Sunday, 24 October 2021

अदालत में आरोपी की पहचान करने वाले गवाह की गवाही केवल इसलिए खारिज नहीं की जा सकती है, क्योंकि परीक्षण पहचान परेड (टीआईपी) नहीं की गई - सुप्रीम कोर्ट ।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत में आरोपी की पहचान करने वाले गवाह की गवाही केवल इसलिए खारिज नहीं की जा सकती है, क्योंकि परीक्षण पहचान परेड (टीआईपी) नहीं की गई थी।*

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि किसी मामले में गवाह की गवाही की अन्य तरीके से पर्याप्त पुष्टि हो सकती है। अदालत ने इस प्रकार की टिप्पणी केरल आबकारी अधिनियम की धारा 55 (ए) के तहत दोषी ठहराए गए आरोपियों द्वारा दायर अपील की अनुमति देने वाले फैसले में की। हालांकि, इस मामले में, अदालत ने एक गवाह पर विश्वास नहीं किया, जिसने अदालत में आरोपी की पहचान की, जहां उसने उसे 11 साल बाद पहली बार देखा था। अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों में से एक यह था कि इस मामले में परीक्षण पहचान परेड (टी.आई. परेड) आयोजित नहीं किया गया था और इसलिए, अभियोजन पक्ष के गवाह का यह कहना कि उसने लगभग 12 साल बीत जाने के बाद अदालत में उसकी पहचान की, पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। इस संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि टीआई परेड जांच का हिस्सा है और यह कोई ठोस सबूत नहीं है। बेंच ने कहा: "टीआई परेड आयोजित करने का सवाल तब उठता है जब गवाह आरोपी को पहले से नहीं जानता है। अदालत में आरोपी की गवाह द्वारा पहचान, जिसने पहली बार अपराध की घटना में आरोपी को देखा है, सबूत का एक कमजोर टुकड़ा है, खासकर जब घटना की तारीख और उसके साक्ष्य दर्ज करने की तारीख के बीच एक बड़ा समय अंतराल हो। ऐसे मामले में, टीआई परेड अदालत के समक्ष गवाह द्वारा आरोपी की पहचान को भरोसेमंद बना सकता है। हालांकि, टीआई परेड की अनुपस्थिति एक गवाह की गवाही को खारिज करने के लिए पूरी तरह से पर्याप्त नहीं हो सकती है जिसने अदालत में आरोपी की पहचान की है। ऐसे किसी मामले में, गवाह के साक्ष्य की कुछ अन्य तरीके से पर्याप्त पुष्टि हो सकती है। कुछ मामलों में, हो सकता है न्यायालय अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही से प्रभावित हो, जो एक उत्कृष्ट गुणवत्ता की है, ऐसे मामलों में ऐसे गवाह की गवाही पर विश्वास किया जा सकता है।'' कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष के गवाह ने स्वीकार किया है कि वह किसी ऐसे व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम नहीं है जिसे उसने 11 साल पहले देखा था। हालांकि, उसने जोर देकर कहा था कि वह आरोपियों की पहचान कर सकता है, भले ही उसने घटना की तारीख को 11 साल से अधिक समय पहले पहली बार देखा था। पीठ ने अपील की अनुमति देते हुए कहा, "यह विश्वास करना बहुत मुश्किल है कि अभियोजन पक्ष के गवाह (पीडब्ल्यू)-13 जो घटना से पहले आरोपी नंबर 2 और 4 को नहीं जानता था, 11 साल बीत जाने के बाद अदालत में उनकी पहचान कर सकता है। सभी आधिकारिक गवाहों के साथ भी ऐसा ही है। अभियोजन पक्ष ने ट्रक की सही पंजीकरण संख्या और उसके पंजीकृत मालिक के नाम के संबंध में सबूत पेश नहीं करने का निर्णय लिया था। इसलिए, अभियोजन का पूरा मामला संदिग्ध हो जाता है।'' केस का नाम और साइटेशन : जयन बनाम केरल सरकार | एलएल 2021 एससी 582 मामला संख्या। और दिनांक: एसएलपी (क्रिमिनल) 6767/2016 | 22 अक्टूबर 2021 कोरम: जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय एस. ओका वकील: अपीलकर्ताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत एवं अधिवक्ता एम. गिरीश कुमार, प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता अब्राहम सी. मैथ्यू

https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/testimony-of-witness-who-identified-accused-in-court-cannot-be-discarded-merely-because-tip-was-not-conducted-supreme-court-184166?infinitescroll=1

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