Saturday, 31 August 2019

चेक प्रकरण में न्यायालय अवधारणा करेगी कि वह किसी ऋण या दायित्व के अधीन दिया है

न्याय दृष्टांत रघुनाथन रोहवा राजन 2003 (1) टीसीआर 615 में माननीय मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित किया गया है कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अधीन प्रस्तुत किए गए *परिवाद में न्यायालय उवधारणा करती है कि चेक किसी ऋण या दायित्व के अधीन ही जारी किया गया था,* जब तक कि ऐसी उपधारणा को खंडित नहीं कर दिया जाता है। 

न्याय दृष्टांत आर. विजयन बनाम बेवी 2012(1) एस.सी.सी. 260 में माननीय न्यायालय द्वारा यह अभीनिर्धारित किया गया है कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की *धारा 138 के मामलों में दोष सिद्धि की दशा में चेक की राशि और उस पर 9% वार्षिक की दर से ब्याज* को ध्यान में रखा जाना चाहिए और परिवादी को नुकसान की युक्ति युक्त पूर्ति किस राशि से होगी यह उक्त तथ्यों के प्रकाश में निकाला जा सकता है।

*अपील का आरोपी की अनुपस्थिति में गुण दोषों पर निराकरण* 

न्याय दृष्टांत बनी सिंह विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य (1996) 4  एस.सी.सी. 720 में अभिनिर्धारित किया गया है कि अपीलार्थी की अनुपस्थिति में दांडिक अपील के निराकरण के संदर्भ में विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि दांडिक अपील अनुपस्थिति में निरस्त नहीं की जाना चाहिए। दांडिक अपील का निराकरण गुण दोष के आधार पर किया जाना चाहिए यदि अपीलार्थी  या उसके अभिभाषक उपस्थित नहीं होते हैं तो न्यायालय को अपील गुण दोषों के आधार पर निराकृत करनी चाहिए।

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