क्या धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के
प्रावधानों के अंतर्गत मजिस्टेंट के समक्ष
ऐसा व्यक्ति कथन लिपिबद्ध कराने का
अधिकार रखते हैं जो न तो अभियुक्त है
और न हीं पुलिस 1⁄4विवेचक1⁄2 पक्ष द्वारा
प्रयोजित है?
कई बार न्यायालय के समक्ष ऐसे व्यक्ति
उपस्थित होकर अपना कथन धारा 164 दण्ड
प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत लिपिबद्ध करने का
निवेदन करते हैं जो न तो अभियुक्त है और न
ही विवेचक पक्ष द्वारा उनके कथन लिपिबद्ध
करने हेतु प्रार्थना की गयी है। दण्ड प्रक्रिया
संहिता की धारा 164 के प्रावधानों के सहजदृश्य
अवलोकन से यह स्पष्ट नहीं होता है कि धारा
164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के
अंतर्गत स्वयं आरोपी के कथनों/ संस्वीकृति एवं
विवेचक पक्ष द्वारा अपेक्षित किसी व्यक्ति के
कथन के अतिरिक्त किसी अन्य पक्ष या व्यक्ति
के निवेदन पर मजिस्टेंट कथन लिपिबद्ध कर
सकता है या नहीं ?
इस विषय में अन्र्तवलित सभी आयामों को
दृष्टिगत रखते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्व
ारा न्याय दृष्टांत जोगेन्द्र नाहक विरूद्ध
उड़ीसा राज्य, 1⁄420001⁄2 1 एस.एस.सी. 272 में
धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की
व्याख्या करते हुए यह विधि प्रतिपादित की गई
है कि धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत
ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्टेंट के समक्ष कथन
लिपिबद्ध कराने की अधिकारिता प्राप्त नहीं है जो
न तो अभियुक्त है और ना ही अभियोजन पक्ष द्व
ारा प्रायोजित है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी व्यक्त
किया गया है कि ऐसे तीसरे पक्ष या व्यक्ति के
कथन लिपिबद्ध करने संबंधी अतिरिक्त कार्य का
बोझ मजिस्टेंट पर नहीं डाला जाना चाहिये तथा
ऐसे व्यक्ति के कथन दोनों में से किसी भी पक्ष
के निवेदन पर प्रकरण के विचारण के समय
संबंधित न्यायालय द्वारा लिपिबद्ध किये जा
सकते हैं।
प्रावधानों के अंतर्गत मजिस्टेंट के समक्ष
ऐसा व्यक्ति कथन लिपिबद्ध कराने का
अधिकार रखते हैं जो न तो अभियुक्त है
और न हीं पुलिस 1⁄4विवेचक1⁄2 पक्ष द्वारा
प्रयोजित है?
कई बार न्यायालय के समक्ष ऐसे व्यक्ति
उपस्थित होकर अपना कथन धारा 164 दण्ड
प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत लिपिबद्ध करने का
निवेदन करते हैं जो न तो अभियुक्त है और न
ही विवेचक पक्ष द्वारा उनके कथन लिपिबद्ध
करने हेतु प्रार्थना की गयी है। दण्ड प्रक्रिया
संहिता की धारा 164 के प्रावधानों के सहजदृश्य
अवलोकन से यह स्पष्ट नहीं होता है कि धारा
164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के
अंतर्गत स्वयं आरोपी के कथनों/ संस्वीकृति एवं
विवेचक पक्ष द्वारा अपेक्षित किसी व्यक्ति के
कथन के अतिरिक्त किसी अन्य पक्ष या व्यक्ति
के निवेदन पर मजिस्टेंट कथन लिपिबद्ध कर
सकता है या नहीं ?
इस विषय में अन्र्तवलित सभी आयामों को
दृष्टिगत रखते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्व
ारा न्याय दृष्टांत जोगेन्द्र नाहक विरूद्ध
उड़ीसा राज्य, 1⁄420001⁄2 1 एस.एस.सी. 272 में
धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की
व्याख्या करते हुए यह विधि प्रतिपादित की गई
है कि धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत
ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्टेंट के समक्ष कथन
लिपिबद्ध कराने की अधिकारिता प्राप्त नहीं है जो
न तो अभियुक्त है और ना ही अभियोजन पक्ष द्व
ारा प्रायोजित है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी व्यक्त
किया गया है कि ऐसे तीसरे पक्ष या व्यक्ति के
कथन लिपिबद्ध करने संबंधी अतिरिक्त कार्य का
बोझ मजिस्टेंट पर नहीं डाला जाना चाहिये तथा
ऐसे व्यक्ति के कथन दोनों में से किसी भी पक्ष
के निवेदन पर प्रकरण के विचारण के समय
संबंधित न्यायालय द्वारा लिपिबद्ध किये जा
सकते हैं।
यदि किसी व्यक्ति की झूँठी गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने पर दर्ज करवा दी गई है और उस व्यक्ति को पुलिस से भी खतरा है तो क्या वह व्यक्ति न्यायालय के समक्ष अपने कथन दर्ज करने का निवेदन नही कर सकता है ।
ReplyDeleteMere upar 363 366 6pocso A ki dhara lagi hai aur mai abhi bail par bahar hu sare gavah mere fevar me hai to ab kya hoga judge ka faisla kya hoga
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