शादी को अमान्य पाए जाने पर आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Friday, 17 February 2023
शादी को अमान्य पाए जाने पर आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Wednesday, 15 February 2023
आईपीसी और अन्य कानून के तहत अपराधों के लिए निजी शिकायत सुनवाई योग्य, मध्य प्रदेश सोसायटी पंजीकरण अधिनियम की धारा 37 के तहत वर्जित नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
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Thursday, 9 February 2023
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण आदेश को अंतर्वर्ती नहीं माना जा सकता, फैमिली कोर्ट के तहत संशोधन दायर किया जा सकता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
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Monday, 6 February 2023
न्यायिक अकादमियों में जमानत और गिरफ्तारी दिशानिर्देशों पर उनके दो जजमेंट्स को कोर्स का हिस्सा बनाया जाए, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया
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Saturday, 4 February 2023
वीआरएस लेने वाले कर्मचारी आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होने वाले अन्य लोगों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
वीआरएस लेने वाले कर्मचारी आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होने वाले अन्य लोगों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
Thursday, 2 February 2023
आईपीसी की धारा 498ए- क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने के बाद पत्नी जिस स्थान पर रहती है वहां केस दायर कर सकती है
आईपीसी की धारा 498ए- क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने के बाद पत्नी जिस स्थान पर रहती है वहां केस दायर कर सकती है
उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत केस उस स्थान पर दायर किया जा सकता है जहां एक महिला क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने या बाहर निकाले जाने के बाद रहती है। जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की पीठ ने पूर्वोक्त आरोप को ‘निरंतर अपराध’ करार देते हुए कहा कि, “...क्रूरता के शारीरिक कृत्यों का निश्चित रूप से यातना के शिकार व्यक्ति के मानसिक संकाय पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए, वैवाहिक घर में पत्नी के साथ की गई शारीरिक क्रूरता का उसके माता-पिता के घर में पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, खासकर जब आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध लगातार चलने वाला अपराध हो और अलग-अलग स्थानों पर पत्नी को दी जाने वाली यातना भी पत्नी को लंबे समय तक मानसिक रूप से प्रताड़ित करेगी।”
याचिकाकर्ताओं (शिकायतकर्ता के पति और ससुराल वालों) ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध करने के लिए उनके खिलाफ पारित संज्ञान के आदेश को रद्द करने की प्रार्थना के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने शिकायतकर्ता के साथ कथित रूप से क्रूरता करने के लिए उनके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को भी रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि एफआईआर में बताए गए सभी आरोप उक्त न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर एक दूर स्थान से संबंधित हैं। इसलिए, यह तर्क दिया गया था कि अधिकार क्षेत्र के अभाव में एफआईआर पर विचार करना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस आशय के लिए मनीष रतन व अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य व अन्य और मनोज कुमार शर्मा व अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला दिया गया।
दूसरी तरफ, राज्य ने रूपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया। प्रस्तुत किया कि चूंकि वैवाहिक घर में याचिकाकर्ताओं द्वारा यातना देने के आरोप का परिणाम ही पीड़िता को वर्तमान निवास स्थान पर हुई मानसिक प्रताड़ना है, इसलिए वर्तमान निवास स्थान पर ऐसी एफआईआर दर्ज करना अधिकार क्षेत्र के बिना नहीं माना जा सकता है। शुरुआत में न्यायालय ने कहा कि किसी भी पक्ष ने तथ्यों पर विवाद नहीं किया है और वे केवल अधिकार क्षेत्र के अभाव में मामले की अनुरक्षणियता के सवाल पर भिन्न हैं। इस प्रकार, न्यायालय ने रूपाली देवी (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट के निम्नलिखित निष्कर्ष पर प्रकाश डालाः
‘माता-पिता के घर में मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव, हालांकि वैवाहिक घर में किए गए कृत्यों के कारण, हमारे विचार में माता-पिता के घर में धारा 498-ए के अर्थ के तहत किए गए क्रूरता के अपराध के समान होगा। वैवाहिक घर में की गई क्रूरता का परिणाम यह होता है कि माता-पिता के घर में बार-बार अपराध किया जा रहा है।’’ सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला था कि पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के कृत्यों के कारण पत्नी जिस स्थान पर वैवाहिक घर छोड़ने या बाहर निकाले जाने के बाद शरण लेती है, उस स्थान पर भी धारा 498ए के तहत अपराध करने का आरोप लगाने वाली शिकायत पर विचार करने का अधिकार होगा।
इस मामले में अदालत ने कहा एफआईआर प्रथम दृष्टया माता-पिता के घर में मानसिक प्रताड़ना के आरोप को प्रकट करती है, क्योंकि एफआईआर के अंतिम भाग में दर्ज है कि महिला पति, सास और भाभी की यातना सह रही थी और जब यह सब असहनीय हो गया, तो उसने पुलिस को इसकी सूचना दी। इसके अलावा पति-याचिकाकर्ता के खिलाफ शादी के प्रस्ताव के लिए अलग-अलग लड़कियों को एसएमएस भेजने के आरोप ने प्रथम दृष्टया अदालत को संतुष्ट किया है कि शिकायतकर्ता को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा और इस तरह की मानसिक प्रताड़ना उसे ठीक उस समय भी हुई जब वह अपने माता-पिता के घर में रह रही थी। तदनुसार, न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में महिला का पैतृक घर स्थित है, उसके पास आईपीसी की धारा 498 के तहत मामले पर विचार करने का अधिकार है।
केस टाइटल- श्रीमती गीता तिवारी व अन्य बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य केस नंबर- सीआरएलएमसी नंबर 2596/2015 निर्णय की तारीख-16 जनवरी 2023 कोरम-जस्टिस जी. सतपथी याचिकाकर्ताओं के वकील-सुश्री डी मोहराना,एडवोकेट प्रतिवादियों के वकील-श्री एस.एस. प्रधान,अतिरिक्त सरकारी वकील राज्य के लिए, ओ.पी.नंबर 2 के लिए एडवोकेट श्री बी.सी. मोहराणा साइटेशन-2023 लाइव लॉ (ओआरआई) 15
https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/s498a-ipc-case-can-be-filed-at-a-place-where-wife-resides-after-leaving-matrimonial-home-on-account-of-cruelty-orissa-hc-reiterates-220559
जमानत मिलने के बाद कैदियों की रिहाई में देरी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए निर्देश
*जमानत मिलने के बाद कैदियों की रिहाई में देरी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए निर्देश* 2 फरवरी 2023
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उन विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए हैं जो जमानत आदेश में निर्धारित शर्तों को पूरा करने में असमर्थता के कारण जमानत का लाभ दिए जाने के बावजूद हिरासत में हैं।
7. अभियुक्त/दोषी की रिहाई में देरी का एक कारण स्थानीय ज़मानत पर जोर देना है। यह सुझाव दिया जाता है कि ऐसे मामलों में, अदालतें स्थानीय ज़मानत की शर्त नहीं लगा सकती हैं।