*प्रोबेशन आॅफ आफेंडर एक्ट नहीं वर्जित करता है सीआरपीसी की धारा 360 के प्रावधानों को-सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 360 के प्रावधानों को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 (प्रोबेशन आॅॅॅफ आफेंडर एक्ट) वर्जित या बाहर नहीं करता है। इस मामले में कोर्ट मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश पर विचार कर रही थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 360 के तहत एक अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह कोई अर्जी नहीं है क्योंकि जिस मामले में यह अर्जी दायर की गई है उस मामले पर अपराधी परिवीक्षा अधिनियम १९५८ (प्रोबेशन आॅॅॅफ आफेंडर एक्ट) की धारा 3 व 4 लागू होती है। इस मामले में आरोपी को आईपीसी की धारा 325 रीड विद धारा 34 के तहत दोषी करार दिया गया था। उसे एक साल के कारवास की सजा पर व उस पर एक हजार रुपए जुर्माना किया गया था। सीआरपीसी की धारा 360 के तहत किसी दोषी करार दिए गए आरोपी को उसके अच्छे व्यवहार के आधार पर नेकचलनी यानि प्रोबेशन पर छोड़े जाने पर विचार किया जाता है। इस प्रावधान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति 21 साल से कम उम्र का नहीं है और उसे ऐसे मामले में दोषी करार दिया जाता है, जिसमें उस पर या तो जुर्माना लगाया जाता है या फिर उसे सात साल या उससे कम के कारावास की सजा दी जाती है। दूसरा अगर कोई व्यक्ति 21 साल से कम उम्र का है या कोई महिला है, उनको ऐसे मामले में दोषी करार दिया जाता है,जिसमें फांसी या उम्रकैद की सजा का प्रावधान नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को नेकचलनी यानि प्रोबेशन का लाभ दिया जा सकता है। दोनों श्रेणियों के आरोपियों को यह भी शर्त पूरी करनी होती है कि उनको पहले कभी दोषी करार नहीं दिया गया है, उनकी उम्र, उनके चरित्र व पुराने आपराधिक रिकार्ड व जिन परिस्थितियों में अपराध को अंजाम दिया गया था, इन सभी तथ्यों पर अदालत को नेकचलनी का लाभ लेने के लिए संतुष्ट करना पड़ता है। इसी तरह अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 (प्रोबेशन आॅॅॅफ आफेंडर एक्ट) के प्रावधान कोर्ट के अधिकार के बारे में बताते है कि कोर्ट किन आरोपियों के उनका अच्छा व्यवहार व अन्य तथ्य देखकर नेकचलनी पर रिहा कर सकती है या इस प्रावधान का लाभ दे सकती है। दोनों प्रावधानों को देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि- सीआरपीसी की धारा 360 के सब-सेक्शन 10 में साफ तौर पर इच्छा जाहिर करते हुए कहा गया है कि एक्ट 1958 के प्रावधान या बाल अधिनियम 1960 के प्रावधान या कुछ समय के लिए लागू किया गया काननू जो किसी युवा आरोपी के इलाज के लिए, प्रशिक्षण के लिए या पुर्नवास के लिए लागू किया गया हो, यह सभी कानून कोड़ से प्रभावित नहीं होंगे। इसलिए साफ है कि कोड़ के प्रावधाना को एक्ट 1958 वर्जित या बाहर नहीं करता है। ऐसे में *कोर्ट के समक्ष किसी आरोपी पर दोनों, कोड़ की धारा 360 व एक्ट 1958 के प्रावधान लागू होते है।* कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने *संजय दत्त बनाम महाराष्ट्रा राज्य के मामले* में माना था कि दोनों अधिनियमों के प्रावधानों के एक साथ होने से (कोड के सेक्शन 360 व प्रोबेशन आॅॅॅफ आफेंडर एक्ट के सेक्शन 3 व 4) बहुत बड़ा परिणाम भी हो सकता है। परंतु कोर्ट ने कहा कि -हमने पाया है कि कोर्ट का ध्यान सेक्शन के सब-सेक्शन 10 की तरफ आकर्षित नहीं किया गया। जिसमें कहा गया है कि सेक्शन 360 एक्ट 1958 के प्रावधानों या किसी अन्य ही ऐसे कानून को जो किसी युवा अपराधी को परीक्षण देने, उसका इलाज करने या पुर्नवास के लिए लागू किया गया हो, को प्रभावित नहीं करेगा। वहीं एक्ट 1958 के सेक्शन में ऐसा उपनियम दिया गया है,जो किसी भी अन्य कानून के प्रवाधानों के प्रभाव को कम कर देता है या उस पर अधिभावी होता है। दोनों अधिनियमों के प्रावधानों को एक साथ देखने के बाद हमने पाया है कि कोड़ के सेक्शन 360 के प्रावधान अधिनियम 1958 के प्रावधानों में या बाल अधिनियम 1960 या कुछ समय के लिए किसी युवा अपराधी के परीक्षण, इलाज या पुर्नवास के लिए लागू किए गए कानून के प्रावधानों के लिए अतिरिक्त प्रावधान की तरह है।
http://hindi.livelaw.in/category/top-stories/-360---144371
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