Monday 3 March 2014

विद्युत अधिनियम 2003 के अंतर्गत मामलों का ऐसी लोक अदालत, विशेष न्यायाधीश नहीं हैं द्व ारा निपटारा?

क्या विद्युत अधिनियम 2003 के अंतर्गत
आने वाले आपराधिक मामलों का ऐसी
लोक अदालत, जिसके पीठासीन
अधिकारी विशेष न्यायाधीश नहीं हैं के द्व
ारा निपटारा किया जा सकता है?

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987
की धारा 19 1⁄451⁄2 यह प्रावधान करती है कि
लोक अदालत को उनके समक्ष लम्बित अथवा
उनके अधिकारिता के भीतर उत्पन्न किसी
ऐसे मामले, जो उनके समक्ष नहीं लाया गया
है का अवधारण करने और पक्षकारों के मध्य
समझौता करने की अधिकारिता होगी परन्तु
लोक अदालत को किसी ऐसे अपराध से
संबंधित किसी मामले या विषय के बारे में
कोई अधिकारिता नहीं होगी जो किसी विधि
के अधीन शमनीय अपराध नहीं है ।
दूसरे शब्दों में स्थानीय अधिकारिता के अधीन
रहते हुए लेाक अदालत को सभी सिविल
मामलों में एवं ऐसे अपराध के मामले में जो
शमनीय है अवधारण करने की अधिकारिता है

विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 154 1⁄4ं11⁄2
सर्वोपरीय खण्ड के साथ यह प्रावधान करती
है कि अधिनियम की धारा 135 से 139 के
अधीन दण्डनीय अपराध का विचारण मात्र
धारा 153 1⁄411⁄2 के तहत अधिसूचित विशेष
न्यायाधीश ही कर सकेेंगे । ऐसे विशेष
न्यायालय इस अधिनियम के अंतर्गत उक्त
अपराधों के मामलों के शीघ्र निराकरण के
आशय
से
राज्य
सरकार
अधिसूचना से गठित होंगे ।
द्वारा
जारी
इसके साथ ही विधिक सेवा प्राधिकरण
अधिनियम, 1987 की धारा 25 यह प्रावधान
करती है कि इस अधिनियम के प्रावधान
तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में या इस
अधिनियम से भिन्न किसी विधि के आधार पर
प्रभाव रखने वाली किसी लिखित में अंतर्विष्ट
उससे अंसगत किसी बात के होते हुए भी
प्रभावी होंगे । स्पष्ट है कि विधिक सेवा
प्राधिकरण के प्रावधान अन्य विधियों पर
अध्यारोही प्रभाव रखते हैं ।
विद्युत अधिनियम, 2003 में धारा 135 के
अधीन दण्डनीय अपराध धारा 152 के अनुसार
शमनीय अपराध है इसलिये लोक अदालत को
धारा 135 विद्युत अधिनियम के अपराध का ही
अवधारण करने की अधिकारिता हो सकती है
शेष अपराधों के संबंध में अधिकारिता नहीं हो
सकती क्यांेकि वे शमनीय नहीं है ।
विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 174 में
भी यह प्रावधान हैं कि इस अधिनियम के
प्रावधान तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि
में या इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि के
आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखित
में अन्तर्विष्ट उससे असंगत किसी बात के
होते हुए भी प्रभावी होंगे । इस प्रकार विद्युत
अधिनियम, 2003 के प्रावधान भी अन्य विधियों
के असंगत प्रावधानों पर अध्यारोही प्रभाव
रखते हैं ।
विद्युत
अधिनियम
2003,
विधिक
सेवा
प्राधिकरण अधिनियम 1987 से पश्चात का है
। ऐसी स्थिति में यदि विधिक सेवा प्राधिकरण
अधिनियम में यदि विद्युत अधिनियम 2003 से
असंगत कोई प्रावधान है तो उनके स्थान पर
विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधान प्रभावी
होेंगे।
परंतु उपरोक्त संदर्भ में उपरोक्त विधानों के
अंतर्गत कोई असंगत या विरोधाभास पूर्ण
प्रावधान नहीं है साथ ही दोनों विधानों के
अंतर्गत उक्त प्रावधानों के उददेश्यों में भी
कोई विसंगति न होकर समानता है ।
विद्युत अधिनियम की धारा 153 1⁄4ंप1⁄2 के अंतर्गत
विशेष न्यायालय गठित करने का उददेश्य
शीघ्र विचारण
;ैचममकल ज्तपंस द्ध
बताया गया है
। लोक अदालत द्वारा शमनीय अपरापध के
मामले के आधार पर मामले का निराकरण
इस उददेश्य की ही पूर्ति करता है।
विशेष न्यायालय को एक मात्र विचारण का
अनन्य क्षेत्राधिकार है । जबकि लोक अदालतों
को सभी शमनीय अपराधों का शमन के
आधार पर निराकरण करने की अधिकारिता है
चाहे वे अपराध किसी भी न्यायालय द्वारा
विचारणीय हो । विचारण करने वाले
न्यायालय चाहे सामान्य न्यायालय जो द.प्र.सं
में परिभाषित है या विशेष अधिनियम द्वारा
परिभाषित व गठित न्यायालय हो, उससे लोक
आदालतों को धारा 191⁄4ं51⁄2 विधिक सेवा
प्राधिकरण अधिनियम 1987 के प्रावधानों पर
कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
फलतः विद्युत अधिनियम, 2003 में चाहे
विचारण का एक मात्र अधिकार विशेष
न्यायाधीश को ही हो तो भी लोक अदालत
शमनीय मामलों का समझौते के आधार पर
निराकरण कर सकेगी ।
इसके अतिरिक्त यदि हम विद्युत अधिनियम
2003 की धारा 152 का परिशीलन करे तो
स्पष्ट है कि शमनीय अपराध में न्यायालय की
कोई भूमिका नहीं है । शमन करने की
अधिकारिता
न्यायालय
को
नहीं
अपितु
समुचित सरकार अथवा उनके द्वारा नियुक्त
अधिकारी को है। यदि उसने अभियुक्त से
धारा 1521⁄4ं11⁄2 में निर्धारित राशि ले ली तो
प्रक्रिया स्वमेव समाप्त हो जावेगी और इसका
प्रभाव दोष मुक्ति का होगा । समझौता
स्वीकार करने या न करने में विचारण
न्यायालय की भूमिका नहीं रखी गई है ।
ऐसी स्थिति में यदि लोक अदालत समझौते
के लिये प्रेरित करती है और ऐसी प्रेरणा से
समझौता हो जाता है तो 1521⁄4ं21⁄2 विद्युत
अधिनियम के तहत मामले के विचारण की
प्रक्रिया स्वमेव समाप्त हो जाने का प्रभाव
रखेगी ।
इसलिये भी यह कहा जा सकता है कि विशेष
न्यायालय और लोक अदालत के क्षेत्राधिकार
विरोधाभास नहीं है । विद्युत अधिनियम 2003
की धारा 135 के अपराधों का लोक
अदालत द्वारा समझौते के आधार पर
निराकरण किया जाना विधि अनूकूल है ।

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