लोक अदालत में निराकृत सिविल मामलों
में न्यायालय फीस की वापसी के संबंध में
विधिक स्थिति क्या है?
इस प्रश्न के संबंध में न्यायालय फीस अधिनियम,
1870 की धारा - 16
सुसंगत है जो निम्नवत् है-
‘‘फीस का प्रतिदाय.- जहां न्यायालय वाद के
पक्षकारों को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908
1908 का 5 की धारा 89 में निर्दिष्ट विवाद के
निपटारे के ढंगों में से कोई ढंग निर्देशित करता
है, वहां वादी न्यायालय से ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त
करने का हकदार होगा जिसमें कलेक्टर से ऐसे
वाद के संबंध में संदाय फीस की पूरी रकम
वापस प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत किया गया
हो।‘‘
वर्ष 2002 में अंतःस्थापित इस प्रावधान के अधीन
जहाँ न्यायालय द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता,
1908 की धारा-89 में निर्दिष्ट विवाद के निपटारे
की प्रविधियों में से, जिसके अधीन लोक अदालत
के माध्यम से समझौता भी सम्मिलित है, किसी
के भी अधीन निराकरण के लिए निर्दिष्ट किया
जाता है तो ऐसे सिविल विवाद के निराकरण पर
वादी न्यायालय से ऐसे प्रमाणपत्र को प्राप्त करने
का अधिकारी होगा जिसमें उसे कलेक्टर से उस
मामले में संदाय की गई सम्पूर्ण न्यायालय फीस
के लिए प्राधिकृत किया गया हो।
इस प्रावधान के अतिरिक्ति विधिक सेवा
प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 21 भी
सुसंगत है। यह धारा निम्नलिखित है-
’’लोक अदालत का अधिनिर्णय - 1 लोक
अदालत का प्रत्येक
अधिनिर्णय, किसी सिविल न्यायालय की एक
डिक्री या, यथास्थिति, किसी अन्य न्यायालय का
कोई आदेश माना जाएगा और जहाँ धारा 20 की
उपधारा 1 के अधीन उसे निर्देशित किसी
मामले में किसी लोक अदालत द्वारा कोई
समझौता या परिनिर्धारण किया जाता है, तो ऐसे
मामले में संदाय न्यायालय फीस, न्यायालय फीस
अधिनियम, 1870 के अधीन
उपबंधित रीति में वापस की जाएगी।
2- किसी लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक
अधिनिर्णय, अन्तिम एवं विवाद के समस्त पक्षकरों
पर आबद्धकर होगा, और अधिनिर्णय के विरूद्ध
किसी न्यायालय में कोई अपील नहीं की
जाएगी।’’
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लोक अदालत में
निराकृत सिविल मामले में पक्षकार मामले में
संदाय की गई न्यायालय फीस की सम्पूर्ण
धनराशि वापस प्राप्त करने का अधिकारी होता है
तथा इस राशि में से किसी भी प्रकार की
कटौती किया जाना अनुज्ञात नहीं है।
अतएव यह ध्यातव्य है कि प्रथमतः ऐसे मामलों
में न्यायालय, न्यायालय फीस के स्टाम्प वापस
नहीं करेगा वरन् न्यायालय फीस को कलेक्टर
से वापस प्राप्त करने बाबत् एक प्रमाणपत्र
पक्षकार को प्रदान करेगा। द्वितीयतः यह
प्रमाणपत्र पक्षकार को उस मामले में संदाय
सम्पूर्ण न्यायालय फीस की वापसी हेतु अधिकृत
करेगा। दूसरे शब्दों में ऐसे प्रमाणपत्र के अधीन
पक्षकार कलेक्टर से मामले में संदाय सम्पूर्ण
न्यायालय फीस वापस पाने का अधिकारी होगा।
इस संबंध में रमेशचंद्र वि. म.प्र. राज्य एवं अन्य
में न्यायालय फीस की वापसी के संबंध में
विधिक स्थिति क्या है?
इस प्रश्न के संबंध में न्यायालय फीस अधिनियम,
1870 की धारा - 16
सुसंगत है जो निम्नवत् है-
‘‘फीस का प्रतिदाय.- जहां न्यायालय वाद के
पक्षकारों को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908
1908 का 5 की धारा 89 में निर्दिष्ट विवाद के
निपटारे के ढंगों में से कोई ढंग निर्देशित करता
है, वहां वादी न्यायालय से ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त
करने का हकदार होगा जिसमें कलेक्टर से ऐसे
वाद के संबंध में संदाय फीस की पूरी रकम
वापस प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत किया गया
हो।‘‘
वर्ष 2002 में अंतःस्थापित इस प्रावधान के अधीन
जहाँ न्यायालय द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता,
1908 की धारा-89 में निर्दिष्ट विवाद के निपटारे
की प्रविधियों में से, जिसके अधीन लोक अदालत
के माध्यम से समझौता भी सम्मिलित है, किसी
के भी अधीन निराकरण के लिए निर्दिष्ट किया
जाता है तो ऐसे सिविल विवाद के निराकरण पर
वादी न्यायालय से ऐसे प्रमाणपत्र को प्राप्त करने
का अधिकारी होगा जिसमें उसे कलेक्टर से उस
मामले में संदाय की गई सम्पूर्ण न्यायालय फीस
के लिए प्राधिकृत किया गया हो।
इस प्रावधान के अतिरिक्ति विधिक सेवा
प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 21 भी
सुसंगत है। यह धारा निम्नलिखित है-
’’लोक अदालत का अधिनिर्णय - 1 लोक
अदालत का प्रत्येक
अधिनिर्णय, किसी सिविल न्यायालय की एक
डिक्री या, यथास्थिति, किसी अन्य न्यायालय का
कोई आदेश माना जाएगा और जहाँ धारा 20 की
उपधारा 1 के अधीन उसे निर्देशित किसी
मामले में किसी लोक अदालत द्वारा कोई
समझौता या परिनिर्धारण किया जाता है, तो ऐसे
मामले में संदाय न्यायालय फीस, न्यायालय फीस
अधिनियम, 1870 के अधीन
उपबंधित रीति में वापस की जाएगी।
2- किसी लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक
अधिनिर्णय, अन्तिम एवं विवाद के समस्त पक्षकरों
पर आबद्धकर होगा, और अधिनिर्णय के विरूद्ध
किसी न्यायालय में कोई अपील नहीं की
जाएगी।’’
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लोक अदालत में
निराकृत सिविल मामले में पक्षकार मामले में
संदाय की गई न्यायालय फीस की सम्पूर्ण
धनराशि वापस प्राप्त करने का अधिकारी होता है
तथा इस राशि में से किसी भी प्रकार की
कटौती किया जाना अनुज्ञात नहीं है।
अतएव यह ध्यातव्य है कि प्रथमतः ऐसे मामलों
में न्यायालय, न्यायालय फीस के स्टाम्प वापस
नहीं करेगा वरन् न्यायालय फीस को कलेक्टर
से वापस प्राप्त करने बाबत् एक प्रमाणपत्र
पक्षकार को प्रदान करेगा। द्वितीयतः यह
प्रमाणपत्र पक्षकार को उस मामले में संदाय
सम्पूर्ण न्यायालय फीस की वापसी हेतु अधिकृत
करेगा। दूसरे शब्दों में ऐसे प्रमाणपत्र के अधीन
पक्षकार कलेक्टर से मामले में संदाय सम्पूर्ण
न्यायालय फीस वापस पाने का अधिकारी होगा।
इस संबंध में रमेशचंद्र वि. म.प्र. राज्य एवं अन्य
W.P.No. 7282/10 निर्णय दिनांक
01.11.2011 खण्डपीठ के न्यायदृष्टांत में
प्रतिपादित किया गया है कि सिविल प्रक्रिया
संहिता, 1908 की धारा 89 के अधीन लोक
अदालत को निर्दिष्ट विवाद के समायोजन
उपरांत याची/अपीलार्थी न्यायालय से ऐसा
प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अधिकारी होता है
जिसमें उसे मामले में संदाय की गई न्यायालय
फीस की सम्पूर्ण राशि कलेक्टर से वापस प्राप्त
करने के लिए अधिकृत किया गया हो। इस
राशि में प्राधिकारियों द्वारा कोई कटौती नहीं की
जा सकती है।
इसी विषय पर बल्लभ दास गुप्ता वि. श्रीमती गीताबाई,
01.11.2011 खण्डपीठ के न्यायदृष्टांत में
प्रतिपादित किया गया है कि सिविल प्रक्रिया
संहिता, 1908 की धारा 89 के अधीन लोक
अदालत को निर्दिष्ट विवाद के समायोजन
उपरांत याची/अपीलार्थी न्यायालय से ऐसा
प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अधिकारी होता है
जिसमें उसे मामले में संदाय की गई न्यायालय
फीस की सम्पूर्ण राशि कलेक्टर से वापस प्राप्त
करने के लिए अधिकृत किया गया हो। इस
राशि में प्राधिकारियों द्वारा कोई कटौती नहीं की
जा सकती है।
इसी विषय पर बल्लभ दास गुप्ता वि. श्रीमती गीताबाई,
2004
(3) MPHT 89 (खण्डपीठ) केशरीमल वि. धनराज,
2010
(III) MPWN 54
(at Page 152) तथा
विपिन त्रिवेदी वि.मोहनलाल शर्मा,
2011
(5) MPHT 102
के न्यायदृष्टांतों में प्रतिपादित विधि भी अवलोकनीय है।
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