गंभीर एवं समाज के खिलाफ अपराध में पीड़ित और आरोपी के बीच समझौता प्राथमिकी/आरोप-पत्र निरस्त करने का वैध आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि जब कथित अपराध समाज के खिलाफ हो तथा जो निजी प्रकृति के न हो वैसे मामलों में आरोपी और पीड़ित के बीच किया गया समझौता प्राथमिकी निरस्त करने का वैध आधार नहीं हो सकता। इस मामले में आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहित की धारा 493 तथा दहेज निषेध कानून की धारा 3 और 4 के तहत आरोप दर्ज किये गये थे। न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने कहा कि यद्यपि अपराध नन-कंपाउंडेबल हैं फिर भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत ऐसे अपराधों में मुकदमों को निरस्त करने की उच्च न्यायालय की शक्तियां शीर्ष अदालत के विभिन्न फैसलों के आलोक में सुस्पष्ट है और इस मुद्दे का निर्धारण अब बाकी नहीं रहा है।
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