उन अपराधों के संबंध में जिनके लिए
कारावास की दण्डाज्ञा 10 वर्ष तक
विस्तारित है, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा
167(2) के प्रावधान के अंतर्गत अभियुक्त
को अधिकतम कितने दिनों के लिये निरूद्ध
किया जा सकता है ?
द.प्र.सं. की धारा 167 (2) के परन्तुक (क) के
खण्ड (प) के अनुसार कोई न्यायिक मजिस्टंेट
मृत्यु दण्ड, आजीवन कारावास या दस वर्ष से
अन्यून की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय
अपराध हेतु किसी अभियुक्त को अधिकतम 90
दिवस की अवधि के लिए एवं शेष अपराधों हेतु
अधिकतम 60 दिवस की अवधि के लिए निरोध
में रखे जाने का आदेश दे सकता है।
उक्त विधिक प्रावधान से ऐसे अपराधों के मामले
मंें कारावास की अधिकतम अवधि के संबंध में
भ्रम उत्पन्न होता है जिन के लिए कारावास की
दण्डाज्ञा 10 वर्ष तक विस्तारित हो सकती है।
ऐसे अपराधों से संबंधित अभियुक्त को अधिकतम
90 दिवस के लिए निरोध में रखा जा सकता
है या 60 दिवस के लिए? यह प्रश्न कई बार
न्यायिक मजिस्टंेट के समक्ष उत्पन्न होता है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत राजीव
चैधरी विरूद्ध देहली (एन.सी.टी.) राज्य,
ए.आई.आर. 2001 सुको 2369 में उक्त प्रश्न
पर विचार करते हुए धारा 167(2) में प्रयुक्त पद
‘दस वर्ष से अन्यून‘ (not less ten years) का
अर्थ न्यूनतम 10 वर्ष या अधिक होना बताया
गया है एवं धारा 167(2) के परन्तुक (क) के
खण्ड (प) में वही अपराध सम्मिलित होना माने
गये हैं जिनके लिये स्पष्टतः न्यूनतम 10 वर्ष या
उससे अधिक का कारावास प्रावधानित है ।
उक्त प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा भा.द.
वि. की धारा 386 के अंतर्गत अपराध के मामले
में, जो दस वर्ष तक के कारावास की दण्डाज्ञा
से दण्डनीय है, द.प्र.सं. की धारा 167(2) के
परन्तुक (क) के खण्ड (प) में वही अपराध
सम्मिलित होना माने गये हैं जिनके लिए स्पष्टतः
न्यूनतम 10 वर्ष या उससे अधिक का कारावास
प्रावधानित है ।
उक्त प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा भा.द.
वि. की धारा 386 के अंतर्गत अपराध के मामले
में, जो दस वर्ष तक के कारावास की दण्डाज्ञा
से दण्डनीय है, द.प्र.सं. की धारा 167 (2) के
परन्तुक के खण्ड (पप) न कि खण्ड (प) लागू
होना मानते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसे
अपराध से संबंधित अभियुक्त को अधिकतम 60
दिवस की अवधि के ही लिए निरोध में रखा जा
सकता है । इस संबंध में म.प्र. उच्च
न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत सुन्दर विरूद्ध म.
प्र. राज्य, 2010 (1) एम.पी.एच.टी. 426 भी
अवलोकनीय है ।
इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि उन अपराधों के
संबंध मंे, जिनके लिए कारावास की दण्डाज्ञा 10
वर्ष तक विस्तारित होती है, द.प्र.सं. की धारा
167 (2) के परन्तुक (क) का खण्ड (पप) लागू
होगा और ऐसे अपराध से संबंधित अभियुक्त को
किसी न्यायिक मजिस्टंेट द्वारा अधिकतम 60
दिवस तक निरूद्ध रखा जा सकता है ।
कारावास की दण्डाज्ञा 10 वर्ष तक
विस्तारित है, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा
167(2) के प्रावधान के अंतर्गत अभियुक्त
को अधिकतम कितने दिनों के लिये निरूद्ध
किया जा सकता है ?
द.प्र.सं. की धारा 167 (2) के परन्तुक (क) के
खण्ड (प) के अनुसार कोई न्यायिक मजिस्टंेट
मृत्यु दण्ड, आजीवन कारावास या दस वर्ष से
अन्यून की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय
अपराध हेतु किसी अभियुक्त को अधिकतम 90
दिवस की अवधि के लिए एवं शेष अपराधों हेतु
अधिकतम 60 दिवस की अवधि के लिए निरोध
में रखे जाने का आदेश दे सकता है।
उक्त विधिक प्रावधान से ऐसे अपराधों के मामले
मंें कारावास की अधिकतम अवधि के संबंध में
भ्रम उत्पन्न होता है जिन के लिए कारावास की
दण्डाज्ञा 10 वर्ष तक विस्तारित हो सकती है।
ऐसे अपराधों से संबंधित अभियुक्त को अधिकतम
90 दिवस के लिए निरोध में रखा जा सकता
है या 60 दिवस के लिए? यह प्रश्न कई बार
न्यायिक मजिस्टंेट के समक्ष उत्पन्न होता है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत राजीव
चैधरी विरूद्ध देहली (एन.सी.टी.) राज्य,
ए.आई.आर. 2001 सुको 2369 में उक्त प्रश्न
पर विचार करते हुए धारा 167(2) में प्रयुक्त पद
‘दस वर्ष से अन्यून‘ (not less ten years) का
अर्थ न्यूनतम 10 वर्ष या अधिक होना बताया
गया है एवं धारा 167(2) के परन्तुक (क) के
खण्ड (प) में वही अपराध सम्मिलित होना माने
गये हैं जिनके लिये स्पष्टतः न्यूनतम 10 वर्ष या
उससे अधिक का कारावास प्रावधानित है ।
उक्त प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा भा.द.
वि. की धारा 386 के अंतर्गत अपराध के मामले
में, जो दस वर्ष तक के कारावास की दण्डाज्ञा
से दण्डनीय है, द.प्र.सं. की धारा 167(2) के
परन्तुक (क) के खण्ड (प) में वही अपराध
सम्मिलित होना माने गये हैं जिनके लिए स्पष्टतः
न्यूनतम 10 वर्ष या उससे अधिक का कारावास
प्रावधानित है ।
उक्त प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा भा.द.
वि. की धारा 386 के अंतर्गत अपराध के मामले
में, जो दस वर्ष तक के कारावास की दण्डाज्ञा
से दण्डनीय है, द.प्र.सं. की धारा 167 (2) के
परन्तुक के खण्ड (पप) न कि खण्ड (प) लागू
होना मानते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसे
अपराध से संबंधित अभियुक्त को अधिकतम 60
दिवस की अवधि के ही लिए निरोध में रखा जा
सकता है । इस संबंध में म.प्र. उच्च
न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत सुन्दर विरूद्ध म.
प्र. राज्य, 2010 (1) एम.पी.एच.टी. 426 भी
अवलोकनीय है ।
इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि उन अपराधों के
संबंध मंे, जिनके लिए कारावास की दण्डाज्ञा 10
वर्ष तक विस्तारित होती है, द.प्र.सं. की धारा
167 (2) के परन्तुक (क) का खण्ड (पप) लागू
होगा और ऐसे अपराध से संबंधित अभियुक्त को
किसी न्यायिक मजिस्टंेट द्वारा अधिकतम 60
दिवस तक निरूद्ध रखा जा सकता है ।
No comments:
Post a Comment