सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया : एक बार दायर की गयी अग्रिम जमानत आरोप पत्र दाखिल किये जाने के साथ स्वत: समाप्त नहीं होती 8 March 2021
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि आरोप पत्र दायर करने पर अग्रिम जमानत स्वत: समाप्त नहीं हो जाती। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की अर्जी पर कहा था कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्त को दी गयी अग्रिम जमानत आरोप पत्र दाखिल किये जाने के साथ ही समाप्त हो गयी। हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता को आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए अर्जी दाखिल करने का निर्देश दिया। इस आदेश को चुनौती देते हुए अभियुक्त ने 'सुशीला अग्रवाल एवं अन्य बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य (2020) 5 एससीसी 1' मामले में संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा जताते हुए हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी और दलील दी थी कि ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है कि आरोप पत्र दाखिल करने के साथ अग्रिम जमानत स्वत: समाप्त हो जाती है। राज्य सरकार ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि 'सुशीला अग्रवाल' मामले में फैसला हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुनाया गया था। न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि सुशीला अग्रवाल मामले में यह कहा गया था कि, 'एक मौके पर धारा 438 के तहत दी गयी राहत का यह मतलब नहीं है कि आरोप पत्र दाखिल करने पर अभियुक्त को निश्चित तौर पर आत्मसमर्पण करना होता है या / और नियमित जमानत के लिए आवेदन करना होता है।' उक्त फैसले में यह भी कहा गया था कि आरोप पत्र दायर करने के बाद अभियुक्त को आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत लेने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में निम्नलिखित निष्कर्ष दिया : "इस कोर्ट को संदर्भित दूसरे प्रश्न के बारे में यह व्यवस्था दी जाती है कि अग्रिम जमानत आदेश का जीवनकाल या उसकी अवधि सामान्य रूप से उस समय और चरण में समाप्त नहीं होते जब अभियुक्त को अदालत द्वारा तलब किया जाता है, या जब आरोप तय होते हैं, बल्कि वह ट्रायल के समाप्त होने तक जारी रह सकता है। फिर भी, अगर अग्रिम जमानत की अवधि को सीमित करने के लिए कोई विशेष या असाधारण आवश्यकताएं हैं तो कोर्ट ऐसा कर सकता है।" बेंच ने अपील स्वीकार करते हुए कहा, "उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए हमारी राय है कि हाईकोर्ट का यह निर्णय त्रुटिपूर्ण है कि अभियुक्त को दी गयी अग्रिम जमानत आरोप पत्र दायर करने के साथ ही समाप्त हो गयी।" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियुक्तों को दी गयी अग्रिम जमानत रद्द करने संबंधी उचित आदेशों के लिए संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष अर्जी लगाये जाने के वास्ते पार्टी हमेशा स्वतंत्र हैं। केस : डॉ. राजेश प्रताप गिरि बनाम उत्तर प्रदेश सरकार [ विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) 693-694 / 2020] कोरम : न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस वकील : एडवोकेट शिशपाल लालर, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड रोहित कुमार सिंह
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