चांस विटनेस
दांडिक मामलों में ऐसे गवाह की साक्ष्य पर विश्वास की स्थिति उत्पन्न होती है जो संयोगवश घटना स्थल पर रहता है और उसके बारे में यह बचाव लिया जाता है कि ऐसे गवाह की साक्ष्य विश्वास योग्य नहीं है।
न्याय दृष्टांत एस.एल. तिवारी विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., (2004) 11 एस.सी.सी. 410 में यह प्रतिपादित किया गया है कि यदि किसी गली में कोई हत्या होती है तब वहां से गुजरने वाले व्यक्ति घटना के बारे में साक्ष्य दे सकते है और उनकी साक्ष्य मात्र इस आधार पर निरस्त करना की वे चांस विटनेस है उचित नहीं है इस मामले में न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया की चांस विटनेस शब्द ऐसे देशों से बारो किया गया है जहां प्रत्येक व्यक्ति उसके घर में रहता है और वह कहीं भी जाता है वहां उसकी उपस्थिति का उसके पास स्पष्टीकरण रहता है लेकिन भारत जैसा देश में यह लागू नहीं होता क्योंकि यहां के लोग औपचारिक बहुत कम है और केजूअल अधिक है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत राणा प्रताप विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाण, ए.आई.आर. 1983 एस.सी. 6800 भी अवलोकनीय हैं।
यदि चांस विटनेस की उपस्थिति घटना स्थल पर संदेहास्पद हो तो उसकी साक्ष्य निरस्त की जा सकती हैं इस संबंध में न्याय दृष्टांत शंकर लाल विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, (2004) 10 एस.सी.सी. 632 अवलोकनीय हैं।
चांस विटनेस का घटना के बाद का आचरण विचार में लेना चाहिए विशेष रूप से उसने घटना के बारे में गाॅंव में किसी और को बतलाया या नहीं इस संबंध में न्याय दृष्टांत थांगिया विरूद्ध स्टेट आॅफ तमिलनाडू, (2005) 9 एस.सी.सी. 650 अवलोकनीय हैं।
चांस विटनेस की साक्ष्य पर बहुत सावधानी से और गंभीर छानबीन करके विश्वास करना चाहिए।
न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ उ0प्र0 विरूद्ध सुबोध नाथ, (2009) 6 एस.सी.सी. 600 में यह प्रतिपादित किया गया है कि घटना दिनांक एक बाजार का दिन या मार्केट डे था अतः यह स्वभाविक था कि आसपास के क्षेत्र के लोग बाजार में आयेंगे इन परिस्थितियों में गवाहों को चांस विटनेस नहीं कहां जा सकता।
न्याय दृष्टांत बहल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाणा, 1976 एस.सी. 2032, जनरेल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ पंजाब, (2009) 9 एस.सी.सी. 719 भी अवलोकनीय हैं।
दांडिक मामलों में ऐसे गवाह की साक्ष्य पर विश्वास की स्थिति उत्पन्न होती है जो संयोगवश घटना स्थल पर रहता है और उसके बारे में यह बचाव लिया जाता है कि ऐसे गवाह की साक्ष्य विश्वास योग्य नहीं है।
न्याय दृष्टांत एस.एल. तिवारी विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., (2004) 11 एस.सी.सी. 410 में यह प्रतिपादित किया गया है कि यदि किसी गली में कोई हत्या होती है तब वहां से गुजरने वाले व्यक्ति घटना के बारे में साक्ष्य दे सकते है और उनकी साक्ष्य मात्र इस आधार पर निरस्त करना की वे चांस विटनेस है उचित नहीं है इस मामले में न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया की चांस विटनेस शब्द ऐसे देशों से बारो किया गया है जहां प्रत्येक व्यक्ति उसके घर में रहता है और वह कहीं भी जाता है वहां उसकी उपस्थिति का उसके पास स्पष्टीकरण रहता है लेकिन भारत जैसा देश में यह लागू नहीं होता क्योंकि यहां के लोग औपचारिक बहुत कम है और केजूअल अधिक है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत राणा प्रताप विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाण, ए.आई.आर. 1983 एस.सी. 6800 भी अवलोकनीय हैं।
यदि चांस विटनेस की उपस्थिति घटना स्थल पर संदेहास्पद हो तो उसकी साक्ष्य निरस्त की जा सकती हैं इस संबंध में न्याय दृष्टांत शंकर लाल विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, (2004) 10 एस.सी.सी. 632 अवलोकनीय हैं।
चांस विटनेस का घटना के बाद का आचरण विचार में लेना चाहिए विशेष रूप से उसने घटना के बारे में गाॅंव में किसी और को बतलाया या नहीं इस संबंध में न्याय दृष्टांत थांगिया विरूद्ध स्टेट आॅफ तमिलनाडू, (2005) 9 एस.सी.सी. 650 अवलोकनीय हैं।
चांस विटनेस की साक्ष्य पर बहुत सावधानी से और गंभीर छानबीन करके विश्वास करना चाहिए।
न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ उ0प्र0 विरूद्ध सुबोध नाथ, (2009) 6 एस.सी.सी. 600 में यह प्रतिपादित किया गया है कि घटना दिनांक एक बाजार का दिन या मार्केट डे था अतः यह स्वभाविक था कि आसपास के क्षेत्र के लोग बाजार में आयेंगे इन परिस्थितियों में गवाहों को चांस विटनेस नहीं कहां जा सकता।
न्याय दृष्टांत बहल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाणा, 1976 एस.सी. 2032, जनरेल सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ पंजाब, (2009) 9 एस.सी.सी. 719 भी अवलोकनीय हैं।
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