Thursday, 18 April 2019

आरोपी की अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज करना है एक साध्य उल्लंघन


*आरोपी की अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज करना है एक साध्य उल्लंघन-* सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में फिर से सुनवाई के आदेश को ठहराया सही
         सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अभियोजन पक्ष की गवाही के समय अगर आरोपी अनुपस्थित है तो इससे अपने आप में केस की सुनवाई दूषित नहीं होती है,बशर्ते इससे आरोपी पर कोई प्रतिकूल असर न हो। जस्टिस उदय उमेश ललित वाली बेंच ने इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने एक मामले में फिर से सुनवाई के आदेश देते हुए निचली अदालत से कहा था कि कानूनीतौर पर गवाहों के बयान दर्ज करे। हाईकोर्ट ने कहा था कि पहले राउंड में जो बयान दर्ज किए गए है,उस समय आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की गई थी। आरोपी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने दलील दी कि आरोपी के पास यह अधिकार होता है कि उसके सामने गवाही हो। यह उसका मूल्यवान अधिकार है और इससे छेड़छाड़ करने से गंभीर प्रतिकूल असर पड़ता है। कोर्ट ने इन दलीलों पर सहमति जताते हुए कहा कि यह अधिकार मूल्यवान है और इस मामले में उल्लंघन हुआ है। परंतु कोर्ट ने इन सवालों पर भी ध्यान दिया। इस तरह के उल्लंघन का प्रभाव देखने के क्या तथ्य उपलब्ध है। क्या इससे मामले की सुनवाई प्रभावित हुई है या इस तरह का उल्लंघन साध्य है। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के चैप्टर XXV का मुख्य विषय व सेक्शन 461 में बताए गए नियम 'अनियमित सुनवाई' से संबंधित है।जिनमें कहा गया है कि किसी उल्लंघन या अनियमितता से मामले की सुनवाई नष्ट नहीं होती है या हानि नहीं पहुंचती है,बशर्ते इस अनियमितता या उल्लघंन से आरोपी को बहुत क्षति न हुई हो या उसके साथ पक्षपात न हुआ हो। कोर्ट ने कहा कि- हाईकोर्ट का आदेश यह नहीं है कि सारे सबूतों को फिर से पढ़ा जाए। हाईकोर्ट का निर्देश यह है कि सिर्फ उन गवाहों के बयान फिर से दर्ज किए जाए,जिनके बयान आरोपी के समक्ष नहीं हुए थे।उस निर्देश के अनुसार कोर्ट में आरोपी की उपस्थिति जरूरी है ताकि वह गवाह को कोर्ट में बयान देेते समय देख सके और उस गवाह से जिरह कर सके। इसलिए इन मूल जरूरतों को निष्ठा से पूरा किया जाए। इसके अलावा कोई क्षति या हानि नहीं हुई है। कोड में दिए आरोपी या याचिकाकर्ता के अधिकारों के बारे में बेंच ने कहा कि-पाॅवर की जो बात है तो पूरे मामले की दोबारा सुनवाई का आदेश दिया जा सकता है। जबकि इस मामले में तो हाईकोर्ट ने कमतौर पर इस अधिकार का प्रयोग करते हुए सिर्फ 12 गवाहों के बयान फिर से करवाने के लिए कहा है। ऐसे में हाईकोर्ट का यह निर्देश अधिकारक्षेत्र के अंतर्गत आता है। ऐसे में हाईकोर्ट ने किसी भी तरह अपने अधिकारक्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया है। हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए व निचली अदालत को फिर से सुनवाई करने की अनुमति देते हुए बेंच ने कहा कि- एक परिवार के चार लोगों की मौत हुई है। इसलिए ऐसे मामले में समाज का भी हित होगा कि आरोपी को सजा मिले। साथ ही इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि मामले की सुनवाई निष्पक्ष हो। सिर्फ उन गवाहों के बयान फिर से दर्ज करने के लिए कहा गया है,जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि अभियोजन पक्ष का हित बना रहे,वहीं दूसरी तरफ आरोपी को यह अधिकार मिले िकवह गवाह को अपने खिलाफ बयान देते हुए देख सके। जिसके बाद वह अपने वकील को अच्छे से निर्देश दे पाए कि गवाह से क्या-क्या सवाल जिरह में किए जाए। इस प्रक्रिया में आरोपी के हित की रक्षा भी होगी। अगर हम इन दलीलों को स्वीकार कर ले कि इससे मामले की सुनवाई खराब होगी और हाईकोर्ट के पास यह अधिकार नहीं है िकवह संबंधित गवाहों के बयान फिर से दर्ज करने का आदेश दे सके,तो इससे न्याय निष्फल होगा। आरोपी,जिन पर चार लोगों की मौत को केस चल रहा है,उनके खिलाफ प्रभावी तरीके से सुनवाई नहीं चल पाएगी। तकनीकी तौर पर उल्लंघन होने के कारण उनके खिलाफ दर्ज सबूतों को प्रयोग नहीं किया जा सकेगा,जिससे न्याय को बहुत बड़ा अघात पहुंचेगा और न्याय निष्फल हो जाएगा।
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