दस्तावेजों की स्वीकृति के संबंध में
सादिक बनाम राज्य (1981 क्रिमिनल लाॅ जर्नल 379):- वाले मामले में दिए गए पूर्ण न्यायपीठ के विनिश्चय का अवलंब लिया। उक्त विनिश्चय के पैरा-14 के संबद्ध होने के कारण नीचे उद्दत किया गया:-
हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के पूर्व यह बताना आवश्यक समझते हैं, कि किसी दांडिक मामले में चिकित्सीय साक्ष्य का अत्यधिक महत्व होता है। चूंकि अभियोजन द्वारा पेश किया गया प्रत्यक्ष (दृश्य) और परिस्थितिक साक्ष्य, दोनों की परीक्षा इसके आधार पर की जाती है। यदि क्षति रिपोर्ट या मरणोत्तर परीक्षा रिपोर्ट की विशुद्धता को अभियुक्त द्वारा विवादित नहीं किया जाता है और रिपोर्ट को सारभूत साक्ष्य के रूप में पढ़ा जाता है, तो यह आवश्यक हो सकता है, कि रिपोटों में उल्लिखित उसकी राय को स्पष्ट किया जाये या किसी चिकित्सीय प्रकृति के प्रश्न, जो मामले में आलिप्त हो सकते हैं, पर उसकी राय प्राप्त की जाए। ऐसा विचारण न्यायालय द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-311 के अधीन उसका परीक्षण किये जाने के द्वारा किया जा सकता है।
यदि अभियोजन या अभियुक्त विपक्षी द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-294 को उपधारा (1) के अधीन फाइल किए गए दस्तावेज की विशुद्धता को विवादित नहीं करते, तो यह इस बात की स्वीकृति होगी कि संपूर्ण दस्तावेज सत्य और सही हैं। इसका अर्थ यह है, कि दस्तावेज को किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया गया है, जिसके द्वारा उसको हस्ताक्षरित किया जाना आशयित था और उसकी अंतर्वस्तु सही है। इसका अर्थ केवल इस बात की स्वीकृति नहीं होती कि दस्तावेज को उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया गया है, जिसके द्वारा उसको हस्ताक्षरित किया जाना आशयित था। बल्कि इसका अर्थ उसकी शुद्धता की स्वीकृति भी होता है। इस प्रकार के दस्तावेज को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-294 की उपधारा-(3) के अधीन साक्ष्य में पढ़ा जा सकता है। अभियोजन या अभियुक्त द्वारा उस (दस्तावेज) पर बने हुए हस्ताक्षर का परीक्षण करवाए जाने के द्वारा न तो हस्ताक्षर और न ही अंतर्वस्तु की शुद्धता को साबित किए जाने की आवश्यकता होती है, चूंकि उसकी सत्यता सही के रूप में स्वीकृत है।
No comments:
Post a Comment