किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000
आज के विषय के संबंध में मुख्य रूप से इस अधिनियम की धारा 2 (डब्ल्यू), 10, 11, 12, 13 एवं 63 मुख्य रूप से ध्यान रखे जाने योग्य है। साथ ही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21, 22 धारा 57 दं.प्र.सं. भी विचार योग्य है।
अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नही।
अनुच्छेद 22 (2) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरूद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्टेªट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्टेªट के समक्ष पेश किया जायेगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्टेªट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिये अभिरक्षा में निरूद्ध नहीं रखा जायेगा।
धारा 57 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार भी कोई पुलिस अधिकारी वारंट के बिना गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उससे अधिक अवधि के लिये अभिरक्षा में निरूद्ध नहीं रखेगा जो उस मामले के सब परिस्थितियों में उचित है तथा ऐसी अवधि मजिस्टेªट के धारा 167 के अधीन विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्टेªट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कार 24 घंटे से अधिक की नहीं होगी।
उक्त प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के बाद यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्टेªट के समक्ष पेश किया जाना चाहिये और यह उस व्यक्ति का भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार भी है।
अधिनियम में इस संबंध में धारा 10 में प्रावधान है जो इस प्रकार हैः-
(1) जैसे ही विधि संबंधित विरोध में कोई किशोर या ज्वेनाइल काॅनफिलक्ट विद लाॅ पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है, उसे विशेष किशोर पुलिस इकाई या डेजिगनेटेड पुलिस अधिकारी के प्रभार के अधीन रखा जायेगा जो उसे बिना कोई समय गवाये किन्तु उस स्थान से जहां से किशोर को पकड़ा गया है बोर्ड तक की यात्रा में लगने वाले आवश्यक समय को छोड़कर उसे पकड़े जाने से 24 घंटे के भीतर बोर्ड के समक्ष पेश करेगा,
यह प्रावधान भी उक्त अनुच्छेद 22 और धारा 57 के समान है और किशोर को यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर बोर्ड के समक्ष पेश करने का प्रावधान करता है।
धारा 10 के परंतुक के अनुसार किसी भी दशा में विधि संबंधित विरोध में कोई किशोर पुलिस हवालात में नहीं रखा जायेगा या जेल नहीं भेजा जायेगा।
धारा 10 (2) के तहत राज्य सरकार को किशोर के सम्प्रेक्षण गृह में भेजने बावत् नियम बनाने की शक्ति दी गई है।
धारा 11 के अनुसार किशोर को जिस व्यक्ति के प्रभार में सौपा जाता है वह उस किशोर को उसी प्रकार रखेगा और भरण-पोषण करेगा जैसे माता-पिता करते है।
धारा 12 किशोर की जमानत के बारे में है जो महत्वपूर्ण है:-
(1) जब जमानतीय या गैर जमानतीय अपराध का कोई अभियुक्त व्यक्ति, और प्रकट रूप से कोई किशोर गिरफ्तार अथवा अवरूद्ध या हाजिर किया जाता है या किसी बोर्ड के समक्ष लाया जाता है तब ऐसा व्यक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होने के बावजूद प्रतिभू सहित अथवा रहित जमानत पर छोड़ दिया जायेगा या परिविक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षण में या किसी उचित संस्थान अथवा उचित व्यक्ति की संरक्षा में रखा जायेगा,
इस तरह धारा 12 (1) पर विचार करे तो यह किसी भी किशोर को जमानत पर छोड़ने के बारे में प्रावधान करती है इसके 3 अपवाद हैः-
(1) यदि यह विश्वास करने का कोई युक्तियुक्त आधार प्रतीत हो रहा हो कि किशोर का इस तरह जमानत पर छोड़ा जाना उसको किसी ज्ञात अपराधी के सहचर्य में ला देगा या
(2) उसको नैतिक शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगा या
(3) उसका जमानत पर छोड़ा जाना न्याय के उद्देश्य को विफल कर देगा।
उक्त 3 अपवादों में यदि किशोर का मामला आता है तभी उसे जमानत का लाभ नहीं दिया जाता है अन्य दशा में धारा 12 के अनुसार किशोर को जमानत पर रिहा करना आज्ञापक या मेनडेटरी है।
10 (2) के अनुसार यदि ऐसा व्यक्ति पुलिस द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है तो उसे तब तक सम्प्रेक्षण गृह में रखेगा जब तक उसे बोर्ड के समक्ष लाया जा न सके।
धारा 10 (3) के अनुसार बोर्ड भी यदि ऐसे व्यक्ति को जमानत पर नहीं छोड़ती है तो उसे सम्प्रेक्षण गृह में रखती है जेल में नहीं रखती हैं।
धारा 13 के अनुसार जब किसी किशोर को गिरफ्तार किया जाता है तब उसके माता-पिता या संरक्षक को गिरफ्तारी की सूचना दी जाती है और बोर्ड के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश भी दिया जाता है।
परिविक्षा अधिकारी को भी ऐसी गिरफ्तारी की सूचना इसलिये दी जाती है कि वे किशोर के पूर्व इतिहास परिवारिक पृष्ठ भूमि आदि की जानकारी एकत्रित करके बोर्ड के समक्ष रख सके।
धारा 2 (डब्ल्यू) में विशेष किशोर पुलिस इकाई की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसार धारा 63 के अंतर्गत किशोरों अथवा बालकों को संभालने के लिये राज्य द्वारा नाम निर्दिष्ट इकाई होती है।
धारा 63 के अनुसार ऐसी किशोर पुलिस इकाई के गठन आदि के बारे में प्रावधान है।
धारा 12 के परंतुक से यह स्पष्ट है कि किसी भी किशोर या विधि संबंधित विरोध में किशोर को पुलिस अभिरक्षा या न्यायिक अभिरक्षा में नहीं भेजना चाहिये बल्कि सम्प्रेक्षण गृह में रखना चाहिये।
इस संबंध में माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय एवं माननीय अन्य उच्च न्यायालय की कुछ प्रमुख वैधानिक स्थिति इस प्रकार है:-
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय
1. न्याय दृष्टांत हंसराज विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2005 (2) ए.एन.जे. (एम.पी.) 407 के अनुसार ज्वेनाइल की जमानत आज्ञापक या मेनडेटरी है जब तक की धारा 12 अधिनियम, 2000 में दर्शाई दशाएॅं स्थापित न हो जाये।
धारा 12 पर विचार करते समय हम 3 अपवाद देख चुके है यदि उनमें से कोई तथ्य स्थापित हो जाये तभी ज्वेनाइल की जमानत निरस्त की जा सकती है अन्यथा नहीं।
2. न्याय दृष्टांत गुड्डू विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (1) एम.पी.जे.आर. एस.एन. 35 के अनुसार धारा 12 अधिनियम के अनुसार ज्वेनाइल को जमानत पर रिहा करने संबंधी विचार करते समय मामले के गुण दोष को विचार में नहीं लेना चाहिये केवल धार 12 के क्रम में ही ज्वेनाइल की जमानत के बारे में विचार करना चाहिये।
3. न्याय दृष्टांत कपिल दुर्गवानी विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., आई.एल.आर. 2010 एम.पी. 2003 के अनुसार धारा 12 अधिनियम 2000 एवं धारा 18 एस.सी., एस.टी. एक्ट, 1989 दोनों प्रावधानों के क्षेत्र अलग-अलग है और धारा 12 अधिनियम 2000 धारा 18 अधिनियम 1989 पर अधिभावी प्रभाव नहीं रखती है।
4. न्याय दृष्टांत गिरीराज विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (3) एम.पी.एल.जे. 325 में यह प्रतिपादित किया गया है कि ज्वेनाइल के जमानत में केवल धारा 12 में बतलाई दशाएॅं देखी जाना चाहिये दण्ड प्रक्रिया संहिता के जमानत के प्रावधान से ज्वेनाइल का जमानत आवेदन पत्र गर्वन नहीं होता है।
5. न्याय दृष्टांत हाकम विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., आई.एल.आर. 2011 एम.पी. 2237 के अनुसार ज्वेनाइल के जमानत आज्ञापक है जब तक की धारा 12 में बतलाये गये अपवाद न बनते हो मामला धारा 12 के 3 में से किसी अपवाद में नहीं आता है तो ज्वेनाइल जमानत का हकदार होता है।
6. न्याय दृष्टांत राहुल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2011 (4) एम.पी.एच.टी. 113 के अनुसार ज्वेनाइल की जमानत अपराध की गंभीरता के आधार पर निरस्त नहीं की जा सकती जब तक की यह विश्वास करने के आधार नहीं हो कि जमानत देने पर ज्वेनाइल ज्ञात अपराधियों के संपर्क में आ सकता है मामले में न्याय दृष्टांत राजकुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2008 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 94 पर विश्वास किया गया और न्याय दृष्टांत राहुल मिश्रा विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2001 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 67 पर विचार किया गया जिसमें यह कहां गया था कि प्रार्थी के विरूद्ध कोई आपराधिक इतिहास नहीं है यह मानने के कोई आधार नहीं है कि ज्ञात अपराधियों के संपर्क में आ जायेगा।
7. न्याय दृष्टांत रितेश विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2011 (4) एम.पी.एल.जे. 226 में धारा 307 भा.दं.सं. एवं 25/27 आम्र्स एक्ट के मामले में परिविक्षा अधिकारी की रिपोर्ट और मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में अभियुक्त को जमानत का लाभ देना उचित माना गया।
अन्य उच्च न्यायालय
1. न्याय दृष्टांत नेसुल खातून विरूद्ध स्टेट आॅफ असम, 2011 सी.आर.एल.जे. 326 डी.बी. के अनुसार ज्वेनाइल के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह यह बतावे कि उसका जमानत देने के लिये मामला बनता है बल्कि यह गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के लिये आवश्यक है की वे यह बतावे की धारा 12 के परंतुक में बतलाई गई परिस्थितियाॅं मौजूद है इसलिये ज्वेनाइल को जमानत नहीं दी जाना चाहिये।
धारा 12 (1) की भाषा यह दर्शाती है कि ज्वेनाइल को जमानत देने से इंकार करने युक्तियुक्त आधार होना चाहिये ज्वेनाइल की अभिरक्षा उसके संरक्षण के लिये होना चाहिये दण्ड स्वरूप नहीं होना चाहिये।
इस मामले में ज्वेनाइल टी.बी. से कस्टेडी में मर गया था जबकि धारा 457, 380 भा.दं.सं. का मामला था।
2. न्याय दृष्टांत प्रहलाद गौर विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2009 सी.आर.एल.जे. 153 में यह प्रतिपादित किया गया है कि केवल एक बार ज्वेनाइल किन्ही ज्ञात अपराधियों की कंपनी में पाया गया धारा 12 के क्रम में इसे लगातार एसोसिएशन नहीं माना जा सकता इस आधार पर जमानत निरस्ती को उचित नहीं माना गया।
3. न्याय दृष्टांत रविउल इस्माइल विरूद्ध स्टेट एन.सी.टी. डेल्ही, 2007 सी.आर.एल.जे. 612 के अनुसार एन.डी.पी.एस. एक्ट के मामले में ज्वेनाइल को जमानत देने पर विचार के समय अनुसंधान के प्रतिवेदन में भी ऐसी कोई बात नहीं आई थी जो मामले के धारा 12 के अपवाद में लाती हो जमानत दिया जाना उचित माना गया।
4. न्याय दृष्टांत प्रकाश विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, 2006 सी.आर.एल.जे. 1373 के अनुसार बलात्कार के मामले में ज्वेनाइल को जमानत देते समय अपराध गंभीर है मात्र इस आधार पर जमानत निरस्त करना उचित नहीं है धारा 12 के परंतुक में बतलाये घटक यदि मौजूद हो तभी जमानत से इंकार किया जा सकता है।
संदर्भ में न्याय दृष्टांत विजेन्द्र कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2003 सी.आर.एल.जे. 4619, रंजीत सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एच.पी., 2005 सी.आर.एल.जे. 972 भी अवलोकनीय है जिनमें यह प्रतिपादित किया गया है अपराध की गंभीरता जमानत निरस्त करने का आधार नहीं हो सकती धारा 12 के परंतुक के आधार होना चाहिये।
5. न्याय दृष्टांत विक्की सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ छत्तीसगढ़, 2006 सी.आर.एल.जे. 1892 के अनुसार ज्वेनाइल ज्ञात अपराधियों के साथ पाया गया जो डकैती की योजना बना रहे थे एक ज्वेनाइल के पास चाकू बरामद हुआ जिसका फल 8.5 इंच लम्बा था एक ज्वेनाइल के पास पिस्टन बरामद हुई इन तथ्यों से प्रथम दृष्ट्या ज्वेनाइल की आपराधिक मानसिकता प्रकट होती है और उनके माता-पिता का उन पर कोई नियंत्रण न होना प्रकट होता है ऐसे में उनकी जमानत निरस्त करना उचित माना गया।
6. न्याय दृष्टांत संदीप कुमार विरूद्ध स्टेट, 2005 सी.आर.एल.जे. 3182 के अनुसार 6 साल की लड़की से ज्वेनाइल ने उसी के घर में बलात्कार किया ज्वेनाइल पर उसके माता-पिता का कोई नियंत्रण नहीं होना सामाजिक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार पाया गया जमानत निरस्ती को उचित माना गया।
7. न्याय दृष्टांत जे.एफ. अहमद शेख विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, 2004 सी.आर.एल.जे. 3272 में यह प्रतिपादित किया गया है कि धारा 12 के प्रावधान को यांत्रिक तरीके से लागू नहीं किया जा सकता। अभियुक्त स्मगलिंग में लिप्त पाया गया उसका ऐसे ही गतिविधि के गैंग में जमानत पर रिहा हो जाने के बाद शामिल होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती जमानत निरस्ती उचित मानी गयी यह एन.डी.पी.एस. का मामला था।
8. न्याय दृष्टांत प्रवीण कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 200 के अनुसार ज्वेनाइल से वाणिज्य मात्रा में चरस बरामद हुई उसक जमानत आवेदन पत्र अधिनियम की धारा 12 के तहत विचार किया जाना चाहिये धारा 37 एन.डी.पी.एस. एक्ट विचार में नहीं लंेगंे क्योकि धारा 12 अधिनियम, 2000 का धारा 37 एन.डी.पी.एस. एक्ट पर ओवर राईडिंग इफेक्ट होगा क्योंकि धारा 12 में नाॅन-आॅपसेट क्लाॅस रखा गया है।
एन.डी.पी.एस. एक्ट वर्ष में 1985 में बना है जबकि जे.जे. एक्ट वर्ष में 2000 में बना है जहां दो इनएक्टमेंट में विरोध हो वहां बाद वाला इनएक्टमेंट प्रीवेल करेगा।
अभियुक्त प्रथम अपराधी था परिविक्षा अधिकारी की रिपोर्ट में अभियुक्त का पूर्व अपराधिक इतिहास नहीं था ज्ञात या अज्ञात अपराधी के सहचर्य में आने की संभावना भी रिपोर्ट में नहीं बतलाई थी ऐसे में ज्वेनाइल को जमानत दी गई।
9. न्याय दृष्टांत राम सजीवन विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 1121 के अनुसार सेशन जज ने हाई स्कूल की मार्कशीट पर अशिक्षित माता के कथनों के आधार पर अविश्वास किया जो समय की समझ रखने वाली नहीं थी सेशन जज ने मेडिकल राय को प्राथमिकता दी जो उचित नहीं माना गया। यदि सेशन जज हाई स्कूल के प्रमाण पत्र से संतुष्ट नहीं थे तो वे बोर्ड या स्कूल के अधिकारियों को समंन कर सकते थे।
10. न्याय दृष्टांत अमर दीप सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, 2011 सी.आर.एल.जे. 1599 में धारा 447, 302 भा.दं.सं. के मामले में अपराध की गंभीरता के आधार पर धारा 12 का आवेदन निरस्त करना उचित नहीं माना गया और बेल आज्ञापक है यह बताया गया।
11. न्याय दृष्टांत मोहम्मद नबी विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 2828 के अनुसार छोटे विवाद में ज्वेनाइल को उसके पिता ने मृतक की हत्या के लिये उकसाया। दिन के समय ज्वेनाइल के पास ऐसा कोई तात्कालिक कारण नहीं था कि वह हत्या में प्रयुक्त हथियार अपने साथ रखता ज्वेनाइल ने ऐसे उकसाने पर यंत्रवत चाकू घोप कर मृतक की हत्या की गई यह तथ्य ज्वेनाइल के आपराधिक आशय व आपराधिक मानसिकता दर्शाता है पिता से सहचर्य में रहकर ज्वेनाइल और अपराध कर सकता है पिता उसके कल्याण और देखरेख मंे भी उचित व्यक्ति नहीं है आवेदन निरस्त किया गया था।
12. न्याय दृष्टांत मोनू उर्फ मोनी विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 4496 में गैंग रेप का मामला था 14 वर्ष की अवयस्क लड़की के साथ अपराध हुआ था ज्वेनाइल अपराध के पीछे एक मास्टर माइंड था उसने कंट्री मेड पिस्टल की व्यवस्था की थी लड़की को गन पाइंट पर किडनेप किया था और अपने मित्रों के साथ मिलकर उसके साथ बलात्कार किया था यह अभियुक्त की टेण्डेंसी आॅफ क्रीमिनल प्राॅक्लिविटि व डिप्रिविड सेक्सवल बिहेवियर दर्शाता है जमानत निरस्त की गई।
13. न्याय दृष्टांत अनीश अंसारी विरूद्ध स्टेट आॅफ झारखण्ड, 2010 सी.आर.एल.जे. 1959 के अनुसार अभियुक्त ने निर्दयता की पराकाष्ठा दिखाई 15 वर्ष की लड़की के साथ गैंग रेप किया अभियुक्त ज्वेनाइल था यह पाया गया कि उसे जमानत पर रिहा करने से धारा 12 के परंतुक के अनुसार यह उसके नैतिक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने वाला है आवेदन निरस्त किया गया।
14. न्याय दृष्टांत मनोज कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ छत्तीसगढ़, 2006 सी.आर.एल.जे. 2299 में बलात्कार के मामले में पहले समझौता हुआ दो दिन बाद रिपोर्ट करवाई जब परिवादी की बहन और ज्वेनाइल के माता के बीच झगड़ा हुआ उसके बाद रिपोर्ट की गई मेडिकल रिपोर्ट भी अनिश्चित थी जमानत का लाभ दिया गया।
15. न्याय दृष्टांत नरेश विरूद्ध स्टेट आॅफ झारखण्ड, 2011 सी.आर.एल.जे. 3642 के अनुसार पक्षों के मध्य पूर्व रंजीश थी झूठा फसाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था हत्या का मामला था धारा 12 के अपवादों में मामला नहीं आता जमानत उचित मानी गई।
16. न्याय दृष्टांत अनिल कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2007 सी.आर.एल.जे. 200 के अनुसार धारा 12 के आधार नहीं थे केवल उपधारणा व अनुमान के आधार पर जमानत निरस्ती उचित नहीं मानी गई इस संबंध में न्याय दृष्टांत संजय विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2003 सी.आर.एल.जे. 2284 भी अवलोकनीय है।
17. न्याय दृष्टांत विक्की विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2003 सी.आर.एल.जे. 3457 के अनुसार अपराध गंभीर है सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है ये जमानत निरस्ती के आधार नहीं हो सकते है धारा 12 के 3 में से किसी आधार के होने पर ही जमानत निरस्त की जा सकती है।
इस तरह किसी भी ज्वेनाइल के जमानत आवेदन पर विचार करते समय यह स्थापित वैधानिक स्थिति ध्यान में रखना चाहिये कि धारा 12 अधिनियम, 2000 के अनुसार ज्वेनाइल की जमानत आज्ञापक या मेनडेटरी है एवं मामले के गुण दोष नहीं देखना चाहिये अपराध गंभीर है मात्र इस आधार पर जमानत निरस्ती उचित नहीं होती है बल्कि धारा 12 के परंतुक में बतलाये 3 में से किसी न किसी अपवाद की परिस्थितियाॅं पर ही जमानत निरस्त करना चाहिये जैसे यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हो कि ज्वेनाइल का जमानत पर छोड़ा जाना उसको ज्ञात अपराधी के सहचर्य में ला देगा या उसको नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगा या न्याय के उद्देश्य को विफल कर देगा तभी ज्वेनाइल का जमानत आवेदन निरस्त करना चाहिये।
ज्वेनाइल को न तो पुलिस लाॅक-अप में न ही जेल में रखना चाहिये बल्कि सम्प्रेक्षण गृह में ही भेजना चाहिये इस संबंध में धारा 10 का परंतुक हमेशा ध्यान में रखना चाहिये।
(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.
हमें म.प्र. किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम 2003 का नियम 9 और नियम 2007 का नियम 11 भी इस संबंध में ध्यान में रखना चाहिये।
नियम 9 (1) के अनुसार विधि संबंधी विरोध में किशोर को बोर्ड के समक्ष निम्नलिखित व्यक्तियों के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकेगा:-
ए. विशेष किशोर पुलिस इकाई के अधिकारीगण
बी. कोई पुलिस अधिकारी
सी. किशोर स्वयं
डी. एक मान्यता प्राप्त स्वेछिक संस्था जो ज्वेेेनाइल का दायित्व स्वेच्छा से स्वीकार करती है।
नियम 9 (2) के अनुसार जहां तक संभव हो उक्त अधिकारी गिरफ्तारी के समय को छोड़कर सादी वेश भूषा या सिविल डेªस पहनेंगे यूनिफार्म नहीं पहनेंगे परंतु जहां किशोर के हित में यूनिफार्म पहनना आवश्यक हो ऐसी विशेष परिस्थितियों में ही यूनिफार्म पहनेंगे साथ ही अपना परिचय पत्र साथ रखेंगे ताकि मांगने पर पेश कर सके।
बच्चों के मन में पुलिस को लेकर भय रहता है इसलिये सादी वेश भूषा या सिविल डेªस का नियम बनाया गया है जिसका पालन किया जाना चाहिये और बोर्ड को भी यह देखना चाहिये कि इस नियम का पालन हो रहा है।
नियम 9 (3) के अनुसार ऐसे पुलिस अधिकारी किशोर या बालक के मित्र की भूमिका निभायेंगे। सभी पुलिस अधिकारी किशोर की देख-भाल व संरक्षण के लिये उत्तरदायी होंगे और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ सहसंयोजन या काॅर्डीनेशन बना कर रखेंगे।
नियम 9 (4) के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता भी ज्वेनाइल के साथ मित्र की भूमिका निभायेंगे और उसके साथ संवेदनशील और मित्रवत तरीके से प्रारंभिक जांच के समय पेश आयेंगे।
नियम 9 (5) भी धारा 10 के समान है और इसमें ज्वेनाइल को पकड़े जाने के 24 घंटे के भीतर, यात्रा में लगे समय को छोड़कर बोर्ड के समक्ष पेश करने का नियम है साथ ही ज्वेनाइल को न तो पुलिस लाॅकअप और नही जेल में किसी भी दशा में रखने संबंधी स्पष्ट निर्देश है।
नियम 9 (6) के अनुसार विशेष किशोर पुलिस इकाई या अन्य प्रोडक्टिंग एजंेट किशोर को मजिस्टेªट या बोर्ड के मेम्बर के समक्ष पकड़े जाने के 24 घंटे के भीतर पेश करेगा और यदि इसमें कोई विलंब हुआ है तो जनरल डायरी में उसका विवरण लिखेगा प्रारंभिक जांच यथा संभव यथा शीध्र पूर्ण करना चाहिये और किशोर पर जांच में किसी तरह का स्टेªस या तनाव न आये इसकी सावधानी रखना चाहिये।
नियम 9 (7) के अनुसार किशोर को विलंब के बिना यह बतलाया जायेगा कि उसके विरूद्ध क्या आरोप है और ये उसकी भाषा में उसे समझाया जायेगा।
नियम 9 (8) के अनुसार पकड़े गये किशोर को सभी संभव सहायता इसलिये दिलायी जायेगी की वह अपने किसी व्यक्ति को बुलाने के अधिकार या उसे फोन करने के अधिकार का उपयोग कर सके।
नियम 9 (9) के अनुसार किशोर को संस्वीकृति या कथन देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा और उस पर किसी भी प्रकार का टाॅरचर या हरासमेंट उससे कोई सूचना लेने के लिये नहीं किया जायेगा।
नियम 9 (10) के अनुसार पकड़े जाने पर किशोर को पुलिस थाने के लाॅकअप में या जेल में प्रारंभिक जांच के समय नहीं रखा जायेगा उसकी बजाय न्यूनतम संभव समय जो कि 8 घंटे से अधिक का नहीं होगा उसे सुरक्षा के स्थान पर ले जाया जायेगा जैसे विशेष किशोर पुलिस इकाई या अन्य संस्था यदि उपलब्ध हो। यदि किशोर को विशेष किशोर पुलिस इकाई के अलावा अन्य स्थान पर रखा गया है तब उस स्थान के भारसाधक अधिकारी को इसकी सूचना तत्काल उस क्षेत्र के विशेष किशोर पुलिस इकाई को देना होगी। ऐसे सभी स्थान किशोरों के लिये मित्रवत वातावरण रखने वाले होंगे और इन स्थानों पर किशोरों के लिये ऐसी सभी सुविधाएं होंगी जो उनके लिए उचित हो।
नियम 9 (11) के अनुसार किशोर को उसके पोषण, मेडिकल और मूलभूत आवश्यकताओं के बारे में सभी सेवाएं उपलब्ध कराई जायेगी।
नियम 9 (12) के अनुसार विशेष किशोर पुलिस इकाई संबंधित प्रोबेशन आॅफिसर को फार्म नंबर 9 में किशोर के पकड़े जाने की जानकारी देंगे ताकि किशोर के पारिवारिक पृष्ठ भूमि और अन्य तात्विक परिस्थितियाॅं जो बोर्ड को जांच में उपयोगी और सहायक हो वे प्राप्त करने के लिये देंगे अर्थात प्रोबेशन आॅफिसर को किशोर के पकड़े जाने की जानकारी इसलिये दी जायेगी की वह किशोर संबंधी उक्त जानकारियाॅं एकत्रित कर सके।
नियम 9 (13) के अनुसार किशोर की पकड़े जाने की जानकारी फार्म नंबर 10 में उसके माता-पिता या विधिक पालक को डेजिगनेटेड बाल कल्याण अधिकारी देंगे किशोर से आगामी पूछताछ माता-पिता या पालक की उपस्थिति में सुनिश्चित करेंगे संबंधित अधिकारी उचित व्यक्ति जो सामाजिक कार्यकर्ता हो सकता है उसको आईडेंटीफाई करने का प्रयास करेंगे।
नियम 9 (14) के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता आदि किशोर के निवास और अपराध स्थल का निरीक्षण करंेगे और एक सामाजिक अनुसंधान रिपोर्ट तैयार करेंगे जिनमें वे परिस्थितियाॅं जिसमें किशोर ने अपराध किया और अपराध करने के संभावित कारण का उल्लेख होगा।
नियम 9 (15) के अनुसार किशोर को प्रस्तुत करने वाले अधिकारी बोर्ड को एक रिपोर्ट मय अनुसंशा कर देंगे जिसमें किशोर को एडमोनिशन के पश्चात् छोड़ने आदि बाते होगी।
नियम 9 (16) में उम्र की जांच के बारे में प्रावधान है।
नियम 11, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख व संरक्षण) नियम 2007 के अनुसार:-
1. जैसे ही विधि संबंधी विरोध में किशोर पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है संबंधित पुलिस अधिकारी इसकी सूचना:-
ए. डेजिगनेटेड बाल कल्याण अधिकारी को जो की निकटतम पुलिस थाने के हो देंगे ताकि वे मामले का प्रभार ले सके।
बी. माता-पिता या पालक को देंगे और उन्हें उस बोर्ड का पता जिसके सामने किशोर को पेश किया जाये और वह तारिख और समय जिस पर माता-पिता या पालक को बोर्ड के समक्ष पेश होना आवश्यक हो बतलाई जायेगी।
सी. संबंधित परिविक्षा अधिकारी को देंगे ताकि वे किशोर के सामाजिक पृष्ठ भूमि और अन्य तात्विक परिस्थितियां एकत्रित कर सके जो बोर्ड को जांच में सहायक हो।
नियम 11 (2) के अनुसार पकड़े जाने के तत्काल बाद ज्वेनाइल को बाल कल्याण अधिकारी के प्रभार में रखा जायेगा जो ज्वेनाइल को 24 घंटे के भीतर धारा 10 (1) के अनुसार बोर्ड के समक्ष पेश करेंगे और जहां ऐसे अधिकारी न हो या उपलब्ध न हो तब किशोर को पकड़े वाले पुलिस अधिकारी उसे बोर्ड के समक्ष पेश करेंगे।
नियम 11 (3) के अनुसार वह पुलिस अधिकारी जो किशोर को पकड़ता है उसे किसी भी दशा में लाॅकअप में नहीं रखेगा और न ही बाल कल्याण अधिकारी को प्रभार में देने में विलंब करेगा यदि ऐसा अधिकारी उपलब्ध हो।
नियम 11 (4) के अनुसार जिले के डेजिगनेटेड बाल कल्याण अधिकारी की एक सूची और उनके संपर्क नंबर सभी पुलिस थानों पर डिसप्ले किये जायेंगे।
नियम 11 (5) के अनुसार ज्वेनाइल के बारे में सर्वोत्तम उपलब्ध जानकारी एकत्रित करने के लिये बाल कल्याण अधिकारी ज्वेनाइल के माता-पिता या पालक से संपर्क करेंगे और उन्हें ज्वेनाइल द्वारा कानून तोड़ने के व्यवहार संबंधी तथ्य को अवगत करायेंगे।
नियम 11 (6) के अनुसार निकटतम पुलिस थाने की पुलिस या बाल कल्याण अधिकारी ज्वेनाइल की सामाजिक पृष्ठ भूमि और वे परिस्थितियाॅं जिसमें वह पकड़ा गया और उसने कथित अपराध केस डायरी के अनुसार किया लेखबद्ध करेंगे और उन्हें बोर्ड को अग्रसित करेंगे।
नियम 11 (7) के अनुसार निकटतम पुलिस थाने के पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी ज्वेनाइल को पकड़े की शक्तियों का प्रयोग तभी करेंगे जब उसने किसी एडलट के प्रति ऐसा गंभीर अपराध किया है जो 7 वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय है।
नियम 11 (8) के अनुसार जहां ज्वेनाइल का पकड़ा जाना उसके हित में दिखलाई देता हो तब पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी उसे बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेंगे और उसके साथ एक प्रतिवेदन भी देंगे ताकि बोर्ड नियम 13 (1) (बी) के अनुसार उचित आदेश कर सके।
नियम 11 (9) के अनुसार अन्य सभी मामलों में जहां अपराध गंभीर प्रकृति का न हो और जो वयस्क प्रति 7 वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो और किशोर का गिरफ्तार किया जाना उसके हित में न हो तब पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी किशोर के माता-पिता या पालक को अपराध किये जाने की सूचना देंगे और बोर्ड को किशोर के सामाजिक और आर्थिक पृष्ठ भूमि आदि सहित प्रतिवेदन देंगे।
नियम 11 (10) के अनुसार ऐसी परिस्थिति में जब बोर्ड की बैठक न हो ज्वेनाइल किसी एक बोर्ड के सदस्य के सामने पेश किया जायेगा जैसा की धारा 5 (2) में प्रावधान है।
नियम 11 (11) के अनुसार जहां ज्वेनाइल द्वारा किया गया अपराध गंभीर प्रकृति का न हो जैसे बलात्कार, हत्या या ऐसा अपराध जो उसने वयस्क के साथ संयुक्त रूप से किया हो तब पुलिस अधिकारी के लिये यह आवश्यक नहीं होगा कि वह एफ.आई.आर. दर्ज करे या चार्ज शीट पेश करे इसके स्थान पर साधारण मामले में पुलिस अधिकारी अपराध कारित करने की सूचना जनरल डेली डायरी में लिख लंेगे और एक रिपोर्ट के साथ बोर्ड को भेजेंगे।
नियम 11 (12) के अनुसार राज्य सरकार केवल ऐसी स्वेछिक संस्थाओं को मान्यता देंगे जो ज्वेनाइल के लिये सुरक्षित स्थान, काउंसलिंग, केसवर्क आदि सेवाएं उपलब्ध कराये और पुलिस और विशेष किशोर पुलिस इकाई के साथ मिलकर कार्य करे किशोर को बोर्ड के समक्ष पेश किया जाना उसकी सामाजिक अनुसंधान रिपोर्ट तैयार करना आदि में सहायता करे।
नियम 11 (13) भी इसी संबंध में है।
नियम 11 (14) के अनुसार जहां किसी ज्वेनाइल को बोर्ड के किसी एक सदस्य के सामने प्रस्तुत किया गया हो और कोई आदेश दिया गया हो तब बोर्ड की अगली मिटिंग में वह आदेश आवश्यक संशोधन के लिये रखा जाता है।
(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.
आज के विषय के संबंध में मुख्य रूप से इस अधिनियम की धारा 2 (डब्ल्यू), 10, 11, 12, 13 एवं 63 मुख्य रूप से ध्यान रखे जाने योग्य है। साथ ही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21, 22 धारा 57 दं.प्र.सं. भी विचार योग्य है।
अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नही।
अनुच्छेद 22 (2) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरूद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्टेªट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्टेªट के समक्ष पेश किया जायेगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्टेªट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिये अभिरक्षा में निरूद्ध नहीं रखा जायेगा।
धारा 57 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार भी कोई पुलिस अधिकारी वारंट के बिना गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उससे अधिक अवधि के लिये अभिरक्षा में निरूद्ध नहीं रखेगा जो उस मामले के सब परिस्थितियों में उचित है तथा ऐसी अवधि मजिस्टेªट के धारा 167 के अधीन विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्टेªट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कार 24 घंटे से अधिक की नहीं होगी।
उक्त प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के बाद यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्टेªट के समक्ष पेश किया जाना चाहिये और यह उस व्यक्ति का भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार भी है।
अधिनियम में इस संबंध में धारा 10 में प्रावधान है जो इस प्रकार हैः-
(1) जैसे ही विधि संबंधित विरोध में कोई किशोर या ज्वेनाइल काॅनफिलक्ट विद लाॅ पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है, उसे विशेष किशोर पुलिस इकाई या डेजिगनेटेड पुलिस अधिकारी के प्रभार के अधीन रखा जायेगा जो उसे बिना कोई समय गवाये किन्तु उस स्थान से जहां से किशोर को पकड़ा गया है बोर्ड तक की यात्रा में लगने वाले आवश्यक समय को छोड़कर उसे पकड़े जाने से 24 घंटे के भीतर बोर्ड के समक्ष पेश करेगा,
यह प्रावधान भी उक्त अनुच्छेद 22 और धारा 57 के समान है और किशोर को यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर बोर्ड के समक्ष पेश करने का प्रावधान करता है।
धारा 10 के परंतुक के अनुसार किसी भी दशा में विधि संबंधित विरोध में कोई किशोर पुलिस हवालात में नहीं रखा जायेगा या जेल नहीं भेजा जायेगा।
धारा 10 (2) के तहत राज्य सरकार को किशोर के सम्प्रेक्षण गृह में भेजने बावत् नियम बनाने की शक्ति दी गई है।
धारा 11 के अनुसार किशोर को जिस व्यक्ति के प्रभार में सौपा जाता है वह उस किशोर को उसी प्रकार रखेगा और भरण-पोषण करेगा जैसे माता-पिता करते है।
धारा 12 किशोर की जमानत के बारे में है जो महत्वपूर्ण है:-
(1) जब जमानतीय या गैर जमानतीय अपराध का कोई अभियुक्त व्यक्ति, और प्रकट रूप से कोई किशोर गिरफ्तार अथवा अवरूद्ध या हाजिर किया जाता है या किसी बोर्ड के समक्ष लाया जाता है तब ऐसा व्यक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होने के बावजूद प्रतिभू सहित अथवा रहित जमानत पर छोड़ दिया जायेगा या परिविक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षण में या किसी उचित संस्थान अथवा उचित व्यक्ति की संरक्षा में रखा जायेगा,
इस तरह धारा 12 (1) पर विचार करे तो यह किसी भी किशोर को जमानत पर छोड़ने के बारे में प्रावधान करती है इसके 3 अपवाद हैः-
(1) यदि यह विश्वास करने का कोई युक्तियुक्त आधार प्रतीत हो रहा हो कि किशोर का इस तरह जमानत पर छोड़ा जाना उसको किसी ज्ञात अपराधी के सहचर्य में ला देगा या
(2) उसको नैतिक शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगा या
(3) उसका जमानत पर छोड़ा जाना न्याय के उद्देश्य को विफल कर देगा।
उक्त 3 अपवादों में यदि किशोर का मामला आता है तभी उसे जमानत का लाभ नहीं दिया जाता है अन्य दशा में धारा 12 के अनुसार किशोर को जमानत पर रिहा करना आज्ञापक या मेनडेटरी है।
10 (2) के अनुसार यदि ऐसा व्यक्ति पुलिस द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है तो उसे तब तक सम्प्रेक्षण गृह में रखेगा जब तक उसे बोर्ड के समक्ष लाया जा न सके।
धारा 10 (3) के अनुसार बोर्ड भी यदि ऐसे व्यक्ति को जमानत पर नहीं छोड़ती है तो उसे सम्प्रेक्षण गृह में रखती है जेल में नहीं रखती हैं।
धारा 13 के अनुसार जब किसी किशोर को गिरफ्तार किया जाता है तब उसके माता-पिता या संरक्षक को गिरफ्तारी की सूचना दी जाती है और बोर्ड के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश भी दिया जाता है।
परिविक्षा अधिकारी को भी ऐसी गिरफ्तारी की सूचना इसलिये दी जाती है कि वे किशोर के पूर्व इतिहास परिवारिक पृष्ठ भूमि आदि की जानकारी एकत्रित करके बोर्ड के समक्ष रख सके।
धारा 2 (डब्ल्यू) में विशेष किशोर पुलिस इकाई की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसार धारा 63 के अंतर्गत किशोरों अथवा बालकों को संभालने के लिये राज्य द्वारा नाम निर्दिष्ट इकाई होती है।
धारा 63 के अनुसार ऐसी किशोर पुलिस इकाई के गठन आदि के बारे में प्रावधान है।
धारा 12 के परंतुक से यह स्पष्ट है कि किसी भी किशोर या विधि संबंधित विरोध में किशोर को पुलिस अभिरक्षा या न्यायिक अभिरक्षा में नहीं भेजना चाहिये बल्कि सम्प्रेक्षण गृह में रखना चाहिये।
इस संबंध में माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय एवं माननीय अन्य उच्च न्यायालय की कुछ प्रमुख वैधानिक स्थिति इस प्रकार है:-
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय
1. न्याय दृष्टांत हंसराज विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2005 (2) ए.एन.जे. (एम.पी.) 407 के अनुसार ज्वेनाइल की जमानत आज्ञापक या मेनडेटरी है जब तक की धारा 12 अधिनियम, 2000 में दर्शाई दशाएॅं स्थापित न हो जाये।
धारा 12 पर विचार करते समय हम 3 अपवाद देख चुके है यदि उनमें से कोई तथ्य स्थापित हो जाये तभी ज्वेनाइल की जमानत निरस्त की जा सकती है अन्यथा नहीं।
2. न्याय दृष्टांत गुड्डू विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (1) एम.पी.जे.आर. एस.एन. 35 के अनुसार धारा 12 अधिनियम के अनुसार ज्वेनाइल को जमानत पर रिहा करने संबंधी विचार करते समय मामले के गुण दोष को विचार में नहीं लेना चाहिये केवल धार 12 के क्रम में ही ज्वेनाइल की जमानत के बारे में विचार करना चाहिये।
3. न्याय दृष्टांत कपिल दुर्गवानी विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., आई.एल.आर. 2010 एम.पी. 2003 के अनुसार धारा 12 अधिनियम 2000 एवं धारा 18 एस.सी., एस.टी. एक्ट, 1989 दोनों प्रावधानों के क्षेत्र अलग-अलग है और धारा 12 अधिनियम 2000 धारा 18 अधिनियम 1989 पर अधिभावी प्रभाव नहीं रखती है।
4. न्याय दृष्टांत गिरीराज विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2006 (3) एम.पी.एल.जे. 325 में यह प्रतिपादित किया गया है कि ज्वेनाइल के जमानत में केवल धारा 12 में बतलाई दशाएॅं देखी जाना चाहिये दण्ड प्रक्रिया संहिता के जमानत के प्रावधान से ज्वेनाइल का जमानत आवेदन पत्र गर्वन नहीं होता है।
5. न्याय दृष्टांत हाकम विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., आई.एल.आर. 2011 एम.पी. 2237 के अनुसार ज्वेनाइल के जमानत आज्ञापक है जब तक की धारा 12 में बतलाये गये अपवाद न बनते हो मामला धारा 12 के 3 में से किसी अपवाद में नहीं आता है तो ज्वेनाइल जमानत का हकदार होता है।
6. न्याय दृष्टांत राहुल विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2011 (4) एम.पी.एच.टी. 113 के अनुसार ज्वेनाइल की जमानत अपराध की गंभीरता के आधार पर निरस्त नहीं की जा सकती जब तक की यह विश्वास करने के आधार नहीं हो कि जमानत देने पर ज्वेनाइल ज्ञात अपराधियों के संपर्क में आ सकता है मामले में न्याय दृष्टांत राजकुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2008 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 94 पर विश्वास किया गया और न्याय दृष्टांत राहुल मिश्रा विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2001 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 67 पर विचार किया गया जिसमें यह कहां गया था कि प्रार्थी के विरूद्ध कोई आपराधिक इतिहास नहीं है यह मानने के कोई आधार नहीं है कि ज्ञात अपराधियों के संपर्क में आ जायेगा।
7. न्याय दृष्टांत रितेश विरूद्ध स्टेट आॅफ एम.पी., 2011 (4) एम.पी.एल.जे. 226 में धारा 307 भा.दं.सं. एवं 25/27 आम्र्स एक्ट के मामले में परिविक्षा अधिकारी की रिपोर्ट और मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में अभियुक्त को जमानत का लाभ देना उचित माना गया।
अन्य उच्च न्यायालय
1. न्याय दृष्टांत नेसुल खातून विरूद्ध स्टेट आॅफ असम, 2011 सी.आर.एल.जे. 326 डी.बी. के अनुसार ज्वेनाइल के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह यह बतावे कि उसका जमानत देने के लिये मामला बनता है बल्कि यह गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के लिये आवश्यक है की वे यह बतावे की धारा 12 के परंतुक में बतलाई गई परिस्थितियाॅं मौजूद है इसलिये ज्वेनाइल को जमानत नहीं दी जाना चाहिये।
धारा 12 (1) की भाषा यह दर्शाती है कि ज्वेनाइल को जमानत देने से इंकार करने युक्तियुक्त आधार होना चाहिये ज्वेनाइल की अभिरक्षा उसके संरक्षण के लिये होना चाहिये दण्ड स्वरूप नहीं होना चाहिये।
इस मामले में ज्वेनाइल टी.बी. से कस्टेडी में मर गया था जबकि धारा 457, 380 भा.दं.सं. का मामला था।
2. न्याय दृष्टांत प्रहलाद गौर विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2009 सी.आर.एल.जे. 153 में यह प्रतिपादित किया गया है कि केवल एक बार ज्वेनाइल किन्ही ज्ञात अपराधियों की कंपनी में पाया गया धारा 12 के क्रम में इसे लगातार एसोसिएशन नहीं माना जा सकता इस आधार पर जमानत निरस्ती को उचित नहीं माना गया।
3. न्याय दृष्टांत रविउल इस्माइल विरूद्ध स्टेट एन.सी.टी. डेल्ही, 2007 सी.आर.एल.जे. 612 के अनुसार एन.डी.पी.एस. एक्ट के मामले में ज्वेनाइल को जमानत देने पर विचार के समय अनुसंधान के प्रतिवेदन में भी ऐसी कोई बात नहीं आई थी जो मामले के धारा 12 के अपवाद में लाती हो जमानत दिया जाना उचित माना गया।
4. न्याय दृष्टांत प्रकाश विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, 2006 सी.आर.एल.जे. 1373 के अनुसार बलात्कार के मामले में ज्वेनाइल को जमानत देते समय अपराध गंभीर है मात्र इस आधार पर जमानत निरस्त करना उचित नहीं है धारा 12 के परंतुक में बतलाये घटक यदि मौजूद हो तभी जमानत से इंकार किया जा सकता है।
संदर्भ में न्याय दृष्टांत विजेन्द्र कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2003 सी.आर.एल.जे. 4619, रंजीत सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ एच.पी., 2005 सी.आर.एल.जे. 972 भी अवलोकनीय है जिनमें यह प्रतिपादित किया गया है अपराध की गंभीरता जमानत निरस्त करने का आधार नहीं हो सकती धारा 12 के परंतुक के आधार होना चाहिये।
5. न्याय दृष्टांत विक्की सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ छत्तीसगढ़, 2006 सी.आर.एल.जे. 1892 के अनुसार ज्वेनाइल ज्ञात अपराधियों के साथ पाया गया जो डकैती की योजना बना रहे थे एक ज्वेनाइल के पास चाकू बरामद हुआ जिसका फल 8.5 इंच लम्बा था एक ज्वेनाइल के पास पिस्टन बरामद हुई इन तथ्यों से प्रथम दृष्ट्या ज्वेनाइल की आपराधिक मानसिकता प्रकट होती है और उनके माता-पिता का उन पर कोई नियंत्रण न होना प्रकट होता है ऐसे में उनकी जमानत निरस्त करना उचित माना गया।
6. न्याय दृष्टांत संदीप कुमार विरूद्ध स्टेट, 2005 सी.आर.एल.जे. 3182 के अनुसार 6 साल की लड़की से ज्वेनाइल ने उसी के घर में बलात्कार किया ज्वेनाइल पर उसके माता-पिता का कोई नियंत्रण नहीं होना सामाजिक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार पाया गया जमानत निरस्ती को उचित माना गया।
7. न्याय दृष्टांत जे.एफ. अहमद शेख विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, 2004 सी.आर.एल.जे. 3272 में यह प्रतिपादित किया गया है कि धारा 12 के प्रावधान को यांत्रिक तरीके से लागू नहीं किया जा सकता। अभियुक्त स्मगलिंग में लिप्त पाया गया उसका ऐसे ही गतिविधि के गैंग में जमानत पर रिहा हो जाने के बाद शामिल होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती जमानत निरस्ती उचित मानी गयी यह एन.डी.पी.एस. का मामला था।
8. न्याय दृष्टांत प्रवीण कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 200 के अनुसार ज्वेनाइल से वाणिज्य मात्रा में चरस बरामद हुई उसक जमानत आवेदन पत्र अधिनियम की धारा 12 के तहत विचार किया जाना चाहिये धारा 37 एन.डी.पी.एस. एक्ट विचार में नहीं लंेगंे क्योकि धारा 12 अधिनियम, 2000 का धारा 37 एन.डी.पी.एस. एक्ट पर ओवर राईडिंग इफेक्ट होगा क्योंकि धारा 12 में नाॅन-आॅपसेट क्लाॅस रखा गया है।
एन.डी.पी.एस. एक्ट वर्ष में 1985 में बना है जबकि जे.जे. एक्ट वर्ष में 2000 में बना है जहां दो इनएक्टमेंट में विरोध हो वहां बाद वाला इनएक्टमेंट प्रीवेल करेगा।
अभियुक्त प्रथम अपराधी था परिविक्षा अधिकारी की रिपोर्ट में अभियुक्त का पूर्व अपराधिक इतिहास नहीं था ज्ञात या अज्ञात अपराधी के सहचर्य में आने की संभावना भी रिपोर्ट में नहीं बतलाई थी ऐसे में ज्वेनाइल को जमानत दी गई।
9. न्याय दृष्टांत राम सजीवन विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 1121 के अनुसार सेशन जज ने हाई स्कूल की मार्कशीट पर अशिक्षित माता के कथनों के आधार पर अविश्वास किया जो समय की समझ रखने वाली नहीं थी सेशन जज ने मेडिकल राय को प्राथमिकता दी जो उचित नहीं माना गया। यदि सेशन जज हाई स्कूल के प्रमाण पत्र से संतुष्ट नहीं थे तो वे बोर्ड या स्कूल के अधिकारियों को समंन कर सकते थे।
10. न्याय दृष्टांत अमर दीप सिंह विरूद्ध स्टेट आॅफ राजस्थान, 2011 सी.आर.एल.जे. 1599 में धारा 447, 302 भा.दं.सं. के मामले में अपराध की गंभीरता के आधार पर धारा 12 का आवेदन निरस्त करना उचित नहीं माना गया और बेल आज्ञापक है यह बताया गया।
11. न्याय दृष्टांत मोहम्मद नबी विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 2828 के अनुसार छोटे विवाद में ज्वेनाइल को उसके पिता ने मृतक की हत्या के लिये उकसाया। दिन के समय ज्वेनाइल के पास ऐसा कोई तात्कालिक कारण नहीं था कि वह हत्या में प्रयुक्त हथियार अपने साथ रखता ज्वेनाइल ने ऐसे उकसाने पर यंत्रवत चाकू घोप कर मृतक की हत्या की गई यह तथ्य ज्वेनाइल के आपराधिक आशय व आपराधिक मानसिकता दर्शाता है पिता से सहचर्य में रहकर ज्वेनाइल और अपराध कर सकता है पिता उसके कल्याण और देखरेख मंे भी उचित व्यक्ति नहीं है आवेदन निरस्त किया गया था।
12. न्याय दृष्टांत मोनू उर्फ मोनी विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2011 सी.आर.एल.जे. 4496 में गैंग रेप का मामला था 14 वर्ष की अवयस्क लड़की के साथ अपराध हुआ था ज्वेनाइल अपराध के पीछे एक मास्टर माइंड था उसने कंट्री मेड पिस्टल की व्यवस्था की थी लड़की को गन पाइंट पर किडनेप किया था और अपने मित्रों के साथ मिलकर उसके साथ बलात्कार किया था यह अभियुक्त की टेण्डेंसी आॅफ क्रीमिनल प्राॅक्लिविटि व डिप्रिविड सेक्सवल बिहेवियर दर्शाता है जमानत निरस्त की गई।
13. न्याय दृष्टांत अनीश अंसारी विरूद्ध स्टेट आॅफ झारखण्ड, 2010 सी.आर.एल.जे. 1959 के अनुसार अभियुक्त ने निर्दयता की पराकाष्ठा दिखाई 15 वर्ष की लड़की के साथ गैंग रेप किया अभियुक्त ज्वेनाइल था यह पाया गया कि उसे जमानत पर रिहा करने से धारा 12 के परंतुक के अनुसार यह उसके नैतिक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने वाला है आवेदन निरस्त किया गया।
14. न्याय दृष्टांत मनोज कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ छत्तीसगढ़, 2006 सी.आर.एल.जे. 2299 में बलात्कार के मामले में पहले समझौता हुआ दो दिन बाद रिपोर्ट करवाई जब परिवादी की बहन और ज्वेनाइल के माता के बीच झगड़ा हुआ उसके बाद रिपोर्ट की गई मेडिकल रिपोर्ट भी अनिश्चित थी जमानत का लाभ दिया गया।
15. न्याय दृष्टांत नरेश विरूद्ध स्टेट आॅफ झारखण्ड, 2011 सी.आर.एल.जे. 3642 के अनुसार पक्षों के मध्य पूर्व रंजीश थी झूठा फसाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था हत्या का मामला था धारा 12 के अपवादों में मामला नहीं आता जमानत उचित मानी गई।
16. न्याय दृष्टांत अनिल कुमार विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2007 सी.आर.एल.जे. 200 के अनुसार धारा 12 के आधार नहीं थे केवल उपधारणा व अनुमान के आधार पर जमानत निरस्ती उचित नहीं मानी गई इस संबंध में न्याय दृष्टांत संजय विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2003 सी.आर.एल.जे. 2284 भी अवलोकनीय है।
17. न्याय दृष्टांत विक्की विरूद्ध स्टेट आॅफ यू.पी., 2003 सी.आर.एल.जे. 3457 के अनुसार अपराध गंभीर है सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है ये जमानत निरस्ती के आधार नहीं हो सकते है धारा 12 के 3 में से किसी आधार के होने पर ही जमानत निरस्त की जा सकती है।
इस तरह किसी भी ज्वेनाइल के जमानत आवेदन पर विचार करते समय यह स्थापित वैधानिक स्थिति ध्यान में रखना चाहिये कि धारा 12 अधिनियम, 2000 के अनुसार ज्वेनाइल की जमानत आज्ञापक या मेनडेटरी है एवं मामले के गुण दोष नहीं देखना चाहिये अपराध गंभीर है मात्र इस आधार पर जमानत निरस्ती उचित नहीं होती है बल्कि धारा 12 के परंतुक में बतलाये 3 में से किसी न किसी अपवाद की परिस्थितियाॅं पर ही जमानत निरस्त करना चाहिये जैसे यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हो कि ज्वेनाइल का जमानत पर छोड़ा जाना उसको ज्ञात अपराधी के सहचर्य में ला देगा या उसको नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगा या न्याय के उद्देश्य को विफल कर देगा तभी ज्वेनाइल का जमानत आवेदन निरस्त करना चाहिये।
ज्वेनाइल को न तो पुलिस लाॅक-अप में न ही जेल में रखना चाहिये बल्कि सम्प्रेक्षण गृह में ही भेजना चाहिये इस संबंध में धारा 10 का परंतुक हमेशा ध्यान में रखना चाहिये।
(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.
हमें म.प्र. किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) नियम 2003 का नियम 9 और नियम 2007 का नियम 11 भी इस संबंध में ध्यान में रखना चाहिये।
नियम 9 (1) के अनुसार विधि संबंधी विरोध में किशोर को बोर्ड के समक्ष निम्नलिखित व्यक्तियों के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकेगा:-
ए. विशेष किशोर पुलिस इकाई के अधिकारीगण
बी. कोई पुलिस अधिकारी
सी. किशोर स्वयं
डी. एक मान्यता प्राप्त स्वेछिक संस्था जो ज्वेेेनाइल का दायित्व स्वेच्छा से स्वीकार करती है।
नियम 9 (2) के अनुसार जहां तक संभव हो उक्त अधिकारी गिरफ्तारी के समय को छोड़कर सादी वेश भूषा या सिविल डेªस पहनेंगे यूनिफार्म नहीं पहनेंगे परंतु जहां किशोर के हित में यूनिफार्म पहनना आवश्यक हो ऐसी विशेष परिस्थितियों में ही यूनिफार्म पहनेंगे साथ ही अपना परिचय पत्र साथ रखेंगे ताकि मांगने पर पेश कर सके।
बच्चों के मन में पुलिस को लेकर भय रहता है इसलिये सादी वेश भूषा या सिविल डेªस का नियम बनाया गया है जिसका पालन किया जाना चाहिये और बोर्ड को भी यह देखना चाहिये कि इस नियम का पालन हो रहा है।
नियम 9 (3) के अनुसार ऐसे पुलिस अधिकारी किशोर या बालक के मित्र की भूमिका निभायेंगे। सभी पुलिस अधिकारी किशोर की देख-भाल व संरक्षण के लिये उत्तरदायी होंगे और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ सहसंयोजन या काॅर्डीनेशन बना कर रखेंगे।
नियम 9 (4) के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता भी ज्वेनाइल के साथ मित्र की भूमिका निभायेंगे और उसके साथ संवेदनशील और मित्रवत तरीके से प्रारंभिक जांच के समय पेश आयेंगे।
नियम 9 (5) भी धारा 10 के समान है और इसमें ज्वेनाइल को पकड़े जाने के 24 घंटे के भीतर, यात्रा में लगे समय को छोड़कर बोर्ड के समक्ष पेश करने का नियम है साथ ही ज्वेनाइल को न तो पुलिस लाॅकअप और नही जेल में किसी भी दशा में रखने संबंधी स्पष्ट निर्देश है।
नियम 9 (6) के अनुसार विशेष किशोर पुलिस इकाई या अन्य प्रोडक्टिंग एजंेट किशोर को मजिस्टेªट या बोर्ड के मेम्बर के समक्ष पकड़े जाने के 24 घंटे के भीतर पेश करेगा और यदि इसमें कोई विलंब हुआ है तो जनरल डायरी में उसका विवरण लिखेगा प्रारंभिक जांच यथा संभव यथा शीध्र पूर्ण करना चाहिये और किशोर पर जांच में किसी तरह का स्टेªस या तनाव न आये इसकी सावधानी रखना चाहिये।
नियम 9 (7) के अनुसार किशोर को विलंब के बिना यह बतलाया जायेगा कि उसके विरूद्ध क्या आरोप है और ये उसकी भाषा में उसे समझाया जायेगा।
नियम 9 (8) के अनुसार पकड़े गये किशोर को सभी संभव सहायता इसलिये दिलायी जायेगी की वह अपने किसी व्यक्ति को बुलाने के अधिकार या उसे फोन करने के अधिकार का उपयोग कर सके।
नियम 9 (9) के अनुसार किशोर को संस्वीकृति या कथन देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा और उस पर किसी भी प्रकार का टाॅरचर या हरासमेंट उससे कोई सूचना लेने के लिये नहीं किया जायेगा।
नियम 9 (10) के अनुसार पकड़े जाने पर किशोर को पुलिस थाने के लाॅकअप में या जेल में प्रारंभिक जांच के समय नहीं रखा जायेगा उसकी बजाय न्यूनतम संभव समय जो कि 8 घंटे से अधिक का नहीं होगा उसे सुरक्षा के स्थान पर ले जाया जायेगा जैसे विशेष किशोर पुलिस इकाई या अन्य संस्था यदि उपलब्ध हो। यदि किशोर को विशेष किशोर पुलिस इकाई के अलावा अन्य स्थान पर रखा गया है तब उस स्थान के भारसाधक अधिकारी को इसकी सूचना तत्काल उस क्षेत्र के विशेष किशोर पुलिस इकाई को देना होगी। ऐसे सभी स्थान किशोरों के लिये मित्रवत वातावरण रखने वाले होंगे और इन स्थानों पर किशोरों के लिये ऐसी सभी सुविधाएं होंगी जो उनके लिए उचित हो।
नियम 9 (11) के अनुसार किशोर को उसके पोषण, मेडिकल और मूलभूत आवश्यकताओं के बारे में सभी सेवाएं उपलब्ध कराई जायेगी।
नियम 9 (12) के अनुसार विशेष किशोर पुलिस इकाई संबंधित प्रोबेशन आॅफिसर को फार्म नंबर 9 में किशोर के पकड़े जाने की जानकारी देंगे ताकि किशोर के पारिवारिक पृष्ठ भूमि और अन्य तात्विक परिस्थितियाॅं जो बोर्ड को जांच में उपयोगी और सहायक हो वे प्राप्त करने के लिये देंगे अर्थात प्रोबेशन आॅफिसर को किशोर के पकड़े जाने की जानकारी इसलिये दी जायेगी की वह किशोर संबंधी उक्त जानकारियाॅं एकत्रित कर सके।
नियम 9 (13) के अनुसार किशोर की पकड़े जाने की जानकारी फार्म नंबर 10 में उसके माता-पिता या विधिक पालक को डेजिगनेटेड बाल कल्याण अधिकारी देंगे किशोर से आगामी पूछताछ माता-पिता या पालक की उपस्थिति में सुनिश्चित करेंगे संबंधित अधिकारी उचित व्यक्ति जो सामाजिक कार्यकर्ता हो सकता है उसको आईडेंटीफाई करने का प्रयास करेंगे।
नियम 9 (14) के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता आदि किशोर के निवास और अपराध स्थल का निरीक्षण करंेगे और एक सामाजिक अनुसंधान रिपोर्ट तैयार करेंगे जिनमें वे परिस्थितियाॅं जिसमें किशोर ने अपराध किया और अपराध करने के संभावित कारण का उल्लेख होगा।
नियम 9 (15) के अनुसार किशोर को प्रस्तुत करने वाले अधिकारी बोर्ड को एक रिपोर्ट मय अनुसंशा कर देंगे जिसमें किशोर को एडमोनिशन के पश्चात् छोड़ने आदि बाते होगी।
नियम 9 (16) में उम्र की जांच के बारे में प्रावधान है।
नियम 11, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख व संरक्षण) नियम 2007 के अनुसार:-
1. जैसे ही विधि संबंधी विरोध में किशोर पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है संबंधित पुलिस अधिकारी इसकी सूचना:-
ए. डेजिगनेटेड बाल कल्याण अधिकारी को जो की निकटतम पुलिस थाने के हो देंगे ताकि वे मामले का प्रभार ले सके।
बी. माता-पिता या पालक को देंगे और उन्हें उस बोर्ड का पता जिसके सामने किशोर को पेश किया जाये और वह तारिख और समय जिस पर माता-पिता या पालक को बोर्ड के समक्ष पेश होना आवश्यक हो बतलाई जायेगी।
सी. संबंधित परिविक्षा अधिकारी को देंगे ताकि वे किशोर के सामाजिक पृष्ठ भूमि और अन्य तात्विक परिस्थितियां एकत्रित कर सके जो बोर्ड को जांच में सहायक हो।
नियम 11 (2) के अनुसार पकड़े जाने के तत्काल बाद ज्वेनाइल को बाल कल्याण अधिकारी के प्रभार में रखा जायेगा जो ज्वेनाइल को 24 घंटे के भीतर धारा 10 (1) के अनुसार बोर्ड के समक्ष पेश करेंगे और जहां ऐसे अधिकारी न हो या उपलब्ध न हो तब किशोर को पकड़े वाले पुलिस अधिकारी उसे बोर्ड के समक्ष पेश करेंगे।
नियम 11 (3) के अनुसार वह पुलिस अधिकारी जो किशोर को पकड़ता है उसे किसी भी दशा में लाॅकअप में नहीं रखेगा और न ही बाल कल्याण अधिकारी को प्रभार में देने में विलंब करेगा यदि ऐसा अधिकारी उपलब्ध हो।
नियम 11 (4) के अनुसार जिले के डेजिगनेटेड बाल कल्याण अधिकारी की एक सूची और उनके संपर्क नंबर सभी पुलिस थानों पर डिसप्ले किये जायेंगे।
नियम 11 (5) के अनुसार ज्वेनाइल के बारे में सर्वोत्तम उपलब्ध जानकारी एकत्रित करने के लिये बाल कल्याण अधिकारी ज्वेनाइल के माता-पिता या पालक से संपर्क करेंगे और उन्हें ज्वेनाइल द्वारा कानून तोड़ने के व्यवहार संबंधी तथ्य को अवगत करायेंगे।
नियम 11 (6) के अनुसार निकटतम पुलिस थाने की पुलिस या बाल कल्याण अधिकारी ज्वेनाइल की सामाजिक पृष्ठ भूमि और वे परिस्थितियाॅं जिसमें वह पकड़ा गया और उसने कथित अपराध केस डायरी के अनुसार किया लेखबद्ध करेंगे और उन्हें बोर्ड को अग्रसित करेंगे।
नियम 11 (7) के अनुसार निकटतम पुलिस थाने के पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी ज्वेनाइल को पकड़े की शक्तियों का प्रयोग तभी करेंगे जब उसने किसी एडलट के प्रति ऐसा गंभीर अपराध किया है जो 7 वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय है।
नियम 11 (8) के अनुसार जहां ज्वेनाइल का पकड़ा जाना उसके हित में दिखलाई देता हो तब पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी उसे बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेंगे और उसके साथ एक प्रतिवेदन भी देंगे ताकि बोर्ड नियम 13 (1) (बी) के अनुसार उचित आदेश कर सके।
नियम 11 (9) के अनुसार अन्य सभी मामलों में जहां अपराध गंभीर प्रकृति का न हो और जो वयस्क प्रति 7 वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो और किशोर का गिरफ्तार किया जाना उसके हित में न हो तब पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी किशोर के माता-पिता या पालक को अपराध किये जाने की सूचना देंगे और बोर्ड को किशोर के सामाजिक और आर्थिक पृष्ठ भूमि आदि सहित प्रतिवेदन देंगे।
नियम 11 (10) के अनुसार ऐसी परिस्थिति में जब बोर्ड की बैठक न हो ज्वेनाइल किसी एक बोर्ड के सदस्य के सामने पेश किया जायेगा जैसा की धारा 5 (2) में प्रावधान है।
नियम 11 (11) के अनुसार जहां ज्वेनाइल द्वारा किया गया अपराध गंभीर प्रकृति का न हो जैसे बलात्कार, हत्या या ऐसा अपराध जो उसने वयस्क के साथ संयुक्त रूप से किया हो तब पुलिस अधिकारी के लिये यह आवश्यक नहीं होगा कि वह एफ.आई.आर. दर्ज करे या चार्ज शीट पेश करे इसके स्थान पर साधारण मामले में पुलिस अधिकारी अपराध कारित करने की सूचना जनरल डेली डायरी में लिख लंेगे और एक रिपोर्ट के साथ बोर्ड को भेजेंगे।
नियम 11 (12) के अनुसार राज्य सरकार केवल ऐसी स्वेछिक संस्थाओं को मान्यता देंगे जो ज्वेनाइल के लिये सुरक्षित स्थान, काउंसलिंग, केसवर्क आदि सेवाएं उपलब्ध कराये और पुलिस और विशेष किशोर पुलिस इकाई के साथ मिलकर कार्य करे किशोर को बोर्ड के समक्ष पेश किया जाना उसकी सामाजिक अनुसंधान रिपोर्ट तैयार करना आदि में सहायता करे।
नियम 11 (13) भी इसी संबंध में है।
नियम 11 (14) के अनुसार जहां किसी ज्वेनाइल को बोर्ड के किसी एक सदस्य के सामने प्रस्तुत किया गया हो और कोई आदेश दिया गया हो तब बोर्ड की अगली मिटिंग में वह आदेश आवश्यक संशोधन के लिये रखा जाता है।
(पी.के. व्यास)
विशेष कत्र्तव्यस्थ अधिकारी
न्यायिक अधि. प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान
उच्च न्यायालय जबलपुर म.प्र.
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