बेटी के विवाह खर्च और भरण-पोषण की कानूनी–नैतिक जिम्मेदारी पिता पर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
25 Nov 2025
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि पिता अपनी अविवाहित बेटी के भरण-पोषण और विवाह खर्च उठाने के लिए न केवल कानूनी रूप से, बल्कि नैतिक रूप से भी बाध्य है, भले ही बेटी बालिग क्यों न हो। मामला एक 25 वर्षीय अविवाहित बेटी से संबंधित था, जिसने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 और 3(b) के तहत आवेदन दायर कर कहा कि वह स्वयं को संभालने में असमर्थ है, जबकि उसका पिता सरकारी शिक्षक है और ₹44,642 मासिक वेतन प्राप्त करता है। बेटी ने मासिक भरण-पोषण और ₹15 लाख विवाह खर्च की मांग की। फैमिली कोर्ट, सुरजपुर ने पिता को ₹2,500 प्रति माह भरण-पोषण देने और ₹5,00,000 विवाह व्यय देने का आदेश पारित किया।
पिता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की खंडपीठ ने स्पष्ट पाया कि पिता–बेटी का संबंध निर्विवाद है, बेटी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है और विवाह जैसे महत्वपूर्ण खर्च के लिए उसे पिता की सहायता चाहिए। कोर्ट ने धारा 3(b)(ii) का हवाला देते हुए कहा कि अविवाहित बेटी के विवाह खर्च भी “maintenance” की परिभाषा में आते हैं, जबकि धारा 20(3) पिता पर यह दायित्व अनिवार्य करती है कि यदि अविवाहित बेटी अपनी आय या संपत्ति से स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकती, तो पिता उसका खर्च वहन करेगा।
*सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Abhilasha v. Parkash (2020) का उल्लेख करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अविवाहित, असहाय बेटी को पिता से भरण-पोषण पाने का अधिकार पूर्ण और लागू करने योग्य है, चाहे वह बालिग ही क्यों न हो।* इसलिए हाईकोर्ट ने पाया कि बेटी, भले ही 25 वर्ष की है, लेकिन धारा 3(b)(ii) और 20(3) के तहत वह अपने पिता से विवाह खर्च और भरण-पोषण पाने की हकदार है।
अंततः अदालत ने पिता की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और निर्देश दिया कि पिता नियमित मासिक भरण-पोषण देता रहे तथा ₹5,00,000 विवाह खर्च की राशि तीन महीने के भीतर जमा करे।
https://hindi.livelaw.in/chattisgarh-high-court/chhattisgarh-high-court-hama-1956-hindu-adoptions-and-maintenance-act-311113
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