म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915
इस अधिनियम में मुख्य रूप से धारा 34, 43, 45, 46, 47, 49ए, 59ए एवं 61 ऐसे प्रावधान है जिनका दिन प्रतिदिन के न्यायिक कार्य में अधिक उपयोग होता है अतः इनके बारे में और इनसे संबंधित नवीनतम वैधानिक स्थिति के बारे में हम विचार करेंगे।
1. धारा 34 विधि विरूद्ध निर्माण, परिवहन, कब्जा, विक्रय आदि के लिये शास्तिः-
(1) जो कोई इस अधिनिमय के किसी उपबंध के या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम जारी की गई किसी अधिसूचना या किये गये किसी आदेश के या इस अधिनियम के अधीन मंजूर की गई किसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा पत्र या पास अर्थात लायसेंस, परमिट या पास की किसी शर्त के उल्लंघन मेंः-
ए. किसी मादक द्रव्य का निर्माण, परिवहन, आयात, निर्यात, संग्रहण करेगा या उसे कब्जे में रखेगा या
बी. उन मामलों के सिवाय जिनके लिये धारा 38 में उपबंध किया गया है कोई मादक द्रव्य बेचेगा या
सी. भांग की खेती करेगा या
डी. ताड़ी उत्पन्न करने वाले किसी वृक्ष से ताड़ी का व्यावन (टेप्स) करेगा या उससे ताड़ी निकालेगा या
इ. किसी आसवनी या डिस्टीलरी, मध्य निर्माण शाला या ब्रेवरी या शराब की दुकान का निर्माण करेगा या उसे चलायेगा
एफ. ताड़ी से भिन्न किसी मादक द्रव्य का विनिर्माण करने के प्रयोजन से किसी सामग्री, भभका, पात्र, उपकरण या अपरेटरर्स को उपयोग में लायेगा, रखेगा या अपने कब्जे में रखेगा
जी. इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्त की गई, स्थापित की गई या चलाई जा रही किसी आसवनी या डिस्टीलरी, मध्य निर्माण शाला या बे्रवरी, शराब की दुकान या वेयर हाउस से किसी मादक द्रव्य को हटायेगा या
एच. किसी मदिरा को बोतल में भरेगा।
वह उप धारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुये प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जो जुर्माने से जो पाॅंच सौ रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो पाॅंच हजार रूपये तक हो सकेगा दण्डनीय होगा,
परंतु जब कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन किसी अपराध के लिए दूसरी बार या पश्चातवर्ती समय पर दोषसिद्ध ठहराया जाये तो वह प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि दो मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो 24 मास तक की हो सकेगी तथा जुर्माने से जो दो हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो दस हजार रूपये तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा।
(2) उपधारा (1) में अंतरविष्ट किसी बात के होते हुये भी यदि कोई व्यक्ति उपधारा 1 खण्ड ए या बी के अंतर्गत आने वाले किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाये तथा अपराध का पता लगाते समय या उसके दौरान पाये गये मादक द्रव्य मदिरा की मात्रा 50 बल्क लीटर अधिक हो तो वह कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो तीन वर्ष तक हो सकेगी तथा जुर्माने से जो 25 हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो 1 लाख रूपये तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा,
परंतु जब कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन किसी अपराध के लिए दूसरी बार या पश्चातवर्ती समय दोषसिद्ध ठहराया जाये तो वह प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पाॅंच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो 50 हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु 2 लाख रूपये तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा।
(3) जब उपधारा (1) के खण्ड ए या खण्ड बी के अधीन कोई अपराध किया जाये जहां ऐसे अपराध का पता लगाते समय या उसके दौरान पाई गई मदिरा की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक हो तो वे समस्त मादक द्रव्य, वस्तुएॅं, उपकरण, पात्र, सामग्री आदि जिसके संबंध में या जिनके द्वारा अपराध किया गया हो अभिग्रहित किये जाने और अधिहरण या कानफेसिकेशन किये जाने के दायित्वाधीन होगे। यदि ऐसा कोई अपराध किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से या उसके द्वारा किया जाये जो इस अधिनियम के अधीन विक्रय के लिये उसे मदिरा का निर्माण करने या संग्रहण करने या उसको भण्डार करने के लिए अनुज्ञप्ति धारण करता है, जिस पर विहित दर पर शुल्क का संदाय नहीं किया गया है तब धारा 31 मंे अंतरविष्ट किसी बात के होते हुये भी उक्त अपराध के लिए दोषी ठहराये जाने पर उसकी अनुज्ञप्ति रद् कर दी जायेगी।
(4) मादक द्रव्यों, वस्तुओं, उपकरणों, पात्रों, सामग्रीयों तथा प्रवहनों का अधिग्रहण या अधिहरण अर्थात जब्ती और कानफेसिकेशन और उपधारा 2 में उपबंधित अनुज्ञप्ति को रद् किया जाना ऐसी किसी अन्य कार्यवाही के अतिरिक्त तथा उस पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों के तहत् किया जा सके।
विचारण की प्रक्रिया
2. न्यायिक मजिस्टेªट के विचारण न्यायालय ने मुख्य रूप से धारा 34 (1) या धारा 34 (2) के मामले पुलिस द्वारा या आबकारी निरीक्षक द्वारा प्रस्तुत किये जाते है दोनों ही प्रकार से प्रस्तुत मामलों में विचारण की प्रक्रिया समान रहती है।
धारा 34 (1) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामलों में संक्षिप्त विचारण प्रक्रिया या संमन विचारण प्रक्रिया अपनाई जाती है।
धारा 34 (2) एवं धारा 49 ए म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामलों में वारंट विचारण प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इस तरह इन मामलों में विचारण की उक्त प्रक्रिया अपनाने के बारे में ध्यान देना चाहिये।
आरोप के बारे में
3. धारा 34 (1) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामलों में अर्थात 50 बल्क लीटर से कम मदिरा वाले मामलों में संक्षिप्त विचारण प्रक्रिया या संमन विचारण प्रक्रिया अपनाते समय अभियुक्त को अभियोग का सारांश या सब्सटेन्स आॅफ एक्यूजिसन बतलाया जाता है जिसे सामान्य रूप से अपराध विवरण कहते है।
अभियोग के सारांश या अपराध विवरण का नमूना
तुमने दिनांक 1 फरवरी 2012 को दिन में 11 बजे रसल चैक जबलपुर पर स्वयं के आधिपत्य में 20 बोतल देशी मदिरा अवैध रूप से आधिपत्य में रखी जो कृत्य धारा 34 (1) (ए) म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 में दण्डनीय अपराध है और मेरे विचारण और प्रसंज्ञान का है क्या अपराध स्वीकार करते है या विचारण चाहते हो।
ए, बी, सी,
न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर
आरोप पत्र का नमूना
मैं ए, बी, सी, न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर तुम आरोपी नाम एक्स पिता का नाम वाय पर नीचे लिखे आरोप लगाता हॅूंः-
तुमने दिनांक 1 फरवरी 2012 को दिन में 11 बजे रसल चैक जबलपुर पर स्वयं आधिपत्य में 55 लीटर अंग्रेजी शराब रम अवैध रूप से अपने आधिपत्य में रखी जो कृत्य धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 में दण्डनीय अपराध है और मेरे विचारण और प्रसंज्ञान का है क्या आरोप स्वीकार करते हो या विचारण चाहते हो।
ए, बी, सी,
न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर
आरोप पत्र का नमूना
मैं ए, बी, सी, न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर तुम आरोपी नाम एक्स पिता का नाम वाय पर नीचे लिखे आरोप लगाता हॅूंः-
तुमने दिनांक 1 फरवरी 2012 को दिन में 11 बजे रसल चैक जबलपुर पर स्वयं आधिपत्य में 40 लीटर देशी शराब अवैध रूप से अपने आधिपत्य में रखी जो मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त पाई गई या उसके उपयोग से तीन व्यक्ति अ, ब, स की मृत्यु हुई या जिसके उपयोग से तीन व्यक्ति अ, ब, स को क्षति कारित हुई जो कृत्य धारा 49 ए म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 में दण्डनीय अपराध है और मेरे विचारण और प्रसंज्ञान का है क्या आरोप स्वीकार करते हो या विचारण चाहते हो।
ए, बी, सी,
न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर
यदि अपराध विवरण सुनाने या आरोप लगाने की तिथि पर आरोपी अनुपस्थित हो तब भी उसके अभिभाषक के माध्यम से अपराध विवरण सुनाने या आरोप लगाने की कार्यवाही करके प्रकरण में प्रगति की जा सकती है क्योकि सामान्यतः इन मामालों में आरोप अस्वीकार ही करना होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत राज्य विरूद्ध लखन लाल, 1960 एम.पी.एल.जे. 133 एवं श्रीकृष्ण विरूद्ध राज्य, 1991 एम.पी.एल.जे. 86 से मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
विचारण के बारे में
4. इन मामलों में मुख्य रूप से दो पंच साक्षीगण एक जब्तीकर्ता गवाह होते है। यदि मामला पुलिस द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तब शराब की जाॅंच करने वाले आबकारी उप निरीक्षक एवं जब्ती के समय साथ में रहे पुलिस कर्मचारीगण साक्षी होते है। सर्वप्रथम दोनों पंचों को साक्ष में बुलवाना चाहिये और उनके कथन हो जाने के बाद जब्तीकर्ता को साक्ष में बुलवाना चाहिये पुलिस मामले में अनुसंधान अधिकारी को अंत में साक्ष में बुलवाना चाहिये।
शराब की जाॅंच के बारे में
5. इन मामलों में एक प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि शराब की जाॅंच आबकारी निरीक्षक या उप निरीक्षक से करवाई जाती है और शराब का रसायनिक परीक्षण नहीं करवाया जाता है प्रतिरक्षा पक्ष यह आपत्ति लेता है कि शराब का रसायनिक परीक्षण नहीं करवाया गया है यह प्रश्न उत्पन्न होने पर न्याय दृष्टांत श्रीचंद बत्रा विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., ए.आई.आर. 1974 एस.सी. 639 से मार्गदर्शन लेना चाहिये जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है की एक आबकारी निरीक्षक जिसमें उसके सेवा काल में कई शराब के नमूनों की जाॅंच की होती है वह शराब जाॅच के बारे में धारा 45 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अर्थो में विशेषज्ञ साक्षी होता है।
इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुख लाल विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य, 1995 सी.आर.एल.जे. 1234, कालू खान विरूद्ध स्टेट आॅफ एम0पी0, 1980 जे.एल.जे 508, राम दयाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम0पी0, 1987 जे.एल.जे. 131, सुनील तिवारी विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य, 2009 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एम. 60 भी अवलोकनीय है जिसमें सारतः यही प्रतिपादित किया गया है यदि आबकारी निरीक्षक ने शराब की भौतिक जाॅच करके प्रतिवेदन दिया है तो वह पर्याप्त है।
अतः संबंधित आबकारी निरीक्षक या आबकारी उप निरीक्षक की साक्ष्य लेखबद्ध करते समय यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये की उसके अनुभव के बारे में उसके सेवा काल के बारे में और उसके द्वारा कितने नमूने की जाॅच की गई इस बारे में तथ्य अभिलेख पर अवश्य आवे क्योंकि उक्त न्याय दृष्टांतों में एक अनुभवी आबकारी निरीक्षक को जिसने उसके सेवा काल में कई नमूनों की जाॅच की हो उसे शराब जाॅच के संबंध में विशेषज्ञ साक्षी माने जाने की विधि प्रतिपादित की गई है।
6. इन मामलों में कभी-कभी यह प्रश्न भी उत्पन्न होता है कि जाॅच के लिए कम मात्रा में शराब भेजी जाती है और यह प्रतिरक्षा ली जाती है पर्याप्त मात्रा में शराब जाॅच के लिए नहीं भेजी गई है इस संबंध में न्याय दृष्टांत विजेन्द्र जीत अयोध्या प्रसाद गोयल विरूद्ध स्टेट आॅफ बाॅम्बे, ए.आई.आर. 1953 एस.सी. 247 निर्णय चरण 5 से मार्गदर्शन लिया जा सकता है जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है किः- प्ज पे ूीवससल नददमबमेेंतल जव ेमदक ंसस जीम इवजजसमे तमबवअमतमक इल जीम च्वसपबम पद जीम चतमेमदबम व िचंदबींे ंदक ूीपबी बवदजंपद जीम ेंउम ेजनिि वित चनतचवेम व िंदंसलेपेण्
अतः जब्तीकर्ता या शराब को जाॅच के लिए भेजने वाले साक्षी का कथन लेखबद्ध करते समय यह तथ्य ध्यान रखना चाहिये कि साक्षी से इस संबंध में प्रश्न अवश्य किये जावे कि जो शराब बरामद की गई थी वह किस प्रकार की थी जैसे रम, जिन, देशी मदिरा आदि क्योंकि एक जैसी शराब को उक्त न्याय दृष्टांत में विश्लेषण के लिए सेम स्टफ की होने के कारण सभी बोतल को जाॅच के लिए भेजना आवश्यक नहीं माना गया है न्याय दृष्टांत वाले मामले में केवल एक बोतल शराब जाॅच के लिए भेजी गई थी जबकि मामला भारी मात्रा में शराब बरामद करने का था।
पंच साक्षीगण द्वारा जब्ती का सर्थन न किया जाना
7. इन मामलों में जब्ती के पंच साक्षीगण प्रायः न्यायालय में जब्ती का सर्थन नहीं करते है इस संबंध में यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये कि यदि पंच साक्षीगण जब्ती का सर्थन नहीं करते है लेकिन संबंधित आबकारी निरीक्षक या आबकारी उप निरीक्षक या पुलिस अधिकारी की साक्ष्य की सावधानी पूर्वक छानबीन करने पर वह साक्ष्य विश्वास योग्य पाई जावे तो उसका विश्वास करना चाहिये और पंच साक्षीगण ने जब्ती का सर्थन नहीं किया है मात्र इस आधार पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिये इस संबंध में न्याय दृष्टांत करम जीत सिंह विरूद्ध स्टेट देहली एडमिनिशटेªशन, (2003) 5 एस.सी.सी. 297 से मार्गदर्शन लेना चाहिये जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि पुलिस अधिकारी की साक्ष्य को भी अन्य साक्षीगण की साक्ष्य की तरह लेना चाहिये विधि में ऐसा कोई नियम नहीं है कि अन्य साक्षीगण की पुष्टि के अभाव में पुलिस अधिकारी के साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक व्यक्ति ईमानदारी से कार्य करता है यह उपधारणा पुलिस अधिकारी के पक्ष में भी लेना चाहिये अच्छे आधारों के बिना पुलिस अधिकारी की साक्ष्य पर विश्वास न करना या उस पर संदेह करना उचित न्यायिक परिपाठी नहीं है लेकिन यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
न्याय दृष्टांत बाबूलाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2004 (2) जे.एल.जे. 425 में माननीय म0प्र0 उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया गया है कि पुलिस के गवाहों की साक्ष्य को यांत्रिक तरीके से खारीज करना अच्छी न्यायिक परम्परा नहीं ऐसी साक्ष्य की भी सामान्य साक्ष्य की तरह छानबीन करके उसे विचार में लेना चाहिये।
न्याय दृष्टांत काले बाबू विरूद्ध स्टेट आॅफ एम0पी0, 2008 (4) एम.पी.एच.टी. 397 में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि अन्य गवाह यदि पक्ष विरोधी हो गये है तो मात्र इस आधार पर पुलिस अधिकारी के साक्ष्य को नकारा नहीं जा सकता।
इस प्रकार जहां पंच साक्षीगण जब्ती का सर्थन न करे और केवल पुलिस अधिकारी या आबकारी अधिकारी का साक्ष्य अभिलेख पर हो तब उन पर सावधानी से छानबीन करके यदि साक्ष्य विश्वास योग्य पाई जाये तो उस पर विश्वास किया जाना चाहिये।
रोज नामचा के बारे में
8. जब जब्तीकर्ता को साक्ष्य में बुलाया जावे तब संबंधित रोज नामचा अवश्य बुलवाना चाहिये और उसे पेश और प्रदर्शित भी करवाना चाहिये ताकि संबंधित पुलिस अधिकारी की कार्यवाही के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचते समय सुविधा रहे।
धारा 43 की उपधारणा के बारे में
9. धारा 43 मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम, 1915 में धारा 34, 35 तथा 36 के अधीन अभियोजनों में जब तक प्रतिकूल साबित न किया जाये, यह उपधारित किया जायेगा की अभियुक्त नेः-
ए. किसी मादक द्रव्य के या
बी. ताड़ी से भिन्न किसी भी मादक द्रव्य के निर्माण के लिए भभके, पात्र, उपकरण, या अपरेटर्स के या
सी. किसी भी सामग्री के जिन पर मादक द्रव्य के निर्माण के लिए कोई प्रक्रिया की गई हो या जिनमें किसी मादक द्रव्य का निर्माण किया गया हो, के संबंध में जिनके की आधिपत्य के विषय में अभियुक्त समाधानप्रद रूप से लेखा जोखा देने में असमर्थ हो, उस धारा के अधीन दण्डनीय अपराध किया है।
इस प्रकार जैसे ही यह तथ्य प्रमाणित हो जाता है कि अभियुक्त मादक द्रव्य या धारा 34 में वर्णित सामग्रीयों के आधिपत्य में पाया गया है तब यह उपधारणा की जायेगी की अभियुक्त ने संबंधित अपराध किया है और आधिपत्य का समाधानप्रद रूप से स्पष्टीकरण देने का भार अभियुक्त पर होता है अतः इस उपधारणा को भी इन मामलों में ध्यान में रखना चाहिये और यह एक अज्ञापक उपधारणा है यह भी ध्यान में रखना चाहिये।
न्याय दृष्टांत हरिनारायण विरूद्ध स्टेट, 1962 जे.एल.जे. एस.एन. 147 इस संबंध में अवलोकनीय है।
10. धारा 45 म0प्र0 आबकारी अधिनियम पश्चातवर्ती दोषसिद्धि पर दुगने दण्ड के बारे में प्रावधान करती है अतः पूर्वतन दोषसिद्ध अपराधी के मामले में धारा 45 को ध्यान में रखना चाहिये।
11. धारा 46 म0प्र0 आबकारी अधिनियम में मादक द्रव्य, सामग्री, भभका, पात्र, उपकरण जिसके बावत या जिसके द्वारा उपराध किया गया है उन्हें और उनको परिवहन करने में प्रयुक्त पशु, गाड़ी, जलयान आदि को अधिहरण या कानफेसिकेट करने के प्रावधान है।
12. धारा 47 म0प्र0 आबकारी अधिनियम में अधिहरण या कानफेसिकेशन के बारे में और प्रावधान किये गये है।
धारा 47 (1) के अनुसार जहां मजिस्टेªट अपने द्वारा विचारण किये गये किसी मामले में यह विनिश्चय करे कि कोई वस्तु धारा 46 के अधीन अधिहरण या कानफेसिकेशन की दायी है तो वह उसके अधिहरण का आदेश देगा,
परंतु जहां धारा 47 ए की उप धारा 3 के खण्ड ए के अधीन कोई सूचना मजिस्टेªट द्वारा प्राप्त की जाये तो वह अधिहरण के संबंध में उक्त आदेश तब तक पारित नहीं करेगा जब तक की धारा 47 ए के अधीन कलेक्टर के समक्ष वस्तु की बावत् लंबित कार्यवाही निपटा न दी जाये और यदि कलेक्टर ने धारा 47 ए की उप धारा 2 के अधीन वस्तु के अधिहरण का आदेश दिया है तो मजिस्टेªट इस संबंध में कोई आदेश पारित नहीं करेगा।
धारा 47 (2) के तहत जब इस अधिनियम के अधीन अपराध किया गया है, किन्तु अपराधी ज्ञात न हो या अपराधी पाया या फाउण्ड न हो तब मामले की जाॅच कलेक्टर द्वारा की जायेगी और वह अधिहरण का आदेश दे सकेगा।
परंतु अधिहरण की जाने के लिए आशयित वस्तु को जब्त किये जाने की तारीख से एक माह का अवसान न हो जाने तक या किसी भी ऐसे व्यक्ति को जो उस वस्तु के संबंध में किसी अधिकार का दावा करे और उसके सर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत करे उसे सुने बिना कोई ऐसा आदेश नहीं दिया जायेगा,
लेकिन यदि उक्त वस्तु शीध्र नष्ट होने वाली हो या कलेक्टर की राय में वस्तु का विक्रय उसके स्वामी के फायदे के लिए होगा तो कलेक्टर उसका विक्रय किये जाने का किसी भी समय निर्देश दे सकेगा और विक्रय के शुद्ध आगम को इस अधिनियम के प्रावधान लागू होगे।
13. धारा 47 ए में भी जब्त मादक द्रव्यों, वस्तुओं, उपकरणों आदि के अधिहरण का प्रावधान है जो 50 बल्क लीटर से अधिक मात्रा वाले मामलों में लागू होते है उप धारा 1 के अनुसार धारा 52 में अधिकृत अधिकारी ऐसे मामलों में जब्त संपत्तियों की एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है और उप धारा 2 के अनुसार कलेक्टर ऐसे रिपोर्ट आने पर संपत्ति के अधिहरण संबंधी आदेश देता है और उप धारा 3 के खण्ड ए के अनुसार संबंधित विचारण न्यायालय को जब्त वस्तुओं के अधिग्रहण के संबंध में सूचना भेजना होती है और वस्तुओ पर दावा करने वाले व्यक्ति और जब्तीकर्ता को लिखत सूचना देना होती है और उन्हें सुनवाई का अवसर देना होता है और सुनवाई का अवसर देने के बाद कलेक्टर उचित आदेश पारित करते है। धारा 47 बी में उक्त आदेश के विरूद्ध अपील का प्रावधान है और धारा 47 सी में अपीलीय प्राधिकारी के आदेश के विरूद्ध सेशन न्यायालय में 30 दिन के भीतर पुनरीक्षण या रिविजन करने के प्रावधान है।
धारा 47 डी के प्रावधान विचारण न्यायालय को विशेष रूप से ध्यान में रखने होते है जिसके तहत धारा 47 ए की उप धारा 3 के खण्ड ए के तहत यदि विचारण न्यायालय को कानफेसिकेशन के कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त हो जाती है तब विचारण न्यायालय में उक्त वस्तुओं के संबंध में कोई आदेश नहीं करेंगे। धारा 47 डी का बार तभी लागू होता है जब अधिहरण प्राधिकारी या कलेक्टर से अधिहरण कार्यवाही प्रारंभ होने के बारे में सूचना प्राप्त होती है।
14. धारा 49 ए के प्रावधान मानवीय उपयोग के लिए अनुपयुक्त मदिरा, विक्रत स्प्रिट या स्प्रिट के संबंध में है जो कि मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो या मनुष्य को क्षति पहुंचाते हो या जिससे मनुष्य की मृत्यु हो जाती है उस संबंध में प्रावधान किये गये है।
यदि उक्त मदिरा या स्प्रिट या विक्रत स्प्रिट मानव उपयोग के जिए अनुपयुक्त पाये जाते है तब अभियुक्त ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा जो दो माह से कम का नहीं होगा किन्तु दो वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि उक्त मदिरा या स्प्रिट मनुष्य का क्षति पहुंचती है तब अभियुक्त ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा जो चार माह से कम का नहीं होगा किन्तु चार वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि उक्त मदिरा या स्प्रिट से मनुष्य की मृत्यु कारित हो जाती है तब अभियुक्त ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा जो दो वर्ष से कम का नहीं होगा किन्तु 10 वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 49 ए की उप धारा 2 में द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि पर वर्धित दण्ड के प्रावधान है जिसके अनुसार मानव उपयोग के अनुपयुक्त मदिरा आदि के मामले में न्यूनतम 6 माह का कारावास जो चार वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थ दण्ड के प्रावधान है जबकि मनुष्य को क्षति पहुंचाने वाले मदिरा आदि के मामले में न्यूनतम 1 वर्ष तक के कारावास जो 6 वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थ दण्ड के प्रावधान है। जबकि मनुष्य की मृत्यु के मामले में आजीवन कारावास या न्यूनतम 5 वर्ष के कारावास जो 10 वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थ दण्ड के प्रावधान है।
जमानत के बारे में
15. धारा 34 (1) म0्रप0 आबकारी अधिनियम के ऐसे मामले जो 50 बल्क लीटर से कम मात्रा से संबंधित है वे जमानतीय होते है अतः उनमें अभियुक्त को जमानत देना आज्ञापक है।
16. धारा 34 (1) के खण्ड ए और बी के ऐसे मामले जिनमें शराब की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक है और धारा 49 ए म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामले में धारा 59 ए (1) के अनुसार अग्रिम जमानत का आवेदन पत्र चलने योग्य नहीं होता है।
धारा 59 ए (2) के तहत धारा 34 (1) के खण्ड ए या बी के मामले में जहां शराब की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक हो और धारा 49 ए के मामलों में अभियुक्त को जमानत तब तक नहीं दी जायेगी जब तक लोक अभियोजक को जमानत आवेदन का विरोध करने का अवसर न दिया गया हो और विरोध किये जाने पर तथा न्यायालय का यह समाधान न हो जाये की यह विश्वास किये जाने की युक्तियुक्त आधार है कि अभियुक्त ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और यह संभावना नहीं है कि जमानत पर रहने पर वह कोई अपराध करेगा तभी उसे जमानत का लाभ दिया जायेगा।
अर्थात 50 बल्क लीटर से अधिक मात्रा के धारा 34 (1) खण्ड ए या बी के मामले और धारा 49 ए के मामलों में जमानत आवेदन पत्र प्रस्तुत होने पर अभियोजन को सुनवाई का अवसर देना आज्ञापक है साथ ही न्यायालय को यह समाधान होना चाहिये कि यह विश्वास करने के आधार है कि अभियुक्त ऐसे अपराध का दोषी नहीं है तथा जमानत पर रहने पर वह अपराध नहीं करेगा तभी अभियुक्त को जमानत का लाभ देना चाहिये अन्यथा नहीं ये प्रावधान आज्ञापक प्रकृति के है।
परंतु जहां 50 बल्क लीटर से अधिक मात्रा के धारा 34 (1) के खण्ड ए या बी के मामलों में यदि 60 दिन के भीतर और 49 ए के मामले में 120 दिन के भीतर पुलिस अभियोग पत्र प्रस्तुत नहीं करती है या आबकारी निरीक्षक परिवाद प्रस्तुत नहीं करता है तो अभियुक्त जमानत प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा कर दिया जायेगा ये प्रावधान दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अतिरिक्त है।
17. धारा 61 म0प्र0 आबकारी अधिनियम में अभियोजन पर कुछ प्रतिबंद्ध लगाये गये है जिसके अनुसार धारा 37, 38, 38 ए और 49 के अधीन दण्डनीय अपराध का संज्ञान कलेक्टर या जिला आबकारी अधिकारी की श्रेणी का कोई अधिकारी जिसे कलेक्टर प्राधिकृत किया हो के परिवाद या रिपोर्ट पर ही करेगा।
धारा 49 से भिन्न किसी धारा के दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान आबकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के परिवादी या रिपोर्ट पर ही करेगा।
अभियोजन अपराध की तारीख से 6 माह की अवधि के भीतर प्रस्तुत किया गया हो तभी संज्ञान मिलेगा और 6 महिने की अवधि के बाद राज्य सरकार की विशेष मंजूरी के बिना संज्ञान नहीं लेगा।
इस तरह इन मामलों में अपराध की तारीख से संज्ञान लेने के लिए 6 माह की अवधि परिसीमा काल है इसे ध्यान में रखना चाहिये और इस अवधि के बाद राज्य सरकार के विशेष मंजूरी पर ही संज्ञान लेने के प्रावधान है।
अनुपस्थिति में निरस्ती
18. यदि आबकारी निरीक्षक या आबकारी उप निरीक्षक के परिवाद पर कार्यवाही प्रारंभ की गई हो और परिवादी अनुपस्थित हो तब भी परिवाद निरस्त नहीं करना चाहिये इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेट विरूद्ध जग्गा, 1964 जे.एल.जे. नोट 155 अवलोकनीय है।
धारा 34 (2) के मामलों में दोषसिद्धि पर स्थिति
19. धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी के मामले जो 50 बल्क लीटर से अधिक मदिरा के बारे में होते है उनमें न्यूनतम एक वर्ष के कारावास जो तीन वर्ष तक हो सकता है और न्यूनतम 25 हजार रूपये के अर्थदण्ड जो अधिकतम 1 लाख रूपये तक हो सकता है दण्ड दिया जा सकता है। न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी को धारा 29 (2) दं.प्र.सं. 1973 के तहत 10 हजार रूपये तक अर्थदण्ड करने की शक्तियाॅं है।
चूंकि म0प्र0 आबकारी अधिनियम में अपराध किस न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे इस संबंध में कोई प्रावधान नहीं है अतः धारा 26 (बी) (2) दं.प्र.सं. 1973 के अधीन प्रथम अनुसूची दं.प्र.सं. लागू होगी जिसके अनुसार 3 वर्ष से 7 वर्ष तक के दण्डनीय अपराध के मामले में प्रथम वर्ग मजिस्टेªट विचारण के लिए अधिकृत होते है जैसा की न्याय दृष्टांत बाबू लाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 317 में भी प्रतिपादित किया गया है अतः धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामले प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्टेªट के न्यायालय द्वारा विचारणीय तो होते है लेकिन दोषसिद्धि पर दण्ड देते समय कठिनाई उत्पन्न होती है क्योंकि न्यूनतम अर्थदण्ड ही 25 हजार रूपये होता है।
ऐसे में संबंधित मजिस्टेªट को धारा 325 दं.प्र.सं. 1973 के तहत कार्यवाही करना चाहिये धारा 325 (1) के अनुसार जब कभी अभियोजन और अभियुक्त का साक्ष्य सुनने के पश्चात मजिस्टेªट की यह राय हो की अभियुक्त दोषी है और उसे उस प्रकार के दण्ड से भिन्न प्रकार का दण्ड या उस दण्ड से अधिक कठोर दण्ड दिया जाना चाहिये जो वह मजिस्टेªट देने के लिए शसक्त है तब वह अपनी राय या ओपीनियन अभिलिखित कर सकता है और कार्यवाही तथा अभियुक्त को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट को भेज सकता है।
यदि उस कार्यवाही में एक से अधिक अभियुक्त का विचारण एक साथ किया जा रहा हो और कुछ या किसी एक के बारे में मजिस्टेªट की उक्त राय हो तो वह सभी को मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट को भेज देगा।
तब मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट धारा 325 (3) के तहत कार्यवाही करके मामले का निराकरण करते है।
इस तरह जब कभी धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के तहत मामला हो तब मजिस्टेªट को विचारण पूर्ण कर लेना चाहिये और उभय पक्ष का साक्ष्य लेने और उनको सुनने के बाद अपनी राय अभिलिखित कर लेना चाहिये और अभिलेख और अभियुक्त को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट के पास भेज देना चाहिये। इस संबंध में न्याय दृष्टांत रमेश विरूद्ध म0प्र0 राज्य, 2003 (1) एम.पी.एच.टी. 392 भी अवलोकनीय है।
वाहन सुपुर्देगी पर देने के बारे में
20. यदि 50 बल्क लीटर से कम का मामला है तो वाहन सामान्यतः अधिहरण या कानफेसिकेट नहीं करना चाहिये क्योेंकि यह वाहन स्वामी के लिए अनुपातहीन पैनल्टी होगी यह विधि 48 बोटल शराब के एक मामले में जीप को अधिहरण करने के मामले में प्रतिपादित की गई है इस संबंध में न्याय दृष्टांत हरेन्द्र सिंह ठाकुर विरूद्ध स्टेट आॅफ म0प्र0, 2008 (3) एम.पी.एच.टी. 126 अवलोकनीय है।
21. न्याय दृष्टांत सुरेश दवे विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2003 (1) एम.पी.एच.टी. 439 में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहां धारा 47 ए (3) (ए) के तहत अधिहरण कार्यवाही प्रारंभ करने की कोई सूचना न्यायालय को न दी गई हो और न संबंधित पक्ष को सूचना पत्र जारी किये गये हो तब दण्डिक न्यायालय वाहन को उसके पंजीकृत स्वामी को अंतरिम सुपुर्देगी पर दे सकते है इस संबंध में न्याय दृष्टांत शिरीश अग्रवाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2003 (2) एम.पी.एच.टी. 97 पूर्ण पीठ भी अवलोकनीय है।
न्याय दृष्टांत सुन्दर भाई अम्बा लाल देसाई विरूद्ध स्टेट आॅफ गुजरात, 2002 ए.आई.आर. एस.सी.डब्ल्यू 5301 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 451 दं.प्र.सं. पर विचार करते हुये यह विधि प्रतिपादित की है कि न्यायालय को इन शक्तियों का प्रयोग न्यायिक तरीके से और शीध्रता से करना चाहिये वस्तुओं को पुलिस थाने पर 15 से एक महिने से अधिक की अवधि के लिये नहीं पड़े रहने देना चाहिये इस न्याय दृष्टांत में मजिस्टेªट के इन संपत्तियों के बारे में कत्र्तव्यों पर भी प्रकाश डाला है।
लेकिन इन शक्तियों का प्रयोग धारा 47 डी म0प्र0 आबकारी अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुये करना चाहिये।
22. सामान्यतः जब्त वाहन उक्त प्रावधानों को ध्यान में रखते हुये उसके पंजीकृत स्वामी या रजिस्टर्ड आॅनर या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को सुपुर्देगी पर दिये जा सकते है।
मालखाना निस्तारण
23. सामान्यतः देशी मदिरा, नाल बाॅंस, बबरी मिट्टी, लाहन, मानव उपयोग के अनुपयुक्त मदिरा आदि को अपील अवधि पश्चात अपील न हाने की दशा में नष्ट करने के आदेश दिये जाते है। वाहन यदि अधिहरण का दायी नहीं है तो उसका सुपुर्देनामा निरस्त समझे जाने के आदेश दिये जाते है और यदि अधिहरण किया जाना है तो उसे पेश करने संबंधी निर्देश दिये जाते है।
विविध तथ्य
24. अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जब्त द्रव्य में से नमूने निकालने के बाद शेष पदार्थ को नष्ट कर दिया जाये। यदि आबकारी निरीक्षक ने ऐसा किया है तो यह एक अनियामितता है लेकिन अभियुक्त के हितों पर इससे कोई प्रतिकूल असर नहीं हो तो वह इसका कोई लाभ पाने का अधिकारी नहीं होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुखलाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 1995 एम.पी.एल.जे. 266 अवलोकनीय है।
25. यदि अवैध द्रव्य पर आरोपी का आधिपत्य स्थापित हो जाता है तो अपराध प्रमाणित हो जाता है इस संबंध में भैया लाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 1985 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 242 अवलोकनीय है जिसमें यह विधि प्रतिपादित की गई है।
26. पति परिसर का अधिभोगी होता है यह एक सामान्य उप धारणा है जब तक की यह दर्शित न किया जाये की पत्नी घर की अधिभोगी है और पति केवल उसके साथ जुड़ा हुआ है अतः जहां पति की अनुपस्थिति में घर से बरामदगी की गई हो वहां पत्नी को अवैध सामग्री रखने का दोषी नहीं माना जा सकता है चाहे उसके ज्ञान में यह हो की सामग्री उसके पति ने घर में रखी है इस संबंध में न्याय दृष्टांत फूल बाई विरूद्ध स्टेट, 1964 जे.एल.जे. एस.एन. 63 अवलोकनीय है।
27. अपीलार्थी टेªक्टर ट्रोली में सह आरोपी के साथ बैठा था वह टेªक्टर ट्रोली का स्वामी नहीं था ऐसी भी साक्ष्य नहीं थी उसे रेत में मादक द्रव्य छिपाने की जानकारी थी ऐसे में अपीलार्थी को दोषी नहीं माना गया अवलोकनीय न्याय दृष्टांत दशरथ सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 588 अवलोकनीय है।
साक्ष्य के समय मालखाना वस्तु की प्रस्तुती
28. इन मामलों में एक प्रतिरक्षा यह ली जाती है कि साक्ष्य के समय मालखाना वस्तु प्रस्तुत नहीं की और प्रदर्शित नहीं करवाई गई अतः यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये किसी दिन नियत साक्ष्य के प्रकरणों को एक दिन पहले ही देख लेना चाहिये कि जिन प्रकारणों साक्ष्य के दौरान मालखाना वस्तु बुलवाना हो उनके बारे में एक दिन पहले ही मालखाना नाजिर को निर्देशित किया जा सके कि वह अगले दिन प्रातः 11 बजे मालखाना वस्तु प्रस्तुत करे। जब्तीकर्ता अधिकारी के साक्ष्य के दौरान मालखाना वस्तु अवश्य बुलवाना चाहिये और उस पर आर्टीकल डलवाना चाहिये।
अपराध स्वीकारोक्ती के बारे में
29. सामान्यतः कम मात्रा के शराब के मामलों में अभियुक्त अपराध स्वीकार करना चाहता है ऐसे मामलों में अपराध स्वीकार करने को प्रोत्साहन इसलिये देना चाहिये की छोटे मामले स्वीकारोक्ती पर निपट जाने से अपेक्षाकृत बड़े मामलों के लिए न्यायालय का समय बच सके और छोटे मामलों में न्यायालय उठने तक के कारावास और अर्थदण्ड शराब की मात्रा को देखते हुये किया जा सकता है जो न्यूनतम 500 सौ रूपये और अधिकतम 5 हजार रूपये तक धारा 34 (1) के मामलों में होता है।
यदि ऐसी छोटी मात्रा वाले मामले गुणदोष पर पूरी साक्ष्य लेने के बाद निराकृत होते है तब दोषसिद्धि पर उचित दण्ड देना चाहिये।
जप्ती पंचनामे के प्रमाणीकरण के बारे में
30. जप्ती पंचनामा तात्विक साक्ष्य नहीं होता है उसके तथ्यों को संबंधित गवाहों से प्रमाणित करवाना आवश्यक होता है अतः साक्ष्य लेखबद्ध करते समय सावधानी रखना चाहिये। जप्ती पंचनामे को संबंधित गवाहों से प्रमाणित करवाने के बारे में न्याय दृष्टांत श्रवण विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2006 (2) ए.एन.जे. (एम.पी.) 235, दशरथ विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., आई.एल.आर. 2008 एम.पी. 360, स्वरूप सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 1996 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 84 अवलोकनीय हैं।
इस प्रकार म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 के मामलों में जमानत के समय, आरोप विरचित करते समय, विचारण के समय और निर्णय के समय उक्त वैधानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुये कार्यवाही करना चाहिये।
(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.
इस अधिनियम में मुख्य रूप से धारा 34, 43, 45, 46, 47, 49ए, 59ए एवं 61 ऐसे प्रावधान है जिनका दिन प्रतिदिन के न्यायिक कार्य में अधिक उपयोग होता है अतः इनके बारे में और इनसे संबंधित नवीनतम वैधानिक स्थिति के बारे में हम विचार करेंगे।
1. धारा 34 विधि विरूद्ध निर्माण, परिवहन, कब्जा, विक्रय आदि के लिये शास्तिः-
(1) जो कोई इस अधिनिमय के किसी उपबंध के या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम जारी की गई किसी अधिसूचना या किये गये किसी आदेश के या इस अधिनियम के अधीन मंजूर की गई किसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा पत्र या पास अर्थात लायसेंस, परमिट या पास की किसी शर्त के उल्लंघन मेंः-
ए. किसी मादक द्रव्य का निर्माण, परिवहन, आयात, निर्यात, संग्रहण करेगा या उसे कब्जे में रखेगा या
बी. उन मामलों के सिवाय जिनके लिये धारा 38 में उपबंध किया गया है कोई मादक द्रव्य बेचेगा या
सी. भांग की खेती करेगा या
डी. ताड़ी उत्पन्न करने वाले किसी वृक्ष से ताड़ी का व्यावन (टेप्स) करेगा या उससे ताड़ी निकालेगा या
इ. किसी आसवनी या डिस्टीलरी, मध्य निर्माण शाला या ब्रेवरी या शराब की दुकान का निर्माण करेगा या उसे चलायेगा
एफ. ताड़ी से भिन्न किसी मादक द्रव्य का विनिर्माण करने के प्रयोजन से किसी सामग्री, भभका, पात्र, उपकरण या अपरेटरर्स को उपयोग में लायेगा, रखेगा या अपने कब्जे में रखेगा
जी. इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्त की गई, स्थापित की गई या चलाई जा रही किसी आसवनी या डिस्टीलरी, मध्य निर्माण शाला या बे्रवरी, शराब की दुकान या वेयर हाउस से किसी मादक द्रव्य को हटायेगा या
एच. किसी मदिरा को बोतल में भरेगा।
वह उप धारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुये प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जो जुर्माने से जो पाॅंच सौ रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो पाॅंच हजार रूपये तक हो सकेगा दण्डनीय होगा,
परंतु जब कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन किसी अपराध के लिए दूसरी बार या पश्चातवर्ती समय पर दोषसिद्ध ठहराया जाये तो वह प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि दो मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो 24 मास तक की हो सकेगी तथा जुर्माने से जो दो हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो दस हजार रूपये तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा।
(2) उपधारा (1) में अंतरविष्ट किसी बात के होते हुये भी यदि कोई व्यक्ति उपधारा 1 खण्ड ए या बी के अंतर्गत आने वाले किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाये तथा अपराध का पता लगाते समय या उसके दौरान पाये गये मादक द्रव्य मदिरा की मात्रा 50 बल्क लीटर अधिक हो तो वह कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो तीन वर्ष तक हो सकेगी तथा जुर्माने से जो 25 हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु जो 1 लाख रूपये तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा,
परंतु जब कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन किसी अपराध के लिए दूसरी बार या पश्चातवर्ती समय दोषसिद्ध ठहराया जाये तो वह प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पाॅंच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो 50 हजार रूपये से कम का नहीं होगा किन्तु 2 लाख रूपये तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा।
(3) जब उपधारा (1) के खण्ड ए या खण्ड बी के अधीन कोई अपराध किया जाये जहां ऐसे अपराध का पता लगाते समय या उसके दौरान पाई गई मदिरा की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक हो तो वे समस्त मादक द्रव्य, वस्तुएॅं, उपकरण, पात्र, सामग्री आदि जिसके संबंध में या जिनके द्वारा अपराध किया गया हो अभिग्रहित किये जाने और अधिहरण या कानफेसिकेशन किये जाने के दायित्वाधीन होगे। यदि ऐसा कोई अपराध किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से या उसके द्वारा किया जाये जो इस अधिनियम के अधीन विक्रय के लिये उसे मदिरा का निर्माण करने या संग्रहण करने या उसको भण्डार करने के लिए अनुज्ञप्ति धारण करता है, जिस पर विहित दर पर शुल्क का संदाय नहीं किया गया है तब धारा 31 मंे अंतरविष्ट किसी बात के होते हुये भी उक्त अपराध के लिए दोषी ठहराये जाने पर उसकी अनुज्ञप्ति रद् कर दी जायेगी।
(4) मादक द्रव्यों, वस्तुओं, उपकरणों, पात्रों, सामग्रीयों तथा प्रवहनों का अधिग्रहण या अधिहरण अर्थात जब्ती और कानफेसिकेशन और उपधारा 2 में उपबंधित अनुज्ञप्ति को रद् किया जाना ऐसी किसी अन्य कार्यवाही के अतिरिक्त तथा उस पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों के तहत् किया जा सके।
विचारण की प्रक्रिया
2. न्यायिक मजिस्टेªट के विचारण न्यायालय ने मुख्य रूप से धारा 34 (1) या धारा 34 (2) के मामले पुलिस द्वारा या आबकारी निरीक्षक द्वारा प्रस्तुत किये जाते है दोनों ही प्रकार से प्रस्तुत मामलों में विचारण की प्रक्रिया समान रहती है।
धारा 34 (1) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामलों में संक्षिप्त विचारण प्रक्रिया या संमन विचारण प्रक्रिया अपनाई जाती है।
धारा 34 (2) एवं धारा 49 ए म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामलों में वारंट विचारण प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इस तरह इन मामलों में विचारण की उक्त प्रक्रिया अपनाने के बारे में ध्यान देना चाहिये।
आरोप के बारे में
3. धारा 34 (1) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामलों में अर्थात 50 बल्क लीटर से कम मदिरा वाले मामलों में संक्षिप्त विचारण प्रक्रिया या संमन विचारण प्रक्रिया अपनाते समय अभियुक्त को अभियोग का सारांश या सब्सटेन्स आॅफ एक्यूजिसन बतलाया जाता है जिसे सामान्य रूप से अपराध विवरण कहते है।
अभियोग के सारांश या अपराध विवरण का नमूना
तुमने दिनांक 1 फरवरी 2012 को दिन में 11 बजे रसल चैक जबलपुर पर स्वयं के आधिपत्य में 20 बोतल देशी मदिरा अवैध रूप से आधिपत्य में रखी जो कृत्य धारा 34 (1) (ए) म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 में दण्डनीय अपराध है और मेरे विचारण और प्रसंज्ञान का है क्या अपराध स्वीकार करते है या विचारण चाहते हो।
ए, बी, सी,
न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर
आरोप पत्र का नमूना
मैं ए, बी, सी, न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर तुम आरोपी नाम एक्स पिता का नाम वाय पर नीचे लिखे आरोप लगाता हॅूंः-
तुमने दिनांक 1 फरवरी 2012 को दिन में 11 बजे रसल चैक जबलपुर पर स्वयं आधिपत्य में 55 लीटर अंग्रेजी शराब रम अवैध रूप से अपने आधिपत्य में रखी जो कृत्य धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 में दण्डनीय अपराध है और मेरे विचारण और प्रसंज्ञान का है क्या आरोप स्वीकार करते हो या विचारण चाहते हो।
ए, बी, सी,
न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर
आरोप पत्र का नमूना
मैं ए, बी, सी, न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर तुम आरोपी नाम एक्स पिता का नाम वाय पर नीचे लिखे आरोप लगाता हॅूंः-
तुमने दिनांक 1 फरवरी 2012 को दिन में 11 बजे रसल चैक जबलपुर पर स्वयं आधिपत्य में 40 लीटर देशी शराब अवैध रूप से अपने आधिपत्य में रखी जो मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त पाई गई या उसके उपयोग से तीन व्यक्ति अ, ब, स की मृत्यु हुई या जिसके उपयोग से तीन व्यक्ति अ, ब, स को क्षति कारित हुई जो कृत्य धारा 49 ए म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 में दण्डनीय अपराध है और मेरे विचारण और प्रसंज्ञान का है क्या आरोप स्वीकार करते हो या विचारण चाहते हो।
ए, बी, सी,
न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी जबलपुर
यदि अपराध विवरण सुनाने या आरोप लगाने की तिथि पर आरोपी अनुपस्थित हो तब भी उसके अभिभाषक के माध्यम से अपराध विवरण सुनाने या आरोप लगाने की कार्यवाही करके प्रकरण में प्रगति की जा सकती है क्योकि सामान्यतः इन मामालों में आरोप अस्वीकार ही करना होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत राज्य विरूद्ध लखन लाल, 1960 एम.पी.एल.जे. 133 एवं श्रीकृष्ण विरूद्ध राज्य, 1991 एम.पी.एल.जे. 86 से मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
विचारण के बारे में
4. इन मामलों में मुख्य रूप से दो पंच साक्षीगण एक जब्तीकर्ता गवाह होते है। यदि मामला पुलिस द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तब शराब की जाॅंच करने वाले आबकारी उप निरीक्षक एवं जब्ती के समय साथ में रहे पुलिस कर्मचारीगण साक्षी होते है। सर्वप्रथम दोनों पंचों को साक्ष में बुलवाना चाहिये और उनके कथन हो जाने के बाद जब्तीकर्ता को साक्ष में बुलवाना चाहिये पुलिस मामले में अनुसंधान अधिकारी को अंत में साक्ष में बुलवाना चाहिये।
शराब की जाॅंच के बारे में
5. इन मामलों में एक प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि शराब की जाॅंच आबकारी निरीक्षक या उप निरीक्षक से करवाई जाती है और शराब का रसायनिक परीक्षण नहीं करवाया जाता है प्रतिरक्षा पक्ष यह आपत्ति लेता है कि शराब का रसायनिक परीक्षण नहीं करवाया गया है यह प्रश्न उत्पन्न होने पर न्याय दृष्टांत श्रीचंद बत्रा विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., ए.आई.आर. 1974 एस.सी. 639 से मार्गदर्शन लेना चाहिये जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है की एक आबकारी निरीक्षक जिसमें उसके सेवा काल में कई शराब के नमूनों की जाॅंच की होती है वह शराब जाॅच के बारे में धारा 45 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अर्थो में विशेषज्ञ साक्षी होता है।
इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुख लाल विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य, 1995 सी.आर.एल.जे. 1234, कालू खान विरूद्ध स्टेट आॅफ एम0पी0, 1980 जे.एल.जे 508, राम दयाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम0पी0, 1987 जे.एल.जे. 131, सुनील तिवारी विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य, 2009 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एम. 60 भी अवलोकनीय है जिसमें सारतः यही प्रतिपादित किया गया है यदि आबकारी निरीक्षक ने शराब की भौतिक जाॅच करके प्रतिवेदन दिया है तो वह पर्याप्त है।
अतः संबंधित आबकारी निरीक्षक या आबकारी उप निरीक्षक की साक्ष्य लेखबद्ध करते समय यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये की उसके अनुभव के बारे में उसके सेवा काल के बारे में और उसके द्वारा कितने नमूने की जाॅच की गई इस बारे में तथ्य अभिलेख पर अवश्य आवे क्योंकि उक्त न्याय दृष्टांतों में एक अनुभवी आबकारी निरीक्षक को जिसने उसके सेवा काल में कई नमूनों की जाॅच की हो उसे शराब जाॅच के संबंध में विशेषज्ञ साक्षी माने जाने की विधि प्रतिपादित की गई है।
6. इन मामलों में कभी-कभी यह प्रश्न भी उत्पन्न होता है कि जाॅच के लिए कम मात्रा में शराब भेजी जाती है और यह प्रतिरक्षा ली जाती है पर्याप्त मात्रा में शराब जाॅच के लिए नहीं भेजी गई है इस संबंध में न्याय दृष्टांत विजेन्द्र जीत अयोध्या प्रसाद गोयल विरूद्ध स्टेट आॅफ बाॅम्बे, ए.आई.आर. 1953 एस.सी. 247 निर्णय चरण 5 से मार्गदर्शन लिया जा सकता है जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है किः- प्ज पे ूीवससल नददमबमेेंतल जव ेमदक ंसस जीम इवजजसमे तमबवअमतमक इल जीम च्वसपबम पद जीम चतमेमदबम व िचंदबींे ंदक ूीपबी बवदजंपद जीम ेंउम ेजनिि वित चनतचवेम व िंदंसलेपेण्
अतः जब्तीकर्ता या शराब को जाॅच के लिए भेजने वाले साक्षी का कथन लेखबद्ध करते समय यह तथ्य ध्यान रखना चाहिये कि साक्षी से इस संबंध में प्रश्न अवश्य किये जावे कि जो शराब बरामद की गई थी वह किस प्रकार की थी जैसे रम, जिन, देशी मदिरा आदि क्योंकि एक जैसी शराब को उक्त न्याय दृष्टांत में विश्लेषण के लिए सेम स्टफ की होने के कारण सभी बोतल को जाॅच के लिए भेजना आवश्यक नहीं माना गया है न्याय दृष्टांत वाले मामले में केवल एक बोतल शराब जाॅच के लिए भेजी गई थी जबकि मामला भारी मात्रा में शराब बरामद करने का था।
पंच साक्षीगण द्वारा जब्ती का सर्थन न किया जाना
7. इन मामलों में जब्ती के पंच साक्षीगण प्रायः न्यायालय में जब्ती का सर्थन नहीं करते है इस संबंध में यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये कि यदि पंच साक्षीगण जब्ती का सर्थन नहीं करते है लेकिन संबंधित आबकारी निरीक्षक या आबकारी उप निरीक्षक या पुलिस अधिकारी की साक्ष्य की सावधानी पूर्वक छानबीन करने पर वह साक्ष्य विश्वास योग्य पाई जावे तो उसका विश्वास करना चाहिये और पंच साक्षीगण ने जब्ती का सर्थन नहीं किया है मात्र इस आधार पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिये इस संबंध में न्याय दृष्टांत करम जीत सिंह विरूद्ध स्टेट देहली एडमिनिशटेªशन, (2003) 5 एस.सी.सी. 297 से मार्गदर्शन लेना चाहिये जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि पुलिस अधिकारी की साक्ष्य को भी अन्य साक्षीगण की साक्ष्य की तरह लेना चाहिये विधि में ऐसा कोई नियम नहीं है कि अन्य साक्षीगण की पुष्टि के अभाव में पुलिस अधिकारी के साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक व्यक्ति ईमानदारी से कार्य करता है यह उपधारणा पुलिस अधिकारी के पक्ष में भी लेना चाहिये अच्छे आधारों के बिना पुलिस अधिकारी की साक्ष्य पर विश्वास न करना या उस पर संदेह करना उचित न्यायिक परिपाठी नहीं है लेकिन यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
न्याय दृष्टांत बाबूलाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2004 (2) जे.एल.जे. 425 में माननीय म0प्र0 उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया गया है कि पुलिस के गवाहों की साक्ष्य को यांत्रिक तरीके से खारीज करना अच्छी न्यायिक परम्परा नहीं ऐसी साक्ष्य की भी सामान्य साक्ष्य की तरह छानबीन करके उसे विचार में लेना चाहिये।
न्याय दृष्टांत काले बाबू विरूद्ध स्टेट आॅफ एम0पी0, 2008 (4) एम.पी.एच.टी. 397 में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि अन्य गवाह यदि पक्ष विरोधी हो गये है तो मात्र इस आधार पर पुलिस अधिकारी के साक्ष्य को नकारा नहीं जा सकता।
इस प्रकार जहां पंच साक्षीगण जब्ती का सर्थन न करे और केवल पुलिस अधिकारी या आबकारी अधिकारी का साक्ष्य अभिलेख पर हो तब उन पर सावधानी से छानबीन करके यदि साक्ष्य विश्वास योग्य पाई जाये तो उस पर विश्वास किया जाना चाहिये।
रोज नामचा के बारे में
8. जब जब्तीकर्ता को साक्ष्य में बुलाया जावे तब संबंधित रोज नामचा अवश्य बुलवाना चाहिये और उसे पेश और प्रदर्शित भी करवाना चाहिये ताकि संबंधित पुलिस अधिकारी की कार्यवाही के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचते समय सुविधा रहे।
धारा 43 की उपधारणा के बारे में
9. धारा 43 मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम, 1915 में धारा 34, 35 तथा 36 के अधीन अभियोजनों में जब तक प्रतिकूल साबित न किया जाये, यह उपधारित किया जायेगा की अभियुक्त नेः-
ए. किसी मादक द्रव्य के या
बी. ताड़ी से भिन्न किसी भी मादक द्रव्य के निर्माण के लिए भभके, पात्र, उपकरण, या अपरेटर्स के या
सी. किसी भी सामग्री के जिन पर मादक द्रव्य के निर्माण के लिए कोई प्रक्रिया की गई हो या जिनमें किसी मादक द्रव्य का निर्माण किया गया हो, के संबंध में जिनके की आधिपत्य के विषय में अभियुक्त समाधानप्रद रूप से लेखा जोखा देने में असमर्थ हो, उस धारा के अधीन दण्डनीय अपराध किया है।
इस प्रकार जैसे ही यह तथ्य प्रमाणित हो जाता है कि अभियुक्त मादक द्रव्य या धारा 34 में वर्णित सामग्रीयों के आधिपत्य में पाया गया है तब यह उपधारणा की जायेगी की अभियुक्त ने संबंधित अपराध किया है और आधिपत्य का समाधानप्रद रूप से स्पष्टीकरण देने का भार अभियुक्त पर होता है अतः इस उपधारणा को भी इन मामलों में ध्यान में रखना चाहिये और यह एक अज्ञापक उपधारणा है यह भी ध्यान में रखना चाहिये।
न्याय दृष्टांत हरिनारायण विरूद्ध स्टेट, 1962 जे.एल.जे. एस.एन. 147 इस संबंध में अवलोकनीय है।
10. धारा 45 म0प्र0 आबकारी अधिनियम पश्चातवर्ती दोषसिद्धि पर दुगने दण्ड के बारे में प्रावधान करती है अतः पूर्वतन दोषसिद्ध अपराधी के मामले में धारा 45 को ध्यान में रखना चाहिये।
11. धारा 46 म0प्र0 आबकारी अधिनियम में मादक द्रव्य, सामग्री, भभका, पात्र, उपकरण जिसके बावत या जिसके द्वारा उपराध किया गया है उन्हें और उनको परिवहन करने में प्रयुक्त पशु, गाड़ी, जलयान आदि को अधिहरण या कानफेसिकेट करने के प्रावधान है।
12. धारा 47 म0प्र0 आबकारी अधिनियम में अधिहरण या कानफेसिकेशन के बारे में और प्रावधान किये गये है।
धारा 47 (1) के अनुसार जहां मजिस्टेªट अपने द्वारा विचारण किये गये किसी मामले में यह विनिश्चय करे कि कोई वस्तु धारा 46 के अधीन अधिहरण या कानफेसिकेशन की दायी है तो वह उसके अधिहरण का आदेश देगा,
परंतु जहां धारा 47 ए की उप धारा 3 के खण्ड ए के अधीन कोई सूचना मजिस्टेªट द्वारा प्राप्त की जाये तो वह अधिहरण के संबंध में उक्त आदेश तब तक पारित नहीं करेगा जब तक की धारा 47 ए के अधीन कलेक्टर के समक्ष वस्तु की बावत् लंबित कार्यवाही निपटा न दी जाये और यदि कलेक्टर ने धारा 47 ए की उप धारा 2 के अधीन वस्तु के अधिहरण का आदेश दिया है तो मजिस्टेªट इस संबंध में कोई आदेश पारित नहीं करेगा।
धारा 47 (2) के तहत जब इस अधिनियम के अधीन अपराध किया गया है, किन्तु अपराधी ज्ञात न हो या अपराधी पाया या फाउण्ड न हो तब मामले की जाॅच कलेक्टर द्वारा की जायेगी और वह अधिहरण का आदेश दे सकेगा।
परंतु अधिहरण की जाने के लिए आशयित वस्तु को जब्त किये जाने की तारीख से एक माह का अवसान न हो जाने तक या किसी भी ऐसे व्यक्ति को जो उस वस्तु के संबंध में किसी अधिकार का दावा करे और उसके सर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत करे उसे सुने बिना कोई ऐसा आदेश नहीं दिया जायेगा,
लेकिन यदि उक्त वस्तु शीध्र नष्ट होने वाली हो या कलेक्टर की राय में वस्तु का विक्रय उसके स्वामी के फायदे के लिए होगा तो कलेक्टर उसका विक्रय किये जाने का किसी भी समय निर्देश दे सकेगा और विक्रय के शुद्ध आगम को इस अधिनियम के प्रावधान लागू होगे।
13. धारा 47 ए में भी जब्त मादक द्रव्यों, वस्तुओं, उपकरणों आदि के अधिहरण का प्रावधान है जो 50 बल्क लीटर से अधिक मात्रा वाले मामलों में लागू होते है उप धारा 1 के अनुसार धारा 52 में अधिकृत अधिकारी ऐसे मामलों में जब्त संपत्तियों की एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है और उप धारा 2 के अनुसार कलेक्टर ऐसे रिपोर्ट आने पर संपत्ति के अधिहरण संबंधी आदेश देता है और उप धारा 3 के खण्ड ए के अनुसार संबंधित विचारण न्यायालय को जब्त वस्तुओं के अधिग्रहण के संबंध में सूचना भेजना होती है और वस्तुओ पर दावा करने वाले व्यक्ति और जब्तीकर्ता को लिखत सूचना देना होती है और उन्हें सुनवाई का अवसर देना होता है और सुनवाई का अवसर देने के बाद कलेक्टर उचित आदेश पारित करते है। धारा 47 बी में उक्त आदेश के विरूद्ध अपील का प्रावधान है और धारा 47 सी में अपीलीय प्राधिकारी के आदेश के विरूद्ध सेशन न्यायालय में 30 दिन के भीतर पुनरीक्षण या रिविजन करने के प्रावधान है।
धारा 47 डी के प्रावधान विचारण न्यायालय को विशेष रूप से ध्यान में रखने होते है जिसके तहत धारा 47 ए की उप धारा 3 के खण्ड ए के तहत यदि विचारण न्यायालय को कानफेसिकेशन के कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त हो जाती है तब विचारण न्यायालय में उक्त वस्तुओं के संबंध में कोई आदेश नहीं करेंगे। धारा 47 डी का बार तभी लागू होता है जब अधिहरण प्राधिकारी या कलेक्टर से अधिहरण कार्यवाही प्रारंभ होने के बारे में सूचना प्राप्त होती है।
14. धारा 49 ए के प्रावधान मानवीय उपयोग के लिए अनुपयुक्त मदिरा, विक्रत स्प्रिट या स्प्रिट के संबंध में है जो कि मानव उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो या मनुष्य को क्षति पहुंचाते हो या जिससे मनुष्य की मृत्यु हो जाती है उस संबंध में प्रावधान किये गये है।
यदि उक्त मदिरा या स्प्रिट या विक्रत स्प्रिट मानव उपयोग के जिए अनुपयुक्त पाये जाते है तब अभियुक्त ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा जो दो माह से कम का नहीं होगा किन्तु दो वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि उक्त मदिरा या स्प्रिट मनुष्य का क्षति पहुंचती है तब अभियुक्त ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा जो चार माह से कम का नहीं होगा किन्तु चार वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि उक्त मदिरा या स्प्रिट से मनुष्य की मृत्यु कारित हो जाती है तब अभियुक्त ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा जो दो वर्ष से कम का नहीं होगा किन्तु 10 वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 49 ए की उप धारा 2 में द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि पर वर्धित दण्ड के प्रावधान है जिसके अनुसार मानव उपयोग के अनुपयुक्त मदिरा आदि के मामले में न्यूनतम 6 माह का कारावास जो चार वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थ दण्ड के प्रावधान है जबकि मनुष्य को क्षति पहुंचाने वाले मदिरा आदि के मामले में न्यूनतम 1 वर्ष तक के कारावास जो 6 वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थ दण्ड के प्रावधान है। जबकि मनुष्य की मृत्यु के मामले में आजीवन कारावास या न्यूनतम 5 वर्ष के कारावास जो 10 वर्ष तक का हो सकेगा तथा अर्थ दण्ड के प्रावधान है।
जमानत के बारे में
15. धारा 34 (1) म0्रप0 आबकारी अधिनियम के ऐसे मामले जो 50 बल्क लीटर से कम मात्रा से संबंधित है वे जमानतीय होते है अतः उनमें अभियुक्त को जमानत देना आज्ञापक है।
16. धारा 34 (1) के खण्ड ए और बी के ऐसे मामले जिनमें शराब की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक है और धारा 49 ए म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामले में धारा 59 ए (1) के अनुसार अग्रिम जमानत का आवेदन पत्र चलने योग्य नहीं होता है।
धारा 59 ए (2) के तहत धारा 34 (1) के खण्ड ए या बी के मामले में जहां शराब की मात्रा 50 बल्क लीटर से अधिक हो और धारा 49 ए के मामलों में अभियुक्त को जमानत तब तक नहीं दी जायेगी जब तक लोक अभियोजक को जमानत आवेदन का विरोध करने का अवसर न दिया गया हो और विरोध किये जाने पर तथा न्यायालय का यह समाधान न हो जाये की यह विश्वास किये जाने की युक्तियुक्त आधार है कि अभियुक्त ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और यह संभावना नहीं है कि जमानत पर रहने पर वह कोई अपराध करेगा तभी उसे जमानत का लाभ दिया जायेगा।
अर्थात 50 बल्क लीटर से अधिक मात्रा के धारा 34 (1) खण्ड ए या बी के मामले और धारा 49 ए के मामलों में जमानत आवेदन पत्र प्रस्तुत होने पर अभियोजन को सुनवाई का अवसर देना आज्ञापक है साथ ही न्यायालय को यह समाधान होना चाहिये कि यह विश्वास करने के आधार है कि अभियुक्त ऐसे अपराध का दोषी नहीं है तथा जमानत पर रहने पर वह अपराध नहीं करेगा तभी अभियुक्त को जमानत का लाभ देना चाहिये अन्यथा नहीं ये प्रावधान आज्ञापक प्रकृति के है।
परंतु जहां 50 बल्क लीटर से अधिक मात्रा के धारा 34 (1) के खण्ड ए या बी के मामलों में यदि 60 दिन के भीतर और 49 ए के मामले में 120 दिन के भीतर पुलिस अभियोग पत्र प्रस्तुत नहीं करती है या आबकारी निरीक्षक परिवाद प्रस्तुत नहीं करता है तो अभियुक्त जमानत प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा कर दिया जायेगा ये प्रावधान दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अतिरिक्त है।
17. धारा 61 म0प्र0 आबकारी अधिनियम में अभियोजन पर कुछ प्रतिबंद्ध लगाये गये है जिसके अनुसार धारा 37, 38, 38 ए और 49 के अधीन दण्डनीय अपराध का संज्ञान कलेक्टर या जिला आबकारी अधिकारी की श्रेणी का कोई अधिकारी जिसे कलेक्टर प्राधिकृत किया हो के परिवाद या रिपोर्ट पर ही करेगा।
धारा 49 से भिन्न किसी धारा के दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान आबकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के परिवादी या रिपोर्ट पर ही करेगा।
अभियोजन अपराध की तारीख से 6 माह की अवधि के भीतर प्रस्तुत किया गया हो तभी संज्ञान मिलेगा और 6 महिने की अवधि के बाद राज्य सरकार की विशेष मंजूरी के बिना संज्ञान नहीं लेगा।
इस तरह इन मामलों में अपराध की तारीख से संज्ञान लेने के लिए 6 माह की अवधि परिसीमा काल है इसे ध्यान में रखना चाहिये और इस अवधि के बाद राज्य सरकार के विशेष मंजूरी पर ही संज्ञान लेने के प्रावधान है।
अनुपस्थिति में निरस्ती
18. यदि आबकारी निरीक्षक या आबकारी उप निरीक्षक के परिवाद पर कार्यवाही प्रारंभ की गई हो और परिवादी अनुपस्थित हो तब भी परिवाद निरस्त नहीं करना चाहिये इस संबंध में न्याय दृष्टांत स्टेट विरूद्ध जग्गा, 1964 जे.एल.जे. नोट 155 अवलोकनीय है।
धारा 34 (2) के मामलों में दोषसिद्धि पर स्थिति
19. धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी के मामले जो 50 बल्क लीटर से अधिक मदिरा के बारे में होते है उनमें न्यूनतम एक वर्ष के कारावास जो तीन वर्ष तक हो सकता है और न्यूनतम 25 हजार रूपये के अर्थदण्ड जो अधिकतम 1 लाख रूपये तक हो सकता है दण्ड दिया जा सकता है। न्यायिक मजिस्टेªट प्रथम श्रेणी को धारा 29 (2) दं.प्र.सं. 1973 के तहत 10 हजार रूपये तक अर्थदण्ड करने की शक्तियाॅं है।
चूंकि म0प्र0 आबकारी अधिनियम में अपराध किस न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे इस संबंध में कोई प्रावधान नहीं है अतः धारा 26 (बी) (2) दं.प्र.सं. 1973 के अधीन प्रथम अनुसूची दं.प्र.सं. लागू होगी जिसके अनुसार 3 वर्ष से 7 वर्ष तक के दण्डनीय अपराध के मामले में प्रथम वर्ग मजिस्टेªट विचारण के लिए अधिकृत होते है जैसा की न्याय दृष्टांत बाबू लाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 317 में भी प्रतिपादित किया गया है अतः धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के मामले प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्टेªट के न्यायालय द्वारा विचारणीय तो होते है लेकिन दोषसिद्धि पर दण्ड देते समय कठिनाई उत्पन्न होती है क्योंकि न्यूनतम अर्थदण्ड ही 25 हजार रूपये होता है।
ऐसे में संबंधित मजिस्टेªट को धारा 325 दं.प्र.सं. 1973 के तहत कार्यवाही करना चाहिये धारा 325 (1) के अनुसार जब कभी अभियोजन और अभियुक्त का साक्ष्य सुनने के पश्चात मजिस्टेªट की यह राय हो की अभियुक्त दोषी है और उसे उस प्रकार के दण्ड से भिन्न प्रकार का दण्ड या उस दण्ड से अधिक कठोर दण्ड दिया जाना चाहिये जो वह मजिस्टेªट देने के लिए शसक्त है तब वह अपनी राय या ओपीनियन अभिलिखित कर सकता है और कार्यवाही तथा अभियुक्त को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट को भेज सकता है।
यदि उस कार्यवाही में एक से अधिक अभियुक्त का विचारण एक साथ किया जा रहा हो और कुछ या किसी एक के बारे में मजिस्टेªट की उक्त राय हो तो वह सभी को मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट को भेज देगा।
तब मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट धारा 325 (3) के तहत कार्यवाही करके मामले का निराकरण करते है।
इस तरह जब कभी धारा 34 (2) म0प्र0 आबकारी अधिनियम के तहत मामला हो तब मजिस्टेªट को विचारण पूर्ण कर लेना चाहिये और उभय पक्ष का साक्ष्य लेने और उनको सुनने के बाद अपनी राय अभिलिखित कर लेना चाहिये और अभिलेख और अभियुक्त को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट के पास भेज देना चाहिये। इस संबंध में न्याय दृष्टांत रमेश विरूद्ध म0प्र0 राज्य, 2003 (1) एम.पी.एच.टी. 392 भी अवलोकनीय है।
वाहन सुपुर्देगी पर देने के बारे में
20. यदि 50 बल्क लीटर से कम का मामला है तो वाहन सामान्यतः अधिहरण या कानफेसिकेट नहीं करना चाहिये क्योेंकि यह वाहन स्वामी के लिए अनुपातहीन पैनल्टी होगी यह विधि 48 बोटल शराब के एक मामले में जीप को अधिहरण करने के मामले में प्रतिपादित की गई है इस संबंध में न्याय दृष्टांत हरेन्द्र सिंह ठाकुर विरूद्ध स्टेट आॅफ म0प्र0, 2008 (3) एम.पी.एच.टी. 126 अवलोकनीय है।
21. न्याय दृष्टांत सुरेश दवे विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2003 (1) एम.पी.एच.टी. 439 में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहां धारा 47 ए (3) (ए) के तहत अधिहरण कार्यवाही प्रारंभ करने की कोई सूचना न्यायालय को न दी गई हो और न संबंधित पक्ष को सूचना पत्र जारी किये गये हो तब दण्डिक न्यायालय वाहन को उसके पंजीकृत स्वामी को अंतरिम सुपुर्देगी पर दे सकते है इस संबंध में न्याय दृष्टांत शिरीश अग्रवाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2003 (2) एम.पी.एच.टी. 97 पूर्ण पीठ भी अवलोकनीय है।
न्याय दृष्टांत सुन्दर भाई अम्बा लाल देसाई विरूद्ध स्टेट आॅफ गुजरात, 2002 ए.आई.आर. एस.सी.डब्ल्यू 5301 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 451 दं.प्र.सं. पर विचार करते हुये यह विधि प्रतिपादित की है कि न्यायालय को इन शक्तियों का प्रयोग न्यायिक तरीके से और शीध्रता से करना चाहिये वस्तुओं को पुलिस थाने पर 15 से एक महिने से अधिक की अवधि के लिये नहीं पड़े रहने देना चाहिये इस न्याय दृष्टांत में मजिस्टेªट के इन संपत्तियों के बारे में कत्र्तव्यों पर भी प्रकाश डाला है।
लेकिन इन शक्तियों का प्रयोग धारा 47 डी म0प्र0 आबकारी अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुये करना चाहिये।
22. सामान्यतः जब्त वाहन उक्त प्रावधानों को ध्यान में रखते हुये उसके पंजीकृत स्वामी या रजिस्टर्ड आॅनर या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को सुपुर्देगी पर दिये जा सकते है।
मालखाना निस्तारण
23. सामान्यतः देशी मदिरा, नाल बाॅंस, बबरी मिट्टी, लाहन, मानव उपयोग के अनुपयुक्त मदिरा आदि को अपील अवधि पश्चात अपील न हाने की दशा में नष्ट करने के आदेश दिये जाते है। वाहन यदि अधिहरण का दायी नहीं है तो उसका सुपुर्देनामा निरस्त समझे जाने के आदेश दिये जाते है और यदि अधिहरण किया जाना है तो उसे पेश करने संबंधी निर्देश दिये जाते है।
विविध तथ्य
24. अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जब्त द्रव्य में से नमूने निकालने के बाद शेष पदार्थ को नष्ट कर दिया जाये। यदि आबकारी निरीक्षक ने ऐसा किया है तो यह एक अनियामितता है लेकिन अभियुक्त के हितों पर इससे कोई प्रतिकूल असर नहीं हो तो वह इसका कोई लाभ पाने का अधिकारी नहीं होता है इस संबंध में न्याय दृष्टांत सुखलाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 1995 एम.पी.एल.जे. 266 अवलोकनीय है।
25. यदि अवैध द्रव्य पर आरोपी का आधिपत्य स्थापित हो जाता है तो अपराध प्रमाणित हो जाता है इस संबंध में भैया लाल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 1985 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 242 अवलोकनीय है जिसमें यह विधि प्रतिपादित की गई है।
26. पति परिसर का अधिभोगी होता है यह एक सामान्य उप धारणा है जब तक की यह दर्शित न किया जाये की पत्नी घर की अधिभोगी है और पति केवल उसके साथ जुड़ा हुआ है अतः जहां पति की अनुपस्थिति में घर से बरामदगी की गई हो वहां पत्नी को अवैध सामग्री रखने का दोषी नहीं माना जा सकता है चाहे उसके ज्ञान में यह हो की सामग्री उसके पति ने घर में रखी है इस संबंध में न्याय दृष्टांत फूल बाई विरूद्ध स्टेट, 1964 जे.एल.जे. एस.एन. 63 अवलोकनीय है।
27. अपीलार्थी टेªक्टर ट्रोली में सह आरोपी के साथ बैठा था वह टेªक्टर ट्रोली का स्वामी नहीं था ऐसी भी साक्ष्य नहीं थी उसे रेत में मादक द्रव्य छिपाने की जानकारी थी ऐसे में अपीलार्थी को दोषी नहीं माना गया अवलोकनीय न्याय दृष्टांत दशरथ सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (1) एम.पी.एल.जे. 588 अवलोकनीय है।
साक्ष्य के समय मालखाना वस्तु की प्रस्तुती
28. इन मामलों में एक प्रतिरक्षा यह ली जाती है कि साक्ष्य के समय मालखाना वस्तु प्रस्तुत नहीं की और प्रदर्शित नहीं करवाई गई अतः यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिये किसी दिन नियत साक्ष्य के प्रकरणों को एक दिन पहले ही देख लेना चाहिये कि जिन प्रकारणों साक्ष्य के दौरान मालखाना वस्तु बुलवाना हो उनके बारे में एक दिन पहले ही मालखाना नाजिर को निर्देशित किया जा सके कि वह अगले दिन प्रातः 11 बजे मालखाना वस्तु प्रस्तुत करे। जब्तीकर्ता अधिकारी के साक्ष्य के दौरान मालखाना वस्तु अवश्य बुलवाना चाहिये और उस पर आर्टीकल डलवाना चाहिये।
अपराध स्वीकारोक्ती के बारे में
29. सामान्यतः कम मात्रा के शराब के मामलों में अभियुक्त अपराध स्वीकार करना चाहता है ऐसे मामलों में अपराध स्वीकार करने को प्रोत्साहन इसलिये देना चाहिये की छोटे मामले स्वीकारोक्ती पर निपट जाने से अपेक्षाकृत बड़े मामलों के लिए न्यायालय का समय बच सके और छोटे मामलों में न्यायालय उठने तक के कारावास और अर्थदण्ड शराब की मात्रा को देखते हुये किया जा सकता है जो न्यूनतम 500 सौ रूपये और अधिकतम 5 हजार रूपये तक धारा 34 (1) के मामलों में होता है।
यदि ऐसी छोटी मात्रा वाले मामले गुणदोष पर पूरी साक्ष्य लेने के बाद निराकृत होते है तब दोषसिद्धि पर उचित दण्ड देना चाहिये।
जप्ती पंचनामे के प्रमाणीकरण के बारे में
30. जप्ती पंचनामा तात्विक साक्ष्य नहीं होता है उसके तथ्यों को संबंधित गवाहों से प्रमाणित करवाना आवश्यक होता है अतः साक्ष्य लेखबद्ध करते समय सावधानी रखना चाहिये। जप्ती पंचनामे को संबंधित गवाहों से प्रमाणित करवाने के बारे में न्याय दृष्टांत श्रवण विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 2006 (2) ए.एन.जे. (एम.पी.) 235, दशरथ विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., आई.एल.आर. 2008 एम.पी. 360, स्वरूप सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी. 1996 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 84 अवलोकनीय हैं।
इस प्रकार म0प्र0 आबकारी अधिनियम, 1915 के मामलों में जमानत के समय, आरोप विरचित करते समय, विचारण के समय और निर्णय के समय उक्त वैधानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुये कार्यवाही करना चाहिये।
(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.
Sir mere bhi ko 34 2 ke dara me अन्दर ह जमानत करवाने मे कितने दिन लगे गे
ReplyDeleteशराब की मात्रा के ऊपर निर्भर है
Deleteविवेचक साक्षीयो को घटना स्थल साथ लेकर जाता है सूचना प्राप्ति एक घन्टे बाद रोजनामचा लिखकर जाता है कहा तक विश्वशनीय है?
ReplyDelete34 2 ki dhara me jamanat kitne dino me ho sakti he sir
ReplyDeletedhara 34 ke kam se kam kitni sharab hona avashyak hai jab ban sake apradh
ReplyDelete50 Ltr
DeleteSend me citation sec 47b excise act
ReplyDeleteसाक्षियों से अगर प्रकरण साबित न हो तब क्या राजसात की कार्यवाही की जाएगी
ReplyDeleteNice
ReplyDelete34 2 ki jamanat kainse karaye sir
ReplyDeletekitne din main hoti hai
34 2 Exice 451 jmfc power
ReplyDeleteनए न्याय दृष्टांत के अनुसार कलेक्टर द्वारा न्यायालय को सुपुर्द की रात की सूचना नहीं देने पर भी वहां सुपुर्दगी आवेदन पर न्यायालय की सुनवाई का अधिकार समाप्त होता है
ReplyDeleteआबकारी अधिनियम के तहत कलेक्टर के द्वारा वाहन राजसात के लिए दिए गए अंतिम निर्णय के विरुद्ध सेशन में रिवीजन हो सकती है क्या कलेक्टर अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकता है क्या
ReplyDeleteमध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम सामान्य अनुज्ञप्ती शर्त GLC XVI(मदिरा का शासन द्वारा निर्धारित दर से अधिक पर विक्रय) के उल्लंघन पर कितनी शास्ती अधिरोपित की जा सकती है।
ReplyDeleteक्या खाने की होटल में शराब ले जा कर वहां बैठकर पीना गैर कानूनी है और दंडनीय है।
ReplyDelete34.2 me 1 mahne se phele jamnat na karbaye JMFC cort se nhi to kharij ho shakti hai
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
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