क्या धारा 173, दण्ड प्रक्रिया संहिता के
अन्तर्गत पुलिस प्रतिवेदन 1⁄4अभियोग पत्र या
प्रतिवेदन1⁄2 प्रस्तुत हो जाने पर भी न्यायिक
मजिस्टेंट द्वारा पुलिस को अग्रिम अनुसंधान
के लिये आदेश दिया जा सकता है?
इस संबंध में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8) विचारणीय है, जो इस प्रकार हैः-
’’इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे
में उपधारा (2) के अधीन मजिस्टेंट को रिपोर्ट
भेज दी जाने के पश्चात आगे और अन्वेषण को
प्रवरित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा
जहां ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक
अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या
दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहां वह ऐसे साक्ष्य के
संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टें मजिस्टेंट
को विहित प्रारूप में भेजेगा, और उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टो के
बारे में जहां तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे
वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के
संबंध में लागू होते है।
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय
दृष्टांत रामलाल नारंग विरूद्ध राज्य 1⁄4देहली
प्रशासन1⁄2, ए.आई.आर. 1979 सु.को. 1791 में
यह व्यक्त किया गया है कि अभियोजन पक्ष और
प्रतिरक्षा पक्ष दोनों के ही यह हित में है कि
पुलिस के पास अग्रिम अनुसंधान हेतु एवं पूरक
प्रतिवेदन प्रस्तुति हेतु शक्तियां हों। मजिस्टेंट द्व
ारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के
अंतर्गत प्रस्तुत पुलिस प्रतिवेदन के आधार पर
अपराध का संज्ञान ले लिये जाने पर भी पुलिस
का आगामी अनुसंधान का अधिकार समाप्त नहीं
होता है एवं नवीन सूचना प्रकाश में आने पर
पुलिस उक्त अधिकार का प्रयोग
आवश्यकतानुसार कर सकती है तथा ऐसा करने
के लिये न्यायालय से औपचारिक अनुमति लेते
हुए न्यायालय के प्रति पुलिस अपना सम्मान
व्यक्त कर सकती है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत कश्मीरी
देवी विरूद्ध देहली प्रशासन, ए.आई.आर.
1988 सु.को. 1323 में आरोपी की पुलिस
अभिरक्षा में हुई मृत्यु के प्रकरण में किये गये
दूषित एवं पक्षपातपूर्ण अनुसंधान उपरांत अभियोग
पत्र प्रस्तुत होने संबंधी तथ्यों को दृष्टिगत रखते
हुए संबंधित मजिस्टेंट, जिसके समक्ष अभियोग
पत्र प्रस्तुत हुआ था को यह निर्देश दिया गया
कि वह धारा 173 (8) दण्ड प्रक्रिया संहिता के
अंतर्गत प्रदत्त की गई अपनी शक्तियों का प्रयोग
करते हुए केन्द्रीय अन्वेषण विभाग 1⁄4सी.बी.आई.1⁄2
को उचित रूप से अनुसंधान का आदेश दे।
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय
दृष्टांत श्री भगवान श्रीपदा वल्लभ वेकंट
विश्वान्दधा महाराज विरूद्ध आंध्रप्रदेश राज्य
एवं अन्य, 1999 क्रि.जा.ज. 3661 सु.को. में
व्यक्त किया गया है कि पुलिस द्वारा अंतिम
प्रतिवेदन 1⁄4थ्पदंस त्मचवतज1⁄2 प्रस्तुत कर दिये जाने
पर भी मजिस्टेंट संबंधित आरोपी को सुनवाई का
अवसर दिये बिना धारा 173 (8) दण्ड प्रक्रिया
संहिता के अंतर्गत आगामी अनुसंधान के लिये
आदेश दे सकता है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत
संघ लोक सेवा आयोग विरूद्ध एस.
पपैया एवं अन्य, (1997) 7 एस.सी.सी. 614
भी अवलोकनीय है।
इसी प्रकार न्याय दृष्टांत हेमन्त धस्माना
विरूद्ध केन्द्रीय अन्वेषण विभाग 1⁄4ब्ण्ठण्प्ण्1⁄2
2001 क्रि.ला.ज. 4190, सु.को. में भी उच्च्तम
न्यायालय द्वारा यह विनिश्चिय किया गया है कि
यद्यपि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8) में
उप धारा (2) के अंतर्गत प्रतिवेदन प्रस्तुति
उपरांत भी न्यायालय द्वारा पुलिस को आगामी
अनुसंधान के लिये निर्देशित किये जाने की
शक्ति का विनिर्दिष्टतः उल्लेख नहीं है तथापि
न्यायालय द्वारा पुलिस को दण्ड प्रक्रिया संहिता
की धारा 173 (8) के अंतर्गत आगामी अनुसंधान
के लिये आदेश दिया जा सकता है।
न्याय दृष्टांत पन्नालाल विरूद्ध डा. वीरभान
1992 जे.एल.जे. 327 में म.प्र. उच्च न्यायालय
खण्ड पीठ द्वारा यह विनिश्चित किया गया है
कि अभियोग पत्र पुस्तुति उपरांत पुनः अन्वेषण
का आदेश देने के लिये न्यायालय के समक्ष ठोस
नवीन तथ्य, आधार या अतिरिक्त साक्ष्य उपलब्ध
होना आवश्यक है।
उक्त न्याय दृष्टांतों में प्रतिपादित विधि एवं दण्ड
प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8) के आलोक
में यह स्पष्ट है कि न्यायालय को नवीन सारवानअन्तर्गत पुलिस प्रतिवेदन 1⁄4अभियोग पत्र या
प्रतिवेदन1⁄2 प्रस्तुत हो जाने पर भी न्यायिक
मजिस्टेंट द्वारा पुलिस को अग्रिम अनुसंधान
के लिये आदेश दिया जा सकता है?
इस संबंध में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8) विचारणीय है, जो इस प्रकार हैः-
’’इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे
में उपधारा (2) के अधीन मजिस्टेंट को रिपोर्ट
भेज दी जाने के पश्चात आगे और अन्वेषण को
प्रवरित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा
जहां ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक
अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या
दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहां वह ऐसे साक्ष्य के
संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टें मजिस्टेंट
को विहित प्रारूप में भेजेगा, और उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टो के
बारे में जहां तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे
वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के
संबंध में लागू होते है।
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय
दृष्टांत रामलाल नारंग विरूद्ध राज्य 1⁄4देहली
प्रशासन1⁄2, ए.आई.आर. 1979 सु.को. 1791 में
यह व्यक्त किया गया है कि अभियोजन पक्ष और
प्रतिरक्षा पक्ष दोनों के ही यह हित में है कि
पुलिस के पास अग्रिम अनुसंधान हेतु एवं पूरक
प्रतिवेदन प्रस्तुति हेतु शक्तियां हों। मजिस्टेंट द्व
ारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के
अंतर्गत प्रस्तुत पुलिस प्रतिवेदन के आधार पर
अपराध का संज्ञान ले लिये जाने पर भी पुलिस
का आगामी अनुसंधान का अधिकार समाप्त नहीं
होता है एवं नवीन सूचना प्रकाश में आने पर
पुलिस उक्त अधिकार का प्रयोग
आवश्यकतानुसार कर सकती है तथा ऐसा करने
के लिये न्यायालय से औपचारिक अनुमति लेते
हुए न्यायालय के प्रति पुलिस अपना सम्मान
व्यक्त कर सकती है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत कश्मीरी
देवी विरूद्ध देहली प्रशासन, ए.आई.आर.
1988 सु.को. 1323 में आरोपी की पुलिस
अभिरक्षा में हुई मृत्यु के प्रकरण में किये गये
दूषित एवं पक्षपातपूर्ण अनुसंधान उपरांत अभियोग
पत्र प्रस्तुत होने संबंधी तथ्यों को दृष्टिगत रखते
हुए संबंधित मजिस्टेंट, जिसके समक्ष अभियोग
पत्र प्रस्तुत हुआ था को यह निर्देश दिया गया
कि वह धारा 173 (8) दण्ड प्रक्रिया संहिता के
अंतर्गत प्रदत्त की गई अपनी शक्तियों का प्रयोग
करते हुए केन्द्रीय अन्वेषण विभाग 1⁄4सी.बी.आई.1⁄2
को उचित रूप से अनुसंधान का आदेश दे।
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय
दृष्टांत श्री भगवान श्रीपदा वल्लभ वेकंट
विश्वान्दधा महाराज विरूद्ध आंध्रप्रदेश राज्य
एवं अन्य, 1999 क्रि.जा.ज. 3661 सु.को. में
व्यक्त किया गया है कि पुलिस द्वारा अंतिम
प्रतिवेदन 1⁄4थ्पदंस त्मचवतज1⁄2 प्रस्तुत कर दिये जाने
पर भी मजिस्टेंट संबंधित आरोपी को सुनवाई का
अवसर दिये बिना धारा 173 (8) दण्ड प्रक्रिया
संहिता के अंतर्गत आगामी अनुसंधान के लिये
आदेश दे सकता है। इस संबंध में न्याय दृष्टांत
संघ लोक सेवा आयोग विरूद्ध एस.
पपैया एवं अन्य, (1997) 7 एस.सी.सी. 614
भी अवलोकनीय है।
इसी प्रकार न्याय दृष्टांत हेमन्त धस्माना
विरूद्ध केन्द्रीय अन्वेषण विभाग 1⁄4ब्ण्ठण्प्ण्1⁄2
2001 क्रि.ला.ज. 4190, सु.को. में भी उच्च्तम
न्यायालय द्वारा यह विनिश्चिय किया गया है कि
यद्यपि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8) में
उप धारा (2) के अंतर्गत प्रतिवेदन प्रस्तुति
उपरांत भी न्यायालय द्वारा पुलिस को आगामी
अनुसंधान के लिये निर्देशित किये जाने की
शक्ति का विनिर्दिष्टतः उल्लेख नहीं है तथापि
न्यायालय द्वारा पुलिस को दण्ड प्रक्रिया संहिता
की धारा 173 (8) के अंतर्गत आगामी अनुसंधान
के लिये आदेश दिया जा सकता है।
न्याय दृष्टांत पन्नालाल विरूद्ध डा. वीरभान
1992 जे.एल.जे. 327 में म.प्र. उच्च न्यायालय
खण्ड पीठ द्वारा यह विनिश्चित किया गया है
कि अभियोग पत्र पुस्तुति उपरांत पुनः अन्वेषण
का आदेश देने के लिये न्यायालय के समक्ष ठोस
नवीन तथ्य, आधार या अतिरिक्त साक्ष्य उपलब्ध
होना आवश्यक है।
उक्त न्याय दृष्टांतों में प्रतिपादित विधि एवं दण्ड
प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8) के आलोक
तथ्यों का अतिरिक्त साक्ष्य प्रकट होने पर
अभियोग पत्र प्रस्तुत हो जाने के उपरांत भी
पुलिस को अतिरिक्त या पुनः अनुसंधान करने के
लिये आदेश देने की अधिकारिता प्राप्त है।
Shree Maan..ji.ko...Namste....Ad.VINOD MEENA.... Mahidpurroad... Teh...Mahidpur.. Dist..Ujjain..se....
ReplyDeleteShree Maan..ji.ko...Namste....Ad.VINOD MEENA.... Mahidpurroad... Teh...Mahidpur.. Dist..Ujjain..se....
ReplyDelete