Monday, 17 February 2014

पक्ष विरोधी साक्षी

 पक्ष विरोधी साक्षी या हाॅस्टाईल विटनस

         दांडिक मामलों में कभी-कभी किसी पक्ष का साक्षी उसी का समर्थन नहीं करता तब वह पक्ष उस साक्षी से न्यायालय की अनुमति से सूचक प्रश्न और ऐसे सभी प्रश्न पूछता है जो प्रतिपरीक्षण में प्रतिरक्षा पक्ष द्वारा पूछे जा सकते हैं ऐसे साक्षी को आम बोलचाल की भाषा में पक्ष विरोधी साक्षी कहां जाता है हालांकि न्याय दृष्टांत सतपाल विरूद्ध देल्ही एडमिनिशटेªशन,     ए.आई.आर. 1976 एस.सी. 294 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि पक्ष विरोधी घोषित या प्रतिकूल घोषित जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
         ऐसे साक्षी के साक्ष्य को पूरी तरह अविश्वसनीय मान लेना उचित नहीं होता है यदि उसकी साक्ष्य का कुछ भाग विश्वास योग्य हो या उसकी पुष्टि अन्य साक्ष्य से होती हो।
         इस संबंध में  न्याय दृष्टांत योमेश भाई पी. भट्ट विरूद्ध स्टेट आॅफ गुजरात,      ए.आई.आर. 2011 एस.सी. 2328 अवलोकनीय हैं।
         न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ यू.पी. विरूद्ध चेतराम, ए.आई.आर. 1989 एस.सी. 1543 में यह प्रतिपादित किया है कि गवाह को पक्ष विरोधी घोषित किया गया मात्र इस कारण से उसकी पूरी साक्ष्य निरर्थक नहीं हो जाती है।
         न्याय दृष्टांत खुज्जी उर्फ सुरेन्द्र तिवारी विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., ए.आई.आर. 1991 एस.सी. 1853 में तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि मात्र कोई गवाह पक्ष विरोधी हो गया है इस कारण उसकी पूरी साक्ष्य वाश आउट नहीं हो जाती हैं।
         न्याय दृष्टांत स्टेट आॅफ राजस्थान विरूद्ध भवानी, (2003) 7 एस.सी.सी. 291 में यह प्रतिपादित किया गया है कि पक्ष विरोधी साक्षी के मामले में न्यायालय को सामान्यतः उसके कथनों की पुष्टि देखना चाहिए।
         न्याय दृष्टांत गुरूप्रीत सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ हरियाणा, (2002) 8 एस.सी.सी. 18 में यह प्रतिपादित किया गया है कि यदि किसी गवाह को पक्ष विरोधी घोषित किया गया है तो मात्र इस आधार पर उसकी साक्ष्य पूरी तरह निरस्त नहीं की जा सकती सतर्कता से छानबीन करके ऐसी साक्ष्य को विश्वास किया जा सकता हैं।
         न्याय दृष्टांत तूफान सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2005 (1) एम.पी.एल.जे. 412 में यह प्रतिपादित किया गया है कि पक्ष विरोधी साक्षी की साक्ष्य को पूरी तरह डिस्कार्ड नहीं किया जा सकता यदि उसकी साक्ष्य का कुछ भाग अभियोजन के मामले का समर्थन करता है और वह भाग सही पाया जाता है तो उस पर विश्वास किया जा सकता हैं।

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