धारा 167 (2) द.प्र.सं. के बारे में
2 - न्याय दृष्टांत प्रज्ञा सिंह ठाकुर विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्ट्र (2011) 10 एस.सी. 445 के अनुसार अब चार्जशीट पेश हो जाने के बाद धारा 167 (2) की जमानत नहीं दी जा सकती है ।
3 - न्याय दृष्टांत सुंदर विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. आई.एल.आर. 2010 एम.पी. 1017 के अनुसार जहांँ 10 वर्ष तक का कारावास हो वहाँ 60 दिन की अवधि विचार में ली जायेगी । अपराध आजीवन कारावास और 10 वर्ष से कम न होने वाली कारावास से संबंधित हो अर्थात् अपराध में स्पष्ट अवधि 10 वर्ष या इससे अधिक की हो तभी 90 दिन मानी जायेगी इस मामले में लूट का अपराध था जो राजमार्ग पर सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व नहीं किया गया था अवधि 60 दिन मानी गयी ।
4 - जमानतीय मामलों में जमानत अभियुक्त का निरपेक्ष अधिकार है और इसमें न्यायालय को कोई विवेकाधिकार नहीं है अभियुक्त यदि जमानत देने के लिए तैयार है तो उसे पुलिस द्वारा/न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा किया जायेगा । इस मामले में न्याय दृष्टांत रसिक लाल विरूद्ध किशोर (2009) 4 एस.सी. सी. 446 अवलोकनीय है ।
1 - न्याय दृष्टांत विपुल शीतल प्रसाद अग्रवाल विरूद्ध स्टेट आफ गुजरात (2013) 1 एस.सी.सी. 197
तीन न्यायमूर्तिगण की पीठ के अनुसार राज्य पुलिस ने नब्बे दिन के भीतर
अनुसंधान करके चार्जशील पेश कर दी बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसंधान
संतोषप्रद नहीं पाया । सी.बी.आई ने सर्वोच्च न्यायलय के निर्देशों पर
अनुसंधान हाथ में लिया सी.बी.आई ने पुनः प्रथम सूचना प्रतिवेदन पंजीबद्ध
किया और अनुसंधान करके 90 दिन के भीतर चार्जशीट पेश की । अभियुक्त धारा 167
(2) के तहत जमानत का पात्र नहीं होगा । इस मामले में अग्रिम अनुसंधान और
ताजा अनुसंधान शब्दों को स्पष्ट किया गया है ।
2 - न्याय दृष्टांत प्रज्ञा सिंह ठाकुर विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्ट्र (2011) 10 एस.सी. 445 के अनुसार अब चार्जशीट पेश हो जाने के बाद धारा 167 (2) की जमानत नहीं दी जा सकती है ।
3 - न्याय दृष्टांत सुंदर विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. आई.एल.आर. 2010 एम.पी. 1017 के अनुसार जहांँ 10 वर्ष तक का कारावास हो वहाँ 60 दिन की अवधि विचार में ली जायेगी । अपराध आजीवन कारावास और 10 वर्ष से कम न होने वाली कारावास से संबंधित हो अर्थात् अपराध में स्पष्ट अवधि 10 वर्ष या इससे अधिक की हो तभी 90 दिन मानी जायेगी इस मामले में लूट का अपराध था जो राजमार्ग पर सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व नहीं किया गया था अवधि 60 दिन मानी गयी ।
4 - जमानतीय मामलों में जमानत अभियुक्त का निरपेक्ष अधिकार है और इसमें न्यायालय को कोई विवेकाधिकार नहीं है अभियुक्त यदि जमानत देने के लिए तैयार है तो उसे पुलिस द्वारा/न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा किया जायेगा । इस मामले में न्याय दृष्टांत रसिक लाल विरूद्ध किशोर (2009) 4 एस.सी. सी. 446 अवलोकनीय है ।
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