*आपसी सहमति से तलाक के मामले में निर्धारित समय-सीमा को किसी दंपत्ति को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर खत्म नहीं कर सकते है ।*
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि दोनों पक्षकारों को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत निर्धारित छह माह की अवधि को खत्म नहीं किया जा सकता है। इस मामले में एक दंपत्ति ने आपसी सहमति से तलाक की अर्जी कोर्ट के समक्ष दायर की थी और मांग की थी कि छह महीने के कूलिंग आॅफ यानि शीलतन की समय अवधि को खत्म किया जाए। इन दोनों पक्षकारों की तरफ से दलील दी गई थी कि वह जल्दी-जल्दी कोर्ट के चक्कर नहीं काट सकते है क्योंकि उनमें से एक डाबरा में निजी स्कूल में शिक्षक है और दूसरा डाक्टर। इसलिए इस समय अवधि को खत्म करने की मांग की थी। कोर्ट ने इस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्होंने उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उस फैसले में माना गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत दी गई समय अवधि अनिवार्य प्रकृति की नहीं है, बल्कि यह निर्देशिका प्रकृति की है। इसलिए हर मामले की परिस्थितियों व तथ्यों को देखने के बाद निचली अदालत इस समय अवधि से छूट दे सकती है। जिन मामलों में निचली अदालत को यह लगे कि दोेनों पक्षों में सुलह की कोई संभावना नहीं है और न ही साथ रहने के कोई चांस नहीं है, उन मामलों में निचली अदालत इस समय अवधि से छूट दे सकती है। परंतु जस्टिस गुरपाल सिंह अहलुवानिया ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में जो आधार पक्षकारों ने दिया, वह इस अवधि को खत्म करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है क्योंकि इस मामले में दोनों पक्षकारों का कहना है कि वह बार-बार कोर्ट नहीं आ सकते है। कोर्ट ने कहा कि-जब कोई पक्षकार किसी निश्चित प्रावधान के तहत कोर्ट से राहत मांगने के लिए जाते है तो उस समय उनको कानून के तहत बनाई या उपलब्ध प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
अगर वह चाहते थे कि निचली अदालत आपसी सहमति से तलाक के मामले में निर्धारित हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत दी गई छह माह की अवधि को खत्म कर दे तो उनको इंगित करना चाहिए था कि अब उनके बीच वैकल्पिक पुर्नवास या आपस में साथ रहने का कोई मौका नहीं है। परंतु दोनों पक्षकारों को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर इस निर्धारित अवधि से छूट नहीं दी जा सकती है। इसी के साथ कोई इस मामले में दायर पुनःविचार याचिका को खारिज कर दिया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि दोनों पक्षकारों को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत निर्धारित छह माह की अवधि को खत्म नहीं किया जा सकता है। इस मामले में एक दंपत्ति ने आपसी सहमति से तलाक की अर्जी कोर्ट के समक्ष दायर की थी और मांग की थी कि छह महीने के कूलिंग आॅफ यानि शीलतन की समय अवधि को खत्म किया जाए। इन दोनों पक्षकारों की तरफ से दलील दी गई थी कि वह जल्दी-जल्दी कोर्ट के चक्कर नहीं काट सकते है क्योंकि उनमें से एक डाबरा में निजी स्कूल में शिक्षक है और दूसरा डाक्टर। इसलिए इस समय अवधि को खत्म करने की मांग की थी। कोर्ट ने इस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्होंने उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उस फैसले में माना गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत दी गई समय अवधि अनिवार्य प्रकृति की नहीं है, बल्कि यह निर्देशिका प्रकृति की है। इसलिए हर मामले की परिस्थितियों व तथ्यों को देखने के बाद निचली अदालत इस समय अवधि से छूट दे सकती है। जिन मामलों में निचली अदालत को यह लगे कि दोेनों पक्षों में सुलह की कोई संभावना नहीं है और न ही साथ रहने के कोई चांस नहीं है, उन मामलों में निचली अदालत इस समय अवधि से छूट दे सकती है। परंतु जस्टिस गुरपाल सिंह अहलुवानिया ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में जो आधार पक्षकारों ने दिया, वह इस अवधि को खत्म करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है क्योंकि इस मामले में दोनों पक्षकारों का कहना है कि वह बार-बार कोर्ट नहीं आ सकते है। कोर्ट ने कहा कि-जब कोई पक्षकार किसी निश्चित प्रावधान के तहत कोर्ट से राहत मांगने के लिए जाते है तो उस समय उनको कानून के तहत बनाई या उपलब्ध प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
अगर वह चाहते थे कि निचली अदालत आपसी सहमति से तलाक के मामले में निर्धारित हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत दी गई छह माह की अवधि को खत्म कर दे तो उनको इंगित करना चाहिए था कि अब उनके बीच वैकल्पिक पुर्नवास या आपस में साथ रहने का कोई मौका नहीं है। परंतु दोनों पक्षकारों को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर इस निर्धारित अवधि से छूट नहीं दी जा सकती है। इसी के साथ कोई इस मामले में दायर पुनःविचार याचिका को खारिज कर दिया।
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