Saturday, 20 September 2025

S. 482 CrPC/S. 528 BNSS | कुछ FIR रद्द करने वाली याचिकाओं में हाईकोर्ट को मामला दायर करने की पृष्ठभूमि भी समझना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

 S. 482 CrPC/S. 528 BNSS | कुछ FIR रद्द करने वाली याचिकाओं में हाईकोर्ट को मामला दायर करने की पृष्ठभूमि भी समझना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (18 सितंबर) को हाईकोर्ट को केवल FIR की विषय-वस्तु के आधार पर याचिकाओं को यंत्रवत् खारिज करने के प्रति आगाह किया। इस बात पर ज़ोर दिया कि कुछ मामलों में FIR दायर करने के परिवेश और परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि हाईकोर्ट को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि क्या FIR किसी जवाबी हमले का परिणाम थी या वादी को परेशान करने के किसी अप्रत्यक्ष उद्देश्य से प्रतिशोधात्मक कार्रवाई के रूप में दर्ज की गई।


अदालत ने कहा, “हालांकि यह सच है कि इस स्तर पर विस्तृत बचाव और रिकॉर्ड में पेश किए गए साक्ष्यों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। यह भी उतना ही सच है कि यंत्रवत् दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं किया जा सकता। न्यायिक सोच को जो चीज़ विशिष्ट बनाती है, वह है कानून के अनुसार दिए गए तथ्यों पर उसका प्रयोग। इसलिए अदालत को कम से कम कुछ हद तक उस पृष्ठभूमि को समझना चाहिए, जिसमें प्रतिवादी ने संबंधित एफआईआर दर्ज की थी।” सीबीआई बनाम आर्यन सिंह और राजीव कौरव बनाम बाईसाहब जैसे फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 482 के स्तर पर हाईकोर्ट से केवल अपराध की प्रथम दृष्टया संभावना पर ही विचार करने की अपेक्षा की जाती है। हालांकि, कुछ मामलों में पृष्ठभूमि को भी समझना आवश्यक है। 

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की आलोचना की कि उसने परिस्थितियों पर विचार किए बिना ही FIR रद्द करने से यांत्रिक रूप से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने FIR दर्ज करने के संदर्भ को नज़रअंदाज़ किया और केवल FIR की विषयवस्तु पर यह कहते हुए भरोसा किया कि चूंकि आरोप लगाए जा चुके हैं और जांच प्रारंभिक चरण में थी, इसलिए हस्तक्षेप करना "बहुत जल्दबाजी" होगी। जून, 2013 में दंपति अलग हो गए और पत्नी अपने बच्चे के साथ ऑस्ट्रेलिया चली गई। बाद के मुकदमों में ऑस्ट्रेलियाई अदालतों ने उसे हेग कन्वेंशन के तहत बार-बार बच्चे को ऑस्ट्रेलिया वापस भेजने का निर्देश दिया, लेकिन उसने इन आदेशों की अवहेलना की। इस बीच अप्रैल, 2016 में ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने पति के पक्ष में तलाक दे दिया।  बमुश्किल एक महीने बाद मई, 2016 में पत्नी ने पंजाब में FIR दर्ज कराई, जिसमें विवाह के दौरान क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया गया। हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस करोल द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि हाईकोर्ट यह ध्यान देने में विफल रहा कि पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई FIR प्रतिशोधात्मक कदम और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग थी, जो पति के पक्ष में तलाक का आदेश दिए जाने के एक महीने बाद दर्ज कराई गई। 

 अदालत ने पत्नी की FIR को पति के विरुद्ध प्रतिवाद पाया, "यहां, प्रतिवादी ने तलाक के एक महीने बाद शिकायत दर्ज कराई। यह मानते हुए कि कानून द्वारा ऐसा करना स्पष्ट रूप से निषिद्ध नहीं है, यह निश्चित रूप से प्रश्न उठाता है कि लगभग तीन वर्षों से अपीलकर्ता से अलग रहने के बावजूद, प्रतिवादी ने उस प्रासंगिक समय पर पुलिस में आवेदन दायर करने पर विचार क्यों किया। यह संभावना मानना ​​कि यह इस तथ्य के विपरीत प्रतिवाद मात्र है कि अपीलकर्ता के पक्ष में दो आदेश हैं, एक ऑस्ट्रिया की अदालतों द्वारा प्रतिवादी को बच्चे को ऑस्ट्रेलिया वापस लाने का आदेश और दूसरा, ऑस्ट्रेलिया की अदालतों द्वारा अपीलकर्ता की तलाक की प्रार्थना को स्वीकार करना, अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं लगता।" तदनुसार, अदालत ने अपील स्वीकार कर ली। 

Cause Title: NITIN AHLUWALIA Versus STATE OF PUNJAB & ANR.

https://hindi.livelaw.in/supreme-court/s-482-crpcs-528-bnss-in-some-fir-quashing-pleas-high-court-must-appreciate-background-in-which-case-was-filed-supreme-court-304403

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