मोटर एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल मृतक के साथी को मुआवजा दे सकता है: एमपी हाईकोर्ट 15 Oct 2025
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह कहा है कि मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल (Motor Accident Claims Tribunal) ऐसे सहवासिता (cohabitant) को मुआवजा प्रदान कर सकता है जो मृतक के साथ पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत करता था, बशर्ते कि दावा करने वाला यह साबित कर सके कि उनका संबंध दीर्घकालिक, स्थिर और विवाह जैसी प्रकृति का था और वह आर्थिक रूप से मृतक पर निर्भर था, भले ही उनका विवाह औपचारिक रूप से नहीं हुआ हो। न्यायालय ने ट्रिब्यूनल का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें मृतक के पिता को मुआवजा दिया गया था और अपीलकर्ता के दावे को खारिज किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि: अपीलकर्ता, जो मृतक की विधवा भाभी थी, ने मुआवजा मांगा था यह कहते हुए कि वह और उसकी बेटी मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर थीं। उनका तर्क था कि उनके पति की मृत्यु के बाद, मृतक ने स्थानीय रिवाजों के अनुसार उसे अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार किया और वे पति-पत्नी की तरह खुले रूप से रहते थे। गांव के सरपंच ने भी इस संबंध में प्रमाण पत्र जारी किया था। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने अपीलकर्ता को कानूनी उत्तराधिकारी (legal heir) के रूप में मान्यता नहीं दी और मृतक के पिता को 2,38,500 रुपये का मुआवजा दिया। नाराज अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।
अपीलकर्ता ने यह भी कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजा देने के लिए उनका वैवाहिक स्थिति महत्वपूर्ण नहीं है और ट्रिब्यूनल ने उनके आर्थिक निर्भरता और मृतक के साथ वास्तविक संबंध (de facto relationship) को नजरअंदाज किया। बीमा कंपनी ने अपील का विरोध किया और कहा कि चूंकि अपीलकर्ता मृतक की कानूनी पत्नी नहीं थी, इसलिए वह मुआवजे की पात्र नहीं है। "क्या मृतक की गैर-कानूनी पत्नी और उसकी बेटी, जो मृतक की संतान नहीं है, मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स के तहत मुआवजे की पात्र हैं?"
कोर्ट का निर्णय: न्यायालय ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मृत्यु से संबंधित मुआवजा दावा मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों (legal representatives) और उनके द्वारा अधिकृत एजेंट द्वारा किया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 'कानूनी प्रतिनिधि' की परिभाषा में मृतक की संपत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले विरासतदार या कोई भी व्यक्ति जो मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर है शामिल है।
N. Jayasree v Cholamandalam MS General Insurance Co Ltd के मामले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि अधिनियम 'कानूनी उत्तराधिकार' की तुलना में आर्थिक निर्भरता और प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता देता है।
जस्टिस हिमांशु जोशी ने कहा,"उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए, यह अदालत मानती है कि ट्रिब्यूनल मृतक के उस सहवासिता को मुआवजा दे सकता है जो पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत करता था। यह न्याय के सिद्धांत के अनुसार, मृतक पर उसकी निर्भरता को मान्यता देता है। हालांकि, सहवासिता को यह साबित करना होगा कि वह स्थिर, दीर्घकालिक संबंध में थी, मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर थी और संबंध विवाह जैसी प्रकृति का था, भले ही वह औपचारिक न हो।" न्यायालय ने अपील को स्वीकार करते हुए मामले को ट्रिब्यूनल में अपीलकर्ता और मृतक के पिता दोनों के दावे पर फिर से विचार करने के लिए भेज दिया और आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर नया मुआवजा आदेश पारित किया जाए।
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