*सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि पत्नी के पास के पर्याप्त साधन हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट*
Tuesday, 24 May 2022
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि पत्नी के पास के पर्याप्त साधन हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Sunday, 22 May 2022
दोहरा बीमा: जब एक बीमाकर्ता ने नुकसान की पूरी क्षतिपूर्ति की हो तो दूसरा बीमाकर्ता दावा अस्वीकार कर सकता है- सुप्रीम कोर्ट
दोहरा बीमा: जब एक बीमाकर्ता ने नुकसान की पूरी क्षतिपूर्ति की हो तो दूसरा बीमाकर्ता दावा अस्वीकार कर सकता है- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि ओवरलैपिंग इन्श्योरेंस पॉलिसी के मामलों में, जब बीमाधारक को हुई हानि (defined loss) की पूरी क्षतिपूर्ति एक बीमाकर्ता ने की हो तो दूसरा बीमाकर्ता उसी घटना के लिए किए गए क्लेम के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। "परिभाषित नुकसान (defined loss)की क्षतिपूर्ति के लिए बीमा का अनुबंध हमेशा एक और एक ही होता है, न ज्यादा और न कम। विशिष्ट जोखिमों, जैसे कि आग के कारण हुए नुकसान आदि के लिए बीमित व्यक्ति दोहरे बीमा से लाभ नहीं उठा सकता है।"
केस टाइटल: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेविस स्ट्रॉस (इंडिया) प्रा लिमिटेड
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-199755
धारा 302 को तहत सजा कम करने की शक्ति राज्य के पास है ना कि केंद्र के पास : सुप्रीम कोर्ट
धारा 302 को तहत सजा कम करने की शक्ति राज्य के पास है ना कि केंद्र के पास : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत राजीव गांधी की हत्या के दोषियों में से एक, ए जी पेरारिवलन को रिहा करते हुए कहा कि राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 के तहत भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत दी गई सजा को हटाने / कम करने / माफ करने की शक्ति है, क्योंकि राज्य की कार्यकारी शक्ति उक्त प्रावधान तक फैली हुई है। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए एस बोपन्ना अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज द्वारा किए गए निवेदन को स्वीकार करने में असमर्थ थे कि राष्ट्रपति के पास भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत दी गई सजा को माफ करने या छूट देने या कम करने के लिए अनुच्छेद 72 के तहत विशेष शक्ति है।
[मामला : ए जी पेरारिवलन बनाम राज्य, पुलिस अधीक्षक सीबीआई / एसआईटी / एमएमडीए, चेन्नई, तमिलनाडु और अन्य के माध्यम से। सीआरएल ए. नंबर - 10039-10040/2016 ]
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-199755?utm_source=internal-artice&utm_medium=also-read
दावों का निपटान करते समय बीमा कंपनी को उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
दावों का निपटान करते समय बीमा कंपनी को उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है : सुप्रीम कोर्ट*
हेडनोट्स
बीमा - बीमा कंपनियां तुच्छ आधारों और/या तकनीकी आधारों पर दावे से इनकार करती हैं - दावों का निपटान करते समय, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं होना चाहिए और उन दस्तावेजों की मांग नहीं करनी चाहिए, जो बीमित व्यक्ति उसके नियंत्रण से परे परिस्थितियों के चलते पेश करने की स्थिति में नहीं है। (पैरा 4.1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986; धारा 2 (जी) - बीमा - सेवा में कमी - जब बीमाधारक ने पंजीकरण के प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए पंजीकरण विवरण को केवल इस आधार पर प्रस्तुत किया था कि पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र (जो चोरी हो गया है) प्रस्तुत नहीं किया गया है, तो दावे का निपटान न होने को सेवा में कमी कहा जा सकता है। ( पैरा 4 )
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/while-settling-claims-insurance-company-should-not-seek-documents-supreme-court-199798
Wednesday, 18 May 2022
आदेश IX नियम 13 सीपीसी - ये ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए कि एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं : सुप्रीम कोर्ट
आदेश IX नियम 13 सीपीसी - ये ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए कि एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं : सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादी को वाद की सुनवाई की तारीख से पहले की स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है जब उसे एक पक्षीय रखा गया था। जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने इस मामले में कहा कि एक निचली अदालत इस बात पर विचार कर सकती है कि क्या एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों की लिखित बयान दाखिल करने की प्रार्थना को अनुमति दी जा सकती है? इस मामले में, प्रतिवादी, जिन्हें एक वाद में एक पक्षीय सेट किया गया था, ने सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया और लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति देने की भी प्रार्थना की। ट्रायल कोर्ट ने एकपक्षीय डिक्री को रद्द करते हुए उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया। इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा करते हुए,हाईकोर्ट ने, हालांकि ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन यह माना कि प्रतिवादियों को अपना लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और वे केवल अपने मामले को प्रस्तुत किए बिना ही ट्रायल की सुनवाई में भाग ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ताओं-प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि एक बार एकपक्षीय डिक्री को रद्द करके ट्रायल दायर करने के लिए बहाल किया गया था और ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था कि लिखित बयान को रिकॉर्ड पर लेने की अनुमति दी जाए या नहीं, हाईकोर्ट को उस पर कुछ भी नहीं देखना चाहिए था और इसे ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए था। प्रतिवादी-वादी ने संग्राम सिंह बनाम चुनाव ट्रिब्यूनल, कोटा और अन्य; AIR 1955 SC 425 और अर्जुन सिंह बनाम मोहिन्द्रा कुमार और अन्य; AIR 1964 SC 993 पर यह तर्क देने के लिए भरोसा किया कि जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादियों को ट्रायल की सुनवाई की तारीख से पहले स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है और उन्हें वाद में कोई भी लिखित बयान दाखिल करने से वंचित कर दिया जाएगा।
उपरोक्त निर्णयों का उल्लेख करते हुए, अदालत ने इस प्रकार नोट किया:-
"यह सच है कि संग्राम सिंह (सुप्रा) और अर्जुन सिंह (सुप्रा) के मामले में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो तो प्रतिवादियों को ट्रायल की सुनवाई की तारीख से पहले स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है और उन्हें वाद में कोई भी लिखित बयान दाखिल करने से वंचित कर दिया जाएगा, लेकिन फिर वह वादी के गवाह से जिरह करने व तर्कों को संबोधित करने के लिए वाद की सुनवाई में भाग ले सकता है। " अदालत ने, हालांकि, नोट किया कि, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, ये निर्णय संग्राम सिंह (सुप्रा) और अर्जुन सिंह (सुप्रा) का मामला पूरी तरह से लागू नहीं होगा। "दूसरी प्रार्थना पर विद्वान ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई आदेश और / या निर्णय नहीं था, अर्थात्, प्रतिवादी संख्या 2 और 3 को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति देने के लिए या ना देने के लिए। इसलिए, एक बार एकपक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल हो जाता है और यहां तक कि संग्राम सिंह (सुप्रा) और अर्जुन सिंह (सुप्रा) के मामले में इस न्यायालय के निर्णयों के अनुसार, प्रतिवादियों को उस मामले में भी वाद की सुनवाई की तारीख से पहले स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है, यह प्रतिवादी संख्या 2 और 3 की प्रार्थना पर विचार करने के लिए विद्वान ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए था कि उन्हें लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं, जिसकी सीएमए संख्या 31/2018 में भी प्रार्थना की गई थी।" इसलिए अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह प्रतिवादियों की प्रार्थना के संबंध में इस मुद्दे पर विचार करे कि उन्हें अपना लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए।
हेडनोट्सः सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908; आदेश IX नियम 13 - जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादी को वाद की सुनवाई की तारीख से पहले की स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता जब उसे रद्द किया गया और उन्हें वाद में कोई भी लिखित बयान दाखिल करने से वंचित कर दिया जाएगा, लेकिन फिर वह वादी के गवाह से जिरह करने व तर्कों को संबोधित करने के लिए वाद की सुनवाई में भाग ले सकता है।। [संग्राम सिंह बनाम चुनाव ट्रिब्यूनल, कोटा और अन्य; AIR 1955 SC 425 और अर्जुन सिंह बनाम मोहिन्द्रा कुमार और अन्य; AIR 1964 SC 993 ] (पैरा 6) सारांश - हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील, जिसने एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की, लेकिन यह माना कि प्रतिवादियों को अपना लिखित बयान दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है - अनुमति दी गई - इसे विचार करने के लिए ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए था कि प्रतिवादी को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दे या नहीं।
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/order-ix-rule-13-cpc-trial-court-can-decide-prayer-of-defendants-to-permit-filing-of-written-statement-after-setting-aside-ex-parte-decree-supreme-court-199423?infinitescroll=1
Tuesday, 3 May 2022
सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट पाने के हकदार : सुप्रीम कोर्ट
*सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट पाने के हकदार : सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट / पद पाने के हकदार हैं। जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणियों में सीटों के लिए दावा कर सकते हैं यदि मेरिट सूची में उनकी योग्यता और स्थिति उन्हें ऐसा करने का अधिकार देती है तो।
भारत संचार निगम लिमिटेड बनाम संदीप चौधरी | 2022 लाइव लॉ (SC) 419 | 2015 की सीए 8717 | 28 अप्रैल 2022
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970
नियोक्ता अपने कर्मचारी की सेवा के अंत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद नहीं उठा सकते : सुप्रीम कोर्ट
*नियोक्ता अपने कर्मचारी की सेवा के अंत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद नहीं उठा सकते : सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि यह नियम कि कर्मचारी अपनी सेवा के अंत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद नहीं उठा सकते हैं, नियोक्ताओं पर भी समान रूप से लागू होता है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को उसकी जन्मतिथि में बदलाव करके वीआरएस लाभ कम करने का फैसला किया गया था।
केस: शंकर लाल बनाम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड और अन्य
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एक आपराधिक मुकदमे में एक गवाह की गवाही को केवल मामूली विरोधाभासों या चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
*एक आपराधिक मुकदमे में एक गवाह की गवाही को केवल मामूली विरोधाभासों या चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक आपराधिक मुकदमे में एक गवाह की गवाही को केवल मामूली विरोधाभासों या चूक के कारण खारिज नहीं किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए चिकित्सा साक्ष्य का बहुत अधिक पुष्टिकारक महत्व है। कोर्ट पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर विचार कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय को संशोधित करते हुए अपीलकर्ता-आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 से धारा 324 (धारा 34 के साथ पठित) के तहत दोषी ठहराया गया था और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत उनकी सजा की पुष्टि की गई थी।
अनुज सिंह @ रामानुज सिंह @ सेठ सिंह बनाम बिहार सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 402 | सीआरए 150/2020 | 22 अप्रैल 2022
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एडहॉक कर्मचारी को किसी अन्य एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता; केवल नियमित कर्मचारी द्वारा ही बदला जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
*एडहॉक कर्मचारी को किसी अन्य एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता; केवल नियमित कर्मचारी द्वारा ही बदला जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि एक एडहॉक कर्मचारी को दूसरे एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, उसे केवल एक नियमित रूप से नियुक्त उम्मीदवार द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, "यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि एक एडहॉक कर्मचारी को किसी अन्य एडहॉक कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता और उसे केवल एक अन्य उम्मीदवार द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे नियमित रूप से निर्धारित नियमित प्रक्रिया का पालन करके नियुक्त किया जाता है।"
केस शीर्षक : मनीष गुप्ता और अन्य बनाम जनभागीदारी समिति और अन्य |
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970
बकाया वेतन पाने के लिए कर्मचारी को अनुरोध करना होगा कि वो लाभप्रद रूप से नियुक्त नहीं था, तभी भार नियोक्ता पर शिफ्ट होगा : सुप्रीम कोर्ट
*बकाया वेतन पाने के लिए कर्मचारी को अनुरोध करना होगा कि वो लाभप्रद रूप से नियुक्त नहीं था, तभी भार नियोक्ता पर शिफ्ट होगा : सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को माना कि जिस कर्मचारी की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं और वो बकाया वेतन (Back wages) पाने का इच्छुक है तो वो या तो अनुरोध करने के लिए बाध्य है या कम से कम पहली बार में एक बयान दे कि वो लाभप्रद रूप से नियुक्त नहीं था या सेवा से बर्खास्त होने के बाद कम वेतन पर कार्यरत था। इसमें कहा गया है कि इसके बाद ही यह बोझ नियोक्ता पर होगा कि वह अन्यथा साबित करे। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने वाली अपील को खारिज कर दिया, जिसने इलाहाबाद बैंक के अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा पारित दंड आदेश को रद्द कर दिया था और अपने दोषी अधिकारी को 50% पिछले वेतन और सभी परिणामी लाभ के साथ बहाल करने का निर्देश दिया था।
केस: इलाहाबाद बैंक और अन्य बनाम अवतार भूषण भरतीय
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970
वक्फ एक्ट - समर्पण के सबूत के अभाव में एक जर्जर ढांचे को धार्मिक स्थल की मान्यता नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
वक्फ एक्ट - समर्पण के सबूत के अभाव में एक जर्जर ढांचे को धार्मिक स्थल की मान्यता नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'समर्पण' या 'उपयोगकर्ता' या 'अनुदान' के सबूत के अभाव में, जिसके जरिए वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3 (आर) के संदर्भ में एक जीर्ण दीवार या प्लेटफॉर्म को 'वक्फ' माना जाएगा, उक्त ढांचे को नमाज अदा करने के लिए धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसके तहत जिंदल सॉ लिमिटेड को खनन के लिए आवंटित भूखंड से एक ढांचे को हटाने की अनुमति दी गई थी, जिस पर वक्फ बोर्ड, राजस्थान ने दावा किया था कि यह एक धार्मिक स्थल है। केस शीर्षक: वक्फ बोर्ड, राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड और अन्य।https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-197970