न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य, सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह व्यवहार नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह व्यवहार नहीं कर सकती और न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करना उसका (सरकार का) पवित्र एवं संवैधानिक दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था। हाईकोर्ट ने सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) में छूट न देने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि न तो सरकारी अधिकारियों को सीमा शुल्क से छूट संबंधी 'स्पष्टीकरण अधिसूचना' की जानकारी नहीं थी, न ही याचिकाकर्ता ने इसे रिकॉर्ड में लाया था। न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने फैसले से असहमति जताते हुए कहा, "यह हमेशा देखा गया है कि सरकार सबसे ज्यादा मुकदमे लड़ती है। न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करने का पवित्र एवं संवैधानिक दायित्व निभाने के बजाय यह अलग श्रेणी में खड़ी है। सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह बर्ताव नहीं कर सकती। यह आरोप साबित करने के दायित्व (बर्डेन ऑफ प्रूफ) के अमूर्त सिद्धांत पर भरोसा करती है। सरकार अपने अधिकारियों के जरिये संचालन करती है, जिन्हें भरोसे के साथ शक्तियां प्रदान की गयी हैं। चाहे अनियमितता के कारण हो या लापरवाही से, यदि ये अधिकारी भरोसा तोड़ते हैं तो क्या सरकार भरोसा तोड़ने जैसे अपराध के लिए खुद जिम्मेदार होगी या ऐसे अधिकारी निजी तौर पर जवाबदेह होंगे?" कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों की यह दलील देना कि उन्हें अपने ही विभाग की ओर से जारी अधिसूचनाओं के बारे में मालूम नहीं था, अनुचित था। कोर्ट ने आगे कहा कि इसका पूरा दायित्व अधिकारियों पर होता है और बेपरवाह सरकार द्वारा इस तरह के बेढंगे बयानों से मुकदमेबाजी को बढ़ावा देने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। मुकदमे का ब्योरा :- केस का नाम : मेसर्स ग्रेनुएल्स इंडिया लिमिटेड बनाम भारत सरकार केस नं. – सिविल अपील नं. 593-594/2020 कोरम : न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/state-has-solemn-constitutional-duty-to-assist-court-in-dispensation-of-justice-cannot-behave-like-private-litigant-sc-152026
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह व्यवहार नहीं कर सकती और न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करना उसका (सरकार का) पवित्र एवं संवैधानिक दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था। हाईकोर्ट ने सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) में छूट न देने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि न तो सरकारी अधिकारियों को सीमा शुल्क से छूट संबंधी 'स्पष्टीकरण अधिसूचना' की जानकारी नहीं थी, न ही याचिकाकर्ता ने इसे रिकॉर्ड में लाया था। न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने फैसले से असहमति जताते हुए कहा, "यह हमेशा देखा गया है कि सरकार सबसे ज्यादा मुकदमे लड़ती है। न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करने का पवित्र एवं संवैधानिक दायित्व निभाने के बजाय यह अलग श्रेणी में खड़ी है। सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह बर्ताव नहीं कर सकती। यह आरोप साबित करने के दायित्व (बर्डेन ऑफ प्रूफ) के अमूर्त सिद्धांत पर भरोसा करती है। सरकार अपने अधिकारियों के जरिये संचालन करती है, जिन्हें भरोसे के साथ शक्तियां प्रदान की गयी हैं। चाहे अनियमितता के कारण हो या लापरवाही से, यदि ये अधिकारी भरोसा तोड़ते हैं तो क्या सरकार भरोसा तोड़ने जैसे अपराध के लिए खुद जिम्मेदार होगी या ऐसे अधिकारी निजी तौर पर जवाबदेह होंगे?" कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों की यह दलील देना कि उन्हें अपने ही विभाग की ओर से जारी अधिसूचनाओं के बारे में मालूम नहीं था, अनुचित था। कोर्ट ने आगे कहा कि इसका पूरा दायित्व अधिकारियों पर होता है और बेपरवाह सरकार द्वारा इस तरह के बेढंगे बयानों से मुकदमेबाजी को बढ़ावा देने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। मुकदमे का ब्योरा :- केस का नाम : मेसर्स ग्रेनुएल्स इंडिया लिमिटेड बनाम भारत सरकार केस नं. – सिविल अपील नं. 593-594/2020 कोरम : न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/state-has-solemn-constitutional-duty-to-assist-court-in-dispensation-of-justice-cannot-behave-like-private-litigant-sc-152026
No comments:
Post a Comment