व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्त आरोपी
का परीक्षण 1⁄4धारा 313 दण्ड प्रक्रिया
संहिता1⁄2 उसकी अनुपस्थिति में करने
विषयक विधिक स्थिति क्या है?
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 313
प्रावधित करती है कि प्रत्येक विचारण में
अभियुक्त को व्यक्तिगत रूप से साक्ष्य में उसके
विरूद्ध प्रगट परिस्थितियों को स्पष्ट करने का
अवसर न्यायालय द्वारा दिया जाना चाहिए। जैसा
की धारा 313 में प्रावधित है, समंस मामले में
जहाॅं अभियुक्त को व्यक्तिगत उपस्थिति से
अभिमुक्ति दी गई है, वहां उसे ऐसे परीक्षण से
भी अभिमुक्ति दी जा सकेगी।
उक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि सामान्यतया
अभियुक्त की परीक्षा व्यक्तिगत रूप से की जानी
चाहिए। लेकिन वारंट मामले या सत्र मामले में
भी कभी-कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है
कि अभियुक्त अपने आप को न्यायालय के समक्ष
परीक्षण हेतु व्यक्तिशः उपस्थित करने में असमर्थ
हो। क्या ऐसी आपवादिक स्थितियों में अभियुक्त
का परीक्षण उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति के बिना
किया जा सकता है?
इस संबंध में विस्तृत प्रतिपादन माननीय सर्वोच्च
न्यायालय ने वासवराव एवं अन्य विरूद्ध
कर्नाटक राज्य एवं अन्य, ए.आई.आर. 2000
एस.सी. 3214 के मामले में किया है। माननीय
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यद्यपि सामान्य
नियम यह है कि अभियुक्त का परीक्षण व्यक्तिशः
किया जावे लेकिन यदि न्यायालय इस बारे में
संतुष्ट है कि अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष
उपस्थित होने में भारी भरकम व्यय करना होगा
अथवा वह शारीरिक निःशक्तता के कारण
लम्बी यात्रा करने में असमर्थ है या कोई अन्य
कठिनाई है, तो उन मामलों में जहां पहले से ही
अभियुक्त को व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्ति
को व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्ति दी गई है,
अभियुक्त की परीक्षा लिखित प्रश्नावली के द्वारा
की जा सकेगी। इस हेतु यह आवश्यक है कि
अभियुक्त की ओर से असमर्थता के आधार पर
शपथ पत्र समर्थित आवेदन पत्र न्यायालय के
समक्ष प्रस्तुत किया जाये जिसमें यह आश्वासन
भी हो कि व्यक्तिगत परीक्षण न होने पर उसके
हित प्रतिकूलतः प्रभावित नहीं होंगे और न ही
पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर वह इस बारे मे कोई
आपत्ति उठायेगा। न्यायालय द्वारा दी गई
प्रश्नावली पर अभियुक्त शपथ पत्र द्वारा समर्थित
उत्तर न्यायालय में प्रस्तुत कर सकेगा।
का परीक्षण 1⁄4धारा 313 दण्ड प्रक्रिया
संहिता1⁄2 उसकी अनुपस्थिति में करने
विषयक विधिक स्थिति क्या है?
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 313
प्रावधित करती है कि प्रत्येक विचारण में
अभियुक्त को व्यक्तिगत रूप से साक्ष्य में उसके
विरूद्ध प्रगट परिस्थितियों को स्पष्ट करने का
अवसर न्यायालय द्वारा दिया जाना चाहिए। जैसा
की धारा 313 में प्रावधित है, समंस मामले में
जहाॅं अभियुक्त को व्यक्तिगत उपस्थिति से
अभिमुक्ति दी गई है, वहां उसे ऐसे परीक्षण से
भी अभिमुक्ति दी जा सकेगी।
उक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि सामान्यतया
अभियुक्त की परीक्षा व्यक्तिगत रूप से की जानी
चाहिए। लेकिन वारंट मामले या सत्र मामले में
भी कभी-कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है
कि अभियुक्त अपने आप को न्यायालय के समक्ष
परीक्षण हेतु व्यक्तिशः उपस्थित करने में असमर्थ
हो। क्या ऐसी आपवादिक स्थितियों में अभियुक्त
का परीक्षण उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति के बिना
किया जा सकता है?
इस संबंध में विस्तृत प्रतिपादन माननीय सर्वोच्च
न्यायालय ने वासवराव एवं अन्य विरूद्ध
कर्नाटक राज्य एवं अन्य, ए.आई.आर. 2000
एस.सी. 3214 के मामले में किया है। माननीय
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यद्यपि सामान्य
नियम यह है कि अभियुक्त का परीक्षण व्यक्तिशः
किया जावे लेकिन यदि न्यायालय इस बारे में
संतुष्ट है कि अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष
उपस्थित होने में भारी भरकम व्यय करना होगा
अथवा वह शारीरिक निःशक्तता के कारण
लम्बी यात्रा करने में असमर्थ है या कोई अन्य
कठिनाई है, तो उन मामलों में जहां पहले से ही
अभियुक्त को व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्ति
को व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्ति दी गई है,
अभियुक्त की परीक्षा लिखित प्रश्नावली के द्वारा
की जा सकेगी। इस हेतु यह आवश्यक है कि
अभियुक्त की ओर से असमर्थता के आधार पर
शपथ पत्र समर्थित आवेदन पत्र न्यायालय के
समक्ष प्रस्तुत किया जाये जिसमें यह आश्वासन
भी हो कि व्यक्तिगत परीक्षण न होने पर उसके
हित प्रतिकूलतः प्रभावित नहीं होंगे और न ही
पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर वह इस बारे मे कोई
आपत्ति उठायेगा। न्यायालय द्वारा दी गई
प्रश्नावली पर अभियुक्त शपथ पत्र द्वारा समर्थित
उत्तर न्यायालय में प्रस्तुत कर सकेगा।
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