प्रतिवादी
द्वारा सह
प्रतिवादी
साक्षियों
की प्रतिपरीक्षा
क्या
एक
सह
प्रतिवादी,
अन्य
सह
प्रतिवादी एवं उसके साक्षियों की प्रतिपरीक्षा
करने हेतु अनुज्ञात किया जा सकता है ?
इस समस्या के समाधान हेतु भारतीय साक्ष्य
अधिनियम, ए 1872 की धारा 137 एवं 138सुसंगत है जिनमें क्रमशः साक्षियों की परीक्षा एवं
उनके क्रम को परिभाषित किया गया है ।
उक्त धाराएं निम्नवत् हैं:-
‘‘धारा-137 -मुख्य परीक्षा- किसी साक्षी की
उस पक्षकार द्वारा जो उसे बुलाता है, परीक्षा
उसकी मुख्य परीक्षा कहलायेगी ।
प्रतिपरीक्षा-किसी साक्षी की प्रतिपक्षी (Adverse party)
प्रतिवादी एवं उसके साक्षियों की प्रतिपरीक्षा
करने हेतु अनुज्ञात किया जा सकता है ?
इस समस्या के समाधान हेतु भारतीय साक्ष्य
अधिनियम, ए 1872 की धारा 137 एवं 138सुसंगत है जिनमें क्रमशः साक्षियों की परीक्षा एवं
उनके क्रम को परिभाषित किया गया है ।
उक्त धाराएं निम्नवत् हैं:-
‘‘धारा-137 -मुख्य परीक्षा- किसी साक्षी की
उस पक्षकार द्वारा जो उसे बुलाता है, परीक्षा
उसकी मुख्य परीक्षा कहलायेगी ।
प्रतिपरीक्षा-किसी साक्षी की प्रतिपक्षी (Adverse party)
द्वारा
की गयी
परीक्षा
उसकी
प्रतिपरीक्षा
कहलायेगी
।
पुनः परीक्षा-किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा के
पश्चात् उसकी उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसे
बुलाया था, परीक्षा उसकी पुनः परीक्षा कहलायेगी
।
धारा-138-परीक्षाओं का क्रम-साक्षियों से प्रथमत
ः मुख्य परीक्षा होगी, तत्पश्चात् (यदि प्रतिपक्षी
पुनः परीक्षा-किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा के
पश्चात् उसकी उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसे
बुलाया था, परीक्षा उसकी पुनः परीक्षा कहलायेगी
।
धारा-138-परीक्षाओं का क्रम-साक्षियों से प्रथमत
ः मुख्य परीक्षा होगी, तत्पश्चात् (यदि प्रतिपक्षी
ऐसा
चाहे
तो )
प्रतिपरीक्षा
होगी, तत्पश्चात्
(यदि
उसे
बुलाने
वाला
पक्षकार
ऐसा
चाहे
तो )
पुनः
परीक्षा
होगी
।
परीक्षा और प्रतिपरीक्षा को सुसंगत तथ्यों से
सम्बन्धित होना होगा, किन्तु प्रतिपरीक्षा का उन
तथ्यों तक सीमित रहना आवश्यक नहीं है
जिनका साक्षी ने अपनी मुख्य परीक्षा मंे परिसाक्ष्य
दिया है ।
पुनः परीक्षा की दिशा- पुनः परीक्षा उन बातों से
स्पष्टीकरण के प्रति उद्दिष्ट होगी जो प्रतिपरीक्षा
में निर्दिष्ट हुए हों, तथा यदि पुनः परीक्षा में
न्यायालय की अनुज्ञा से कोई नई बात प्रविष्ट
की गयी हो, तो प्रतिपक्षी उस बात के बारे में
अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा कर सकेगा।‘‘
इन दोनों धाराओं के अधीन ‘‘प्रतिपक्षी (Adverse party)‘‘
परीक्षा और प्रतिपरीक्षा को सुसंगत तथ्यों से
सम्बन्धित होना होगा, किन्तु प्रतिपरीक्षा का उन
तथ्यों तक सीमित रहना आवश्यक नहीं है
जिनका साक्षी ने अपनी मुख्य परीक्षा मंे परिसाक्ष्य
दिया है ।
पुनः परीक्षा की दिशा- पुनः परीक्षा उन बातों से
स्पष्टीकरण के प्रति उद्दिष्ट होगी जो प्रतिपरीक्षा
में निर्दिष्ट हुए हों, तथा यदि पुनः परीक्षा में
न्यायालय की अनुज्ञा से कोई नई बात प्रविष्ट
की गयी हो, तो प्रतिपक्षी उस बात के बारे में
अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा कर सकेगा।‘‘
इन दोनों धाराओं के अधीन ‘‘प्रतिपक्षी (Adverse party)‘‘
को
ही किसी
साक्षी
की
प्रतिपरीक्षा
हेतु
अनुज्ञात किया गया है। यहाँ ‘‘प्रतिपक्षी
(Adverse party) से ऐसा पक्ष अभिप्रेत नहीं है
जिसे किसी मामले में प्रतिपक्ष के रूप में
अभिवचित (pleaded) किया गया है। किसी पक्ष
को वाद-पत्र में प्रतिवादी के रूप में वर्णित करने
मात्र से वह पक्ष प्रतिपक्षी (Adverse party) नहीं
हो जाता, जब तक कि वह पक्ष वादी द्वारा
वादपत्र में दर्शित मामले में विरोधी नहीं है। यदि
कोई पक्ष वादी का मामला स्वीकार कर लेता है
तो उस पक्ष एवं वादी के मध्य कोई विवाद
दर्शित नहीं होगा और ऐसे प्रतिवादी को प्रतिपक्षी
की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। ऐसा
प्रतिवादी वादी की प्रतिपरीक्षा हेतु अधिकृत नहीं
होगा। (Hussens Hasanali Pulavwala v.
अनुज्ञात किया गया है। यहाँ ‘‘प्रतिपक्षी
(Adverse party) से ऐसा पक्ष अभिप्रेत नहीं है
जिसे किसी मामले में प्रतिपक्ष के रूप में
अभिवचित (pleaded) किया गया है। किसी पक्ष
को वाद-पत्र में प्रतिवादी के रूप में वर्णित करने
मात्र से वह पक्ष प्रतिपक्षी (Adverse party) नहीं
हो जाता, जब तक कि वह पक्ष वादी द्वारा
वादपत्र में दर्शित मामले में विरोधी नहीं है। यदि
कोई पक्ष वादी का मामला स्वीकार कर लेता है
तो उस पक्ष एवं वादी के मध्य कोई विवाद
दर्शित नहीं होगा और ऐसे प्रतिवादी को प्रतिपक्षी
की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। ऐसा
प्रतिवादी वादी की प्रतिपरीक्षा हेतु अधिकृत नहीं
होगा। (Hussens Hasanali Pulavwala v.
Sobbirbhai Hasanali
Pulavwala, AIR 1981
Gujarat 190 Para 3 at page 191)
Gujarat 190 Para 3 at page 191)
धारा-137
एवं
138 में
प्रयुक्त
‘‘प्रतिपक्षी
(Adverse party) ‘‘ से ऐसा पक्ष अभिप्रेत है
जिसने किसी सुसंगत एवं तात्विक विवाद्यक
(Adverse party) ‘‘ से ऐसा पक्ष अभिप्रेत है
जिसने किसी सुसंगत एवं तात्विक विवाद्यक
(Relevant and
Material issue) पर
अन्य
पक्ष
से
विरोधाभाषी
अथवा
उस अन्य
पक्ष
के हित
के
प्रतिकूल अवलम्ब लिया है। ऐसे दोनों पक्ष
सम्बन्धित मामले में एक दूसरे के प्रतिपक्षी
प्रतिकूल अवलम्ब लिया है। ऐसे दोनों पक्ष
सम्बन्धित मामले में एक दूसरे के प्रतिपक्षी
(Adverse party)
होते
हैं और
ऐसा
पक्ष
सह
प्रतिवादी
(co-defendant)भी
हो सकता
है
।
स्पष्ट है कि सह प्रतिवादी अन्य सह
प्रतिवादी एवं उसके साक्षियों की प्रतिपरीक्षा करने
हेतु तभी अनुज्ञात किया जा सकता है जबकि
उस अन्य सहप्रतिवादी द्वारा अपने अभिवचन
अथवा अभिसाक्ष्य में मामले के सुसंगत एवं
तात्विक विवाद्यक पर उस सहप्रतिवादी के
प्रतिकूल अवलम्ब लिया गया है अथवा ऐसा कोई
कथन किया गया है जो कि उस सहप्रतिवादी के
हित के प्रतिकूल या हानिकारक है। यहाँ यह
उल्लेख किया जाना समीचीन है कि ऐसा
प्रतिपरीक्षण सह प्रतिवादियों के हित के आपसी
विवाद की परिधि में ही अनुज्ञात किया जाना
चाहिए । इस बिंदु पर (Sadhu Singh v. Sant
Narain Singh Sewadar, AIR 1978 Punjab
and Haryana 319, Sohan Lal v. Gulab
Chand, AIR 1966 Raj 229, Sri Mohmed
Ziaulla v. Mrs. Sargra Begum, ILR 1997
Kar 1318 ) तथा (Smt. Saroj Bala v. Smt.
Dhanpati Devi, AIR 2007, Del 105 )
के न्याय दृष्टांत अवलोकनीय है।
स्पष्ट है कि सह प्रतिवादी अन्य सह
प्रतिवादी एवं उसके साक्षियों की प्रतिपरीक्षा करने
हेतु तभी अनुज्ञात किया जा सकता है जबकि
उस अन्य सहप्रतिवादी द्वारा अपने अभिवचन
अथवा अभिसाक्ष्य में मामले के सुसंगत एवं
तात्विक विवाद्यक पर उस सहप्रतिवादी के
प्रतिकूल अवलम्ब लिया गया है अथवा ऐसा कोई
कथन किया गया है जो कि उस सहप्रतिवादी के
हित के प्रतिकूल या हानिकारक है। यहाँ यह
उल्लेख किया जाना समीचीन है कि ऐसा
प्रतिपरीक्षण सह प्रतिवादियों के हित के आपसी
विवाद की परिधि में ही अनुज्ञात किया जाना
चाहिए । इस बिंदु पर (Sadhu Singh v. Sant
Narain Singh Sewadar, AIR 1978 Punjab
and Haryana 319, Sohan Lal v. Gulab
Chand, AIR 1966 Raj 229, Sri Mohmed
Ziaulla v. Mrs. Sargra Begum, ILR 1997
Kar 1318 ) तथा (Smt. Saroj Bala v. Smt.
Dhanpati Devi, AIR 2007, Del 105 )
के न्याय दृष्टांत अवलोकनीय है।
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