Sunday, 30 March 2014

पुनर्विलोकन (रिव्यु) S 114 O 47 CPC कब और कब नहीं ?

 पुनर्विलोकन (रिव्यु) S 114 O 47 CPC कब और कब नहीं ?

1.        सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 114 एवं आदेश 47 में पुनर्विलोकन के संबंध में प्रावधान किये गये हैं।

2.        आदेश 47 नियम 1 सीपीसी के अनुसार:- जो कोई व्यक्ति- (क) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी अपील अनुज्ञात है, किन्तु जिसकी कोई अपील नहीं की गयी है, (ख) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी अपील अनुज्ञात नहीं है, अथवा (ग) लघुवाद न्यायालय द्वारा किये गये निर्देश पर विनिश्चय से प्रथम- ऐसी नई और महत्वपूर्ण बात या साक्ष्य को पता चलने से जो सम्यक तत्परता के प्रयोग के पश्चात् उस समय जब डिक्री/आदेश पारित किया गया था उसके ज्ञान में नहीं था या उसके द्वारा पेश नहीं किया जा सकता था। द्वितीय- किसी भूल या गलती के कारण जो अभिलेख के देखने से ही प्रकट होती हो, तृतीय- किसी अन्य पर्याप्त कारण से पुनर्विलोकन के लिए आवेदन किया जा सकेगा।

3.        वर्ष 1976 के अधिनियम संख्या 104 की धारा 90 द्वारा (1.2.1977 से) नया स्पष्टीकरण अंतःस्थापित  किया है- यह तथ्य की किसी विधि -प्रश्न का विनिश्चय जिस पर न्यायालय का निर्णय आधारित है, किसी अन्य मामले में वरिष्ठ न्यायालय के पश्चातवर्ती विनिश्चय द्वारा उलट दिया गया है या उपान्तरित कर दिया गया है, उस निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आधार नहीं होगा।

4.        माननीय उच्चतम न्यायालय ने पुनर्विलोकन के तीन सिद्धांत प्रतिपादित किये हैं:-
    (1)    यदि निर्णय अभिलेख के मुख पर प्रकट त्रुटि द्वारा दूषित हो गया हो। प्रकट त्रुटि का अर्थ यह है कि तर्क-वितर्क लंबी पद्धति के अपनाये बिना, अभिलेख को केवल देखने मात्र से ही प्रकट हो जाती है।
    (2)    यदि कार्यवाही में गंभीर अनियमितता है, यथा नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन, तो पुनर्विलोकन का आवेदन ग्रहण किया जा सकता है।
    (3)    यदि तथ्य की किसी गलत धारणा के द्वारा कोई गलती/त्रुटि हो गई है, जिसे बनाये रखने पर न्याय की हत्या हो जावेगी, तो भी पुनर्विलोकन किया जा सकता है। इस संबंध में न्यायदृष्टांत एस.नागराज बनाम कर्नाटक राज्य, 1993 सप्लीमेंट (4) सु.को.के. 595 (जादूनाथ जेना बनाम बसुपुर पंचायत, ए.आई.आर 2004 उडीसा 81 (खंडपीठ) से उद्भुुत अवलोकनीय है।

5.        इस संबंध में न्यायदृष्टांत स्टेट आॅफ वेस्ट बंगाल बनाम कमल सेन गुप्ता (2008) 8 एस.सी.सी. 612  में बताया है कि - विधि की त्रुटि के आधार पर भी पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता है।

6.         इस संबंध में न्यायदृष्टांत श्रीमती सुशीला बनाम राजबीरसिंह व अन्य ए.आई.आरत्र 2007 एन.ओ.सी. 1870(एम.पी.) में बताया है कि- यदि पूर्णपीठ किसी फैसले को भी उलट दें, तब भी किसी आदेश का पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता, यदि विधि या गुणागुण पर भी किसी प्रकार की कोई गलती हो तो भी पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता।

7.        इस संबंध में न्यायदृष्टांत नरेनदास चिमनलाल पटेल(द्वारा विधिक प्रतिनिधि)ए.आई.आर 2008(गुजरात)135 में बताया है कि - यदि उच्च मंच (ीपहीमत वितनउ) के निर्णय को समझने की त्रुटि (मततवत वित नदकमतेजंदकपदह) रही हो, तो भी इस आधार पर किसी निर्णय का पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता।

8.        पुनर्विलोकन की व्याप्ति की सीमायें- साक्ष्य का पुनः मूल्यांकन नहीं - पुनर्विलोकन की व्याप्ति अपील की भांति व्यापक न होकर बहुत सीमित होती है और वह बताये गये आधारों पर ही किया जा सकता है। अभिलेख के देखने से प्रकट होने वाली भूल (त्रुटि) वह होती है, जो अभिलेख देखने मात्र से ही प्रकट हो जाये। जिस निष्कर्ष को गलत बताने के लिए सारे साक्ष्य का मूल्यांकन अपेक्षित हो, वह ऐसी भूल नहीं मानी जा सकती। तदानुसार पुनर्विलोकन में साक्ष्य का पुनः मूल्यांकन करके दिया गया नया निर्णय अपास्त किया गया। (ए.आई.आर. 1979 सु.को. 1047 तथा ए.आई.आर 1960 सु.को.137 अनुसरित) यह सुप्रतिष्ठित है कि पुनर्विलोकन कार्यवाही अपील के रूप में नही होती है और वह सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47, नियम 1 द्वारा विहित सीमा के भीतर होनी चाहिए। इस संबंध में न्यायदृष्टांत श्रीमती मीरा मांजा बनाम श्रीमती निर्मलाकुमारी चैधरी, 1994 उम.नि.सा. 517 अवलोकनीय है।

9.         पुनर्विलोकन की परिधि (धारा 114 तथा आदेश 41, नियम 1) जब कोई त्रुटि अभिलेख के मुख पर प्रकट न हो, तो उस निष्कर्ष पर गुणागुण पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता। (पैरा5) नया कथन जो द्वितीय अपील में नहीं उठाया गया, पुनर्विलोकन में पहली बार नहीं उठाया जा सकता (पैरा 6 व 8) इस संबंध में न्यायदृष्टांत श्रीनिरंजन सरकार ब. श्रीमती स्वप्नादास, ए.आई.आर 2001 गौहाटी 92 अवलोकनीय है।

10.        आदेश 47, नियम 1 की शर्तो के अनुसार निर्देश न्यायालय अपने पूर्वनिर्णय का पुनर्विलोकन कर सकता है, यदि वहाॅ अभिलेख के मुख पर कोई प्रकट त्रुटि हो। परन्तु आदेश की शुद्धता पर विचार नहीं किया जा सकता। इस संबंध में न्यायदृष्टांत जयचंद्र महामात्र ब. लैण्ड एक्वीजिशन आॅफिसर रायगढ, ए.आई.आर 2005 सु.केा. 4165 अवलोकनीय है।

11.        आवेदक के पुनर्विलोकन याचिका के रूप में गुणागुण पर नए सिरे से संपूर्ण मामले पर तर्क करने का अवसर चाहा-यह अनुज्ञेय नहीं है। इस संबंध में न्यायदृष्टांत। ए.आई.आर 1995 एस.सी. 455, ए.आईआर एस.सी. 1650, ए.आई.आर 2000 एस.सी. 85, (2005) 2 एस.सी.सी. 332 और (2005) 6 एस.सी.सी. 651 अनुसरित  आर.बी.ठक्कर एंड कंपनी (में) विरूद्ध शत्रुघन लालसिन्हा, 2010 (5) एम.पी.एच.टी 91 (सी.जी.) अवलोकनीय है।

12.        निर्णय में भूल या अभिलेख को देखने से ही प्रकट गलती को ठीक किया जा सकता है- गलत विनिश्चिय के लिए यह अनुज्ञेय नहीं है कि उसकी फिर से सुनवाई की जाये और उसे ठीक किया जाये।  (1997) 8 एस.सी.सी.715, अनुसरित। इस संबंध में न्यायदृष्टांत म.प्र. राज्य विरूद्ध एस.एस.भदौरिया, 2000(4) एम.पी.एच.टी. 263(खंड न्यायपीठ)त्र2001(1) एम.पी.एल.जे. 72 अवलोकनीय है। 

13.        कोई आदेश गलत होने से पुनर्विलोकन का आधार नहीं हो सकता-अभिलेख को देखते ही कोई प्रकट भूल या गलती नहीं बताई गयी- अतः पुनर्विलोकन का आवेदन खारिज किया गया। इस संबंध में न्यायदृष्टांत धर्माबाई ठाकुर (श्रीमती) विरूद्ध उषारानी दीक्षित (श्रीमती) 2004,(4)एम.पी.एच.टी. 417 अवलोकनीय है।

14.        आदेश 47 नियम 1, सि.प्र.सं. के अधीन शक्तियों का केवल भूलों को ठीक करने के लिए किया जाता है-जो अभिलेख को देखने से ही प्रकट होती है। 2000(4) एम.पी.एच.टी. 263(खंड न्यायपीठ) 2001(1) एम.पी.एल.जे.72 अवलंबित है।  इस संबंध में न्यायदृष्टांत  मदनसिंह विरूद्ध शांतिबाई 2005(1) एम.पी.एच.टी. 480 अवलोकनीय है। 

15.        पक्षकारों की गुणागुण पर सुनवाई करने के पश्चात् सिविल न्यायालय ने निर्णय और डिक्री पारित की थी- अभिलेख को देखने से ही प्रकट कोई गलती नहीं थी- अतः आदेश 47 नियम 1 सि.प्र.सं. के अधीन पुनर्विलोकन अधिकारित का प्रयोग कर सही नहीं की जा सकती थी- पुनरीक्षण मंजूर किया गया।  1997(89) ई.एल.टी.247(एस.सी.) और (1997) 8 एस.सी.सी. 715 अनुसरित करते हुए इस संबंध में न्यायदृष्टांत भारतसंघ विरूद्ध गोकुलचंद्र एंड संस (में) 2005(4) एम.पी.एच.टी. 145 अवलोकनीय है। 

16.        आदेश 47 नियम 1- पुनर्विलोकन गलत निष्कर्ष, पुनर्विलोकन किये जाने का आधार नहीं है-    अवैध या गलत निष्कर्ष, चाहे तथ्यों पर हो या विधि में हो- अतः आदेश 47 नियम 1 के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए आदेश को वापस लेने का भी कोई आधार नहीं है- पुनर्विलोकन फाईल करने का अधिकार, कानून की सृष्टि है- तथ्यों को देखने से ही गलती प्रकट होना अनिवार्य है, अन्यथा नहीं। इस संबंध में न्यायदृष्टांत संतोष कुमार वि0 शांतिबाई 2004(2) एम.पी.एच.टी. 32 अवलोकनीय है।


   

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