केवल दस्तावेज़ी प्रमाण के अभाव में नकद लोन रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
9 Sept 2025
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि धन का एक हिस्सा बैंक हस्तांतरण के बजाय नकद के माध्यम से किया गया, इसका मतलब यह नहीं है कि केवल बैंकिंग माध्यम से हस्तांतरित राशि को ही प्रमाणित माना जा सकता है, खासकर जब वचन पत्र में पूरे लेनदेन का उल्लेख हो। न्यायालय ने आगे कहा कि दस्तावेज़ी प्रमाण का अभाव अपने आप में नकद लेनदेन रद्द नहीं कर देता। न्यायालय ने स्वीकार किया कि ऐसी स्थितियां होंगी, जहां लेनदेन करना होगा, जिसके लिए कोई प्रमाण नहीं होगा।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस विपुल एम पंचोली की खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस निर्णय से उत्पन्न मामले की सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी को दी गई लोन राशि को ₹30.8 लाख से घटाकर ₹22 लाख कर दिया गया। केवल इसलिए कि ₹8.8 लाख की अंतर राशि बैंकिंग माध्यम से नहीं, बल्कि नकद के माध्यम से वितरित की गई। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने प्रतिवादी के हस्ताक्षरित वचन पत्र को स्वीकार नहीं किया, जिसमें उसने अपीलकर्ता से ₹30.8 लाख प्राप्त करने की बात स्वीकार की।
हाईकोर्ट का निर्णय खारिज करते हुए न्यायालय ने वचन पत्र की प्रधानता पर बल देते हुए कहा कि एक बार जब इसकी प्रामाणिकता स्वीकार कर ली जाती है तो लोन के संबंध में कानूनी धारणा बन जाती है, जब तक कि इसे बनाने वाले द्वारा गलत साबित न कर दिया जाए। चूंकि प्रतिवादी ने वचन पत्र में ₹30.8 लाख की पूरी राशि स्वीकार करना स्वीकार किया था, इसलिए न्यायालय ने पाया कि हाईकोर्ट ने लोन को दो भागों, अर्थात् "सिद्ध" और "असिद्ध" भागों में विभाजित करके गलती की। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मौखिक साक्ष्य दीवानी मामलों में प्रमाण का एक वैध और विश्वसनीय रूप है। वाणिज्यिक लेनदेन में नकदी घटकों को केवल रसीदों या बैंकिंग रिकॉर्ड के अभाव में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा, “यह असामान्य नहीं है कि धन के लेन-देन में नकदी भी शामिल होती है। सिर्फ़ इसलिए कि कोई व्यक्ति आधिकारिक माध्यमों, यानी किसी परक्राम्य लिखत या बैंक लेनदेन के ज़रिए हस्तांतरण को साबित नहीं कर पाता, इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि ऐसी राशि नकद में नहीं चुकाई गई। खासकर तब जब अपीलकर्ता ने संबंधित न्यायालय के समक्ष इस आशय का स्पष्ट बयान दिया हो। इसके अलावा, कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण की प्रारंभिक धारणा परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) से भी आती है। इसलिए यह साबित करने का दायित्व प्रतिवादी पर है कि ऐसी कोई राशि नहीं दी गई थी। सिर्फ़ इसलिए कि दस्तावेज़ी प्रमाण उपलब्ध नहीं थे, हम इस दृष्टिकोण को ग़लत पाते हैं।”
अदालत ने आगे कहा, "जो व्यक्ति नकद देता है, उसके पास स्पष्ट रूप से कोई दस्तावेज़ी प्रमाण नहीं होगा। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि नकद लेन-देन के लिए भी रसीद ली जाए। हालांकि, रसीद न होने से यह बात नकार या गलत साबित नहीं होगी कि पक्षकारों के बीच नकद लेन-देन हुआ था। वर्तमान मामले में हाईकोर्ट द्वारा किया गया विभाजन स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण है। इसलिए टिकने योग्य नहीं है।" तदनुसार, अपील यह कहते हुए स्वीकार कर लिया गया कि हाईकोर्ट ने डिक्रीटल राशि कम करने में गलती की।
Cause Title: GEORGEKUTTY CHACKO Vs. M.N. SAJI
https://hindi.livelaw.in/supreme-court/cash-loan-not-negated-merely-due-to-absence-of-documentary-proof-supreme-court-303303