सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में फर्जी जाति प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने के आरोपी पूर्व विधायक के खिलाफ आपराधिक मामला बहाल किया 15 Oct 2025
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (14 अक्टूबर) को मध्य प्रदेश के गुना के आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए धोखाधड़ी से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हासिल करने के आरोपी पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह और अन्य के खिलाफ आपराधिक मामला बहाल किया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें प्रथम दृष्टया मामला होने के बावजूद मिनी-ट्रायल किया गया था। खंडपीठ ने कहा कि एक बार जब किसी शिकायत में धोखाधड़ी, जालसाजी और षड्यंत्र के प्रथम दृष्टया अपराध का खुलासा होता है तो मामले की सुनवाई होनी चाहिए और रद्द करने के चरण में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि राजेंद्र सिंह, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से सामान्य वर्ग से संबंधित बताया गया, उन्होंने 2008 में एक फर्जी अनुसूचित जाति (सांसी) प्रमाण पत्र प्राप्त किया, जिससे उन्हें गुना (एससी आरक्षित) निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने और जीतने का मौका मिला। बाद में एक उच्चाधिकार प्राप्त जांच समिति ने यह पाते हुए प्रमाणपत्र रद्द किया कि यह अवैध रूप से और अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किए बिना जारी किया गया था। समिति के आदेश को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और अंततः 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
इसके बाद 2014 में निजी आपराधिक शिकायत दर्ज की गई, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467, 468, 471 (जालसाजी से संबंधित अपराध) और 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया। हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए जस्टिस विश्वनाथन द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया: “हमने निर्णय के पूर्वार्ध में शिकायत का सारांश प्रस्तुत किया। जैसा कि ऊपर संक्षेप में दिए गए कथनों से स्पष्ट है, शिकायत और निर्विवाद दस्तावेजों को पढ़ने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि अभियुक्त राजेंद्र सिंह के विरुद्ध IPC की धारा 420, 467, 468 और 471 तथा अभियुक्त अमरीक सिंह, हरवीर सिंह और श्रीमती किरण जैन के विरुद्ध IPC की धारा 420, 467, 468, 471 सहपठित धारा 120बी के अंतर्गत कोई अपराध प्रथम दृष्टया नहीं बनता। इसमें कोई संदेह नहीं कि अंतिम निर्णय मुकदमे में आगे के सबूतों पर निर्भर करेगा।”
अदालत ने आगे कहा, "शिकायत में स्पष्ट रूप से आरोप लगाया गया कि राजेंद्र सिंह और अमरीक सिंह सामान्य वर्ग से हैं। हमेशा खुद को सामान्य वर्ग का बताते रहे हैं और केवल आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के उद्देश्य से ही उन्होंने चुनाव की पूर्व संध्या पर जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए दस्तावेज, हलफनामे और पंचनामा प्रस्तुत किए। हमने संज्ञान लेने के आदेश का भी अवलोकन किया। ट्रायल जज ने सावधानीपूर्वक अपने विवेक का प्रयोग किया और अनाज से भूसा अलग किया और प्रस्तुत कारणों से बारह अभियुक्तों में से केवल चार प्रतिवादियों-अभियुक्तों के विरुद्ध ही संज्ञान लिया।" तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और मामले को ट्रायल कोर्ट की फाइल में इस निर्देश के साथ वापस कर दिया गया कि मुकदमा एक वर्ष के भीतर पूरा किया जाए।
Cause Title: KOMAL PRASAD SHAKYA VERSUS RAJENDRA SINGH AND OTHERS
https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-restores-criminal-case-against-ex-mla-for-allegedly-using-fake-caste-certificate-in-election-306973