विभागीय जांच के बिना, एफआईआर को संदर्भित कर दिया गया बर्खास्तगी आदेश दोषपूर्णः गुजरात हाईकोर्ट
Monday, 14 February 2022
विभागीय जांच के बिना, एफआईआर को संदर्भित कर दिया गया बर्खास्तगी आदेश दोषपूर्ण
Sunday, 13 February 2022
अदालतों को निजी गवाहों से पूछताछ, जहां तक संभव हो, उसी दिन पूरी करनी चाहिए
*माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रकरण का नाम : राजेश यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार, CRA 339-340/2014 Date 6 फरवरी 2022 कोरम: जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश* मैं प्रतिपादित करते हुए कहा कि निचली अदालतों से बोला सुप्रीम कोर्ट- निजी गवाहों से पूछताछ उसी दिन पूरी करें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभर में निचली अदालतों को निजी गवाहों से पूछताछ, जहां तक संभव हो, उसी दिन पूरी करनी चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि ऐसे गवाहों से जिरह की प्रक्रिया अचानक ही बगैर किसी कारण स्थगित करने की प्रवृत्ति का संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बार-बार न्याय मिलने की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए जानबूझकर किए जा रहे प्रयास पर वह आक्रोश व्यक्त करता है और इससे ऐसे हालात पैदा होते हैं जिससे निजी गवाह 'जाहिर कारणों' से विरोधी हो जाते हैं। जस्टिस एस एस कौल और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश की एक पीठ ने कहा, 'मुख्य पूछताछ के पूरा होने के बाद लम्बे समय के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है जिससे बचाव पक्ष को विजयी होने में सहायता मिलती है।'
पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'इसलिए हम यह दोहराना उचित समझते हैं कि निचली अदालतों को निजी गवाहों की मुख्य पूछताछ और प्रति परीक्षण, जहां तक संभव हो उसी दिन करना चाहिए।' शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ चार अपीलकर्ताओं की अपील पर यह निर्णय सुनाया।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में इन चारों को 2004 में दो व्यक्तियों की गोली मारकर की गई हत्या के मामले में, दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। न्यायालय ने इस फैसले की प्रति संबंधित हाई कोर्ट को माध्यम से सभी निचली अदालतों में वितरित करने का आदेश दिया।
मुआवजे के निर्धारण के लिए दो गुणकों के प्रयोग की विधि गलत, मृतक की उम्र आधार होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
मुआवजे के निर्धारण के लिए दो गुणकों के प्रयोग की विधि गलत, मृतक की उम्र आधार होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मुआवजे के निर्धारण के लिए दो गुणकों के प्रयोग की विधि गलत है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि मृतक की उम्र को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त गुणक का प्रयोग किया जाए। मामले में, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील में मद्रास हाईकोर्ट ने अधिवर्षिता की तारीख तक 3 के गुणक के संबंध में और उसके बाद 10 वर्षों के लिए जीवन की निर्भरता को ध्यान में रखते हुए 8 का गुणक के संबंध में ट्रिब्यूनल द्वारा दर्ज निष्कर्षों की पुष्टि की।
केस शीर्षक: आर. वल्ली बनाम तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम लिमिटेड।
अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले न्यायिक अधिकारी को इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी करें : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा
अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले न्यायिक अधिकारी को इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी करें : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/persuade-judicial-officers-having-good-track-record-to-withdraw-resignation-supreme-court-to-hcs-191694
डिक्री सुधार आवेदन केवल हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल होगा जहां ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री हाईकोर्ट के फैसले में विलय हो गई है : सुप्रीम कोर्ट
डिक्री सुधार आवेदन केवल हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल होगा जहां ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री हाईकोर्ट के फैसले में विलय हो गई है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णय और डिक्री में विलय हो जाती है, तो डिक्री के सुधार के लिए आवेदन केवल हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल किया जा सकता है जहां डिक्री की पुष्टि की गई थी। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के 3 जून, 2016 के आदेश के खिलाफ एसएलपी पर विचार कर रही थी। विचारणीय मुद्दा यह था कि क्या डिक्री के सुधार के लिए एक आवेदन जिसकी पुष्टि हाईकोर्ट द्वारा योग्यता के आधार पर दायर अपील पर निर्णय लेते समय की गई है, को ट्रायल कोर्ट द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 153ए के अभिप्राय को ध्यान में रखते हुए सुधारा/बदला जा सकता है।
केस : बी बोरैया प्रतिनिधि एलआरएस के माध्यम से बनाम
बीमा कंपनी केवल इस आधार पर कि चोरी की सूचना देरी से दी गई, दावा अस्वीकार नहीं कर सकती, यदि एफआईआर तुरंत दर्ज की गई थी: सुप्रीम कोर्ट
बीमा कंपनी केवल इस आधार पर कि चोरी की सूचना देरी से दी गई, दावा अस्वीकार नहीं कर सकती, यदि एफआईआर तुरंत दर्ज की गई थी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि यदि चोरी की वारदात की स्थिति में बीमा कंपनी केवल इस आधार पर दावा अस्वीकार नहीं कर सकती कि कंपनी को वारदात की सूचना विलंब से दी गई, हालांकि एफआईआर तुरंत दर्ज की गई थी। मामले में शिकायतकर्ता का बीमाकृत वाहन लूट लिया गया था। शिकायतकर्ता ने धारा 395 आईपीसी के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज कराई थी। पुलिस ने आरोपितों को गिरफ्तार किया और संबंधित न्यायालय में चालान किया। हालांकि वाहन का पता नहीं चल सका, इसलिए पुलिस ने अन्ट्रेसबल (पता नहीं लगाया जा सका) रिपोर्ट दर्ज की।
केस शीर्षक: जैन कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
आर्टिकल 226 - हाईकोर्ट को सबूतों की फिर से सराहना करने या अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट
आर्टिकल 226 - हाईकोर्ट को सबूतों की फिर से सराहना करने या अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी हाईकोर्ट को न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सबूतों की फिर से सराहना करने और/या अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा स्वीकार किए गए जांच अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। इस मामले में अपीलकर्ता एक बैंक में शाखा अधिकारी के पद पर कार्यरत था। उसके खिलाफ बैंक के एक उधारकर्ता द्वारा शिकायत की गई थी कि उसने 1,50,000/- रुपये के ऋण की सीमा स्वीकृत की थी, लेकिन उधारकर्ता ने उसके द्वारा मांगी गई रिश्वत देने से इनकार कर दिया था तो बाद में घटाकर 75,000/- रुपये कर दिया गया था।
केस: उमेश कुमार पाहवा बनाम निदेशक मंडल उत्तराखंड ग्रामीण बैंक
सहमति आदेश के खिलाफ अलग मुकदमा सुनवाई योग्य नहींः सुप्रीम कोर्ट
सहमति आदेश के खिलाफ अलग मुकदमा सुनवाई योग्य नहींः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सहमति के आदेश (decree) के खिलाफ एक अलग मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, समझौते पर आधारित सहमति के आदेश के पक्षकार को समझौते के आदेश को इस आधार पर चुनौती देने के लिए कि आदेश वैध नहीं है, यानी यह शून्य या शून्य करणीय है, उसी अदालत से संपर्क करना होगा, जिसने समझौता रिकॉर्ड किया होता है।
केस शीर्षकः श्री सूर्या डेवलपर्स एंड प्रमोटर्स बनाम एन शैलेश प्रसाद
धारा 498A आईपीसी- सामान्य और सर्वव्यापक आरोपों के आधार पर पति के रिश्तेदारों पर मुकदमा चलाना प्रक्रिया का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट
*धारा 498A आईपीसी- सामान्य और सर्वव्यापक आरोपों के आधार पर पति के रिश्तेदारों पर मुकदमा चलाना प्रक्रिया का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति के रिश्तेदारों पर लगाए गए सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अदालत ने आईपीसी की धारा 498ए जैसे प्रावधानों को पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ पर्सनल स्कोर सेटल करने के औजार के रूप में इस्तेमाल करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चिंता व्यक्त की। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि एक आपराधिक मुकदमे में अंततः बरी हो जाने के बाद भी आरोपी की गंभीर क्षति होती हैं, इसलिए इस प्रकार की कवायद को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
केस शीर्षकः कहकशां कौसर @ सोनम बनाम बिहार राज्य
पोस्ट ऑफिस/ बैंक अपने कर्मचारियों द्वारा धोखाधड़ी या गलत कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते : सुप्रीम कोर्ट
*पोस्ट ऑफिस/ बैंक अपने कर्मचारियों द्वारा धोखाधड़ी या गलत कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते : सुप्रीम कोर्ट*
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि एक बार जब यह स्थापित हो जाता है कि किसी पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी द्वारा अपने रोजगार के दौरान धोखाधड़ी या कोई गलत कार्य किया गया था, तो पोस्ट ऑफिस ऐसे कर्मचारी के गलत कार्य के लिए जिम्मेदार होगा।सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पोस्ट ऑफिस संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने का हकदार है, लेकिन यह उन्हें उनके दायित्व से मुक्त नहीं करेगा। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ("एनसीडीआरसी") के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील की अनुमति दी, जिसमें कहा गया था कि किसान विकास पत्रों को भुनाने के संबंध में डाक एजेंट द्वारा की गई धोखाधड़ी के लिए डाक विभाग के अधिकारियों को वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
केस : प्रदीप कुमार और अन्य बनाम पोस्ट मास्टर जनरल और अन्य।
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-weekly-round-up-a-look-at-some-special-ordersjudgments-of-the-supreme-court-191809?infinitescroll=1
Saturday, 5 February 2022
सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क किए बिना एफआईआर दर्ज करने के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं जा सकते: गुजरात हाईकोर्ट
*सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क किए बिना एफआईआर दर्ज करने के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं जा सकते: गुजरात हाईकोर्ट*
केस शीर्षक: रंजीतप्रसाद चंद्रदेवराम राजवंशी श्री लॉजिस्टिक्स के मालिक बनाम गुजरात राज्य सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (गुजरात) 20
केस नंबर: आर/एससीआर.ए/1114/2022
https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/cant-move-high-court-directly-seeking-registration-of-fir-without-first-approaching-magistrate-us-1563-crpc-gujarat-hc-191203