Monday, 11 January 2021

जमानत की शर्त कठोर ना हो, अन्यथा यह जमानत से इनकार जैसा और अभियुक्त की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगाः छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय 11 Jan 2021

 

*जमानत की शर्त कठोर ना हो, अन्यथा यह जमानत से इनकार जैसा और अभियुक्त की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगाः छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय 11 Jan 2021*

       छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पिछले महीने कहा कि *जमानत देते समय, लगाई गई शर्त कड़ी नहीं होनी चाहिए, बल्‍कि उचित होनी चाहिए, अन्यथा, यह जमानत नहीं देने के बराबर होगा और आरोपी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता देने से इनकार  करने और वंचित करने जैसा होगा, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसे दिए गए संवैधानिक अधिकार का उल्‍लंघन होगा।*
          जस्टिस संजय के अग्रवाल की खंडपीठ ने मामले में *जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर को उद्धृत किया,* जिन्होंने बाबू सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1978) 1 SCC 579 में कहा था, *"गरीबों पर भारी जमानत लगाना स्पष्ट रूप से गलत है। गरीबी समाज की पीड़ा है और कठोरता नहीं, बल्‍कि सहानुभूति, न्यायिक प्रतिक्रिया है।"*  
        मामले के तथ्य - याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 420/34 के तहत मुकदमा चल रहा है। उसने सीआरपीसी की धारा 437 के तहत जमानत के लिए आवेदन दायर किया था। *मजिस्ट्रेट ने उसे दो लाख रुपए की नकद बैंक गारंटी या कैस की शर्त पर जमानत दी।* याचिकाकर्ता की समीक्षा याचिका पर प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बालोद ने आंशिक संशोधन की अनुमति दी और *बैंक गारंटी की राशि घटाकर एक लाख रुपए कर दिया,* और दस हजार रुपए की बांड प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश की वैधता और शुद्धता पर सवाल उठाते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मौजूदा याचिका दायर की गई। 
           न्यायालय के अवलोकन न्यायालय ने कहा कि *यह बखूबी तय किया गया कानून है कि सीआरपीसी की धारा 437/439 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय, न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह यह देखे कि जमानत देने की शर्त मनमानी या मनमौजी नहीं होनी चाहिए, यह न्यायपूर्ण और तार्किक होनी चाहिए* और यह आरोपियों से नकद सुरक्षा या स्थानीय जमानत देने का आग्रह नहीं कर सकती। 
        कोर्ट ने आगे कहा, *"किसी भी शर्त को लगाने की  आवश्यकता यह है कि अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मामले की जांच के पुलिस के अधिकारों में न्यूनतम हस्तक्षेप करे।* अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पुलिस के जांच के अधिकार के बीच एक संतुलन रखा जाना चाहिए। 
     *" कोर्ट ने मोती राम और अन्य मध्य प्रदेश राज्य (1978) 4 एससीसी 47 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें अदालत ने जमानत के जरिए से भारी रकम मांगने की प्रथा को रोक दिया था।* मामले के तथ्यों पर कोर्ट ने कहा, *"यह काफी ज्वलंत है कि मौजूदा मामले में, हालांकि आरोपी को सीआरपीसी की धारा 437 के तहत जमानत दी गई और जबकि वह एक मामूली किसान है, उस पर दो लाख रुपए की बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की कठोर शर्त लगा दी गई, हालांकि बाद में इसे आंशिक रूप से संशोधित न्यायालय बैंक गारंटी एक लाख रुपए की गई, लेकिन अभी भी बैंक गारंटी की यह शर्त कठोर और अत्यधिक प्रतिकूल है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त जनादेश के आलोक में जमानत देने की उचित शर्त नहीं कहा जा सकता।"* कोर्ट ने एक लाख रुपए की बैंक गारंटी की शर्त को रद्द कर दिया और अभियुक्त को बीस हजार रुपए के बेल बांड पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।

      संबंध‌ित खबर एमडी धनपाल बनाम पुलिस निरीक्षक द्वारा राज्य  के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में माना था कि आवेदक की वित्तीय क्षमता से भारी रकम जमा करने को जमानत की शर्त नहीं लगाई जा सकती है। दिसंबर 2019 में, जमानत देते समय अदालतों द्वारा पालन किए जाने वाले सिद्धांतों को याद करते हुए, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था कि *गरीबी या किसी अभियुक्त की स्थिति को जमानत देते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।* सितंबर 2020 में, एक "गरीब" की जमानत राशि को कम करते हुए, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा था कि *याचिकाकर्ता को अपनी आजादी केवल इसलिए वापस नहीं मिल सकती, क्योंकि वह जमानत की व्यवस्था नहीं कर सकता था।* जस्टिस रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ ने टिप्पणी की थी, *"मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता जेल में है क्योंकि वह गरीब है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता; ऐसा नहीं होना चाहिए और यह अदालत ऐसा नहीं होने देगी।"* जून 2020 में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने माना था कि किसी अदालत द्वारा लगाई गई जमानत की *शर्तें ऐसी नहीं होनी चाहिए कि वे "जमानत के लिए घातक" साबित हों।* जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा था, *"जमानत की शर्त या उस पर लगाए गया बोझ, ऐसा नहीं होना चाहिए कि जमानत के अर्थ की व‌िफल हो जाए।"*

https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/bail-condition-shouldnt-be-stringent-otherwise-it-would-amount-to-denial-of-bail-and-violates-accuseds-right-of-personal-liberty-168237?infinitescroll=1

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