Monday, 3 March 2014

क्या बाल साक्षी को शपथ दिलाया जाना आवश्यक है ?

बाल साक्षी के कथन लिपिबद्ध करते समय
न्यायालय द्वारा क्या प्रक्रिया अपनाया जाना
अपेक्षित है ? क्या बाल साक्षी को शपथ
दिलाया जाना आवश्यक है ?

धारा 118, भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार
बाल साक्षी यदि उसके पूछे गये प्रश्न की प्रकृति
समझता है एवं उनके तार्किक उत्तर देता है तब
वह साक्ष्य देने के लिये समक्ष होगा। अतः
न्यायालय के समक्ष किसी बाल साक्षी के कथन
हेतु उपस्थित होने पर यथोचित प्रारंभिक
जांचकर यह समाधान लेखबद्ध करना होगा कि
साक्षी उससे पूछे गये प्रश्न को समझकर उनके
तार्किक उत्तर देने की सामथ्र्य रखता है या नहीं
?
1⁄4देखिये-रामेश्वर
विरूद्ध
राजस्थान
राज्य, ए.आई.आर. 1952 एस.सी. 541⁄2
उक्त समाधान पर पहंुचने के लिये न्यायालय से
यह अपेक्षित है कि वह ऐसी जांच बाल साक्षी से
उसकी प्रश्नों को समझने और उन प्रश्नों के
युक्ति संगत उत्तर देने की सामथ्र्य ज्ञात करने
से आशयित समुचित प्रश्न करते हुए उनके उŸार
लेखबद्ध कर संपादित करे। हांलाकि किसी बाल
साक्षी की साक्ष्य पर मात्र इस आधार पर विपरीत
प्रभाव नहीं पडे़गा कि न्यायालय द्वारा साक्षी से
औपचारिक प्रश्न नहीं पूछे गये या उसके सक्षम
साक्षी होने संबंधी प्रमाण पत्र कथन में नहीं
जोड़ा गया। 1⁄4देखिये- न्याय दृष्टांत रामेश्वर
1⁄4उपरोक्त1⁄2
शपथ अधिनियम, 1969 की धारा 4 के अनुसार
सभी साक्षियों को न्यायालय के समक्ष कथन के
पूर्व शपथ लेना या प्रतिज्ञान करना अनिवार्य
हैं एवं धारा 5 यह व्यवस्था करती है कि कोई
साक्षी शपथ पर कथन देने के स्थान पर
प्रतिज्ञान करते हुए भी कथन दे सकता है।
तथापि धारा 4 के परन्तुक के अनुसार साक्षी की
आयु 12 वर्ष से कम होने की दशा में यदि
न्यायालय का यह मत है कि ऐसा साक्षी सत्य
कहने का कत्र्तव्य तो समझता है किन्तु शपथ या
प्रतिज्ञान की प्रकृति नहीं समझता है तब ऐसे
साक्षी के कथन लिपिबद्ध किये जाने की दशा में
धारा 4 और 5 के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
अर्थात 12 वर्ष से अधिक आयु के साक्षी के
कथन शपथ लिये बिना या प्रतिज्ञान किये बिना
लिपिबद्ध नहीं किये जा सकते है किन्तु यदि
साक्षी की आयु 12 वर्ष से कम है तब साक्षी को
शपथ दिलाना या प्रतिज्ञान कराना आवश्यक
नहीं है एवं यदि न्यायालय का यह समाधान हो
जाए कि साक्षी यह समझता है कि उसे सत्य
कथन करना है किन्तु वह शपथ या प्रतिज्ञान के
अर्थ और महत्व को नहीं समझाता है तब
न्यायालय बिना शपथ दिलाये या बिना प्रतिज्ञान
कराये ऐसे साक्षी के कथन लेखबद्ध कर सकता
है एवं ऐसा कथन शपथ या प्रतिज्ञान के अभाव
में भी साक्ष्य में ग्राह्य होगा।

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