क्या आपराधिक मामले की जांच या
विचारण के किसी भी प्रक्रम पर न्यायालय
अभियुक्त को एक ही आदेश से एक से
अधिक तिथियों के लिये व्यक्तिगत
उपस्थिति से अभिमुक्ति प्रदान कर सकता
हैं? क्या ऐसी अभिमुक्ति सेशन न्यायालय
द्वारा भी अनुज्ञात की जा सकती है ?
सामान्य रूप से किसी आपराधिक मामले की
जांच एवं विचारण के अनुक्रम में दण्ड प्रक्रिया
संहिता 1973 की धारा 205 के अधीन जांच एवं
विचारण करने वाले मजिस्टेंट द्वारा अभियुक्त की
उपस्थिति के लिए समन जारी करते समय
अथवा ऐसी तिथि पर अभियुक्त के आवेदन पर
उसे एक से अधिक नियत तिथियों अथवा एक
अंतराल के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से
अभिमुक्ति प्रदान की जा सकती है तथा ऐसी
अवधि में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व उसके
अभिभाषक द्वारा स्वीकार किया जाता है। ऐसी
अभिमुक्ति अनुज्ञात करते समय मजिस्टेंट के
समक्ष अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति अपेक्षित
नहीं हैं। यह धारणा सही नहीं है कि धारा-205
द.प्र.सं. के अधीन अभियुक्त को व्यक्तिगत
उपस्थिति से अभिमुक्ति प्रदान करने के पूर्व उसे
न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित
होना चाहिए। ⁄ दे खें R.P. Gupta v. The State
of M.P. 2007 (1) MPHT 412 ⁄
वस्तुतः यह अभिमुक्ति समन जारी करने वाले
मजिस्टेंट द्वारा अनुज्ञात की जाती है तथा प्रकट
रूप से धारा 205 द.प्र.सं. का क्षेत्र सेशन
न्यायालय तक विस्तारित नहीं है। समन जारी
करने वाला मजिस्टेंट जांच या विचारण प्रारंभ
होने के पूर्व धारा-205 द.प्र.सं. के प्रावधान के
अधीन अभियुक्त को व्यक्तिगत उपस्थित से
अभिमुक्ति प्रदान करने हेतु सशक्त है जबकि
जांच या विचारण के प्रक्रम पर ऐसी अभिमुक्ति
दं.प्र.सं. की धारा-317 ⁄1⁄ के अधीन ही प्रदान की
जा सकती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-317 ⁄1⁄ के
अधीन जांच एवं विचारण के किसी भी प्रक्रम पर
मजिस्टेंट अथवा न्यायाधीश किसी अभियुक्त
को एक से अधिक तिथियो अथवा अंतराल के
लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्ति अपने
समाधान के कारणों को लेखबद्ध करते हुए
अनुज्ञात कर सकते हैं। आवश्यक होने पर
पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर ऐसे अभियुक्त को
व्यक्तिगत उपस्थिति हेतु निर्देशित किया जा
सकता है। अभियुक्त की अनुपस्थिति में
अभियुक्त का प्रतिनिधित्व उसके अभिभाषक द्वारा
किया जाएगा।
ऐसी अभिमुक्ति अनुज्ञात करते समय अभियुक्त
से न्यायलाय की संतुष्टि योग्य यह परिवचन
⁄ Undertaking ⁄ प्राप्त किया जाना चाहिए कि
वह मामले में अपनी पहचान को विवादित नहीं
करेगा और नियम तिथियों पर उसके अभिभाषक
उसकी ओर से न्यायालय में उपस्थित रहेंगे तथा
उसकी अनुपस्थिति में साक्ष्य के लिए जाने पर
कोई आपत्ति नहीं करेंगे।
यदि अधिकृत अभिभाषक, जिनके द्वारा अभियुक्त
का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है, उपस्थित नहीं
होते है अथवा मामले के विचारण में सहयोग
नहीं करते हैं तो ऐसे अभियुक्त को मामले की
कार्यवाही के पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर व्यक्तिगत
रूप से उपस्थित रहने हेतु संहिता की धारा 205⁄2⁄
अथवा 317 ⁄1⁄ के अधीन निर्देशित किया
जा सकता है। इस बिंदु पर माननीय उच्चतम
न्यायालय का न्याय दृष्टांत M/S Bhashkar
Industries Ltd. v. M/S Bhiwani Denim and
Apparels Ltd., AIR 2001 SC 3625 अवलोकनीय है।
संहिता की धारा 317 ⁄1⁄ में मजिस्टेंट के
अतिरिक्त न्यायाधीश शब्द को प्रयुक्त किया गया
है जिसका स्पष्ट विधायी आशय यह है कि ऐसी
अभिमुक्ति सेशन न्यायालय द्वारा भी अनुज्ञात की
जा सकती है।
विचारण के किसी भी प्रक्रम पर न्यायालय
अभियुक्त को एक ही आदेश से एक से
अधिक तिथियों के लिये व्यक्तिगत
उपस्थिति से अभिमुक्ति प्रदान कर सकता
हैं? क्या ऐसी अभिमुक्ति सेशन न्यायालय
द्वारा भी अनुज्ञात की जा सकती है ?
सामान्य रूप से किसी आपराधिक मामले की
जांच एवं विचारण के अनुक्रम में दण्ड प्रक्रिया
संहिता 1973 की धारा 205 के अधीन जांच एवं
विचारण करने वाले मजिस्टेंट द्वारा अभियुक्त की
उपस्थिति के लिए समन जारी करते समय
अथवा ऐसी तिथि पर अभियुक्त के आवेदन पर
उसे एक से अधिक नियत तिथियों अथवा एक
अंतराल के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से
अभिमुक्ति प्रदान की जा सकती है तथा ऐसी
अवधि में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व उसके
अभिभाषक द्वारा स्वीकार किया जाता है। ऐसी
अभिमुक्ति अनुज्ञात करते समय मजिस्टेंट के
समक्ष अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति अपेक्षित
नहीं हैं। यह धारणा सही नहीं है कि धारा-205
द.प्र.सं. के अधीन अभियुक्त को व्यक्तिगत
उपस्थिति से अभिमुक्ति प्रदान करने के पूर्व उसे
न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित
होना चाहिए। ⁄ दे खें R.P. Gupta v. The State
of M.P. 2007 (1) MPHT 412 ⁄
वस्तुतः यह अभिमुक्ति समन जारी करने वाले
मजिस्टेंट द्वारा अनुज्ञात की जाती है तथा प्रकट
रूप से धारा 205 द.प्र.सं. का क्षेत्र सेशन
न्यायालय तक विस्तारित नहीं है। समन जारी
करने वाला मजिस्टेंट जांच या विचारण प्रारंभ
होने के पूर्व धारा-205 द.प्र.सं. के प्रावधान के
अधीन अभियुक्त को व्यक्तिगत उपस्थित से
अभिमुक्ति प्रदान करने हेतु सशक्त है जबकि
जांच या विचारण के प्रक्रम पर ऐसी अभिमुक्ति
दं.प्र.सं. की धारा-317 ⁄1⁄ के अधीन ही प्रदान की
जा सकती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-317 ⁄1⁄ के
अधीन जांच एवं विचारण के किसी भी प्रक्रम पर
मजिस्टेंट अथवा न्यायाधीश किसी अभियुक्त
को एक से अधिक तिथियो अथवा अंतराल के
लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से अभिमुक्ति अपने
समाधान के कारणों को लेखबद्ध करते हुए
अनुज्ञात कर सकते हैं। आवश्यक होने पर
पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर ऐसे अभियुक्त को
व्यक्तिगत उपस्थिति हेतु निर्देशित किया जा
सकता है। अभियुक्त की अनुपस्थिति में
अभियुक्त का प्रतिनिधित्व उसके अभिभाषक द्वारा
किया जाएगा।
ऐसी अभिमुक्ति अनुज्ञात करते समय अभियुक्त
से न्यायलाय की संतुष्टि योग्य यह परिवचन
⁄ Undertaking ⁄ प्राप्त किया जाना चाहिए कि
वह मामले में अपनी पहचान को विवादित नहीं
करेगा और नियम तिथियों पर उसके अभिभाषक
उसकी ओर से न्यायालय में उपस्थित रहेंगे तथा
उसकी अनुपस्थिति में साक्ष्य के लिए जाने पर
कोई आपत्ति नहीं करेंगे।
यदि अधिकृत अभिभाषक, जिनके द्वारा अभियुक्त
का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है, उपस्थित नहीं
होते है अथवा मामले के विचारण में सहयोग
नहीं करते हैं तो ऐसे अभियुक्त को मामले की
कार्यवाही के पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर व्यक्तिगत
रूप से उपस्थित रहने हेतु संहिता की धारा 205⁄2⁄
अथवा 317 ⁄1⁄ के अधीन निर्देशित किया
जा सकता है। इस बिंदु पर माननीय उच्चतम
न्यायालय का न्याय दृष्टांत M/S Bhashkar
Industries Ltd. v. M/S Bhiwani Denim and
Apparels Ltd., AIR 2001 SC 3625 अवलोकनीय है।
संहिता की धारा 317 ⁄1⁄ में मजिस्टेंट के
अतिरिक्त न्यायाधीश शब्द को प्रयुक्त किया गया
है जिसका स्पष्ट विधायी आशय यह है कि ऐसी
अभिमुक्ति सेशन न्यायालय द्वारा भी अनुज्ञात की
जा सकती है।
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