अधिकारियों को अदालत बुलाने की परिपाटी उचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट
[निर्णय पढ़े] BY: LIVE LAW HINDI 13 April 2019 8:14 PM 371 SHARES
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों को अदालत में बुलाए जाने की परिपाटी उचित नहीं है और इससे कार्यपालिका और न्यायपालिका में शक्तियों के विभाजन को देखते हुए न्याय प्रशासन का उद्देश्य पूरा नहीं होता। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने एक अपील पर ग़ौर करते हुए कहा कि हाईकोर्ट समय समय पर राज्यों के अधिकारियों को अदालत में पेश होने के बारे में आदेश देता रहा है।हाईकोर्ट ने इस तरह के आदेश ऐसे कुछ कर्मचारियों द्वारा दायर अवमानना के मामलों में पास किया। इन कर्मचारियों ने नियमित नहीं किए जाने या न्यूनतम वेतनमान नहीं दिए जाने पर यह याचिका दायर की थी। पीठ ने कहा कि नियमित नहीं किए जाने या न्यूनतम वेतनमान नहीं दिए जाने के मामले में एक मात्र उपचार यह है कि इस बारे में रिट याचिका दायर की जाए। राज्य के अधिकारियों को अदालत में पेश होने के लिए बाध्य करने के लिए आदेश जारी कर हाइकोर्ट ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया है। इस अपील का निस्तारन करते हुए अदालत ने कहा : "राज्य के कर्मचारी सार्वजनिक कार्य और दायित्वों को पूरा करते हैं। आदेश अमूमन भलाई के लिए जारी किए जाते हैं बशर्ते कि इसमें कोई खोट ना साबित हो जाए। सार्वजनिक धन का संरक्षक होने के कारण इस तरह का आदेश पारित करते हैं। सो, इसलिए कि उन्होंने कोई आदेश जारी किया है, इसका यह अर्थ नहीं है कि उन्हें निजी रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दे दिया जाए।" कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के आदेश के कारण लोगों को ही घाटा होता है क्योंकि उस स्थिति में ये अधिकारी अपना सार्वजनिक काम छोड़कर अदालत का चक्कर लगा रहे होते हैं। कोर्ट ने कहा : "…अधिकारियों को अदालत में बुलाने की परिपाटी उचित नहीं है और कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के बँटवारे को देखते हुए इससे न्याय का भला नहीं होता है। अगर कोई आदेश क़ानूनी तौर पर वैध नहीं है तो अदालत के पास इसे निरस्त करने के अधिकार हैं और वह इस बारे में मामले के तथ्यों पर ग़ौर करते हुए उपयुक्त निर्देश जारी कर सकता है।"
http://hindi.livelaw.in/category/top-stories/--144264
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों को अदालत में बुलाए जाने की परिपाटी उचित नहीं है और इससे कार्यपालिका और न्यायपालिका में शक्तियों के विभाजन को देखते हुए न्याय प्रशासन का उद्देश्य पूरा नहीं होता। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने एक अपील पर ग़ौर करते हुए कहा कि हाईकोर्ट समय समय पर राज्यों के अधिकारियों को अदालत में पेश होने के बारे में आदेश देता रहा है।हाईकोर्ट ने इस तरह के आदेश ऐसे कुछ कर्मचारियों द्वारा दायर अवमानना के मामलों में पास किया। इन कर्मचारियों ने नियमित नहीं किए जाने या न्यूनतम वेतनमान नहीं दिए जाने पर यह याचिका दायर की थी। पीठ ने कहा कि नियमित नहीं किए जाने या न्यूनतम वेतनमान नहीं दिए जाने के मामले में एक मात्र उपचार यह है कि इस बारे में रिट याचिका दायर की जाए। राज्य के अधिकारियों को अदालत में पेश होने के लिए बाध्य करने के लिए आदेश जारी कर हाइकोर्ट ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया है। इस अपील का निस्तारन करते हुए अदालत ने कहा : "राज्य के कर्मचारी सार्वजनिक कार्य और दायित्वों को पूरा करते हैं। आदेश अमूमन भलाई के लिए जारी किए जाते हैं बशर्ते कि इसमें कोई खोट ना साबित हो जाए। सार्वजनिक धन का संरक्षक होने के कारण इस तरह का आदेश पारित करते हैं। सो, इसलिए कि उन्होंने कोई आदेश जारी किया है, इसका यह अर्थ नहीं है कि उन्हें निजी रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दे दिया जाए।" कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के आदेश के कारण लोगों को ही घाटा होता है क्योंकि उस स्थिति में ये अधिकारी अपना सार्वजनिक काम छोड़कर अदालत का चक्कर लगा रहे होते हैं। कोर्ट ने कहा : "…अधिकारियों को अदालत में बुलाने की परिपाटी उचित नहीं है और कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के बँटवारे को देखते हुए इससे न्याय का भला नहीं होता है। अगर कोई आदेश क़ानूनी तौर पर वैध नहीं है तो अदालत के पास इसे निरस्त करने के अधिकार हैं और वह इस बारे में मामले के तथ्यों पर ग़ौर करते हुए उपयुक्त निर्देश जारी कर सकता है।"
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