*परिसीमा अधिनियम, सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात दावा पैश*
- दावा प्रस्तुत करने के लिए परिसीमा 1982 में वादीगण ने सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात वर्ष 1965 में पारित सहमति डिग्री को 1982 मे उसे कपट द्वारा अभीप्राप्त किए जाने के आधार पर अपास्त करने की प्रार्थना के साथ दावा प्रस्तुत किया, विचारण न्यायालय ने परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 59 के आधार पर दावा स्वीकार किया गया।
जिसकी अपील करने पर अपील स्वीकार कर दावा निरस्त किया गया और द्वितीय अपील खारिज की जा कर दावा अस्वीकार किया।
अभीनिर्धारित किया कि- यदि वादी क्रमांक 1 व 2 सहमति डिग्री से अवगत नहीं थे या उक्त डिग्री से व्यथित थे तब उन्हें कदाचार/ घोर उपेक्षा जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 32 नियम 3 (ए) के अंतर्गत उपबंधित है, अभिवाक् करते हुए अथवा कपट या दुरभिसंधि हेतु साक्ष्य अधिनियम की धारा 44 के अंतर्गत प्रकरण लेकर आना चाहिए था परंतु अभिलेख दर्शाता है कि अपिलार्थी गण द्वारा ऐसे कोई अभिवचन/निवेदन नहीं किए गए - आगे अभिनिर्धारित- वादी गण ने सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात बाद प्रस्तुत किया - परिसीमा अधिनियम की धारा 6,7,8 को एक साथ पढ़ने पर दर्शित होता है कि मुकदमे बाज परिसीमा की नई अवधि का हकदार है अर्थात अक्षमता समाप्त होने की तिथि से 3 वर्ष - वयस्कता प्राप्त करने के पश्चात 3 वर्षों के भीतर वाद प्रस्तुत नहीं किया गया है और इसलिए समय द्वारा वर्जित है - अपीली न्यायालय ने उचित रूप से अपील खारिज की- द्वितीय अपील भी खारिज की गई ।
*चिरौंजी बाई विरुद्ध नारायण सिंह आईएलआर 2017 मध्य प्रदेश 1135*
- दावा प्रस्तुत करने के लिए परिसीमा 1982 में वादीगण ने सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात वर्ष 1965 में पारित सहमति डिग्री को 1982 मे उसे कपट द्वारा अभीप्राप्त किए जाने के आधार पर अपास्त करने की प्रार्थना के साथ दावा प्रस्तुत किया, विचारण न्यायालय ने परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 59 के आधार पर दावा स्वीकार किया गया।
जिसकी अपील करने पर अपील स्वीकार कर दावा निरस्त किया गया और द्वितीय अपील खारिज की जा कर दावा अस्वीकार किया।
अभीनिर्धारित किया कि- यदि वादी क्रमांक 1 व 2 सहमति डिग्री से अवगत नहीं थे या उक्त डिग्री से व्यथित थे तब उन्हें कदाचार/ घोर उपेक्षा जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 32 नियम 3 (ए) के अंतर्गत उपबंधित है, अभिवाक् करते हुए अथवा कपट या दुरभिसंधि हेतु साक्ष्य अधिनियम की धारा 44 के अंतर्गत प्रकरण लेकर आना चाहिए था परंतु अभिलेख दर्शाता है कि अपिलार्थी गण द्वारा ऐसे कोई अभिवचन/निवेदन नहीं किए गए - आगे अभिनिर्धारित- वादी गण ने सहमति डिग्री के 17 वर्ष पश्चात बाद प्रस्तुत किया - परिसीमा अधिनियम की धारा 6,7,8 को एक साथ पढ़ने पर दर्शित होता है कि मुकदमे बाज परिसीमा की नई अवधि का हकदार है अर्थात अक्षमता समाप्त होने की तिथि से 3 वर्ष - वयस्कता प्राप्त करने के पश्चात 3 वर्षों के भीतर वाद प्रस्तुत नहीं किया गया है और इसलिए समय द्वारा वर्जित है - अपीली न्यायालय ने उचित रूप से अपील खारिज की- द्वितीय अपील भी खारिज की गई ।
*चिरौंजी बाई विरुद्ध नारायण सिंह आईएलआर 2017 मध्य प्रदेश 1135*
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