बच्चों के यौन उत्पीड़न एवं बलात्संग के
प्रकरणों में साक्ष्य लिपिबद्ध किये जाने हेतु
क्या सावधानियां अपेक्षित हैं ?
न्याय दृष्टांत साक्षी विरूद्ध भारत संघ एवं
अन्य, ए.आई.आर 2004 सु.को. 3566 में
बच्चों के यौन उत्पीड़न या बलात्संग के मामलों
के संबंध में यह मत व्यक्त किया गया है कि
ऐसे प्रकरणों मे अभियुक्त की दृष्टि मात्र ही
पीडि़त या साक्षी के मन में अत्यधिक भय उत्पन्न
कर सकती हैं और ऐसी दशा में यह संभव है
कि पीडि़त या साक्षी घटना का पूर्ण विवरण न
दे सके और उस दशा में न्याय का हनन हो
सकता है अतः ऐसे प्रकरणों के विचारण के लिये
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्न निर्देश दिये गये है-
ताकि पीडि़त और साक्षी आरोपी का शरीर या
चेहरा न देख पाए।
को दिये जाने चाहिए जो न्यायालय द्वारा पीडि़त
या साक्षी के समक्ष स्पष्ट भाषा में और इस
प्रकार रखें जाएंगे जिससे उन्हें शर्मिदंगी न हो।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उक्त न्याय दृष्टांत
में यह भी व्यक्त किया गया कि उक्त वर्णित
निर्देश उन निर्देशांे के अतिरिक्त है जो उच्चतम
न्यायालय द्वारा पंजाब राज्य विरूद्ध गुरमीत
सिंह, ए.आई.आर., 1996 सु.को. 1393 के
प्रकरण में दिये गये हैं।
प्रकरणों में साक्ष्य लिपिबद्ध किये जाने हेतु
क्या सावधानियां अपेक्षित हैं ?
न्याय दृष्टांत साक्षी विरूद्ध भारत संघ एवं
अन्य, ए.आई.आर 2004 सु.को. 3566 में
बच्चों के यौन उत्पीड़न या बलात्संग के मामलों
के संबंध में यह मत व्यक्त किया गया है कि
ऐसे प्रकरणों मे अभियुक्त की दृष्टि मात्र ही
पीडि़त या साक्षी के मन में अत्यधिक भय उत्पन्न
कर सकती हैं और ऐसी दशा में यह संभव है
कि पीडि़त या साक्षी घटना का पूर्ण विवरण न
दे सके और उस दशा में न्याय का हनन हो
सकता है अतः ऐसे प्रकरणों के विचारण के लिये
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्न निर्देश दिये गये है-
(1) पीडि़त और साक्षी तथा आरोपी के मध्य पर्दा
या अन्य कोई ऐसा साधन प्रयुक्त किया जाएताकि पीडि़त और साक्षी आरोपी का शरीर या
चेहरा न देख पाए।
(2) प्रतिपरीक्षण में घटना से प्रत्यक्षतः संबंधित
प्रश्न लिखकर न्यायालय के पीठासीन अधिकारीको दिये जाने चाहिए जो न्यायालय द्वारा पीडि़त
या साक्षी के समक्ष स्पष्ट भाषा में और इस
प्रकार रखें जाएंगे जिससे उन्हें शर्मिदंगी न हो।
(3) ऐसे साक्षियों को आवश्यकतानुसार कथन के
मध्य विश्राम भी दिया जाना चाहिए।सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उक्त न्याय दृष्टांत
में यह भी व्यक्त किया गया कि उक्त वर्णित
निर्देश उन निर्देशांे के अतिरिक्त है जो उच्चतम
न्यायालय द्वारा पंजाब राज्य विरूद्ध गुरमीत
सिंह, ए.आई.आर., 1996 सु.को. 1393 के
प्रकरण में दिये गये हैं।
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