*'माता-पिता की सबसे बड़ी पीड़ा जीवन भर के लिए बच्चे को खो देना है': कर्नाटक हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना में 2 साल के बच्चे की मौत के लिए मुआवजा बढ़ाया*
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि माता-पिता को दी गई राशि मृत बच्चे के प्यार, स्नेह, देखभाल और साथ के नुकसान का मुआवजा है, हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) की ओर से एक जोड़े को दिए गए मुआवजे को बढ़ा दिया है। उन्होंने हादसे में अपनी 2 साल की बेटी को खो दिया था। जस्टिस शिवशंकर अमरन्नावर ने 16 अगस्त, 2016 के आदेश में संशोधन किया, जिसके तहत एमएसीटी ने याचिकाकर्ताओं को 3.50 लाख रुपये का मुआवजा दिया था।
किशन गोपाल और अन्य बनाम लाला और अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 6 वर्ष के लड़के की मृत्यु के मामले में 'निर्भरता के नुकसान' के लिए 4,50,000 रुपये का मुआवजा दिया था, हाईकोर्ट ने आदेश दिया, "इन परिस्थितियों में मैं किशन गोपाल के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करने का इच्छुक हूं और 'निर्भरता के नुकसान' के लिए 4,50,000/- रुपये, प्यार और स्नेह की हानि और अंतिम संस्कर के खर्च के लिए 50,000/- रुपये का मुआवजा देने के लिए कहा है, इस प्रकार कुल मुआवजा 5,00,000 रुपये होगा।"
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता सुरेश की 2 वर्षीय बेटी की 19.04.2015 को एक दुर्घटना में मौत हो गई। याचिकाकर्ता ने मुआवजे को बढ़ाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बताया गया कि हादसे के वक्त मृतक की उम्र 2 साल थी। इस प्रकार के मामले में, आर्थिक दृष्टि से नुकसान का आकलन करना मुश्किल है और मोटर वाहन अधिनियम, उचित मुआवजा देने के लिए कोई आधार प्रदान करने पर खामोश है। बीमा कंपनी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की ओर से पेश वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि मृतक की उम्र लगभग 2 वर्ष थी और वह परिवार की कमाऊ सदस्य नहीं है और अपीलकर्ता आश्रित नहीं हैं। इस प्रकार, ट्रिब्यूनल ने जो भी मुआवजा दिया है, वह उचित है।
निष्कर्ष
पीठ ने कहा कि नाबालिग की मौत के मामले में मुआवजे का आकलन करना मुश्किल है। मुआवजे के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं को लिंग के आधार पर तय नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, "एक दुर्घटना के कारण बच्चे की मृत्यु हो जाती है, जिससे मृतक के माता-पिता और परिवार को गहरा आघात और पीड़ा होती है। माता-पिता के लिए सबसे बड़ी पीड़ा अपने बच्चे को अपने जीवनकाल में खो देना होता है। बच्चों को उनके प्यार, स्नेह, साथ और परिवार में उनकी भूमिका के लिए मूल्यवान माना जाता है।"
अदालत ने राय दी, "दुनिया भर के आधुनिक न्यायालयों ने माना है कि एक बच्चे के साथ का मूल्य एक बच्चे की मृत्यु के मामले में दिए गए मुआवजे के आर्थिक मूल्य से कहीं अधिक है। अधिकांश न्यायालय एक बच्चे की मृत्यु पर साथ के नुकसान के तहत माता-पिता को मुआवजा देने की अनुमति देते हैं। माता-पिता को दी जाने वाली राशि मृत बच्चे के प्यार, स्नेह, देखभाल और साथ की हानि के लिए मुआवजा है।" किशन गोपाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, अदालत ने 'निर्भरता की हानि' के लिए मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 4,50,000 रुपये किया। साथ ही प्यार और स्नेह की हानि, अंतिम संस्कार के खर्च और परिवहन के लिए 50,000 रुपये की वृद्धि की।
केस शीर्षक: सुरेश बनाम डी रमेश केस नंबर: एमएफए नंबर 8030/2016 आदेश की तिथि: 12 जनवरी, 2022 सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 18
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