Monday, 17 February 2014

एकमात्र साक्षी

एकमात्र साक्षी
         दांडिक मामलों में कभी-कभी एकमात्र साक्षी की साक्ष्य अभिलेख पर होती हैं और उसके मूल्यांकन का प्रश्न होता है इन मामलों में धारा 134 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान ध्यान में रखना चाहिए जिसके अनुसार किसी मामले में किसी तथ्य को साबित करने के लिए साक्षियों की कोई विशिष्ट संख्या अपेक्षित नहीं होगी।
         उक्त प्रावधान का तात्पर्य साक्ष्य की मात्रा नहीं अपितु उसकी गुणवत्ता देखना चाहिए न्याय दृष्टांत जोसेफ विरूद्ध स्टेट आॅफ केरल, (2003) 1 एस.सी.सी. 465 में यह प्रतिपादित किया गया है कि एकमात्र साक्षी की साक्ष्य भी पूरी तरह विश्वसनीय पाई जाती है तो उस पर दोषसिद्धि स्थिर की जा सकती हैं।
         न्याय दृष्टांत लालूमान जी विरूद्ध स्टेट आॅफ झारखण्ड, (2003) 2 एस.सी.सी. 401 में यह प्रतिपादित किया गया है कि किसी तथ्य को स्थापित करने के लिए साक्ष्य अधिनियम में साक्षियों की कोई संख्या अपेक्षित नहीं हैं एकमात्र साक्षी की साक्ष्य को 3 श्रेणीयों में बांटा जा सकता हैं:-
     1.     पूरी तरह विश्वसनीय।
     2.     पूरी तरह अविश्वसनीय।
     3.     न तो पूरी तरह विश्वसनीय न तो पूरी तरह अविश्वसनीय।
         प्रथम दो श्रेणियों में में कोई कठिनाई नहीं होती है क्योंकि एक में साक्ष्य में विश्वास करना होता और दूसरे में अविश्वास करना होता हैं कठिनाई तीसरी श्रेणी के साक्ष्य में आती है और ऐसे मामलों में न्यायालय को उस साक्षी की साक्ष्य की पुष्टि देखना चाहिए वह चाहे प्रत्यक्ष या परिस्थिति जन्य साक्ष्य से हो सकती हैं।
         इसी बिन्दु पर न्याय दृष्टांत वाडी वेलू थेवर विरूद्ध स्टेट आॅफ मद्रास, ए.आई.आर. 1957 एस.सी. 614 अवलोकनीय हैं।

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