*वकीलों के लिए विज्ञापन एवं लुभावने इश्तेहार पर ऑनलाइन पोर्टलों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी किये*
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वकीलों के लिए विज्ञापन करने तथा लुभावने निवेदन करने वाले ऑनलाइन पोर्टलों को मंगलवार को अवमानना के नोटिस जारी किये। इस तरह की गतिविधियों से दूर रहने के उच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशानिर्देशों की अवहेलना करके ये ऑनलाइन पोर्टल वकीलों के लिए विज्ञापन और लुभावने इश्तेहार कर रहे थे। न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन ने वकील यश भारद्वाज की अवमानना याचिका पर जारी नोटिस में कहा, "प्रतिवादी संख्या एक से 15 तक को नोटिस। प्रतिवादी ये कारण बताएं कि रिट याचिका संख्या 23328 (एमबी)/2018 में 12 दिसम्बर 2019 के फैसले और आदेश पर अमल न करने के लिए उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाये।" अधिवक्ता कानून 1961 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा तैयार आचार संहिता के नियम 36 और 37 में वकीलों को अपने विज्ञापन करने, मुवक्किल खोजने के लिए दलालों का इस्तेमाल करने और लुभावने निवेदन करने से रोक है। हाईकोर्ट ने 'यश भारद्वाज बनाम भारत सरकार (रिट याचिका संख्या 23328/2018)' मामले में इन्हीं नियमों का हवाला देकर अंतरिम दिशानिर्देश जारी किये थे जिसके तहत 'माईएडवो', 'जस्टडायल' और 'लॉरेटो' आदि ऑनलाइन पोर्टलों को वकीलों की ओर से विज्ञापन करने एवं लुभावने इश्तेहार देने से रोक दिया था। दिसम्बर 2019 में जारी आदेश में कहा गया था, "हम इस बारे में अंतरिम आदेश जारी करते हैं कि संबंधित पक्ष बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 2, 36 और 37 का उल्लंघन नहीं करेंगे। नियम 36 के तहत वकीलों पर कुछ निश्चित प्रतिबंध लगाये गये हैं और ये सारे प्रतिबंध सभी संबंधित पक्षों पर अगली सुनवाई तक लागू रहेंगे। उन्हें बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों- 2, 36 और 37 का उल्लंघन करने वाली गतिविधियों से रोका जाता है।" याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि वकालत पेशा करने वालों द्वारा खुल्लमखुल्ला दिये जाने वाले विज्ञापनों पर अंकुश के लिए कोई नियम नहीं है, इसलिए वकील व्यक्तिगत तौर पर विज्ञापन का सहारा लेते हैं, जिसके कारण लोगों की नजरों में सम्पूर्ण वकील बिरादरी का सम्मान गिरता है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि इन वेबसाइटों/पोर्टलों के साथ सूचीबद्ध वकील उनके कर्मचारी नहीं हैं, क्योंकि यदि वे उनके कर्मचारी होते, तो वे वकालत पेशा करने के हकदार नहीं होते क्योंकि अधिवक्ता कानून की धारा 49(1)(सी) के तहत तैयार नैतिक आचार संहिता के नियम 49 के अनुसार ऐसा करना प्रतिबंधित है। साथ ही, पारिश्रमिक या इस तरह की किसी अन्य व्यवस्था को साझा करना भी प्रतिवादी संख्या दो के द्वारा अधिवक्ता कानून की धारा 49(1)(एएच) के तहत तैयार नियम 2 का उल्लंघन है। रिट याचिका की सुनवाई के दौरान, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अदालत को सूचित किया था कि याचिकाकर्ता की शिकायत की तहकीकात के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील सागर सिंह और राहुल कुमार पेश हुए थे।
https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/allahabad-hc-issues-contempt-notices-to-online-portals-doing-advertisements-soliciting-for-lawyers-152379
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वकीलों के लिए विज्ञापन करने तथा लुभावने निवेदन करने वाले ऑनलाइन पोर्टलों को मंगलवार को अवमानना के नोटिस जारी किये। इस तरह की गतिविधियों से दूर रहने के उच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशानिर्देशों की अवहेलना करके ये ऑनलाइन पोर्टल वकीलों के लिए विज्ञापन और लुभावने इश्तेहार कर रहे थे। न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन ने वकील यश भारद्वाज की अवमानना याचिका पर जारी नोटिस में कहा, "प्रतिवादी संख्या एक से 15 तक को नोटिस। प्रतिवादी ये कारण बताएं कि रिट याचिका संख्या 23328 (एमबी)/2018 में 12 दिसम्बर 2019 के फैसले और आदेश पर अमल न करने के लिए उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाये।" अधिवक्ता कानून 1961 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा तैयार आचार संहिता के नियम 36 और 37 में वकीलों को अपने विज्ञापन करने, मुवक्किल खोजने के लिए दलालों का इस्तेमाल करने और लुभावने निवेदन करने से रोक है। हाईकोर्ट ने 'यश भारद्वाज बनाम भारत सरकार (रिट याचिका संख्या 23328/2018)' मामले में इन्हीं नियमों का हवाला देकर अंतरिम दिशानिर्देश जारी किये थे जिसके तहत 'माईएडवो', 'जस्टडायल' और 'लॉरेटो' आदि ऑनलाइन पोर्टलों को वकीलों की ओर से विज्ञापन करने एवं लुभावने इश्तेहार देने से रोक दिया था। दिसम्बर 2019 में जारी आदेश में कहा गया था, "हम इस बारे में अंतरिम आदेश जारी करते हैं कि संबंधित पक्ष बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 2, 36 और 37 का उल्लंघन नहीं करेंगे। नियम 36 के तहत वकीलों पर कुछ निश्चित प्रतिबंध लगाये गये हैं और ये सारे प्रतिबंध सभी संबंधित पक्षों पर अगली सुनवाई तक लागू रहेंगे। उन्हें बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों- 2, 36 और 37 का उल्लंघन करने वाली गतिविधियों से रोका जाता है।" याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि वकालत पेशा करने वालों द्वारा खुल्लमखुल्ला दिये जाने वाले विज्ञापनों पर अंकुश के लिए कोई नियम नहीं है, इसलिए वकील व्यक्तिगत तौर पर विज्ञापन का सहारा लेते हैं, जिसके कारण लोगों की नजरों में सम्पूर्ण वकील बिरादरी का सम्मान गिरता है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि इन वेबसाइटों/पोर्टलों के साथ सूचीबद्ध वकील उनके कर्मचारी नहीं हैं, क्योंकि यदि वे उनके कर्मचारी होते, तो वे वकालत पेशा करने के हकदार नहीं होते क्योंकि अधिवक्ता कानून की धारा 49(1)(सी) के तहत तैयार नैतिक आचार संहिता के नियम 49 के अनुसार ऐसा करना प्रतिबंधित है। साथ ही, पारिश्रमिक या इस तरह की किसी अन्य व्यवस्था को साझा करना भी प्रतिवादी संख्या दो के द्वारा अधिवक्ता कानून की धारा 49(1)(एएच) के तहत तैयार नियम 2 का उल्लंघन है। रिट याचिका की सुनवाई के दौरान, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अदालत को सूचित किया था कि याचिकाकर्ता की शिकायत की तहकीकात के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील सागर सिंह और राहुल कुमार पेश हुए थे।
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