाने पर बल दिया है क्योंकि उसी घटना में चोटे आने के कारण उसकी घटना स्थल पर उपस्थिति पर संदेह नहीं रहता हैं साथ ही जिस व्यक्ति को घटना में चोटे लगती है वह सामान्य मानवीय स्वभाव के कारण असली अपराधी को नहीं बचायेगा इसकी भी संभावना रहती हैं।
न्याय दृष्टांत भजन सिंह उर्फ हरभजन सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाणा, ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 2552 में यह प्रतिपादित किया गया है कि एक आहत साक्षी की साक्ष्य पर विश्वास किया जाना चाहिए जब तक की उसकी गवाह को निरस्त करने के आधार अभिलेख पर न हो जो कि उसकी साक्ष्य में बड़े विरोधाभाष या कमी के रूप में हो सकते है।
अब्दुल सैयद विरूद्ध स्टेट आॅफ म.प्र., (2010) 10 एस.सी.सी. 259 में यह प्रतिपादित किया गया है कि आहत गवाह की साक्ष्य का विधि में एक विशेष स्तर होता है क्योंकि उस गवाह कि घटना स्थल पर उपस्थिति की इनबिल्ट गारंटी रहती है और वह गवाह असली अपराधी को बच निकलने देगा और किसी तृतीय पक्ष को असत्य रूप से फसायेगा इसकी संभावना भी कम रहती है इस कारण आहत गवाह के कथनों पर विश्वास किया जाना चाहिए जब तक की अच्छे आधार उसकी साक्ष्य निरस्त करने के अभिलेख पर न हो।
न्याय दृष्टांत अन्ना रेड्डी एस. रेड्डी विरूद्ध स्टेट आॅफ आंध्रप्रदेश, ए.आई.आर. 2009 एस.सी. 2661 में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहां घटना में कई संख्या में व्यक्ति मृतक और आहत साक्षीगण पर हमला करते है वहां गवाह प्रत्येक अभियुक्त का विशिष्ट कृत नहीं बतला पाते है उनके कथनों को अविश्वसनीय मानने का यह आधार नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे मामलों में गवाहों के लिए यह संभव नहीं है की वह प्रत्येक अभियुक्त का विशिष्ट कृत्य ध्यान रख सके और बतला सके।
इस संबंध में न्याय दृष्टांत कैलाश विरूद्ध स्टेट आॅफ महाराष्ट्र, ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 598, दुर्बल विरूद्ध स्टेट आॅफ उ.प्र. ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 795, स्टेट आॅफ यू.पी. विरूद्ध नरेश, (2011) 4 एस.सी.सी. 324, जनरेल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ पंजाब, (2009) 9 एस.सी.सी. 719, चंदू उर्फ चन्द्रशेखर विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2003 (5) एम.पी.एल.जे. 91, रमेश लोधी विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2003 (1) एम.पी.एल.जे. 71 अवलोकनीय हैं।
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